पाकिस्तान की संसद में भारत द्वारा धारा 370 रद्द किए जाने को लेकर तीखी बहस हो रही थी। विपक्ष प्रधानमंत्री इमरान खान पर ताबड़तोड़ हमला कर रहा था कि उन्होंने एक बार कहा था कि “शायद अगर भाजपा जो एक दक्षिणपंथी पार्टी है, जीत जाती है तो कश्मीर का समाधान निकल जाए” लेकिन यहां तो नरेन्द्र मोदी ने नक्शा ही बदल डाला। इमरान खान बेबस हैं। एक बार अपनी संसद में झल्ला कर उन्होंने विपक्ष से यह सवाल जरुर कर दिया कि “आप क्या चाहते हैं कि मैं क्या करुं? भारत पर हमला कर दूं?” यह नहीं कि इमरान खान ने खुद जंग की धमकी नहीं दी। वह संसद में कह चुके हैं कि अगर युद्ध होता है तो यह परमाणु युद्ध होगा और “पाकिस्तान इसके लिए तैयार है” लेकिन वह भी जानते हैं, और जनरल बाजवा भी जानते हैं कि जिस तरह पाकिस्तान के फटेहाल हैं वह लम्बी जंग का मुकाबला कर ही नहीं सकता। हालत तो यह है कि इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री निवास को मैरिज पैलेस में बदल दिया गया है क्योंकि चारों तरफ से पैसे चाहिए।
पाकिस्तान की समस्या है कि दशकों से वहां यह सब्ज़बाग दिखाया जा रहा है कि “कश्मीर बनेगा पाकिस्तान।“ लेकिन जैसे पाकिस्तानी पत्रकार नायला इनायत ने लिखा है, “बचपन से हमें जो सपना बेचा गया उसके चिथड़े उड़ गए हैं।“ राजदूत वापिस बुलाना या व्यापार ठप्प करना या रेल तथा बस सेवा बंद करने से तो कुछ नहीं बदलेगा पर पाकिस्तानी तो कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। एक पूर्व सैनिक अफसर उनके टीवी पर कह रहा था कि कश्मीर के स्टेटस को बदलना है इसलिए “पाकिस्तान को कश्मीर के कई सौ मुरब्बा जमीन पर कब्जा करना होगा। “ उसका यह भी कहना था कि जब तक रोजाना हज़ारों भारतीय सैनिकों की लाशें वहां से उठेंगी नहीं तब तक मोदी आप से बात नहीं करेगा। एक और वरिष्ठ राजनीतिक विशलेषक तारिक पीरज़ादा तो और भी आगे बढ़ गया और उसका कहना था कि “अगर कोई हिन्दू वहां आबाद किया गया तो हम पाकिस्तानियों का कश्मीरियों से कहना है कि उसे एक सैकेंड के लिए जिंदा रहने का हक नहीं होना चाहिए।“
अर्थात हिन्दुओं की मार-काट के लिए कश्मीरियों को उकसाया जा रहा है। यह उनकी बौखलाहट स्पष्ट करता है। दुनिया उनका विलाप नहीं सुन रही। डॉन अखबार ने शिकायत की है, “दुनिया भारत द्वारा कश्मीर को निगलने तथा लोगों को कुचलने के प्रयास के प्रति खामोश है।“ पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी का भी कहना है कि पाकिस्तानियों और कश्मीरियों को “मूर्खों के स्वर्ग में नहीं रहना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में कोई उनके लिए फूलों का हार लिए खड़ा नहीं है।“ हकीकत भी है कि दुनिया में कहीं भी अलगाववादी आंदोलनों के प्रति सहानुभूति नहीं है। पाकिस्तान के कभी संरक्षक रहे सऊदी अरब ने 75 अरब डॉलर का रिलायंस उद्योग में निवेश कर साफ कर दिया कि भारत के कदम से वह परेशान नहीं है।
यही उनकी हताशा बढ़ा रहा है। किसी भी बड़ी ताकत ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया यहां तक कि उनके मित्र चीन का रवैया भी उदासीन रहा है क्योंकि खुद चीन को हांगकांग में भारी चुनौती मिल रही है। न्यूयार्क टाईम्स में मारिया अबी हबीब लिखती हैं, “जो देश कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ खड़े होते थे वह अपनी आर्थिक दुश्वारियों के कारण आज भारत के साथ हैं।“ अफगानिस्तान में तालिबान के नेताओं ने भी स्पष्ट कर दिया कि, “अफगानिस्तान का कश्मीर से कुछ लेना-देना नहीं।“ आखिर तालिबान के नेता नहीं चाहते कि भारत उनके लिए परेशानी खड़ी करे।
पाकिस्तान के पास अब एक ही विकल्प बचा है,आतंकवाद। इमरान खान कह चुके हैं कि “और पुलवामा हो सकते हैं।“ इस खतरे के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। इतना बड़ा कदम उठाते समय पूरा विश्वास भी है कि सरकार ने इसके बारे अवश्य आंकलन किया होगा। लेकिन इस नाजुक स्थिति में जब आतंकवाद को वित्तीय मदद देने पर नज़र रखने वाली संस्था एफएटीएफ अक्तूबर में पाकिस्तान के बारे फैसला करने जा रही उनके लिए भी आतंकवाद के हथियार का इस्तेमाल करना आसान नहीं होगा। उलटा इस वक्त तो वह आंतकियों को छिपाने में लगे हैं। उनकी वरिष्ठ पत्रकार आयशा सद्दीका लिखती हैं, ”अगर इन आतंकी जत्थेबंदियों का समय रहते परित्याग कर दिया जाता… तो पाकिस्तान आज इस स्थिति में न होता कि भाषण देने के सिवाय वह कश्मीर के लिए कुछ और नहीं कर सकते।“
मोदी सरकार ने कश्मीर के बारे स्पष्ट नीति अपनाई है और समझ लिया कि केवल बैंडएड लगाने से जख्म नहीं भरेगा। ‘कश्मीरियत’, ‘जेमहूरियत’, ‘इंसानियत’ का समय गुज़र गया। यह उस दिन दफना दिए गए थे जब कश्मीर से पंडितों को निकाला गया था। बाद में मनमोहन सिंह और परवेज मुशर्रफ ने भी समाधान निकालने का प्रयास किया, लेकिन मुशर्रफ को हटना पड़ा और मनमोहन सिंह की कभी भी राजनीतिक ताकत नहीं थी। वैसे पहले जवाहर लाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी शेख अब्दुल्ला को कैद करने का कठोर निर्णय ले चुके हैं। देश में कई लोग सवाल खड़े कर रहे हैं तो कई चाहते हैं कि सरकार फेल हो जाए। पी. चिंदबरम की टिप्पणी शर्मनाक है कि अगर जम्मू-कश्मीर हिन्दू बहुल वाला क्षेत्र होता तो धारा 370 हटाई नहीं जाती इसे इसलिए हटाया गया क्योंकि यह प्रभुत्व वाला प्रदेश है। सवाल है कि यह हिन्दू-मुस्लिम मामला कैसे बन गया?
लेकिन आगे कई चुनौतियां हैं। पाकिस्तान की ‘प्राक्सी वार’ अर्थात छदम युद्ध तेज हो सकता है। कश्मीर के हालात बिगड़ सकते हैं। दूसरी चुनौती अर्थ व्यवस्था की है। भारत अब दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थ व्यवस्था नहीं रही। पिछले चार दशकों में बेरोजगारी सबसे अधिक है। ऑटोमोबाइल सैक्टर में ही तीन लाख लोगों की छटनी हो चुकी है। तीसरी समस्या पूरी तरह से भाजपा द्वारा खुद खड़ी की है। पार्टी में कुलदीप सैंगर जैसे नेता क्यों है? पार्टी में विक्रम सैनी जैसा विधायक क्यों है जो कश्मीरी लड़कियों के बारे शर्मनाक टिप्पणी कर रहा है? यह व्यक्ति 2013 में एनएसए में गिरफ्तार हुआ था फिर भी टिकट ले गया और सबसे अफसोस की बात है कि हरियाणा के वयोवृद्ध मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी कश्मीर से बहुएं लाने की बात कर रहे हैं। बाद में कहा गया कि यह मज़ाक है पर किसी की भी बहू-बेटी पर मज़ाक क्यों किया जाए? धारा 370 के हटाने का कश्मीरी लड़कियों से क्या लेना-देना? एक तरफ प्रधानमंत्री मामला शांत करने में लगे हैं दूसरी तरफ ऐसी टिप्पणियां जलती में घी डालने के बराबर है। पी चिंदबरम, गुलाब नबी आजाद या अधीर रंजन चौधरी की टिप्पणियों की इतनी चिंता नहीं है अमित शाह को अपनी पार्टी में स्क्रीनिंग तेज और तीखी करनी चाहिए ताकि उच्च पदों तक गलत लोग न पहुंच सकें।
धारा 370 हटाने का निर्णय आसान नहीं रहा होगा। कई आलोचक कह रहे हैं कि यह कदम जमीन को सुरक्षित करने के लिए उठाया गया और रहने वालों की चिंता नहीं की गई। उन्हें अमेरिका के गृह युद्ध की याद करवाना चाहता हूं जब इब्राहिम लिंकन ने भी जमीन के लिए अपने लोगों से लड़ाई की थी। अपनी जमीन सुरक्षित करना किसी भी सरकार की पहली जिम्मेवारी है। आजादी के बाद से ही कई निराशावादियों ने भारत के टुकड़े हो जाने की भविष्णवाणी शुरू कर दी थी। यह धारणा विंसटन चर्चिल से शुरू हुई थी कि भारत के कुछ ही वर्षों में टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। सिक्किम का विलय कर और पाकिस्तान के टुकड़े करवा हम प्रदर्शित कर चुके हैं कि जरूरत पडऩे पर हम सख्त कदम उठा सकते हैं। अब फिर कश्मीर के बारे निर्णायक कदम उठा कर हमने साबित कर दिया है कि हम सख्त कदम उठाने की क्षमता रखते हैं और हमारे पास वह नेतृत्व भी है जो देश के व्यापक हित में जोखिम उठाने को तैयार है। इमरान खान और उनका पाकिस्तान बार-बार ‘कश्मीर के बकाया’ मुद्दे की बात करते रहे हैं। अब वह मुद्दा ही नहीं रहा। अगर इस सख्ती से दखल न दी जाती तो एक दिन कश्मीर इस्लामिक स्टेट बन जाता। कश्मीर के बारे अब संदिग्धता खत्म कर दी गई है। चाणक्य ने सही कहा था, “उद्देश्य अच्छा हो तो उसे प्राप्त करने के साधन का औचित्य अपने आप सिद्ध हो जाता है।“
मोदी का दाव और इमरान की बेबसी (Aggressive Modi and Helpless Imran),