यह मानना पड़ेगा कि अमेरिकी राष्ट्रपतियों को साधने की कला में नरेन्द्र मोदी का कोई मुकाबला नहीं। जवाहर लाल नेहरू की अगवानी के लिए खुद राष्ट्रपति कैनेडी हवाई अडड्डे पर गए थे लेकिन रिश्ता आगे बढ़ नहीं सका क्योंकि तब तक नेहरू वृद्ध हो गए थे और युवा अमेरिकी राष्ट्रपति से संबंध कायम नहीं कर सके। सबसे कड़वे रिश्ते इंदिरा गांधी तथा अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के रहे हैं। बांग्लादेश के संकट के समय निक्सन ने हमारी बात सुनने से ही इंकार कर दिया था। जब दूसरे दिन मुलाकात का समय आया तो निक्सन ने इंदिरा गांधी को अपने दफ्तर के बाहर 45 मिनट इंतजार करवाया था। इंदिरा गांधी को भी आभास था कि वह एक प्राचीन सभ्यता की प्रतिनिधि है इसलिए दूसरी बैठक के दौरान उन्होंने मुद्दे पर चर्चा ही नहीं की और मौसम की बात कर बाहर आ गई। इंदिराजी झुकी नहीं और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर इतिहास बना गई।
1991 में बर्लिन दीवार के गिरने तथा शीतयुद्ध के समाप्त होने के बाद दुनिया बदल गई और उसके साथ ही भारत की विदेश नीति भी बदल गई। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरन में परमाणु विस्फोट कर दुनिया को चौंका दिया लेकिन अमेरिका नाराज़ हो गया और बिल क्लिंटन सरकार ने हम पर प्रतिबंध लगा दिए। भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में सबसे नाटकीय परिवर्तन मनमोहन सिंह सरकार के समय आया जब अपनी पार्टी के एक वर्ग तथा कम्युनिस्ट विरोध के बावजूद उन्होंने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया। अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश का योगदान उल्लेखनीय रहा। इस समझौते के साथ ही हम पर लगाए प्रतिबंध निरस्त हो गए और एक प्रकार से भारत को एक विश्व ताकत के तौर पर मान्यता दे दी गई। फिर बराक ओबामा राष्ट्रपति बने जिनका शुरू में रवैय बहुत मैत्रीपूर्ण नहीं था। वह चाहते थे कि चीन और अमेरिका मिल कर दुनिया को संभाले इसलिए हमें महत्व नहीं दिया लेकिन चीन अधिक उतावला था और अपनी ताकत के नशे में उसने आसपास के देशों में दखल शुरू कर दी। तब बराक ओबामा को समझ आ गई कि चीन अमेरिका की ताकत को चुनौती देना चाहता है। ऐसे मौके पर नरेन्द्र मोदी ने उन्हें लपक लिया। ओबामा दो बार भारत आए और यह बात स्पष्ट थी कि दोनों ओबामा और मोदी एक-दूसरे की इज्ज़त करते हैं और आपसी गर्मजोशी है।
ओबामा अश्वेत हैं और गांधीजी की विचारधारा से प्रभावित हैं लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प उल्ट हैं। वह अमेरिका में गोरों के प्रभुत्व को पसंद करते हैं और वहां प्रवासियों के खिलाफ उनका कड़ा रुख रहा है। जब वह राष्ट्रपति बने तो शुरू में भारत को उन्होंने भी नज़रअंदाज़ कर दिया। उन्होंने यह छिपाने की कोशिश नहीं की कि उनके लिए ‘अमेरिका फर्स्ट’ है लेकिन उन्होंने बहुत पहले भांप लिया कि अमेरिका को चीन की बढ़ती ताकत से भारी चुनौती है। चीन ने अमेरिकी टैक्नालिजी का इस्तेमाल कर खुद को अमेरिका के बराबर खड़ा कर लिया है अब ट्रम्प इसे दुरुस्त करने में लगे हैं। उन्होंने चीन के साथ व्यापार युद्ध शुरू कर दिया है जिसके साथ चीन की मुश्किलें बढ़ गई हैं। ट्रम्प ने एशिया में चीन का मुकाबला करने के लिए दूसरे देशों को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी भारत इनमें प्रमुख है। वह जानते हैं कि चीन की बराबरी करने की क्षमता केवल भारत में है। हयूस्टन में मोदी-ट्रम्प गर्मजोशी के बाद अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल ने भी लिखा है कि दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देश चीन की ऐशिया-प्रशांत महासागर क्षेत्र पर हावी होने की महत्वकांक्षा पर निर्णायक अवरोध है।
नरेन्द्र मोदी संघ के प्रचारक रहें हैं इसलिए विदेश नीति के बारे वह जो कुशलता दिखा रहे हैं वह न केवल हैरान करने वाली बल्कि प्रशंसनीय भी है। वह समझ गए कि विश्व में भारत की क्या जगह है और उसे कहां ले जाना है। पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के प्रधानमंत्री के साथ मंच सांझा किया है। जिस तरह बाद में दोनों नेता हाथ में हाथ डाले खचाखच भरे स्टेडियम में घूमते रहे इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नरेन्द्र मोदी एकमात्र विश्व नेता हैं जिन्हें विश्व के सबसे ताकतवर देश में इस तरह का मंच उपलब्ध हुआ है। ट्रम्प ने भी ‘ रैडिकल इस्लामिक टैरर’ की बात कर वहां उपस्थित भारतीय जनसमूह को गद्गद कर दिया। दुनिया को संदेश था कि भारत और अमेरिका साथ आ रहें हैं। नरेन्द्र मोदी की धुन सफल रही और वह ट्रम्प जैसे कोरे और सनकी व्यक्ति जो अपने कई साथी देशों के नेताओं को दुत्कार चुके हैं, को अपनी तरफ खींचने में सफल रहे। चीन और पाकिस्तान को जरूर तकलीफ हुई होगी।
नरेन्द्र मोदी दुनिया मेें फैले 1.75 करोड़ प्रवासी भारतीयों की ताकत को पहचानते हैं। अमेरिका में औसत परिवार की वार्षिक आय 50,000 डॉलर है पर वहां बसे भारतीय परिवारों की आय 90,000 डॉलर वार्षिक है और लगभग सब उच्च शिक्षा प्राप्त है। अभी उनकी वह ताकत तो नहीं जो वह यहूदी समुदाय की है लेकिन बिसनेस, सार्वजनिक सेवाओं, आईटी, विज्ञान, मैडिकल, अध्यापन आदि में भारतीय समुदाय की सफलता को अब वहां कोई नजरअंदाज़ नहीं कर सकता। हयूस्टन में साफ था कि यह प्रवासी समुदाय मोदी का दीवाना है। सबसे भावुक स्वागत कश्मीरी पंडितों की तरफ से हुआ जो धारा 370 हटाए जाने से हर्षित हैं। प्रवासी समुदाय इसलिए भी संतुष्ट है क्योंकि भारत की बढ़ती ताकत और नरेन्द्र मोदी द्वारा इसके प्रदर्शन से दुनिया में भारत के पासपोर्ट की इज्जत बढ़ी है। विदेश में अब हमें हिकारत से नहीं देखा जाता। पिछले पांच राष्ट्रपति चुनाव में इस समुदाय ने कई प्रांतों में निर्णायक भूमिका निभाई है। यह भी एक कारण है कि प्रवासियों का विरोध करने वाले डॉनल्ड ट्रम्प ने इतनी खुशी-खुशी इस प्रवासी समागम में हिस्सा लिया है। 2020 में उनका चुनाव है और आमतौर पर भारतीय-अमेरिकन समुदाय का झुकाव उनकी विरोधी डैमोक्रैटिक पार्टी की तरफ ही रहता है। अब भारत तथा मोदी की प्रशंसा कर तथा समर्थन दे ट्रम्प अपना आधार बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह कहना कि च् अगली बार ट्रम्प सरकारज् उनका अनुमोदन है जिससे ट्रम्प खूब प्रसन्न नज़र आ रहे थे पर बेहतर होता मोदी अमेरिका की राजनीति में इस तरह दखल न देते।
दोनों देशों के रिश्तों में आगे क्या? निश्चित तौर पर सामरिक, आर्थिक और रक्षा संबंध और गहरे होंगे। देखना होगा कि चीन की क्या प्रतिक्रिया रहती है जिसके राष्ट्रपति अगले महीने भारत आ रहे हैं और बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम अपना घर और अपनी अर्थ व्यवस्था को कैसे संभालते हैं। विदेशी मीडिया में हमारी आलोचना शुरू हो गई है कि यहां अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं। पर इस रिश्ते को लेकर बहुत भावुक होने की जरूरत भी नहीं है। दोनों मोदी और ट्रम्प शुद्ध व्यवहारिक राजनेता हैं और दोनों के आगे अपना-अपना राष्ट्रीय हित है। ट्रम्प वैसे भी सनकी और अस्थिर स्वभाव के नेता हैं जिन्होंने ईरान पर हमले का आदेश दे कर दस मिनट पहले इसे रोक दिया। कुछ मालूम नहीं कि अगले क्षण वह क्या ट्वीट कर दें। उधार के जहाज में वहां गए इमरान खान के साथ बैठक में उन्होंने कश्मीर पर मध्यस्थता को उछाल दिया है जबकि नरेन्द्र मोदी इसे रद्द कर चुकें हैं। रिश्तों में जो अनुरुपता जार्ज बुश तथा बराक ओबामा के समय थी वह शायद अब न मिले। नरेन्द्र मोदी के सामने भी भारत का हित है और वह सही समझते हैं कि इस वक्त ट्रम्प से संबंध गहरे करने में ही सही है। वह फुर्तीले भी बहुत हैं इसीलिए आराम से बराक ओबामा से ट्रम्प का सफर कर गए हैं। अब हमें ट्रम्प से प्यार है, कम से कम जब तक वह कुर्सी में है!
अबकी बार ट्रम्प से प्यार (Ab Ki baar Trump se Pyar),