पांच साल पहले जब अनुभवहीन मनोहरलाल खट्टर को नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया तो सारा प्रदेश दंग रह गया। आम राय थी कि अनाड़ी के हाथ प्रदेश को संभाल दिया गया। खट्टर के बारे अधिक जानकारी भी नहीं थी इसके सिवाय कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहें हैं और कुछ महीने वह और एक और प्रचारक नरेन्द्र मोदी, पंचकूला में एक ही घर में रहे थे। उनकी प्रशासनिक अनुभवहीनता तथा राजनीतिक अनाड़ीपन की आशंका उस समय सही सिद्ध होती नज़र आई जब फरवरी, 2016 में प्रदेश को हिंसक जाट आंदोलन का सामना करना पड़ा। दस दिन प्रदेश में व्यापक स्तर पर आगजनी हुई। अराजक माहौल था। फिर रामपाल का मामला उठा और हरियाणा का प्रशासन फिर नाकाम रहा। यही अनाड़ीपन अगस्त, 2017 में दोहराया गया जब प्रदेश सरकार डेरा सच्चा सौदा के प्रदर्शनकारियों को संभाल नहीं सकी। फिर वही अराजक माहौल था। जायज़ सवाल उठा कि डेरा प्रमुख राम रहीम सिंह की सज़ा का विरोध कर रहे लाखों अनुयायियों को पंचकूला में इकट्ठे क्यों होने दिया गया? व्यापक आगजनी हुई लेकिन दो साल में कैसा कायाकल्प हुआ! पार्टी में उनके विरोधी भी अब मनोहरलाल खट्टर से प्रार्थना करते देखे गए कि वह उनके चुनाव क्षेत्र में प्रचार करें। भाजपा इस बार 65 वर्षीय मनोहरलाल खट्टर के कंधों पर सवार सत्ता में वापिसी की आशा में है और यह आशा निर्मूल नहीं। इसके तीन कारण हैं।
एक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व। उनका जादू अभी भी कायम है। चाहे यह प्रादेशिक चुनाव है पर महाराष्ट्र की तरह ही हरियाणा में भी नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता पार्टी के काम आ रही है। धारा 370 हटा कर उन्होंने देश का बहुत बड़ा काम किया है। उसके बाद हयूस्टन में डॉनल्ड ट्रम्प का हाथ पकड़ कर स्टेडियम का चक्कर लगाना तथा ममल्लापुरम में वेशटी डाल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का स्वागत कर नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर देश को प्रभावित किया है। चीन के साथ संबंध एकदम सही होने वाले नहीं। जिनपिंग ने 100 वर्षों की बात कही है लेकिन पिछले कुछ सप्ताह बता गए कि नरेन्द्र मोदी का आभा मंडल पहले से अधिक मजबूत हुआ है। राहुल गांधी फिर राफेल का रोना रो रहे हैं पर कोई सुन नहीं रहा। उन्होंने भी तय कर लिया है कि वह सुधरेंगे नहीं। कहना था कि चांद पर जाने से नौकरियां नहीं मिलेंगी। नौकरियों की समस्या तो है पर जो राष्ट्रीय गौरव की घटना है उसका मज़ाक क्यों बनाया जाए? क्या तुलना के लिए राहुल गांधी को कुछ और नहीं मिला?
दूसरा, भाजपा का सौभाग्य है कि वहां विपक्ष बुरी तरह बंटा और निरुत्साहित है। जब से खट्टर मुख्यमंत्री बने हैं भाजपा वहां हर चुनाव जीती है। बहुत देर हिचकिचाने के बाद कांग्रेस ने हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन किया और पुराने नेता भूपिंद्र सिंह हुड्डा तथा कुमारी शैलजा को बागडोर संभाल दिया है। हुड्डा बहुत समय से जोर लगा रहे थे और जब बात नहीं बनी तो अमरेन्द्र सिंह की तर्ज़ पर बगावत की धमकी दे दी तब जाकर उनकी बात सुनी गई। हुड्डा पूर्व मुख्यमंत्री हैं और खुद को जाटों के नेता समझते हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में वह और उनके पुत्र दोनों सोनीपत और रोहतक से हार गए थे। हुड्डा अच्छे प्रशासक रहे हैं लेकिन उनके समय बहुत विवादास्पद जमीनी सौदे हुए हैं जिनके कारण उन्हें कानून का सामना करना पड़ रहा है, इनमें राबर्ट वाड्रा के सौदे भी शामिल हैं। उनकी यह भी समस्या है कि गैर-जाट जाट आंदोलन में व्यापक हिंसा के कारण उनसे बहुत दूर चले गए हैं और केवल 27 प्रतिशत जाटों के समर्थन पर सरकार नहीं चलती। जाट भी उनके, भाजपा तथा चौटाला कुनबे के बीच बंटे हुए हैं। बड़ी समस्या यह भी है कि कांग्रेस का खजाना खाली है जिसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि केबल कनैक्शन वाला भी अपना 2500 रुपया बकाया लेने के लिए कुमारी शैलजा के पास पहुंच गया था। बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
दूसरी तरफ चौटाला परिवार इस प्रकार बंट चुका है कि इसे भी टुकड़े-टुकड़े गैंग कहा जा सकता है! भाजपा से लडऩे की जगह उनके दोनों पुत्र अजय तथा अभय के परिवारजन एक-दूसरे को पराजित करने में लगे हैं। चौधरी देवीलाल की इंडियन नैशनल लोकदल अब अंतिम सांस ले रही है। उनके अधिकतर विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 2018 के चुनाव में इनैलो को मात्र 2 प्रतिशत वोट मिले थे। दुष्यंत चौटाला भी केवल जाट समर्थन पर निर्भर हैं जबकि भाजपा ने 37 गैर-जाट जातियों को अपने पीछे खड़ा कर लिया है। ऐसा ही प्रयास महाराष्ट्र में किया गया जहां ब्राह्मण दवेन्द्र फडऩवीस को मुख्यमंत्री बना कर मराठा प्रभुत्व को समाप्त कर दिया गया। वहां भी एनसीपी तथा कांग्रेस दोनों का लहू बह रहा है और नेता बड़े स्तर पर पार्टी छोड़ भाजपा में जा रहे हैं।
हरियाणा में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन की संभावना का बड़ा कारण तीसरा है। यह खुद मनोहरलाल खट्टर हैं जिन्होंने पुरानी राजनीति को असफल कर दिया। बहुत समय तीन लाल, अर्थात बंसीलाल, देवीलाल तथा भजनलाल तथा उनके परिवारों की तूती बोलती रही। बंसीलाल अच्छे प्रशासक थे पर घमंडी थे और संजय गांधी को गलत रास्ते में डालने की उनकी प्रमुख भूमिका थी। देवीलाल लोकप्रिय थे लेकिन अपने कुनबे को ही आगे बढ़ाते रहे। उन्होंने तो एक बार बेबाक कहा था कि ‘अपने छोरों को आगे नहीं करुंगा तो क्या भजनलाल छोरों को आगे करुंगा?’ भजनलाल के समय हरियाणा च्आया राम गया रामज्के नाम से कुख्यात हो गया था। उनके बाद भूपिन्द्र सिंह हुड्डा आ गए। इन सबने न केवल परिवारवाद को बढ़ावा दिया बल्कि इस दौरान हरियाणा भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात हो गया। देवीलाल, बंसीलाल, भजनलाल तथा भूपिन्द्र सिंह हुड्डा के अब भी एक दर्जन परिवार सदस्य चुनाव मैदान में हैं। जमाना बदल गया लेकिन इन लोगों को अपने-अपने परिवार से आगे कुछ नज़र नहीं आता।
मनोहरलाल खट्टर इन सबसे अलग हैं। न परिवार, न परिवारवाद। वह आऊटसाईडर थे जिन्होंने हरियाणा की राजनीति बदल डाली। बताया जाता है कि वह तो मुख्यमंत्री निवास में चाय के कप की संख्या पर भी नज़र रखते हैं! यह उनकी स्वच्छ छवि है जो भाजपा को हरियाणा में आगे बढ़ा रही है। हरियाणा को दुरुस्त करने की जरूरत भी बहुत थी। जहां पहले पैसे लेकर या जाति देखकर भर्ती होती थी उसकी जगह पारदर्शी व्यवस्था कायम कर दी गई है। केवल मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरी मिल रही है। प्रशासन में भ्रष्टाचार पर लगाम लगा कर खट्टर ने प्रदेश की बहुत सेवा की है। राजनाथ सिंह ने उन्हें ‘फकीर’ कहा है। राजनीति में फकीर तो कोई नहीं होता लेकिन प्रदेशों की राजनीति में शायद ही मनोहरलाल खट्टर जैसा ईमानदार नेता और होगा। उनका प्रशासन कई बार अयोग्य अवश्य रहा है लेकिन कोई उन पर भ्रष्टाचार के लांछन नहीं लगा सकता। उनकी सादगी अनुकर्णीय है पर प्रशासन को सही करने की अभी बहुत जरूरत है।
हरियाणा के चुनाव को लेकर भाजपा तथा अकाली दल का गठबंधन उधड़ता नज़र आ रहा है। भाजपा ने अकाली दल के लिए सीटें छोडऩे से इंकार कर दिया जिससे चिढ़ कर सुखबीर बादल का कहना है कि हरियाणा में भाजपा की सरकार नहीं बनने वाली। पंजाब में बादल परिवार की गिरती साख के कारण भाजपा अपनी अलग हस्ती कायम करने में लगी है। करतारपुर साहिब गलियारे के द्वारा सिख सद्भावना अर्जित करने का प्रयास किया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है जबकि उसने ऐसी कोई प्रार्थना नहीं की थी लेकिन भाजपा उग्र सिख राय को शांत करने में लगी है। इसका पंजाब में भाजपा-अकाली गठबंधन पर असर पड़ेगा लेकिन अभी तो देखना है कि हरियाणा में जिन्हें अनाड़ी समझा गया वह कितने बड़े खिलाड़ी निकलते हैं!
अनाड़ी से खिलाड़ी : मनोहरलाल खट्टर (The Khattar Factor),