किसी को जनादेश नहीं (No One Gets Mandate)

सभी पंडितों, विशेषज्ञों, पत्रकारों, सर्वेक्षणकर्त्ताओं को गलत सिद्ध करते हुए लोगों ने हरियाणा में भाजपा का बहुमत छीन लिया और महाराष्ट्र में पार्टी को शिवसेना की ब्लैकमेल के लिए खुला छोड़ दिया। भाजपा का विजय रथ रोक दिया गया है पर किसी दूसरी पार्टी को भी पूरा समर्थन नहीं दिया। विपक्ष ने भी कुछ कमाल नहीं दिखाया, केवल जनता ने अपनी आवाज़ बुलंद की है कि वह नाराज हैं, पर बहुत भी नहीं। उसे एक पार्टी पर आधारित व्यवस्था पसंद नहीं इसलिए जैसे-तैसे विपक्ष को मज़बूत कर रही है। लोग विपक्ष चाहते हैं और वह अपने पास दलों का भाग्य बनाने या बिगाडऩे की ताकत चाहते हैं। इन चुनावों का आने वाले दिल्ली और झारखंड चुनावों पर असर पड़ेगा। प्रभाव फैल गया है कि मोदी तथा भाजपा के रथ को रोका जा सकता है बशर्ते की सामने मज़बूत स्थानीय नेता हो। दिल्ली में आप अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। इन चुनाव परिणामों के आठ मुख्य संकेतक हैं,

एक, पिछली सफलताओं ने भाजपा में जरूरत से अधिक आत्म विश्वास भर दिया था। समझ लिया गया कि हम अजय हैं। आखिर मज़बूत नेतृत्व तथा मज़बूत संगठन है और सामने कोई नहीं है लेकिन राजनीति में शून्य नहीं होता। लोग विकल्प ढूंढ लेेते हैं। जिस तरह भाजपा ने इतमिनान से दलबदलुओं के लिए दरवाज़े खोल दिया उससे चमक फीकी पड़ी है। पार्टी तो एक समय गोपाल कांडा जैसे कुख्यात व्यक्ति की मदद भी लेने को तैयार थी। यह कदम तब वापिस लिया गया जब देश भर में इसके खिलाफ आवाज़ उठ खड़ी हुई लेकिन इतनी नैतिक लापरवाही क्यों कि गोपाल कांडा की मदद लेने पर भी एक समय विचार किया गया?

दो, भावनात्मक मुद्दों के इस्तेमाल की भी सीमा है। धारा 370 खत्म करना, बालाकोट हमला आदि को पार्टी काफी भुना चुकी है। प्रादेशिक चुनाव रोजमर्रा के मुद्दों पर लड़े जाते हैं जबकि चुनाव प्रचार में भाजपा के नेता पाकिस्तान को रगड़ा लगाते रहे तथा धारा 370 की बात करते रहे। लोग राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक चुनावों में अंतर करना जानते हैं और प्रादेशिक चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय मुद्दों पर भारी नहीं पड़ते। चाहे वह शरद पवार हो या भूपिन्द्र सिंह हुड्डा या दुष्यंत चौटाला सब स्थानीय मुद्दों पर ही केन्द्रित रहे इसीलिए उन्हें यह सफलता मिली है। और धु्रवीकरण की भी सीमा होती है। अब यह पत्ता नहीं चल रहा।

तीन, लोग अपने दैनिक जीवन में बहुत खलल पसंद नहीं करते। जब नोटबंदी हुई तो शुरू में लोगों ने इसे पसंद किया था लेकिन धीरे-धीरे समझ आ गई कि इससे जिंदगी में बहुत बड़ा विघ्न पड़ा है और लोग नाराज़ हो गए। जीएसटी अच्छा कदम है लेकिन जिस तरह उसे लागू किया गया उससे विशेष तौर पर भाजपा का आधार ट्रेडर या बनिया समुदाय उलट गया है और उसने भाजपा के खिलाफ वोट डाला है। अब अमित शाह कह रहें हैं कि सारे देश में एनआरसी लागू किया जाएगा। क्या अब फिर सारे देश को लाईन में खड़ा किया जाएगा? मनोहर लाल खट्टर ने भी घोषणा कर दी कि हरियाणा में एनआरसी लागू की जाएगी। क्या जरूरत है? पहले ही लोगों के पास आधार कार्ड तथा राशन कार्ड आदि के पहचान पत्र हैं। न ही हरियाणा की असम या बंगाल की तरह अंतर्राष्ट्रीय सीमा है। 1500 रोहिंग्या नूह तथा फरीदाबाद के दो जिलों में रहते हैं। कुछ सौ बांग्लादेशी कारखानों में काम करते हैं। इस बात का कोई खतरा नहीं है कि प्रदेश में व्यापक विदेशी घुसपैठ होगी। भाजपा के नेतृत्व में यह भावना क्यों है कि उन्हें कुछ न कुछ चमत्कारपूर्ण जरूर करना है? वह यह क्यों नहीं समझते कि लोग चैन चाहते हैं। सदा तनाव में रहना नहीं चाहते।

चार, लोगों को वह स्थानीय नेता चाहिए जो उनके लिए डट सकते हैं। मनोहरलाल खट्टर तथा दवेन्द्र फडऩवीस को ऐसे नेता नहीं समझा गया। यह मोदी बनाम राहुल गांधी जंग नहीं बनी यह मनोहरलाल खट्टर बनाम भूपिन्द्र सिंह हुड्डा बन गई। मतदान प्रादेशिक सरकार के कामकाज पर केन्द्रित हो गया जिसका परिणाम था कि भाजपा के लगभग सभी मंत्री लुढ़क गए। पांच, सशक्त समुदायों की अनदेखी भी भारी पड़ी। हरियाणा में जाटों ने और महाराष्ट्र में मराठों ने विरोध मेें वोट दिया। इनका प्रभाव अपनी संख्या से अधिक रहता है। अपने हाथ में सत्ता छिन जाने से यह समुदाय नाराज थे।

छ:, भाजपा को जो धक्का पहुंचा है इसका सबसे बड़े कारण आर्थिक है। अर्थ व्यवस्था में गिरावट से लोखों परिवार भारी तकलीफ में हैं। उनके रोजगार छिन गए हैं। हरियाणा में बेरोजगारी की दर भारी 28 प्रतिशत है जो देश में सबसे अधिक है। विशेष तौर पर ऑटोमोबाईल कंपनियों ने हजारों लोगों को नौकरियों से हटा दिया है। इसके अतिरिक्त देहात में असंतोष है। इसका असर अब साफ नज़र आ रहा है। उत्पादन तथा निर्यात में कमी आई है जिससे लाखों रोजगार प्रभावित हुए हैं। बाजार में मंदी है जो दिवाली के समय भी नज़र आई है। लोग पैसे खर्चने को तैयार नहीं और घबराते हैं कि सरकार और क्या कदम उठा लें। लोगों को आश्वस्त करने की जरूरत है जबकि भाजपा के कई मंत्री उलट-पुलट स्पष्टीकरण देते रहते हैं पर जख्मों पर मरहम लगाने का कोई प्रयास नहीं हो रहा। रविशंकर प्रसाद का यह कहना है कि दो बॉलीवुड फिल्में सुपरहिट रही हैं इसलिए मंदी नहीं है बताता है कि यह मंत्री किस कल्पनालोक में रहते हैं। जीडीपी लगभग 5 प्रतिशत पर है जबकि तेज़ी से विकास करने के लिए 8 प्रतिशत की दर चाहिए। जब तक यह नहीं होता 5 प्रतिशत विकास का चुनावों तथा राजनीति पर विपरीत असर पड़ता रहेगा। बड़ी संख्या में छोटे कारोबार तथा कारखाने बंद हो रहें हैं।

सात, जहां यह चुनाव परिणाम भाजपा के नेतृत्व के लिए कई सवाल छोड़ गया है वहां यह कांग्रेस के हाईकमान को भी असुखद स्थिति में डाल गया है। हरियाणा में कांग्रेस को जो सफलता मिली है वह गांधी परिवार के कारण नहीं बल्कि गांधी परिवार के बावजूद मिली है। राहुल गांधी ने दो चुनावी सभाओं को संबोधित किया जहां स्थानीय मुद्दों को उठाने की जगह राफेल का रोना रोते रहे। हरियाणा में कथित हाईकमान की नहीं बल्कि भूपिन्द्र सिंह हुड्डा की कामयाबी है जबकि महाराष्ट्र में कोई प्रमुख स्थानीय नेता न होने के कारण कांग्रेस चौथे नंबर पर रही। कांग्रेस के लिए यह बहुत अच्छा संदेश नहीं हैं कि भाजपा के प्रति असंतोष का वह फायदा नहीं उठा सके। लोगों का झुकाव सशक्त प्रादेशिक नेताओं की तरफ है चाहे वह पंजाब के अमरेन्द्र सिंह हो या हरियाणा के भूपिन्द्र सिंह हुड्डा हो या महाराष्ट्र के शरद पवार हो। कड़वी हकीकत है, गांधी परिवार के चुनाव प्रचार से बाहर रहने का कांग्रेस को फायदा हुआ है।

आठ, यह चुनाव परिणाम न किसी को पूरी तरह से संतुष्ट और न ही असंतुष्ट छोड़ गए हैं। नरेन्द्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं पर उन्हें भी समझना चाहिए कि लोग रोज़ी-रोटी की समस्याओं से ध्यान हटाने को तैयार नहीं। हर वर्तमान समस्या के लिए जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। इस समय भाजपा का कोई राष्ट्रीय विकल्प नहीं है। भाजपा को झटका देते हुए लोगों ने किसी एक पार्टी से विश्वास प्रकट नहीं किया। लोग संतुलन तो कायम करना चाहते हैं पर उन्होंने विपक्ष को भी जनादेश नहीं दिया। लोग एक तरफ मोदी सरकार के प्रति नाराज़गी व्यक्त कर रहे हैं पर दूसरी तरफ वह नरेन्द्र मोदी में विश्वास भी व्यक्त कर रहे। इन चुनावों का यह भी दिलचस्प निष्कर्ष है कि चुनाव गांधी परिवार के बिना तो लड़े जा सकते हैं पर नरेन्द्र मोदी के बिना नहीं। कांग्रेस पार्टी अपने नेतृत्व की सक्रियता के बिना बेहतर प्रदर्शन करती है पर भाजपा मोदी के बिना बिलकुल बेसहारा है। पर अर्थ व्यवस्था के संकट से सावधान होने की जरूरत है। इसने बड़े-बड़ों के ताज उछालें हैं।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.