
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के ज़मीनी विवाद पर अपना ऐतिहासिक निर्णय देकर वह पचीदा मामला हल कर दिया जिसका शताब्दियों से कोई समाधान नहीं निकल पा रहा था। यह जश्न का समय है क्योंकि अयोध्या के भव्य राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है और यह कार्रवाई भी संविधान के दायरे के अंदर हो रही है और पूरा संयम दिखाते हुए देश ने इसे स्वीकार किया है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को सौंपने का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट ने सदियों पुरानी कटुता समाप्त करने का रास्ता निकाल दिया है। हिन्दू तथा मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भी स्थिति को शांत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश ने इस मामले में वह परिवक्वता दिखाई है जो कुछ समय से गायब नज़र आ रही थी।
इतिहास की बड़ी भूल को सही कर लिया गया है। हर धर्म के अनुयायियों के पास अपने-अपने पवित्र धार्मिक स्थल है केवल करोड़ों हिन्दुओं को अपने देश में अपने सबसे पवित्र धार्मिक स्थल के दर्शन से वंचित रखा गया। आज जो असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता गुस्सा उगल रहें हैं क्या उन्होंने कभी सोचा है कि इसी तरह अगर किसी ने उनके धर्मस्थलों को नष्ट कर उस पर कब्ज़ा कर लिया होता तो मुसलमानों की क्या प्रतिक्रिया होती? लेकिन यहां करोड़ों लोगों के धार्मिक समुदाय ने पांच शताब्दियां धैर्य से काम लिया और अपने अति पवित्र स्थल का निर्णय न्यायधीशों के हाथ में छोड़ दिया। यह भी कितनी निराली बात है कि इतने पुराना विवाद का तर्क और प्रमाण के आधार पर न्यायपालिका के दरबार में समाधान निकाला गया। हमारी न्यायपालिका बधाई और धन्यवाद की पात्र हैं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी जो इस फैसले से असंतुष्ट हैं ने 22 अप्रैल, 2009 को हाईकोर्ट की फुल बैंच के सामने माना था कि “इस बात पर कोई विवाद नहीं कि हिन्दुओं की आस्था है कि अयोध्या में ही भगवान राम का जन्म हुआ जैसे कि वाल्मीकि रामाण में दर्ज है। विवाद यह है कि क्या बाबरी मस्जिद भगवान राम के जन्म स्थल पर बनाई गई थी।” लेकिन क्या जिलानी साहिब बताएंगे कि अगर भगवान राम का ‘वहां’ जन्म नहीं हुआ तो और कहां हुआ था? पुरातात्विक विभाग ने वहां विवादित ढांचे की दीवारों में मंदिर के 14 स्तम्भ पाए थे। स्तम्भ के निचले भाग में 11-12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले कलश बने थे। बाद में आसपास की खुदाई मेें भी ऐसे ही स्तम्भ पाए गए। उस समय विभाग के क्षेत्रीय निदेशक रहे के.के. मोहम्मद का कहना है कि “इन साक्ष्यों के आधार पर मैंने कहा था कि विवादित ढांचे के नीचे एक मंदिर था। उसके बाद भी वहां जितनी खुदाई हुई उनमें वहां मंदिर के प्रमाण मिले।”
राम केवल हिन्दू समाज के ही पूजनीय नहीं वह हमारी संस्कृति के आधार हैं इसीलिए महात्मा गांधी ने रामराज्य की कल्पना की थी और देश के संविधान की मूल प्रति जो हाथ से लिखी गई थी उसमें राम, सीता तथा लक्ष्मण के चित्र बने हैं। गुरु नानक देव जी अयोध्या गए थे। एक जज ने लिखा है कि गुुरु नानक देव जी द्वारा राम जन्म भूमि के दर्शन करने अयोध्या जाना यह सिद्ध करता है कि सन् 1528 से पहले वहां राम जन्म भूमि का अस्तित्व था और श्रद्धालु वहां जाते थे। गुरु नानक देव जी ने अयोध्या में 1510-1511 के बीच दर्शन किए थे तब तक बाबर ने भारत पर चढ़ाई नहीं की थी।
जिन मुस्लिम नेताओं ने इस मामले में हठधर्मिता दिखाई और दिखा रहें हैं उन्होंने देश तथा अपने समुदाय का बहुत अहित किया है। उन्होंने कटुता बढ़ाई और धु्रवीकरण को बल दिया जिसका उनके समुदाय को भारी नुकसान हुआ। उन्होंने मुसलमानों में असुरक्षा बढ़ाई और इसका इस्तेमाल किया। अंदर से वह भी जानते हैं कि यह राम जन्म भूमि है। कई मुसलमान विद्वान कह चुके हैं कि हमें यह जमीन हिन्दुओं को सौंप देनी चाहिए क्योंकि यह उनके ईष्ट भगवान राम की जन्म भूमि है। आखिर इकबाल ने भी कहा था “है राम के वजूद पर हिन्दोस्तान को नाज़” पर मामला राजनीतिक बन गया जिसके अनर्थकारी परिणाम निकले। अगर उदारता दिखाते हुए यह स्थल हिन्दुओं को सौंप दिया जाता तो इतनी हिंसा तथा तनाव न होता। वह जानते हैं कि यह स्थल करोड़ों हिन्दुओं की श्रद्धा तथा भक्ति का स्थल है जबकि बाबर तो एक क्रूर हमलावर था जिसके अत्याचारों के खिलाफ गुरु नानक देव जी ने भी आवाज़ उठाई थी। जैसे अवशेष उस स्थल से मिले हैं वह इस्लामिक परम्परा के खिलाफ है लेकिन फिर भी कुछ मुस्लिम नेता अड़े रहे। अब भी ओवैसी जैसे लोग बहुत गुस्से में हैं लेकिन मुसलमानों की बहुत बड़ी राय यह है कि हमें आगे बढ़ना चाहिए। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफैसर मुहम्मद साजिद का कहना है कि उन्हें 5 एकड़ का टुकड़ा नहीं लेना चाहिए और “मुसलमानों को आगे बढ़ना चाहिए। उन्हें फैसले के पुनर्विचार के बारे भी नहीं सोचना चाहिए। उन्हें अपने शैक्षिक तथा आर्थिक कल्याण पर ध्यान देना चाहिए यह समझते हुए कि बहुसंख्या की भावना कई बार राष्ट्रीय भावना बन जाती है।”
यह केवल ‘बहुसंख्या की भावना’ का मामला ही नहीं है यह इतिहास की ज्यादती को सही करने का भी मामला है। हमलावरों ने मंदिरों को नष्ट कर न केवल आस्था स्थल को तोड़ा बल्कि हिन्दुओं का अपमान करने का भी प्रयास किया। भारतीय सभ्यता के सीने में खंजर घोंपने की कोशिश की गई। दुख है कि इसे निकालने में भारत के मुसलमानों के नेतृत्व ने राष्ट्रीय भावना को सही नहीं समझा और सहयोग नहीं दिया नहीं तो आधुनिक भारत का इतिहास ही कुछ और होता। उन्होंने अपने समुदाय में यह भावना भर कर कि उनकी घेराबंदी ही रही और उन्हें अपने शारीरिक तथा मानसिक मुहल्लों में बंद कर दिया जिस कारण वह देश की प्रगति से पिछड़ गए जो बात सच्चर कमेटी ने भी स्पष्ट की है।
आगे क्या? प्रधानमंत्री मोदी से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत और जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी सबने संयम की अपील की है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर अहमदी फारुखी का कहना है कि वह फैसले का स्वागत करते हैं और वह इसे चुनौती नहीं देंगे। उन्होंने नकारात्मक खत्म करने की भी अपील की है। यही भावना है जिसका आदर होना चाहिए। हमें शांति और सद्भाव से आगे बढ़ना है। ओवैसी जैसे लोग जो कह रहे हैं कि उनसे मतभेद रखते हुए भी उनके अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान होना चाहिए। उन्हें अपनी भड़ास निकालने का संवैधानिक हक है पर बहुत बड़ा विवाद हल हो गया जिसने देश को तनावग्रस्त रखा है और जिस तरह समाप्त हुआ वह भी दुनिया के लिए मिसाल है। कितनी अद्भूत बात है कि पुरातात्विक विभाग के जिस अधिकारी ने विवादित स्थल के नीचे मंदिर के अवशेष ढूंढे वह मुसलमान है, सर्वसम्मति से निर्णय देने वाली सुप्रीम कोर्ट की बैंच के एक जज भी मुसलमान हैं जबकि मुस्लिम पक्ष के प्रसिद्ध वकील एक हिन्दू हैं। यह हमारी आंतरिक ताकत का प्रमाण है और उन सबको जवाब है जो वह कह रहे थे कि भारत अधिक कट्टर तथा असहनशील बन रहा है। देश की जीत हुई। वहां अब मर्यादा पुरुषोत्तम का भव्य मंदिर बनेगा इसलिए जरूरी है कि जो भी हो वह पूर्ण मर्यादा से हो। काशी? मथुरा? इन्हें मुस्लिम पक्ष पर छोड़ देना चाहिए और उन्हें इस फैसले को देखते हुए और करोड़ों हिन्दुओं की भावना को समझते हुए इतिहास की दो और गलतियों को खत्म करने की उदारता दिखानी चाहिए।
सहर्ष सौहार्द का समय (Ayodhya Verdict),