तीन दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद देवेन्द्र फडनवीस ने इस्तीफा दे दिया है। बेहतर होता वह दोबारा मुख्यमंत्री बनते ही ना। असली चाणक्य ने कहा था कि अपने दुश्मनों को इकट्ठा मत होने दो, पर ऐसा ही भाजपा ने कर दिया जिस कारण यह फजीहत झेलनी पड़ रही है। जो एक खिचड़ी गठबंधन है वह संयुक्त, उद्देश्यपूर्ण तथा जोशीला नज़र आने लगा। फिलहाल उनका अंतर्विरोध छिप गया है लेकिन समय के साथ यह बाहर आएगा क्योंकि इस नए रंग-बिरंगे गठबंधन के बारे कहा जा सकता है कि
मंजिल जुदा-जुदा है,मकसद जुदा-जुदा है
भीड़ तो जमा है यह कारवां नहीं
एक तमाशा खत्म हो गया और अब दूसरा शुरू हो रहा है। महाराष्ट्र में हम अपनी राजनीति का सबसे घिनौना चेहरा देख कर हटे हैं। कई संस्थाओं तथा लोगों की प्रतिष्ठाएं जख्मी हो गई हैं। जिस तरह तड़के 5.47 बजे केन्द्रीय मंत्रिमंडल को बुलाए बिना प्रधानमंत्री के विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति शासन को हटवाया गया तथा राज्यपाल ने 7.45 बजे दो बंदों देवेन्द्र फडनवीस तथा अजीत पवार को बुलवा कर उन्हें शपथ दिलवाई, वह बहुत से सवाल छोड़ गया है। जो किया गया वह असंवैधानिक नहीं था पर नैतिक तौर पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, ग्रहमंत्री तथा राज्यपाल की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर गया है। इतनी इमरजैंसी क्या थी कि रात के अंधेरे में सब कुछ किया गया? और उन बड़े राजनीतिक दलों के बारे क्या कहा जाए जो दिन-रात नैतिकता की दुहाई देते रहते हैं? अब यह हालत है कि भाजपा हमें भ्रष्टाचार पर, कांग्रेस सैक्यूलरिज़्म पर तथा शिवसेना हिन्दुत्व पर लैक्चर नहीं दे सकती और शरद पवार के बारे तो इस सारे विध्वंस के लिए जिम्मेवार शिवसेना नेता संजय राऊत ने सही कहा है कि ‘वह क्या कहते हैं यह समझने के लिए 100 जन्म चाहिए।’
महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा प्रदेश है जो लोकसभा में 48 सदस्य भेजता है। यह देश का सबसे समृद्ध प्रदेश भी है जिसमें महानगर मुंबई का बजट ही 30,000 करोड़ रुपए का है इसीलिए भाजपा इसे खोना नहीं चाहती थी और विपक्ष भाजपा को यहां से निकालना चाहता था। इसी जद्दोजहद में संवैधानिक तथा लोकतांत्रिक मर्यादाएं लहूलुहान कर दी गई हैं। विधायकों को भेड़-बकरियों की तरह होटलों में बंद किया गया कि दूसरे इनका शिकार न कर जाएं। जो हमारे लोकतंत्र के रखवाले हैं इनकी रक्षा के लिए बाऊंसर तैनात किए गए।
भाजपा : सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के लिए पिछले कुछ महीने अच्छे नहीं रहे। आम चुनाव जीतने के छ: महीने बाद आए महाराष्ट्र तथा हरियाणा के चुनाव उनके लिए निराशाजनक हैं क्योंकि समर्थन कम हुआ है। भाजपा के नेता धारा 370 के बारे बात करते रहे लेकिन प्रादेशिक चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं और आर्थिक मंदी तथा बढ़ती बेरोजगारी लोगों को परेशान कर रही है। भाजपा के नेता इन मुख्य मुद्दों से बचते रहे या लंगड़े स्पष्टीकरण देते रहे। अब झारखंड में छोटी-छोटी सहयोगी पार्टियां भी आंखें दिखा रहीं हैं। जनता का संदेश है कि भाजपा अजय नहीं।
भाजपा ने महाराष्ट्र में बहुत कुछ गंवाया है। जोड़-तोड़ से सरकार बनाने का प्रयास किया और वह भी उस अजीत पवार के साथ जो महाराष्ट्र का सबसे कुख्यात राजनेता है जिसके बारे देवेन्द्र फडनवीस ने चुनाव अभियान के दौरान कहा था कि “मैं उसे जेल भेजूंगा।” प्रदेश पार्टी अध्यक्ष राव साहेब दानवे ने 4 नवम्बर को कहा था, “सिंचाई घोटाले में पुलिस अजीत पवार के दरवाज़े तक पहुंच चुकी है।” अजीत पवार 72,000 करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले में फंसे हुए हैं चाहे कुछ राहत मिली है। वह भी आखिर में दगा दे गए। इस सारे निराशाजनक घटनाक्रम का एक और दुखद परिणाम है कि देवेन्द्र फडनवीस की प्रतिष्ठा को भारी चोट पहुंची है। वह लोकप्रिय राजनेता हैं जिनकी भाजपा के कट्टर विरोधी जूलियो रिबैरो ने भी तारीफ की है।
कांग्रेस : शिवसेना के साथ हाथ मिला कर कांग्रेस ने भी बहुत कुछ गंवा दिया है। कांग्रेस के पास केवल सैक्यूलरिज़्म का मुद्दा बचा था पर अब उस शिवसेना का साथ लेकर जो बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय लेती है, कांग्रेस ने अपने एक मात्र कार्ड की कुर्बानी दे दी। कांग्रेस तथा शिवसेना तो राजनीतिक विचाराधारा के दो अलग किनारे हैं लेकिन अब सरकार बनाने के लिए वह इकट्ठे आ गए हैं। कांग्रेस के मंत्री सीएम उद्धव ठाकरे के नीचे काम करेंगे। कांग्रेस का हाईकमान विशेष तौर पर सोनिया गांधी बहुत दुविधा में थे लेकिन बाद में शायद वह इसलिए मान गए कि महाराष्ट्र जैसे बड़े प्रदेश से भाजपा को बाहर रखने के राजनीतिक फायदे हो सकते हैं लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। कल को अगर शिवसेना सावरकर के लिए भारत रत्न की मांग करती है तो कांग्रेस का क्या रुख होगा? शिवसेना ने खुद को अल्पसंख्यकों विशेष तौर पर मुसलमानों का तीखा तथा हिंसक विरोध कर खड़ा किया है। मुंबई के दंगों में इस पार्टी का हाथ रहा जो बात श्रीकृष्ण रिपोर्ट में भी कही गई है। शिवसेना एक विध्वंसकारक पार्टी है। एनडीए को दोफाड़ करने के लिए इसका साथ लेना बड़ी कीमत अदा करना है।
शिवसेना : इस सारे घटनाक्रम का अगर कोई खलनायक है तो यह शिवसेना तथा उसका नेतृत्व है। उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा ने इन्हें उस गठबंधन को तोडऩे पर मजबूर कर दिया जिसके आधार पर उन्हें समर्थन मिला था। शिवसेना को साथ रखने के लिए भाजपा नेतृत्व ने बहुत धैर्य दिखाया लेकिन जब वह पार्टी गालियां निकालने पर उतर आई तो आखिर में भाजपा ने नाता तोड़ दिया। शिवसेना ने भाजपा को मुहम्मद गौरी जैसी विश्वासघाती कह दिया जबकि अगर किसी ने विश्वासघात किया है तो वह शिवसेना है। विश्वासघात न केवल भाजपा से बल्कि उस हिन्दुत्व के साथ भी किया गया जिसके आधार पर पार्टी यहां तक पहुंची है। अब उद्धव ठाकरे की महत्वकांक्षा पूरी हो रही है देखते हैं क्या-क्या समझौते होते हैं। अब तो उद्धव ठाकरे ने भगवा कुर्ता-पजामा छोड़ कर पैंट-शर्ट डालना शुरू कर दिया है। नाचने लगे तो घूंघट कैसा?
यह घटनाक्रम सब पार्टियों को आहत छोड़ गया है। पहली बार नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा को ऐसी चुनौती मिली है। उन्हें बिहार के प्रति सावधान रहना होगा। भाजपा पार्टी विद ए डिफ्रेंस नहीं रही। कांग्रेस तथा शिवसेना ने मौकाप्रस्त राजनीति का अत्यंत घटिया प्रदर्शन किया है। कांग्रेस की सैक्यूलर छवि को आघात पहुंचा है। शरद पवार अपने बारे यह राय और पक्की कर गए हैं कि कोई उनकी गहराई नाप नहीं सकता। अब तक जिसने पवार पर विश्वास किया उसे संताप पहुंचा है। पवार अब बिग बॉस बन गए हैं जो महाराष्ट्र के लिए अच्छी खबर नहीं है।
महाराष्ट्र के सारे मामले में हम देख रहे हैं कि हमारी राजनीति कितनी नीच हो सकती है। असूल, विचारधारा, नैतिकता की कोई जगह नहीं। केवल कुर्सी है। जहां तक देश की जनता का सवाल है वह अवाक कह रही है,
बेवफा की महफिल में दिल की बात न कहिए
खैरियत इसी में है कि खुद को बेवफा कहिए,
राहजन को भी यहां तो रहबरों ने लूटा है,
किसको राहजन कहिए किसको रहनुमा कहिए!