खाड़ी के देश और भारत (Gulf Countries and India)

इस्लाम के जन्म स्थान साऊदी अरब में भारी परिवर्तन आ रहा है। यह देश बहुत कट्टर रहा है और इसी ने दुनिया भर में वहाबी इस्लाम का प्रचार और प्रसार करवाया जिसने कई जगह आतंकवाद की शक्ल ले ली। अमेरिका पर 9/11 के हमले के अधिकतर आरोपी साऊदी अरब के नागरिक थे लेकिन अब वहां के क्राऊन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में वह देश तेज़ी से बदल रहा है। समझ लिया गया कि तेल एक दिन खत्म हो जाएगा इसलिए पैसा अर्जित करने के लिए दूसरे साधन ढूंढने पड़ेंगे जिनमें प्रमुख बिसनेस और पर्यटन हो सकते हैं। सबसे पहले दुबई में परिवर्तन आया। उनके पास वैसे भी तेल कम है इसलिए उन्होंने अपने देश को एक प्रकार से मध्यपूर्व का सिंगापुर बना दिया। लेकिन अगर आपने पर्यटकों या बिसनेस को आकर्षित करना है तो खुद को बदलना पड़ेगा। विशेष तौर पर पश्चिमी संस्कृति को स्वीकार करना पड़ेगा। पर्यटक मौज-मस्ती के लिए आते हैं वह वहां नहीं जाएंगे जहां कट्टर इस्लामी पाबंदियां लगी हों। पहले दुबई और अबू धाबी यह समझ गए थे इसलिए वहां विदेशियों पर न्यूनतम पाबंदियां हैं। विदेशी महिलाएं छोटी-छोटी निक्कर तथा टी शर्ट डाल जागिंग करती देखी जा सकती हैं। आपको केवल वहां के कानून का सम्मान करना पड़ता है।

अब साऊदी अरब ने भी इस तरफ कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। अभी तक तो वहां विदेशी महिलाओं को भी बाहर निकलते वक्त अबया जो एक प्रकार का काला बुर्का है केवल चेहरा ढका नहीं होता, पहनना पड़ता था। इसका प्रभाव निवेश पर भी पड़ा क्योंकि विदेशी वहां की पाबंदियों को देखते हुए आने को तैयार नहीं थे। जो विदेशी महिलाएं वहां काम करने के लिए आती थीं वह शिकायत करती कि दफ्तरों में महिलाओं के लिए टॉयलट नहीं है क्योंकि वहां महिलाएं दफ्तर नहीं जाती। अब मुहम्मद बिन सलमान इस कट्टरवादी कुख्यात छवि को बदलने में लगे हैं। अब बाहर से आई महिलाओं को वहां अबया डालना नहीं पड़ेगा। समरण रहे कि जब इंदिरा गांधी वहां गई थी तो उन्होंने भी सर ढक कर रखा था पर अबया नहीं डाला था। अब पहली बार वहां महिलाओं को गाड़ी चलाने की अनुमति मिल गई है। विदेशी महिला और पुरुष शादी के प्रमाण पत्र के बिना होटल के एक कमरे में इकट्ठे रह सकेंगे। कई कट्टरवादी वहां शिकायत कर रहे हैं कि नए कदम  ‘इस्लाम की विशुद्धता’ को क्षति पहुंचा रहें हैं लेकिन वह देश इस रास्ते पर बढ़ता जा रहा है।

याद रखना चाहिए कि ओसामा बिन लादेन भी साऊदी अरब का नागरिक था। यह देश आतंकवादी गुटों को पैसा देता रहा और अपने पड़ोसी देशों में हिंसक टकराव पैदा करता रहा। साऊदी अरब को कट्टरवाद, आतंकवाद और उग्रवाद का प्रतीक समझा जाता था। वहां इस्लाम का कर्कश प्रारुप लागू किया गया। इसका परिणाम था कि यह देश एक प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय अछूत बन गया। कोई भी वहां आकर खुश नहीं था। टूरिस्ट तो निकट नहीं फटकते थे। पर अब तो उनके एक हवाई अड्डे पर जैकलीन फर्नांडीज़ की तस्वीर भी लगी है। साऊदी अरब ने 2030 का जो विजन बनाया है उसमें तेल पर निर्भरते कम करना तथा अर्थ व्यवस्था में विविधता लाने को प्राथमिकता दी गई है। भारत तथा साऊदी अरब तथा दूसरे खाड़ी देशों में बढ़ती घनिष्ठता का यह बड़ा कारण है।

भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाए जाने के बाद एक दिलचस्प घटना हुई। खाड़ी के अरब देश इस पर खामोश रहे या कोई विपरीत टिप्पणी नहीं की। पाकिस्तान उनकी तरफ देखता रहा लेकिन वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। कुवैत, कतर, बेहरीन तथा ओमान ने तो कोई बयान ही नहीं दिया। कराची के डॉन अखबार में मुहम्मद अली सद्दीकी शिकायत करते हैं कि  “खाड़ी के अरब देशों की प्रतिक्रिया से वह  ‘शॉक’  में हैं।” उनकी वरिष्ठ पत्रकार आयशा सद्दीका लिखती हैं,  “समस्या है कि साऊदी अरब 2010 का साऊदी अरब नहीं रहा… मुहम्मद बिन सलमान की राजनीतिक महत्वकांक्षा भारत को बहुत आकर्षक मंजिल बनाती है।”

खाड़ी के देशों के भारत के प्रति झुकाव के कई कारण हैं। एक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीति है जिन्होंने उस क्षेत्र पर इतना ध्यान दिया है जितना पहले किसी भारतीय नेता ने नहीं दिया। इसी का परिणाम है कि यूएई ने जम्मू-कश्मीर के परिवर्तन को  ‘भारत का आंतरिक मामला’  कह दिया था। पाकिस्तान को कड़वा संदेश है कि जो देश मुस्लिम उम्माह के प्रतिनिधि हैं अब कश्मीर के बारे भारत के साथ खड़े हैं। दूसरा, यह देश पाकिस्तान से पल्ला छुड़ाना चाहते हैं क्योंकि पाकिस्तानी वहां आकर शरारतें करते हैं। पाकिस्तानी नागरिकों पर निरन्तर निगरानी रखनी पड़ती है। कुवैत ने तो पाकिस्तान से और लेबर को बुलाना बंद कर दिया है। पाकिस्तानी पासपोर्ट को खाड़ी में शंका की नज़र से देखा जाता है।

इस नजदीकी का तीसरा बड़ा कारण वहां बसा विशाल भारतीय समुदाय है। हमारे लोग सियाने हैं, पढ़े-लिखे हैं, अनुभवी हैं, अनुशासित हैं, कानून का पालन करते हैं और अपने काम से काम रखते हैं। मुहम्मद अली सिद्दीकी ने भी स्वीकार किया है कि  “यूएई की अर्थ व्यवस्था को बनाने में भारतीय समुदाय की निर्णायक भूमिका रही है…. बिसनेस तथा फाईनैंस पर उनका असामान्य नियंत्रण है।”  वास्तव में वह देश एक प्रकार से हम चलाते हैं। उच्च प्रोफैशन्लज़ से लेकर ड्राईवर, लेबर, सहायक अधिकतर भारतीय हैं। भारतीय वहां के देशों की पहली पसंद हैं। खाड़ी के देशों के भारतीय सबसे अधिक संख्या में लगभग एक करोड़ के लगभग है। यह शांत तथा होशियार जनसंख्या वहां भारत के हित को चुपचाप बढ़ा रही है। यूएई की जनसंख्या का 30 प्रतिशत भारतीय है। अबू धाबी में तो अदालत की तीसरी आधिकारिक भाषा हिन्दी है।

चौथा बड़ा कारण आपसी व्यापार है। 60 अरब डॉलर के साथ यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साथी है। भारत जो तेल का बड़ा आयातक है को खाड़ी के तेल उत्पादक देश बड़ा आर्थिक सांझेदार समझने लगे हैं। वह हमारी प्रगति में हिस्सेदार बनना चाहते हैं। हाल ही में साऊदी अरब ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के तेल बिसनेस में 20 प्रतिशत का निवेश करने की घोषणा की है यह 75 अरब डॉलर का विशाल निवेश है। क्योंकि भारत उनके आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता इसलिए वह देश हमारे व्यापार तथा हमारे लोगों का खुला स्वागत करते हैं। वह भारत के साथ रक्षा सहयोग भी चाहते हैं जिसके बारे अभी हमारी सरकार को कुछ झिझक है।

खाड़ी के देशों में जो बदलाव आ रहा है वह हमारे लिए बहुत बढ़िया मौका है। यह देश कभी बहुत पिछड़े थे अब उनकी प्रगति देख कर इंसान दंग रह जाता है। दुबई और अबू धाबी तो योरुप का मुकाबला कर रहें हैं। मैंने पिछले कुछ महीनों मेें कुवैत, दुबई तथा अबू धाबी की यात्रा की है। पहले भी कई बार जा चुका हूं हर बार उनकी व्यवस्था को देख कर प्रभावित होता हूं। पूरा अनुशासन है और पूरी सुरक्षा है। शाम के वक्त महिलाएं अकेली घूमती नज़र आएंगी, किसी की हिम्मत नहीं कि उन्हें छेड़ सके। वाहन नियमों का पालन करते हैं। हवाई अड्डों पर कोई लाईन नहीं तोड़ता। वहां नियम तथा अनुशासन पालन करने वालों में सबसे आगे हमारा भारतीय समुदाय है। भारतीय मूल के लोग वहां एक प्रकार से आदर्श नागरिक समझते जाते हैं लेकिन न जाने लौट कर अपने हवाई अड्डों पर से ही हमें क्या हो जाता है? यहां आकर हम फिर अपने अराजक, गैर जिम्मेवार, अनुशासनहीन तथा उन्मादी स्वरूप में क्यों लौट जातें हैं?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.