
9 जनवरी को अपने लेख ‘लेकिन इन हवाओं को रोकिए’ में मैंने लिखा था, “नफरत की दीवार खड़ी की जा रही जिसकी आगे चल कर बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।” मुझे दुख है कि मेरी बात की पुष्टि हो रही है। जिस तरह दिल्ली के जामिया और शाहीन बाग में गोली चलाई गई और गोली चलाने की कोशिश की गई, उससे नज़र आता है कि जो नफरत भरे भाषण कुछ भाजपा नेता दे रहे हैं उनका अपरिपक्व दिमाग पर बहुत गलत प्रभाव हो रहा है। सौभाग्यवश कोई जानी नुकसान नहीं हुआ पर सारे देश ने देखा कि पुलिस तमाशबीन खड़ी रही। विदेशों में जब भी कोई इस तरह हिंसक होता है उसे उसी वक्त गोली मार दी जाती है। पर यहां गोली चलाने वाला तो समझ रहा था कि वह हिन्दू राष्ट्र की बड़ी सेवा कर रहा है। फेसबुक में यहां तक लिखा कि ‘मेरी अंतिम यात्रा पर… मुझे भगवा में ले जाएं।’ चिंताजनक सवाल तो यह है कि इस लगातार साम्प्रदायिक प्रचार से और कितने ऐसे अपरिपक्व नौजवान हैं जो उत्तेजना में गोली चलाने को तैयार हैं? नेताओं की इस राजनीतिक अदा से किसी की जान जा सकती है। ऐसे घातक गोली चलाने वाले के पीछे सदैव किसी न किसी का भडक़ाने वाला भाषण होता है।
और यह बिलकुल अनावश्यक था। आखिर छोटी सी दिल्ली का चुनाव है, जो लोकसभा में केवल सात सदस्य भेजती है। इसी के चुनाव को लेकर कुछ नेता अपनी जुबान पर नियंत्रण खो बैठे हैं। ‘पाकिस्तान’ , ‘बिरयानी’ , ‘गद्दार’ , ‘गोली’ का नन्हीं सी दिल्ली के चुनाव में बार-बार इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? कोई गद्दारों को गोली मारने के लिए उकसा रहा है तो कोई शाहीन बाग करंट भेजना चाहता है, तो कोई गोली का जिक्र कर रहा है तो कोई केजरीवाल को ‘आतंकवादी’ कह रहा है। अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री वास्तव में ‘टैररिस्ट’ हैं तो यह गंभीर संवैधानिक मामला है उनके खिलाफ केन्द्रीय सरकार कार्रवाई क्यों नहीं करती? एक भाजपा सांसद ने चेतावनी दे दी कि ‘वह’ घुस कर आपके घरों पर हमला करेंगे और अपनी बहन-बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे। यह सब जहर सिर्फ इसलिए घोला जा रहा है क्योंकि दिल्ली में चुनाव हो रहे हैं?
भाजपा 2015 की 67/3 की हार पचा नहीं पा रही। लेकिन यह भारत और पाकिस्तान के बीच जंग कैसे हो गई जैसे एक नेता ने कहा है? भाजपा अरविंद केजरीवाल तथा उनकी पार्टी को पसंद नहीं करती और उन्हें हराना चाहती है यह स्वाभाविक राजनीतिक इच्छा है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पार्टी के कई नेता मर्यादा की लक्ष्मण रेखा क्यों पार कर रहें हैं? धु्रवीकरण का इतना जबरदस्त प्रयास क्यों हो रहा है? किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना है? अगर केजरीवाल तथा आप जीत जाते हैं तो क्या आफत आ जाएगी? और अगर भाजपा जीत जाती है तो तो क्या उस पर यह आरोप नहीं लगेगा कि उसने नफरत पर आधारित जीत हासिल की है? भाजपा के नेता दिल्ली की जो स्थानीय समस्याएं हैं उन पर कम बात करते हैं केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर ही गर्ज रहें हैं। 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी को वह समर्थन मिला था जो अटल बिहारी वाजपेयी भी प्राप्त नहीं कर सके। यह समर्थन केवल इसलिए नहीं था कि नरेन्द्र मोदी को हिन्दुत्व का ध्वजारोही समझा गया बल्कि इसलिए भी कि विकास के उनके वादे ने देश के आकांक्षापूर्ण वोटर को भाजपा की तरफ खींच लिया। लोग कल्याण तथा विकास की कामना कर रहे थे लेकिन मोदीजी अब दूसरी बातें ही करते हैं। जब से उनकी दूसरी पारी शुरू हुई है प्रधानमंत्री अर्थ व्यवस्था की बात ही नहीं करते।
भारत दुनिया की सबसे तेज़ गति से प्रगति कर रही अर्थ व्यवस्था नहीं रही। निर्मला सीतारमण कर यह बजट भी कुछ खास आशा जगा नहीं सका जिसका एक कारण यह भी है कि लोगों का सारा ध्यान सीएए के खिलाफ प्रदर्शन और भाजपा नेताओं के दूषित बोल पर केन्द्रित है। कोई कह रहा है कि ‘शाहीन बाग वाले लोग जिन्ना वाली आजाद मांग रहे हैं,’ जो बिलकुल झूठ है। जो महिलाएं वहां प्रदर्शन कर रही हैं या तो छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं वह तो राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ बार-बार गोली चलाने की बात क्यों कर रहे हैं? क्या देश में कानून का शासन खत्म हो गया है? अब एक सरफिरे भाजपा नेता ने आजादी की लड़ाई को ‘ड्रामा’ कह दिया हैै। हमारे गौरवशाली इतिहास और स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी का मज़ाक उड़ाया जा रहा है।? क्या अनंत हेगड़े अनुराग ठाकुर की ‘गद्दार’ की परिभाषा में आते है।?
अफसोस यह है कि 2020 वह वर्ष होना चाहिए था भारत की कहानी दुनिया को प्रभावित करती। आखिर पिछले साल ही हमने पूर्ण बहुमत से एक लोकप्रिय नेता की सरकार कायम की थी लेकिन कुछ ही महीनों में यह सारा वृतांत उलट गया। विदेशों में हमारे जो समाचार जा रहे हैं वह नकारात्मक चेहरा प्रस्तुत कर रहे हैं जहां समाज इतना विभाजित है कि राजधानी में नेता जहरीले भाषण दे रहे हैं और उन्मत नौजवान खुलेआम पुलिस की मौजूदगी के बीच गोली चला रहे हैं और चुनाव आयोग जैसी जिन संस्थाओं पर नियंत्रण रखने की जिम्मेवारी है, वह कमजोर साबित हो रही है। मीडिया का एक वर्ग भी जलती में तेल डाल रहा है। यह एक उभर रही महाशक्ति की तस्वीर नहीं है, यह एक बेचैन, झगड़ालू, अविकसित समाज की तस्वीर है। विशेषज्ञ ब्रहम चैलानी ने भी कहा है कि ‘दुनिया में भारत के स्तर को सबसे बड़ा खतरा पड़ोसियों से नहीं बल्कि राजनीति ध्रुवीकरण से है।’
इस स्थिति को केवल एक व्यक्ति बदल सकता है और वह है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। वह देश के नेता हैं और जैसे इंडिया टूडे के ‘मूड ऑफ द नेशन’ में भी स्पष्ट किया गया है, कोई भी दूसरा नेता दूर-दूर तक उनकी लोकप्रियता के नजदीक फटक नहीं रहा। उन्हें अपनी झिझक छोड़ अपनी पार्टी के उग्रवादियों को नियंत्रण में करना चाहिए क्योंकि जो समाचार बाहर जा रहे हैं उससे देश का ही नहीं उनकी अपनी छवि का भी भारी अहित हो रहा है। किसी ने सही कहा है कि ‘राजनेता अगले चुनाव का सोचता है जबकि स्टेटसमैन अगली पीढ़ी का।’ प्रधानमंत्री मोदी को स्टेटसमैन बनना है और देश को तनाव और टकराव के इस कुएं से निकालना है। देश के एक बड़े हिस्से मे अगर यह प्रभाव फैल गया कि उन्हें बराबर का नागरिक नहीं समझा जाता तो बहुत समस्या होगी। असहमति को गोली से या हिंसा के डरावे से दबाने का प्रयास नहीं होना चाहिए।
यह सब लिखने के बाद मैं यह भी कहना चाहता हूं कि सीएए को लेकर शाहीन बाग में जो प्रदर्शन हो रहा है उसे अब समाप्त करना चाहिए क्योंकि इससे लोगों को बहुत तकलीफ हो रही है। प्रदर्शनकारियों ने अपनी बात देश भर में पहुंचा दी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करना चाहिए। महात्मा गांधी जिन्होंने अंग्रेजी के खिलाफ बड़े आंदोलन चलाए, भी समझते थे कि जनांदोलन अगर अधिक लम्बा समय चले तो अपना प्रभाव खो बैठते हैं इसलिए उसे वापिस ले लेते थे। लोग थक जाते हैं और उनका ध्यान दूसरी बातों पर चला जाता है। इसलिए समय आ गया है कि जहां केन्द्र अपना रवैया नरम करे और ‘गोली-मारो’ नेताओं पर लगाम लगाएं शाहीन बाग को खाली कर दिया जाए और छात्र अपने-अपने क्लास रूम मेें लौट जाएं। पढ़ाई पहले ही बहुत महंगी है छात्रों को और समय प्रदर्शनों में नहीं गुजारना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि सीएए संसद द्वारा परित कानून है इसे सरकार वापिस नहीं लेगी और अब तो सरकार ने संसद में कह दिया कि फिलहाल एनआरसी लागू करने की कोई योजना नहीं। जो असम में फेल हो गया वह देश भर में लागू हो भी नहीं सकता।
यह उभर रही महाशक्ति की तस्वीर नहीं है (Not An Emerging Superpower),