ऐशिया का ‘बीमार आदमी’ चीन (Is China The Sick Man of Asia?)

न्यूयार्क से प्रकाशित होने वाले अखबार वॉल स्ट्रीट जरनल ने कोरोनावायरस फूटने पर चीन को ‘ऐशिया का असली बीमार आदमी’ कहा है। चीन इस परिभाषा से खफा है और उसने उस अखबार के तीन संवाददाता वहां से निकाल दिए हैं, लेकिन जिस तरह यह महामारी वहां फूटी है और जिस तरह शुरू में चीन की व्यवस्था इससे निपटी है, निश्चित तौर पर चीन के समाज तथा वहां की व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि चीन में ही 2002-2003 में उत्पन्न सार्स वायरस से भी वहां 700-800 लोग मारे गए थे लेकिन कोरोनावायरस इससे अधिक घातक है। चीन के वुहान शहर में उत्पन्न इस वायरस से चीन में लगभग 2500 लोग मारे जा चुके हैं और इसके संक्रमण से वहां लगभग एक लाख पीड़ित हैं। यह आंकड़ा बहुत बढ़ सकता है। डब्ल्यू.एच.ओ. ने इसे आपातकाल जैसी स्थिति करार दिया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी कहना है कि अभी इसका भयानक रूप बाकी है। शुरूआती दिनों में सख्त कदम उठाने से हिचकिचाते हुए चीन की सरकार ने इस संक्रमण को देश भर में फैलने दिया जिसका परिणाम है यह न केवल चीन बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में भी फैल गया है। दक्षिण कोरिया में इससे दो लोग मारे गए हैं। ईरान में दो मर चुके हैं और इटली में आपातकालीन स्थिति बन रही है। असली सवाल चीन के बारे है जो एक महाशक्ति बन चुका है लेकिन वह अपने यहां बार-बार उठने वाली महामारियों को रोकने में असमर्थ है।

चीन में यह इतना बड़ा संकट है कि इसके फैलने से रोकने के लिए लगभग 15 करोड़ लोगों को घरों में बंद कर दिया गया है। वुहान शहर के एक करोड़ नागरिकों को पहले अपने घरों में बंद कर दिया गया था अब राजधानी बीजिंग में भी पाबंदियां लगाई गई हैं। ब्लूमबर्ग के संवाददाता के अनुसार चीन के कई शहर अब ‘भूत-शहर’ बन चुके हैं। न कोई बाहर निकलता है और न निकलने की इज़ाजत है। 9 स्वास्थ्य कर्मचारी मारे गए हैं जिनमें वह डॉक्टर भी शामिल है जिसने सबसे पहले इसकी चेतावनी दी थी लेकिन उसका न केवल मुंह बंद कर दिया गया बल्कि उसे प्रताड़ित भी किया गया कि यह “झूठी और गैर कानूनी जानकारी” का प्रसार कर रहा है। कोरोनावायरस के इलावा दूसरी बीमारियों से पीड़ित मरीजों को हस्पताल दाखिल ही नहीं कर रहे क्योंकि जगह नहीं है।

यहां ‘गैर कानूनी’ संज्ञा का इस्तेमाल उल्लेखनीय है। चीन की तानाशाही तथा घमंडी सत्तावादी व्यवस्था को अस्थिरता का बहुत आंतक है इसलिए जिससे उसे खतरा लगता है उसे वह गैर कानूनी करार दिया जाता है। बीबीसी के संवाददाता जॉन सुडवर्थ ने भी लिखा है,”वहां सब कुछ राजनीतिक स्थिरता है।” चाहे चीन एक महाशक्ति है लेकिन अंदर से असुरक्षित है। सख्ती से कंट्रोल अर्थात नियंत्रण में करने की कोशिश की जाती है। अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है इसलिए जब पहले-पहले कोरोनावायरस की चेतावनी मिली तो व्यवस्था ने डाक्टरों को चुप रहने के लिए कह दिया और खबरों पर सैंसर लगा दिया। जब तक इसके आकार तथा फैलाव का अंदाजा हुआ तक तक यह वुहान की सीमा को पार कर देश भर में फैल चुका था। इससे वह राजनीतिक व्यवस्था भी नंगी हो गई जो निष्ठुर तथा असंवेदनशील है और जिसके लिए सामाजिक नियंत्रण लोगों की जान से अधिक अहमियत रखता है। उल्लेखनीय है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अभी तक वुहान नहीं गए। उन्हें मालूम है कि लोग नाराज़ हैं इसलिए इस आफत से दूरी बना रहे हैं लेकिन इसका असर उन पर निश्चित पड़ेगा क्योंकि इस महामारी से चीन की चूलें हिल गई हैं। जिंदगी भर राष्ट्रपति, का शी का ताज अब खतरे में है।

दिलचस्प है कि चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोरोनावायरस की जानकारी 31 दिसम्बर को दे दी थी लेकिन अपने लोगों को अंधेरे में रखा। बाद में वुहान शहर को ही बंधक बना दिया लेकिन तक तक वहां के मेयर के अनुसार पच्चास लाख लोग शहर छोड़ चुके थे। चीन शी जिनपिंग तथा कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही की कीमत चुका रहा है जहां ज़रा भी अप्रिय आवाज़ को सख्ती से दबा दिया जाता है। कोई और दूसरा देश होता तो जन प्रतिनिधि या सोशल मीडिया तूफान खड़ा कर देता लेकिन सुपर पॉवर बनने की तृप्ति में शी और उनके साथी लापरवाह हो गए। 2018 के स्वाईन फ्लू से भी वह सही तरीके से निपट नहीं सके थे। न्यूयार्क टाईम्स के स्तंभकार निकोलस क्रिसटॉफ ने लिखा है कि ‘शी एक आत्म मुग्ध तानाशाह है।’ इनकी तानाशाही को लेकर ही चीन कोरोनावायरस से मात खा रहा है।

चीन की दूसरी बड़ी कमज़ोरी वहां खाने के रिवाज है। चीन के लोग बहुत कुछ ऐसा खा जाते हैं जिनसे बीमारी फैलती है। कोरोनावायरस भी वुहान के सी फूड (समुद्री भोजन) मार्केट से शुरू हुआ था जहां बिल्लियों, चमगादड़ तथा कछुए भी गंदी हालत में बेचे और खाए जाते हैं। एक महिला का चित्र निकला है जो चमगादड़ के पर खा रही है। लोग सांप और चूहे भी खा जाते हैं। जब तक चीन के लोग भांति-भांति के जानवर तथा सी फूड गंदी हालत में खाते रहेंगे, वहां से बीमारियां फूटती रहेंगी जो दुनिया भर को प्रभावित करेंगी।

इसका बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि यह महामारी दुनिया भर में फैल गई है क्योंकि ग्लोबलाज़ेश्न के इस दौर में सब देश एक दूसरे से जुड़े हैं। न केवल लोगों की सेहत बल्कि वैश्विक अर्थ व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। पुरानी कहावत है कि जब चीन छींकता है तो दुनिया को जुकाम हो जाता है लेकिन अब तो चीन इस महामारी को बाहर निर्यात कर रहा है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक तथा उत्पादन केन्द्र है। चीन से मिलने वाले स्पेयर पार्ट तथा सामान बंद हो रहें हैं क्योंकि वहां के कारखाने बंद हो रहे हैं। कच्चा तेल की मांग में 30 प्रतिशत की गिरावट आ गई है। दक्षिण कोरिया में कार उत्पादन करने वाली कंपनी हुंडई ने अपने सबसे बड़े कारखाने में काम रोक दिया है क्योंकि चीन से स्पेयर पार्टस नहीं मिल रहे। जापान मंदी की शिकायत कर रहा है। 17 लाख करोड़ डॉलर खर्च करने वाले चीनी पयर्टक देश में कैद है जिस कारण टूरिस्ट ट्रेड बहुत प्रभावित हो रहा है। चीन में कोरोना के कारण वैश्विक 50 लाख कंपनियों के लिए कच्चे तेल का संकट पैदा हो रहा है। चीन की अर्थ व्यवस्था 50 प्रतिशत क्षमता पर चल रही है। इस स्थिति का आगे चल कर चीन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि अभी से दुनिया में सोच प्रबल हो रही है कि चीन पर निर्भरता कम करनी होगी। भारत के लिए इसमें अवसर हो सकता है।

पर चीन की हालत का भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा। हमारा औटोमोबाईल, बैंकिंग, फार्मा, टूरिज़्म तथा एनर्जी क्षेत्र चीन से जुड़ा हुआ है। विशेष तौर पर हमारा दवाई बनाने वाला क्षेत्र अपने कच्चे माल के लिए 70 प्रतिशत चीन पर निर्भर है। अगर हालत नहीं सुधरे तो आगे चल कर दवाईयों की किल्लत हो सकती है। सरकार अभी से इस मामले में जागरूक है। हमें बिल्कुल सावधान रहना है कि यह महामारी यहां कदम न रखे। इस संकट की स्थिति में जिस तरह भारत सरकार ने वहां फंसे हुए अपने नागरिकों को निकाला है उसकी जरूर सराहना करनी चाहिए। एयर इंडिया तथा चीन स्थित हमारे राजनयिकों ने अपना राष्ट्रीय धर्म बखूबी निभाया है। पर बदनामी से परेशान चीन अब बाकी भारतीयों को वहां निकालने की अनुमति देने से आनाकानी कर रहा है।

अंत में जहां दुनिया भर, विशेष तौर पर पश्चिमी देशों में चीन के खिलाफ भारी गुस्सा है कि उनके अस्वच्छ रीति-रिवाज और खाने-पीने की आदतों ने दुनिया को मुसीबत में डाल दिया वहां दुनिया को भारत से तीन चीज़ें सीखनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी दहशत न बने,
(1) नमस्ते, हैंड शेक नहीं। (2) दाह संस्कार, दफन नहीं। (3) शाकाहारी भोजन, नॉन-वैज नहीं।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.