अज़ दिल्ली ता पालम (Is Congress Sinking?)

शाह आलम द्वितीय डूब हो रहे मुगल साम्राज्य के 18वें बादशाह थे। उनकी ताकत इतनी क्षीण हो चुकी थी कि फारसी में किसी ने लिखा था, ‘सलतनत शाह आलम, अज़ दिल्ली ता पालम!’ अर्थात बादशाह शाह आलम की सलतनत केवल दिल्ली से पालम तक ही सीमित है। दिलचस्प है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के पलायन के बाद फारसी की यह कहावत कांग्रेस के मुखर सांसद मनीष तिवारी को याद आ गई है। एक ट्वीट में उन्होंने इसके साथ दार्शनिक जार्ज संतायाना का यह कथन भी जोड़ दिया कि  ‘जो इतिहास को भूल जाते हैं उनसे यह दोहराया जाता है।’

उस वक्त जब झटके खाती कांग्रेस पार्टी को ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल से एक और करंट पहुंचा है और मध्य प्रदेश में उनकी सरकार अस्थिर हो रही है मनीष तिवारी का यह ट्वीट अहमियत रखता है क्योंकि तिवारी उन युवा कांग्रेसी नेताओं में से हैं जो कुछ समय से पार्टी की हालत से बेचैन हैं। तिवारी, शशि थरुर, मिलिंद देवड़ा, संजय झा, सलमान सोज़, संदीप दीक्षित, शर्मिष्ठा मुखर्जी आदि पार्टी के शिखर पर जो लकवा और गतिहीनता नज़र आ रही है उसके बारे अपना असंतोष बार-बार प्रकट कर रहें हैं। उनकी सबसे बड़ी शिकायत राहुल गांधी की भूमिका को लेकर है। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल को इस्तीफा दिए आठ महीने हो गए और वह बार-बार स्पष्ट कर चुके हैं कि वह इस्तीफा वापिस नहीं लेंगे। सोनिया गांधी अस्थाई अध्यक्ष चल रही हैं लेकिन पूर्णकालीक अध्यक्ष चुनने नहीं दे रही। पुत्र मोह से ग्रस्त एक ठेठ भारतीय माता की तरह उन्हें राहुल के आगे कुछ नज़र नहीं आता। वह समझती हैं कि यह कुर्सी परिवार के पास ही रहनी चाहिए लेकिन कांग्रेस का युवा वर्ग अब समझने लगा है कि,

नाखुदा की क्या है नीयत अब भी यारो सोच तो,
उस तरफ किश्ती का रुख है जिस तरफ मझधार है

संदीप दीक्षित का कहना है कि पार्टी के अंदर सबसे बड़ी चुनौती ‘लीडरशिप का मामला है।’ इसी पर शशि थरुर ने राहुल गांधी के बारे लिखा है, “अगर वह पद न संभालने के फैसले पर अडिग रहते हैं तो पार्टी को एक सक्रिय और पूर्णकालीक नेतृत्व की जरूरत होगी…।” एक लेख में पार्टी के प्रवक्ता संजय झा तथा सलमान सोज़ ने भी लिखा है, “हमारे अंदर जड़ता भरी हुई है और हम राहुल गांधी का स्थाई बदल नहीं ढूंढ पाए।” उन्होंने यह सुझाव भी दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष तथा कार्यकारिणी का प्रमुख और आजाद नागरिकों की निगरानी में चुनाव होने चाहिए। अर्थात यहां भी मामला  ‘लीडरशिप’ का है।

कांग्रेस को पिछले आम चुनाव में 19 प्रतिशत वोट मिले थे जो मामूली नहीं हैं। पिछले साल पार्टी छत्तीसगढ़, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश में भाजपा से सत्ता छीनने में सफल रही लेकिन उसके बाद दिल्ली के चुनाव आते-आते पार्टी का भट्ठा बैठ गया। पार्टी को न केवल कोई सीट नहीं मिली बल्कि 66 में से 63 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई और पार्टी को केवल 4.26 प्रतिशत वोट मिले। तब से युवा कांग्रेसी जिन्हें भविष्य अनिश्चित नज़र आ रहा है बेचैन है पर बिल्ली के गले में घंटी बांधने की हिम्मत किसी में नहीं इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कांग्रेस को छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई कि

किश्तियां टूट चुकी हैं सारी
अब लिए फिरता है दरिया हमें

नेतृत्व की उलझन के कारण पार्टी में विचारधारा का अटकाव हो गया है। नई सोच नहीं है। कोई नहीं जानता कि कांग्रेस क्या है और वह कहां जा रही है। हेमंत बिस्वास की तरफ सिंधिया भी शिकायत कर रहें हैं कि राहुल गांधी उन्हें मिलने का समय नहीं देते थे। ऐसा घमंड क्यों है? पार्टी को नए विचार चाहिए, नई शैली चाहिए, नई बोली चाहिए और ऐसा नया नेता चाहिए जिसके पांव मज़बूती से जमीन पर हों। सडक़ों पर शोर बंद कमरों में सामन्तवादी चमचागिरी से पार्टी का भला नहीं होने वाला। आखिर कोई तो राहुल गांधी से यह सवाल पूछे कि जब देश में उनकी सबसे अधिक जरूरत होती है वह विदेश में क्यों होते हैं? कांग्रेस इस इंतज़ार में नहीं बैठे रह सकती कि अर्थ व्यवस्था में गिरावट आएगी और लोग मोदी-शाह की जोड़ी को नकार देंगे और फल खुद ही राहुल गांधी की गोद में गिर जाएगा। वैसे भी यह विरोधाभास है कि जो राहुल गांधी इसलिए कोपभवन में है क्योंकि वह पार्टी का ढांचा बदल नहीं सके खुद चाहते हैं कि पार्टी के अंदर उनके जन्मसिद्ध अधिकार को कोई चुनौती न दे। आखिर राहुल की योग्यता क्या है इसके सिवाय कि वह ‘गांधी’ हैं और सोनिया गांधी समझती हैं कि पुरानी कांग्रेस को इसी तरह संभाल कर रखना उनकी केवल राजनीतिक रणनीति ही नहीं जिम्मेवारी भी है।

कांग्रेस गहरे संकट में है जबकि मुकाबला मोदी-शाह की जबरदस्त जोड़ी से है। पार्टी का हाई कमान जनता तथा कार्यकर्ताओं से कटा हुआ है। आम कांग्रेसी निरुसाहित है तथा निर्णय कुछ वह दरबारिए लेते हैं जिनकी योग्यता है कि वह कहीं से भी चुनाव नहीं जीत सकते। ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस का ज़ख्म खुला कर दिया है। यह सब युवा जो प्रतिभाशाली हैं और जिन्हें राहुल गांधी के लिए खतरा समझा जाता है को यहां अपना अधिक भविष्य नज़र नहीं आता। इस बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने छलांग लगा दी है। यह भी मौकाप्रस्ती की बढ़िया मिसाल है। दो सप्ताह पहले दिल्ली के दंगों पर उन्होंने ट्वीट किया था, “भाजपा के नेताओं को नफरत की राजनीति बंद करनी चाहिए।” आज सिंधिया को भाजपा के नेतृत्व तथा विचारधारा में हरा ही हरा नज़र आ रहा है। अब तो उन्हें शिवराज सिंह चौहान जिन्होंने सिंधिया परिवार को  ‘गद्दार’ कहा था और अब  ‘विभीषण’ कह रहें हैं, में भी गुण नज़र आ रहे हैं और वह जोर-शोर से उन्हें व्यक्त भी कर रहे हैं जिस पर पंजाबी की कहावत याद आती है,

नवां नवां रलेया मुर्गा उच्ची बांग देंदा है!

कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी के सिवाय, क्या नहीं दिया? राजनीति में उनके 18 वर्षों में से वह 17 वर्ष सांसद रहे हैं। एक साल पहले वह परिवार के चुनाव क्षेत्र गुना में एक लाख से अधिक वोट से हारे थे। हिम्मत होती तो अपनी अलग पार्टी बना लेते ममता बैनर्जी या शरद पवार की तरह लेकिन महाराज ने आरामप्रस्त रास्ता चुना। लेकिन सवाल यह भी है कि भाजपा ने भी कांग्रेस के हारे हुए सांसद को जगह देकर क्या पाया? पार्टी बार-बार वंशवाद के खिलाफ बोलती रहती है पर अगर राहुल गांधी  ‘युवराज’ हैं तो ज्योतिरादित्य खुद को  ‘महाराज’ कहलाना पसंद करते हैं। एक  ‘डाईनैस्ट’ का विरोध करते हुए भाजपा ने दूसरे को गले लगा लिया। भाजपा जो जमीन से जुड़ी पार्टी है को रजवाड़ों का शौक क्यों है? कल तक यही लोग सामन्तवादी थे और इनकी एकमात्र योग्यता इनकी पारिवारिक पात्रता थी पर आज? उल्लेखनीय है कि अभी तक नरेन्द्र मोदी ने ज्योतिरादित्य के स्वागत में एक ट्वीट तक नहीं किया पर अब सिंधिया का कहना है कि देश मोदी के हाथों में सुरक्षित है।

बहरहाल लोगों से कटती जा रही कांग्रेस पार्टी का संकट गंभीर है जबकि कांग्रेस में भाजपा से अधिक प्रतिभाशाली लोग हैं जो अर्थ व्यवस्था को बेहतर समझते हैं पर उनके लिए उपर का दरवाज़ा ज़ोर से बंद है। इन्हें नया नेतृत्व चाहिए। कांग्रेस का पतन देश के लिए अच्छी खबर नहीं क्योंकि यह एकमात्र पार्टी है जो राष्ट्रीय विपक्ष की भूमिका निभा सकती है लेकिन पार्टी अगर खुदकुशी पर आमदा हो और दिल्ली से पालम तक ही सीमित रहना चाहती हो, तो कौन क्या कर सकता है?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.