नेपोलियन ने एक बार कहा था, “चीन को सोने दो जब वह जाग गया तो दुनिया को कष्ट होगा”। यह चेतावनी जो लगभग 200 वर्ष पहले दी गई थी को अधिकतर समय गम्भीरता से नही लिया गया क्योंकि चीन कई शताब्दी आंतरिक उथल पुथल, ग़रीबी और बीमारी से जूझता रहा। माऊ से-तुंग की सांस्कृतिक क्रांति में मरने वालों का अनुमान लाखों से दो करोड़ तक का है। एक समय तो यह लग रहा था कि चीन अराजकता में खो जाएगा लेकिन अब जबकि चीन एक सुपरपावर बन चुका है और उसकी आर्थिक और सैनिक ताक़त अमेरिका के बाद दूसरे नम्बर पर है, फ़्रांस के पूर्व सम्राट का कथन सही भविष्यवाणी प्रतीत होती है। चीन जाग ही नही चुका वह दहाड़ रहा है और इसके दुष्परिणाम दुनिया भर में देखने को मिल रहें हैं। मैं केवल वुहान से उत्पन्न चीनी वायरस की ही बात नही कर रहा। मैं उससे पहले और अब दबंग और बेपरवाह चीन की बात कर रहाँ हूँ जिसने आसपास नाक में दम कर रखा है।कई और देशों को भी दबा रहा है। अपने यहाँ उत्पन्न महामारी के उत्पात के बावजूद चीन के अक्कड़ रवैये में तनिक भी परिवर्तन नही आया। चीन की लापरवाही से दुनिया तबाह हो चुकी है और लाखों लोग मारे जा चुकें हैं पर चीन की तरफ़ से संवेदना या मलाल का एक शब्द नही निकला। उलटा अपने देश को सम्भाल कर तथा कुछ देशों की मदद कर चीन यह प्रभाव दे रहा है कि जैसे वह दुनिया के लिए वरदान हो!
आक्रमण ही सबसे अच्छी सुरक्षा है कि नीति पर चलते हुए चीन ईंट का जवाब पत्थर से दे रहा है। राजनयिक आम तौर पर बहुत शालीन भाषा का इस्तेमाल करतें हैं पर चीन के राजनयिकों से कहा गया है कि रक्षात्मक होने की ज़रूरत नही और वह आलोचना का जवाब असभ्य और कर्कश भाषा में दें। अमेरिका की आलोचना का जवाब ‘दुष्ट’, ‘पागलपन’, ‘शर्मनाक’, ‘बीमार’ आदि संज्ञाओं से दिया जा रहा है। अमेरिका के विदेश मंत्री पोम्पो को ‘इंसानियत’ का दुष्मन’ क़रार दिया गया है। वह प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा है कि वह एक विश्व शक्ति है जो आलोचना या जवाबदेही से उपर है और अगर वायरस के कारण किसी को तकलीफ़ है तो यह उनकी अक्षमता के कारण है। न केवल उद्योग बल्कि चीन अपने ग्रेट वॉल और शंघाई का डिज़नीलैंड जैसे पर्यटन स्थल खोल कर यह प्रभाव दे रहा है कि उन्होंने तो अपना घर सम्भाल लिया है जिनका नही सम्भला वह उनका बैड लक है।
इस त्रासदी के बीच चीन कमज़ोर पड़ोसी देशों पर अपनी धौंस जमाने की कोशिश कर रहा है। मलेशिया, फ़िलिपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया को आँखें दिखाई जा रही है तो जापान, भारत, ताइवान और दक्षिणी कोरिया के साथ क्लेश खड़ा किया जा रहा है। चीनी हवाई जहाज़ जापान और ताइवान की सीमा के नज़दीक उड़ान भर चुकें हैं। इस वक़्त दूसरे देश सस्ते सामान के लिए उस पर आश्रित है पर अब दुनिया को समझ आ गई कि एक देश पर इतनी अधिक निर्भरता ख़तरनाक हो सकती है। पूर्व राजदूत योगेश गुप्ता ने लिखा है, “ऐसी राय कई देशों में बल पकड़ रही है कि उन्हें आक्रामक, अनुत्तरदायी,और असुरक्षित चीन पर निर्भर नही होना चाहिए”। अब धीरे धीरे दुनिया की सप्लाई चेन बदलेगी। 1000 कम्पनियाँ चीन से बाहर निकलने की तैयारी कर रहीं हैं। भारत भी उन्हें लपकने की कोशिश कर रहा है पर वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड आदि देशों से स्पर्धा मिल रही है। चीन से निकलने वाली कम्पनियों को आकर्षित करने के लिए भारत नियम आकर्षक बना रहा है। पहले ऐसे मौक़े हम गवाँ चुकें हैं देखतें हैं कि इस बार कितनी सफलता मिलती है?
हमे दुनिया की सप्लाई चेन की महत्वपूर्ण कड़ी बनना है।भारत का बड़ा बाज़ार कम्पनियों को आकर्षित करता है पर चीन का बाज़ार तो और भी बड़ा है। यह कम्पनियाँ वहाँ से तब ही निकलेंगी अगर उनकी सरकारें उन पर दबाव बनाएगी जैसे जापान की सरकार बना रही है या उन्हें दूसरे देशों में पर्याप्त सुविधाएँ मिलेगी। टैकनालिजी के मामले में हम चीन से बहुत पिछड़े हैं और न ही हम वह वर्क-कल्चर ही तैयार कर सकें हैं जो विश्व स्तर की हो। चीन के साथ हमारा वार्षिक व्यापार घाटा 60 अरब डालर का है। हमारी अर्थव्यवस्था में चीन की घुसपैठ बराबर है। चीन की 800 कम्पनियाँ भारत में दर्ज हैं। इस विशाल व्यापारिक असंतुलन की इजाज़त क्यों दी गई? अगर हमने तकलीफ़ से बचना है तो चीन के इस व्यापारिक जप्फे को ढीला करना होगा। भारत सरकार ने इस तरफ़ महत्वपूर्ण क़दम उठाया भी है। एफ़डीआई अर्थात विदेशी निवेश के नियमों में भारी परिवर्तन करते हुए यह तय किया गया है कि जिन देशों की सीमा भारत के साथ जुड़ी हैं उन्हें भारतीय कम्पनियों में निवेश से पहले भारत सरकार की अनुमति लेनी होगी।
भारत के शेयर बाज़ार में गिरावट के बाद कई चीनी कम्पनियाँ यहाँ शिकार की तलाश में हैं। चीन के सेंट्रल बैंक द्वारा एचडीएफ़सी बैंक में 1.01 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदने के बाद सरकार के कान खड़े हो गए और रातोंरात नियम परिवर्तन कर दिए जो मूलत: चीन की घुसपैठ को रोकता है क्योंकि बाक़ी पड़ोसी देशों से आर्थिक ख़तरा नहीं के बराबर है। बहुत ज़रूरी है कि चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों के सभी पहलू पर ग़ौर किया जाए। चीन ज़रूरी सामान रोक कर कभी भी हमारा गला दबा सकता है। भारत के स्मार्ट फ़ोन सेक्टर पर चीनी कम्पनियों का प्रभुत्व है। Vivo, Oppo, Huawei, Xiaomi जैसी चीनी कम्पनियां हमारे बाज़ार पर क़ब्ज़ा कर बैठीं हैं। इस क्षेत्र में आत्म निर्भरता की वास्तव में ज़रूरत है। संवेदनशील क्षेत्र जैसे इंटरनेट, 5G, आरटीफिशयल इंटैलिजैंस से Huawei जैसी चीनी कम्पनियों को बाहर रखा जाना चाहिए जिन पर पहले ही दूसरे देशों से ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने के आरोप हैं।
भारत की दिशा को भाँपते हुए चीन नाराज़ है इसलिए सीमा पर एक बार फिर तनाव खड़ा कर रहा है। सिक्किम में 5000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित नाकू ला और लद्दाख मेंपैंगांग झील क्षेत्र में दोनों के सैनिकों में झड़पें हो चुकीं हैं। हिमाचल प्रदेश के एक वरिष्ठ अफ़सर के अनुसार अप्रैल में चीनी हैलिकॉप्टर दो बार हमारे इलाक़े पर से उड़ान कर चुकें हैं। भारत भी दोनों क्षेत्रों में अपने सैनिक बढ़ा रहा है। लद्दाख में उस गलवां नदी के किनारें जहाँ 1962 में भारत तथा चीन में झड़पें हुईं थीं, फिर तनाव है। चीनी मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा का मानना है कि चीनी आक्रामकता गिलगित तथा बाल्टिस्तान पर भारत के बदले रवैये का जवाब है। हमारे मौसम विभाग ने अपने बुलेटिन में इन दोनों इलाक़ों का मौसम देना शुरू कर दिया है। चीन का जवाब है कि अगर आप इन दो इलाक़ों में अधिक दिलचस्पी दिखाओगे तो हम सिक्किम को मुद्दा बनाएँगे। कमर आगा का मानना है “यह भारत के साथ तनाव बढ़ाने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है”।
चीन की तड़प बहुआयामी है। उन्हें केवल गिलगित और बाल्टिस्तान की ही चिन्ता नही उन्हें असली चिन्ता है कि भारत अमेरिका के नेतृत्व में चीन विरोधी गठबन्धन का हिस्सा न बन जाए। न ही वह चाहता है कि हम सात महत्वपूर्ण देशों, अमेरिका, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के आर्थिक गठबन्धन का ही हिस्सा बने। इसीलिए 4000 किलोमीटर लम्बी सीमा पर बदमाशी कर रहा है। हाल ही में भारत द्वारा उत्तराखंड के लिपुलेख क्षेत्र में बनाई एक सड़क पर नेपाल ने आपत्ति की है जिस पर थलसेनाध्यक्ष जनरल नरवणे काकहना था कि नेपाल ‘किसी के इशारे पर नाच रहा है’। संकेत साफ़ है कि यह चीन करवा रहा है। एक और विरोधी क़दम उठाते हुए चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर में सिंधु नदी पर दियामर-बाशा डैम बनाने के लिए पाकिस्तान के साथ अनुबंध किया है। इस डैम को बनाने के लिए पहले भी चर्चा हुई थी लेकिन तब चीन ने रूचि नही दिखाई थी लेकिन इस बार चीन आगे आ कर समर्थन दे रहा है। इस पर निवेश भी चीन का होगा और इसके बनने से लद्दाख में पानी का संकट हो सकता है।
चीन जानता है कि दक्षिण एशिया में संतुलन भारत के पास है इसलिए आर्थिक और सामरिक दोनों क्षेत्रों में दबाव बढ़ा रहा है। पाकिस्तान का इस्तेमाल वह पहले ही कर रहा है। हमारे नेता भी पाकिस्तान पर गर्जते रहतें हैं लेकिन असली खलनायक चीन है, पाकिस्तान तो मात्र मोहरा है। भारत के लिए भी चीन के विस्तारवादी क़दमों को रोकने का यह ही मौक़ा है क्योंकि दुनिया में चीन विरोध चरम पर है। यह सरल काम नही होगा क्योंकि ड्रैगन हमारे पड़ोस में हैं। वह ताकतवार भी बहुत है। और नेपोलियन की चेतावनी सही सिद्ध हो रही है।
चीन ने नेपोलियन को सही सिद्ध कर दिया (The Threat From China),