‘विकास दुबे कानपुर वाला’ की 30 वर्ष लम्बी कुख्यात यात्रा और उज्जैन में उसकी कथित गिरफ़्तारी तथा रास्ते में उसका कथित एंकाउंटर कई सवाल छोड़ गया है। जिस अपराधी को पकड़ने के लिए उत्तर प्रदेश तथा पड़ोसी प्रदेशों की पुलिस चौकस थी वह एक हज़ार किलोमीटर दूर उज्जैन कैसे पहुँच गया? उसे हथकडी क्यों नहीं पहनाई गई? कार कैसे पलट गई? रास्ते में कार क्यों बदली गई? और भी कई सवाल हैं लेकिन यह उल्लेखनीय है कि उसकी मौत पर लोग संतुष्ट हैं। उमा भारती ने बधाई दी है। जिन पुलिस अफ़सरों ने यह एंकाउंटर किया है उन्हें हार डाले गए हैं चाहे कई मानवाधिकार वाले परेशान है। यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है किजिन्होंने विकास दुबे की मदद की यहां तक कि छापे के बारे उसे जानकारी भी दी, अधिकतर उसकी जाति के है।इसी से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश का रोग क्या है सब कुछ जात बिरादरी में बँटा हुआ है। ब्राह्मण 31 वर्ष से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हैं। अंतिम ब्राह्मण मुख्यमंत्री 1989 में नारायणदत तिवारी थे। वहाँ ब्राह्मणों में यह भावना है कि उनका कोई संरक्षक नही है जिसका फ़ायदा विकास दुबे जैसे बदमाश उठा लेते हैं।
कई लोग इस एंकाउंटर से विचलित है और कह रहें हैं कि यह जंगल राज और क़ानून व्यवस्था ठप्प होने का संकेत है। लेकिन ऐसा देश विदेश में होता आया है। अमेरिका और योरूप में बंदूक़धारी जो बात नही मानता को सीधे गोली मार दी जाती है। 1950 के शुरूआती सालों में पंजाब के साथ लगते पेप्सू में डाकुओं का उत्पात ख़त्म करने के लिए आई जी पुलिस राव ने गोलियों से उन्हें भून डाला था और सदा के लिए समस्या ख़त्म हो गई थी। पंजाब में आतंकवाद के दौरान केपीएस गिल ने भी एंकाउंटर का रास्ता पकड़ा था। उत्तर प्रदेश में जब वी पी सिंह मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने भी एंकाउंटर का रास्ता अपनाया था। 299 कथित डाकू मारे गए थे लेकिन मुख्यमंत्री के अपने भाई और उनके बेटे को मार दिया गया। वीपी सिंह ने इस्तीफ़ा दे दिया। योगी आदित्य नाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक समय रोज़ाना ‘एंकाउंटर’ हो रहे थे और 40-50 गैंगस्टर का सफ़ाया हो रहा था इसलिए हैरानी है कि विकास दुबे जैसा कुख्यात न केवल बच गया बल्कि दनदनाता रहा।
उसके ख़िलाफ़ 62 आपराधिक मामले दर्ज थे जिनमें 8 हत्या के और 8 ही हत्या के प्रयास के हैं लेकिन इस के बावजूद वह इतना दबंग था कि शोले-स्टाइल घात लगा कर 8 पुलिस वालों को मार डाला। पुलिस वाले भी वहाँ इस तरह लापरवाह क्यों गए थे? पुलिस छापे के बारे किस ने उसे सूचना दी थी? क्या विकास दुबे इसलिए बेपरवाह था कि समझता था कि कुछ नही होगा, ‘यह बाज़ू मेरे अजमाऐ हुए हैं’? 2001 में उसने 20 लोगों के सामने पुलिस थाने के अन्दर प्रदेश के एक मंत्री को गोली मार दी थी। सभी गवाह बाद में मुकर गए और वह बरी हो गया। उस वक़्त राजनाथ सिंह की सरकार थी जिसने मामला अंजाम तक ले जाने का कोई प्रयास नही किया न ही फ़ैसले के ख़िलाफ़ कोई अपील ही दर्ज की गई और विकास दुबे ने अपना हिंसा का उत्पात जारी रखा। वह डान बन गया जिसकी अपने गाँव बिकरू से लेकर बेंकाक तक जायदाद बताई जाती है। विकास
दुबे की मौत से उन सब को भी राहत मिलेगी जिन्हें घबराहट थी कि अगर वह तोते की तरह बोलने लग पड़ा तो कहीं वह पिंजरे में बंद न हो जाएँ !
अगर इस देश में हिंसा का ग्राफ़ देखा जाऐ तो स्पष्ट हो जाऐगा कि यह राजनेता-अफ़सरशाही -पुलिस के संरक्षण के बिना सम्भव नही है। खादी और ख़ाकी के अपराधी तत्वों में विशेष साँठगाँठ है। बहुत पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज आनन्द नारायण मुल्ला ने पुलिस को ‘अपराधियों का संगठित गिरोह’ कहा था। यह तोअतिशयोक्ति प्रतीत होती है पर वर्तमान घटनाक्रम उत्तर प्रदेश पुलिस की कारगुज़ारी पर काला निशान लगा गया है। पंजाब में भी नशा इतना विकराल रूप धारण कर गया क्योंकि उसे राजनीतिक संरक्षण और सरपरस्ती प्राप्त थी। विकास दुबे के राजनीतिक सरपरस्त कौन थे? क्या इसकी जॉच होगी? अगर योगी आदित्यनाथ की सरकार प्रदेश से अपराध को जड़ से उखाड़ना चाहती है तो उसे ‘बिग गन’ के पीछे जाना होगा, चाहे उनका सम्बन्ध किसी भी जाति या दल से हो। यूपी में यह भरे हुए हैं।
वरिष्ठ रिटायर्ड पुलिस अफ़सर प्रकाश सिंह का कहना है, “पुलिस पर ग़लत काम करने, ग़लत तत्वों को समर्थन देने, भ्रष्ट, बईमान,और हत्या के अपराधी जन प्रतिनिधियों को सलाम करने की बाध्यता है”। बात सही है हर नेता को ग़लत काम करवाने के लिए ग़लत लोगों की ज़रूरत होती है जिन्हें वह संरक्षण भी देते है। रिटायर्ड प्रमुख पुलिस अफ़सर जूलियो रिबेरो ने पुलिस बल में पतन पर लिखे लेख में बताया है कि जब वह पुलिस बल में शामिल हुए तो किसी अपराधी में यह हिम्मत नही थी कि वह पुलिस पर हमला कर सके और एक पुलिस अफ़सर के नेतृत्व में पुलिस पार्टी का सफ़ाया कर दे। रिबेरो के अनुसार “यह न्यायिक व्यवस्था के सड़ने की सही मिसाल है”। राजनेता तो अब फ़ख़्र से पुलिसवालों के बारे कहते हैं कि ‘ही इज़ माई मैन’। न केवल पुलिस बल बल्कि सारी व्यवस्था जिसका लोगों से सीधा सम्बन्ध है, पटवारी,तहसीलदार, थानेदार, जेई, इत्यादि का राजनीतिकरण हो चुका है। पूर्व आईपीएस अफ़सर यशोवर्धन आज़ाद का अलग कहना है, “निहित स्वार्थ ज़मीनी स्तर की संस्थाओं को निष्क्रिय रखते हैं”।
व्यवस्था की इस शिथिलता का विकास दुबे जैसे बदमाश फ़ायदा उठाते हैं। अदालतें क्योंकि बहुत देर लेती है इसलिए अपराधियों पर कोई अंकुश नही रहता, वह डॉन बन जाते हैं। एसोसिएशन फ़ॉर डैमोकरैटिक रिफार्म के अनुसार उत्तर प्रदेश के 403 में से 143 विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहें हैं। ऐसे लोग व्यवस्था को सफ़ा रखने में कितनी दिलचस्पी लेंगे? निश्चित तौर पर सत्तारूढ़ भाजपा में भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले विधायक होंगे। और ऐसी हालत केवल उत्तर प्रदेश मे ही नही हर प्रदेश और हर दल में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग हैं जो अपराधियों का इस्तेमाल करतें हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश की बात अलग है क्योंकि यह देश का सबसे बड़ा प्रदेश है जिसने नेहरू,शास्त्री, इंदिरा, राजीव, चरण सिंह, वी पी सिंह, चन्द्र शेखर, वाजपेयी और मोदी नौ प्रधानमंत्री देश को दिए है लेकिन सभी मिल कर भी प्रदेश की शोचनीय हालत बदल नही सके। योगी आदित्य नाथ ने वायदा किया था कि वह माफ़िया का विनाश कर देंगे पर विकास दुबे प्रकरण बताता है कि ऐसा हुआ नहीं। मैं नही समझता कि योगी जी की इच्छा शक्ति में कोई कमी है पर जैसा यह प्रदेश है एक मुख्यमंत्री की अपनी सीमाऐं उन्हें सीमित करती हैं।
यह प्रदेश इतना विशाल है कि एक सरकार और एक मुख्यमंत्री चाहे वह कितने भी कार्यकुशल और समर्पित क्यों न हों इसे समभाल नही सकते। एक पूर्व मुख्यमंत्री ने तो शिकायत की थी कि यहाँ इतने जिलें हैं कि सभी ज़िलाधीशों के नाम भी याद नही रहते। उत्तर प्रदेश के 75 जिलें है जबकि देश में कुल 735 ज़िलें हैं। 23 करोड़ लोग यहाँ रहतें हैं जो पाकिस्तान या ब्राज़ील की जनसंख्या के बराबर हैं। पाकिस्तान के चार बड़े प्रांत हैं जबकि ब्राज़ील के 26 प्रांत हैं। योरूप के कई देशों को मिला कर उत्तर प्रदेश का 243000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बनता है जबकि योरूप में जनसंख्या कम है। हाल ही में हम देख कर हटें है कि उत्तर प्रदेश से जा कर दूसरे प्रदेशों में काम कर रहे प्रवासियों की क्या दुर्गति हुई थी। अगर अपने प्रदेश में रोज़गार हो तो किसी को उस तरह भटकने की ज़रूरत नही। यह स्थिति कब बदलेगी? सभी समाजिक सूचक अति कमज़ोर हैं। प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से आधी है। सब से अधिक छोटे बच्चे यहाँ मरतें हैं। नोएडा को छोड़ क़र जो दिल्ली के साथ अपनी नज़दीकी के कारण तरक़्क़ी कर रहा है, बाक़ी बड़े शहर पुराने वैभव पर ज़िन्दा है। पर जब तक उत्तर प्रदेश और बिहार का काया पलट नही होता देश आगे नही बढ़ सकता। यह देश को नीचे खींचते हैं। उत्तर प्रदेश के 80 सांसद देश की राजनीति में उसे ज़रूरत से अधिक महत्व देते है और कहीं यह विश्वास भी देते हैं कि चिन्ता की कोई बात नही हमारे पास बहुत राजनीतिक ताक़त है।
बड़े दुख की बात है कि जिस प्रदेश में छ: में से एक भारतीय बसता हो उसे बंदा बनाने में सात दशकों के प्रयास विफल रहें हैं। इस देश में छोटे प्रदेशों का परीक्षण सफल रहा है। अगर उत्तर प्रदेश के हिस्से कर दिए जाऐं, जैसा सुझाव पहले कई बार आया है,तो वह सम्भाले जाऐंगे और अपने पैरों पर मज़बूती से खड़े हो सकेंगे। प्रधानमंत्री मोदी जो ख़ुद इस विशाल प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते है को भी अहसास होगा कि प्रदेश की वर्तमान हालत देश पर बोझ है इसलिए उत्तर प्रदेश के चार पाँच टुकड़े किए जाने चाहिए ताकि उन पर सही शासन किया जा सके। अब एक और सर्जिकल स्ट्राइक की बहुत ज़रूरत है।
मोदीजी, एक और सर्जिकल स्ट्राइक चाहिए Need Another Surgical Strike,