
सचिन पायलट की उड़ान आकाश मे अटकी हुई है अभी लैंडिंग नही मिल रही। उनकी राजनीतिक फ़्लाइट का कुछ भी हश्र हो इसने हमें एक बार फिर याद करवा दिया कि हमारे नेता कितने स्वार्थी, अवसरवादी और ग़ैर ज़िम्मेदार हो सकते हैं। जिस वक़्त देश का सारा ध्यान चीन से उत्पन्न वायरस और सीमा पर चीन की दादागिरी पर होना चाहिए हम राजस्थान का बेशर्म राजनीतिक तमाशा और बिहार तथा पश्चिम बंगाल में चुनावी दंगल की तैयारी देख रहें हैं। ऐसे भद्दे दृश्य हम पहले भी देख चुकें हैं और हाल में मध्य प्रदेश मे देख कर हटें हैं। उसी तरह भेड़ बकरियों की तरह ‘माननीय’ विधायकों को होटलों में हाँका जा रहा है। बाहर पुलिस है, गेट बंद है, बाऊंसर हैं कि कोई भेड़ फाँद कर बाहर न निकल जाए। दलाल सक्रिय हैं। करोड़ों रूपए की अदला बदली के आरोप लग रहें हैं। अर्थात ख़ूब बिक्री हो रही है। इतनी नक़दी इन्हें हर वक़्त कैसे उपलब्ध रहती है? कई कथित टेप बाहर आ चुके हैं और कई और के बाहर निकालने की धमकी दी जा रही है। केन्द्रीय मन्त्री गजेन्द्र सिंह शेखावत पर देश द्रोह का मामला दर्ज हो चुका है। दोनों तरफ़ के विधायक V साइन दिखा रहें हैं जो चर्चिल ने द्वितीय विश्व युद्ध जीतने के बाद दिखाया थापर इनकी कौनसी विक्टरी? कैसी विक्टरी? नैतिक तौर पर तो सब डिफ़ीटेड नज़र आ रहें हैं।
एक बड़े प्रदेश को अस्थिर करने की कोशिश हो रही है और प्रमुख भूमिका उस शक्स की है जो हाल ही में वहाँ उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष था। माना कि सचिन पायलट मेहनती और प्रतिभाशाली हैं। आकर्षक व्यक्तित्व है। अशोक गहलोत ने भी उनकी ‘गुड इंग्लिश’ और ‘हैंडसम पर्सनैलिटी’ की चर्चा की है चाहे उनका मानना है कि यह नेतृत्व के लिए पर्याप्त योग्यता नही है। काश! यही बात गहलोत राहुल गांधी को भी समझाते! इस देश में राजनीतिक मक्कारी बहुत देखी है पर सचिन पायलट तो ख़ुद एक मिसाल बन गए हैं। वह उस सरकार को अस्थिर करने में लगें हैं जिसके वह एक प्रकार के संरक्षक बनाए गए थे। ठीक है कि सचिन पायलट ने कांग्रेस को राजस्थान में वापिस सत्ता में लाने के लिए बहुत मेहनत की जबकि सीएम गहलोत बन गए लेकिन कांग्रेस ने भी सचिन पायलट को बहुत कुछ दिया। 26 वर्ष की आयु में लोकसभा सदस्य, 31 वर्ष की आयु में केन्द्रीय मंत्री, 36 वर्ष की आयु में प्रदेश अध्यक्ष और 40 वर्ष की आयु में उपमुख्यमंत्री बनाए गए। पार्टी उनके लिए और क्या कर सकती थी लेकिन अपने मित्र सिंधिया की तरह अपरिपक्व और अधीर थे। इसलिए अब फँसे हुए हैं।
सचिन पायलट कह रहे कि उन्हें अनावश्यक बदनाम किया जा रहा है लेकिन जिस तरह उनके विधायकों को हरियाणा मे आश्रय और पुलिस संरक्षण मिला उस से पता चलता है कि क्या खिचड़ी पक रही है। उनकी जो वरिष्ठ वक़ील मदद कर रहें है वह दोनों एक समय भाजपा सरकार मे उच्च पदों पर आसीन थे। और अगर पायलट गहलोत सरकार को गिराने में सफल हो भी गए तो भाजपा उन्हें सीएम तो बनाएगी नही। वहाँ तो वह नम्बर टू भी नही होंगे। भाजपा में वह ही प्रगति करता है जो संघ परिवार से सम्बन्धित हो। हेमंत बिसवास शर्मा जिन्होंने उत्तर पूर्व में भाजपा के लिए दरवाज़े खोल दिए पाँच वर्ष के बाद भी असम के सीएम नही बन सकें। सिंधिया भी जानते है कि चाहे वह राज्यसभा के सदस्य तो बन गए पर इस कथित टाईगर को वह विशिष्ट जगह नही मिलेगी जो उन्हें कांग्रेस में प्राप्त थी। भाजपा में कोई उन्हें उस तरह आँख नही मारेगा जैसे प्रधानमंत्री मोदी के ज़बरदस्ती गले लगने के बाद राहुल गांधी ने मारी थी !
इस मामले मे अशोक गहलोत भी मासूम नही है। उन्होंने ख़ुद माना है कि 18 महीने से उनकी पायलट से बोलचाल बंद है। अपने विरोधी को बाहर निकालने के लिए उन्होंने अपनी सरकार के अस्थिर होने का जोखिम उठा लिया। सरकार ने ही अपने उपमुख्यमंत्री को नोटिस भेज दिया और सचिन पायलट भड़क कर जाल में फँस गए। अब उन्हें ‘निकम्मा’ और ‘नकारा’ कह गहलोत ने सुलह का दरवाज़ा मज़बूती से बंद कर दिया है हाई कमान कुछ भी कहता रहे। लेकिन इस मामूली बहुमत से बकरे की माँ कब तक ख़ैर मनाएगी? ज़ख़्मी भाजपा उन्हें छोड़ेगी नही। गहलोत के नज़दीकियों पर छापे पड़ने शुरू हो ही चुकें हैं। बेहतर होता कि देश में संकट की स्थिति में भाजपा का नेतृत्व अधिक गम्भीरता और ज़िम्मेदारी का प्रदर्शन करता। बार बार विपक्ष की सरकारों को अस्थिर करने का प्रयास कर भाजपा का नेतृत्व यह संदेश दे रहा है कि वह उस लोकतन्त्र में विपक्ष और विरोध को बर्दाश्त नही कर रहा। किसी पार्टी से देश को ‘मुक्त’ करने का निर्णय जनता पर छोड़ देना चाहिए।
सब से बुरी हालत कांग्रेस के कथित हाईकमान की है जो तेज़ी से ‘लो कमान’ बनता जा रहा है। एक के बाद एक युवा नेता जहाज़ से कूद रहें हैं। पार्टी के अन्दर कितनी बेचैनी है यह कपिल सिब्बल के इस असाधारण ट्वीट से पता चलता है, “अपनी पार्टी के प्रति चिन्तित हूँ। क्या हम तब ही जागेंगे जब हमारे अस्तबल से घोड़े भाग जाऐंगे”? शशि थरूर लिख चुकें हैं कि अगर राहुल गांधी इस्तीफ़ा वापिस लेना नही मानते तो पार्टी को एक सक्रिय और दीर्घकालिक नेतृत्व की ज़रूरत होगी। राहुल को पद छोड़े एक साल हो गया अब फिर चर्चा है कि वह लौट रहें है। उनकी बहन प्रियंका बेहतर अध्यक्ष साबित हो सकती है क्योंकि वह भाई से अधिक मिलनसार है जबकि राहुल अपने मे बंद रहना पसन्द करतें हैं।
और राहुल गांधी का योगदान भी क्या है? वह लगातार 27 चुनाव हार चुकें है। अमेठी भी गँवा चुकें हैं। वह संसद में पार्टी के नेता भी नही पर सारे निर्णय, और अनिर्णय, उनकी सलाह से लिए जातें हैं। जब तक पार्टी में सही नेतृत्व क़ायम नही होता कांग्रेस का विघटन रूकेगा नही। यह भी अविश्वसनीय नही कि पहले सिंधिया और अब पायलट के पलायन से कथित हाईकमान नाख़ुश नही। जब भी कांग्रेस मे वैकल्पिक नेतृत्व की बात उठती तो इन दोनों का ही नाम लिया जाता था। चाहे कांग्रेस एक झटके से दूसरे झटके तक सफ़र कर रही है, चाहे पार्टी की युवा शक्ति निराश और हताश हो कर दूसरे ठिकाने ढूँढ रही है पर हाई-लो कमान संतुष्ट है कि लगाम हाथ में है चाहे वह कितनी भी कटी फटी हो।
कांग्रेस पार्टी की अधोगति इस घिनौना घटनाक्रम का एक पहलु है। असली दुख इस सारी राजनीतिक जमात पर है जो इस संकट की घड़ी में भी अपनी तुच्छ राजनीतिक चालबाजी से बाज़ नही आ रही। देश में करोना का विस्फोट हो रहा है। भारत में मरीज़ बढ़ने की रफ़्तार दुनिया में सबसे तेज़ है अब यह अमेरिका से दोगुना है।लाखों धंधे चौपट हो चुकें हैं। करोड़ों नौकरियाँ जा चुकीं हैं। अर्थ व्यवस्था भी बहुत तंदरुस्त नही है। लोगों मे भय और आतंक है कि मालूम नही कि इस महामारी से कब छुटकारा होगा। अब तो सरकार में से भी कोई हौंसला देने के लिए आगे नही आता। हर्ष वर्धनजी भी नज़र नही आ रहे। चीन के साथ वार्ता चल रही है पर पैगांग झील और डेपसांग से चीनी सैनिक वापिस नही हटे। यह गतिरोध लम्बा चलेगा। चीन इतनी जल्दी वापिस जाने के लिए आगे नही आया। राजस्थान में भी लगातार कोरोना के केस बढ़ रहे है पर क्या कोई आभास मिलता है कि गहलोतजी को प्रदेश की चिन्ता है? सारा ज़ोर तो ‘इंग्लिश स्पीकिंग’ और ‘हैंडसम’ सचिन पायलट जो गेहलोत के अनुसार कह चुके हैं कि वह ‘बैंगन बेचने नही सीएम बनने आएँ हैं’, को शिकस्त देने में लगा है। कोरोना वायरस की चिन्ता कहाँ है जिसके वहाँ रोज़ 1000 केस तक पहुंच रहें हैं।
क्या राजस्थान के नेतृत्व का धर्म लोगों को महामारी से बचाना है या ख़ुद को भीतरघात से बचाना है? लोगों को सुरक्षित रखना है कि दूसरे के विधायकों का शिकार करना और अपनो को होटलों में बंद रख शिकार होने से बचाना है? बिहार और पश्चिम बंगाल में भी प्रचंड महामारी के बीच ख़ूब चैलेंजबाजी हो रही है। पश्चिम बंगाल में अमित शाह और ममता बैनर्जी आमने सामने है। वर्चुअल रैलियों की तैयारी हो रही है। बिहार में 250 करोड़ रूपए की लागत से बना पुल पहली बरसात में बह गया। एक महीने पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका उद्घाटन किया था। क्या ऐसी लचर व्यवस्था से आशा की जा सकती हैं कि वह इस महामारी में प्रदेश के लोगों की रक्षा करेगी? बहरहाल राजनेताओं के लिए सब कुछ सामान्य है। निर्लज्ज राजनीति फिर बेधड़क है। ख़ाली पड़े होटल इन की मेहरबानी से आबाद हो चुकें है। घूस दी जा रही है और ली जा रही है पर भौचक्की जनता यह सड़ा हुआ तमाशा देख कर चकित हैं। राजस्थान के नाटक का क्लाईमैक्स क्या होता है यह अभी मालूम नही। देखतें हैं आख़िर में बैंगन कौन बेचता है?
निर्लज्ज राजनीति Our Shameless Politics,