
कमला देवी हैरिस को अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार चुने जाने पर भारत में तथा इंडियन-अमेरिकन समुदाय में ख़ूब चर्चा है। अगर वह जीत जातीं हैं तो वह पहली भारतवंशी अमेरिकी उपराष्ट्रपति होंगी। अगर वह हार भी जातीं हैं तो कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी का भविष्य होंगी और सम्भावना है कि चार साल के बाद वह पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी। अमेरिका में कई भारतीय बहुत जोश में हैं और उनका कहना है कि ‘अमेरिका में भी कमल खिल रहा है’। यह नारा भी तैयार किया गया है, “ अमेरिका का नेता कैसा हो, जो बाइडेन जैसा हो” पर साफ़ है कि बाइडेन में इनकी दिलचस्पी कम और कमला हैरिस में अधिक है।पर यह केवल एक विलक्षण महिला की कामयाबी ही नही यह वहॉ बसे हमारे विलक्षण लोगों की कामयाबी भी है जिन्होंने उस देश को वैज्ञानिक, आई टी इंजीनियर , डाक्टर, अध्यापक, वक़ील, राजनेता, प्रोफ़ैशनल और बहुत कुछ दिया और अमेरिका की उन्नति में योगदान डाला है।
भारत में भी खुशी है लेकिन शंका भी है। चेन्नई में ‘विजेता कमला’ के पोस्टर लग रहें हैं। आख़िर उनकी माता श्यामला गोपालन चेन्नई से हैं। कमला तथा बहन माया को उनकी भारतीय पृष्ठभूमि से माँ ने पूरी तरह अवगत करवाया। शादी के वक़्त कमला ने अपने यहूदी पति को वरमाला पहनाई थी जबकि पति ने अपनी परम्परा के अनुसार शीशा तोड़ा था। बीबीसी के अनुसार, ‘उनकी उम्मीदवारी अमेरिका में भारतीय तथा दक्षिण एशियाई समुदाय की व्यापक स्वीकृति बताती है’। शेखर नरसिम्हन जो डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यकर्ता है का कहना है, “इंडियन-अमेरिकी उन पर गर्व क्यों न करें ? यह संकेत है कि हम अपनी जगह पा रहें हैं”। पर कहीं आदत के अनुसार हम भावना में अधिक बह तो नही रहे? आख़िर यहाँ तो डानल्ड ट्रंप का मंदिर भी है ! इस संदर्भ में मैं पाँच बातें कहना चाहूँगा जो ख़ुशी भी देती है पर सावधान भी करतीं हैं।
1. हमारे लिए खुशी की बात है कि भारतीय प्रवासी महिला की बेटी दूर समुद्र पार अमेरिका में उपराष्ट्रपति और एक दिन राष्ट्रपति बन सकती हैं। लेकिन यह याद रखना चाहिए कि वह पहले अमेरिकी हैं और बाद में भारतीय। उनके आगे अमेरिका का हित होगा न कि उस देश का जहाँ उनकी माँ जन्मी थी। अपने सोशल मीडिया पोस्ट मे दोनो बहने कमला और माया ख़ुद को ‘ब्लैक-अमेरिकन’ न कि ‘इंडियन-अमेरिकन’ बताती है। इस मामले को लेकर वहाँ के इंडियन समुदाय की उनके प्रति दुविधा को भाँपते हुए उन्होंने अब ख़ुद को ‘दक्षिण एशियाई वंश’ से बताया है पर अभी भी ‘इंडियन-अमेरिकन’ कहने से परहेज़ किया है। सारे राजनीतिक कैरियर मे वह ख़ुद को ‘ब्लैक वोमन’ ही कहती रहीं हैं। उनका इस उच्च पद के क़रीब पहुँचना भी अमरीकन सिस्टम और समाज की कामयाबी है जो बराबर का मौक़ा देते है, यह भारत की कामयाबी नही। उन्हें अमेरिका ने बनाया है जिसके प्रति वह वफ़ादार हैं, जैसा होना भी चाहिए।
प्रायः देखा भी गया है कि कई इंडियन-अमेरिकन उच्च पद पर पहुंच कर ख़ुद को अपनी भारतीय पृष्ठभूमि से दूर कर लेते हैं इसीलिए कमला हैरिस के प्रति वहाँ भारतीय समुदाय में प्रतिकूल प्रतिक्रिया भी हुई है। पूर्व गवर्नर बॉबी जिन्दल की मिसाल है जो उनके भारतीय मूल के बारे याद करवाए जाने पर चिढ़ जाते थे। वहां ब्लैक लोग 15 प्रतिशत हैं जबकि इंडियन समुदाय, चाहे वह प्रभावशाली हैं,के वोटर 13 लाख ही हैं। राजनीतिक समझ भी कहती है कि वह ख़ुद को ब्लैक समाज के साथ जोड़ें जो पिछले कुछ महीनों से बहुत उत्तेजित है। वाशिंगटन पोस्ट ने सही प्रस्तुत किया है कि “वह भारतीय संस्कृति से जुड़ते हुए बढ़ी हुईं हैं लेकिन उन्होंने गर्व से अफ़्रीकन-अमेरिकन ज़िन्दगी जी है”।
2. क्योंकि वह अमेरिकन नेता हैं इसलिए कई मामलों में उनके विचार हमसे भिन्न और कभी असुखद हो सकतें हैं। कमला हैरिस धारा 370, सीएए, एनआरसी को लेकर हमारी आलोचना कर चुकीं हैं। कश्मीर के बारें उनके विचार हमारे विदेश विभाग को पसन्द नही आए होंगे। आगे और दबाव आ सकता है क्योंकि कमला हैरिस का मानवाधिकारों पर बहुत ज़ोर है। अगर हम कश्मीर में पाबन्दियाँ लगाएँगे तो कमला हैरिस और उनकी पार्टी की आलोचना का सामना करना पड़ सकता है। पूर्व राजदूत नवदीप सूरी ने लिखा है, “मैं अपने उत्साह को कुछ ठंडा करूँगा…सबसे पहले उन्होंने अमेरिकन लोगों की सेवा करनी है। चाहे इस वक़्त हम अच्छी स्थिति में हैं कि आपसी सहमति बना सकतें हैं,पर कभी हम ख़ुद को ऐसी स्थिति में भी पा सकतें हैं जहाँ मानवाधिकारों या कोई और बात जो उन्हे परेशान करती हो के बारे उनके ज़बरदस्त विचार हो सकतें हैं”। इसीलिए उनके प्रति इंडियन-अमेरिकन समुदाय में उत्साह धीमा होना शुरू हो गया है। जयकारे नही लगाए जा रहे। जश्न समय से पहले लगता है।
3. पर मानवाधिकारों के प्रति उनकी चिन्ता का एक सकारात्मक पक्ष भी है। वहॉ रह रहे हमारे लोगों को राहत मिलेगी क्योंकि कमला हैरिस और उनकी पार्टी का प्रवासियों के प्रति नरम रवैया होगा। डानल्ड ट्रंप ने तो उनके सर पर अनिश्चितता की तलवार लटका दी है। ट्रंप एच-1बी वीज़ा और ग्रीन कार्ड को लेकर कई पैंतरे बदल चुकें हैं और प्रवासियों के प्रति अपनी नफ़रत छिपाने की कोशिश भी नही करते लेकिन अमेरिकी कम्पनियों को भारतीय प्रतिभा और प्रोफ़ैशनल्ज की भूख रहती है और हमारे लोगों को अच्छी नौकरी मिलता है। कमला हैरिस इस मामले में उदार रहेंगी और अगर वहॉ अगली सरकार उनकी पार्टी की बनती है तो प्रवासी चैन कर सकेंगे।
4. हमारी भुगौलिक स्थिति,आर्थिक ताक़त तथा सामरिक महत्व ऐसा है कि अमेरिका हमें नज़रअंदाज़ नही कर सकता विशेष तौर पर जब वह चीन के साथ एक प्रकार के शीतयुदध मे व्यस्त है। इस क्षेत्र मे चीन का मुक़ाबला केवल भारत ही कर सकता है यह अमेरिका जानता है। चीन ट्रंप सरकार के दबाव से परेशान है और समझा जाता है कि वह जो बाइडेन की सरकार को पसन्द करेगा। लेकिन अमेरिका मे दोनों बड़ी पार्टियों में चीन को लेकर सहमति है कि वह अमेरिका के हितों और भविष्य के लिए ख़तरा है। जो बाइडेन की नीति शायद इतनी आक्रामक न हो जितनी ट्रंप की है, फिर भी वह चीन के और उत्थान को रोकने का प्रयास करेंगे जिसके लिए उन्हें भी भारत के सहयोग की ज़रूरत होगी। भारत में जो शंकाओं हैं को भाँपते हुए जो बाइडेन ने घोषणा की है कि ‘सीमा पार से भारत को जो ख़तरा है उसका सामना करने में अमेरिका साथ खड़ा होगा’। चीन और पाकिस्तान को यह स्पष्ट इशारा है। सता मे आकर नीतियाँ बदल भी जाती है और बाइडेन ने ‘ईमानदार वार्तालाप’ की बात भी कही है,अर्थात मतभेदों की गुंजाइश रखी है लेकिन भारत का सहयोग अमेरिकी हितों के लिए निर्णायक है। ट्रंप और बाइडेन दोनों यह जानते है। इसीलिए हमारी सरकार अमेरिका के चुनाव से ख़ुद को अलग रख रही है। हमारी कोई विशेष पसन्द नही है, कमला हैरिस के बावजूद। इस उत्साहहीन प्रतिक्रिया ने उन्हें भी सोचने पर मजबूर किया होगा।
5. मानना पड़ेगा कि हमारे राजनयिकों ने अमेरिकी राष्ट्रपतियों को साधने में महारत हासिल कर ली है। रिचर्ड निक्सन को छोड़ कर बाक़ी सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों को हम मित्र बनाने में कामयाब रहें है। जब बराक ओबामा राष्ट्रपति बने तो उन्हें कश्मीर की बहुत चिन्ता थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ संयुक्त पत्रकार सम्मेलन मे उन्होंने बिन मॉगे कश्मीर का समाधान ढूँढने मे मदद की पेशकश की थी यह जानते हुए भी कि भारत को ऐसी दखल से चिढ़ है। नरेन्द्र मोदी के साथ उन्होंने भारतीय मुसलमानों की बात उठाई और यहाँ तक कह दिया कि ‘भारत का धर्म के आधार पर विभाजन नही होना चाहिए’। बाद में वह इस तरह बदले कि दो बार भारत की यात्रा करने वाले एकमात्र अमेरिकी राष्ट्रपति बने।
जब डानल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने तो समझा गया कि उन्हें भारत मे दिलचस्पी नही है। वह भारत की ‘ट्रेड प्रैक्टिस’ को लेकर उबलते रहे। व्हाइट हाउस में इमरान खान का जोशीला स्वागत किया गया और ट्रंप ने घोषणा की कि वह भारत-पाक में मध्यस्थता करना चाहेंगे। यह भी सम्भावना थी कि वह चीन को तरजीह देंगे लेकिन नरेन्द्र मोदी ने उनके साथ सम्बन्ध बहुत मज़बूत कर लिए। वह इमरान खान को भूल गए हैं और आजकल शी जिनपिंग की चीन के पीछे हाथ धो कर पड़े हैं। ह्युस्टन में मोदी का हाथ पकड़ कर स्टेडियम का चक्कर लगा कर और बाद मे अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में उत्साह से हिस्सा लेकर उन्होंने भारत के साथ सम्बन्ध और मज़बूत किए है और आज विश्वास से कह रहें हैं कि उनके पास कमला हैरिस से अधिक इंडियन है। इसी कारण डाइडेन ने भारत के प्रति नीति स्पष्ट की है और कमला हैरिस अपनी भारतीय विरासत को दोहरा रहीं हैंऔर इडली का स्वाद बता रहीं हैं !
असली बात है कि आज भारत और अमेरिका के हित साँझे है और दोनों को एक दूसरे की ज़रूरत है। जैसे विशेषज्ञ सी राजा मोहन ने लिखा है, “कई लड़ियाँ है, आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सम्बन्धी जो भारत तथा अमेरिका के रिश्तों को मज़बूती देती हैं”। इस हक़ीक़त को चुनाव नही बदल सकता। किसी के जीतने या न जीतने से बहुत अधिक फ़र्क़ पड़ने वाला नहीं।
कमला हैरिस: जश्न समय से पूर्व Kamala Harris: Celebrations Premature,