
घटनाक्रम की शुरूआत सुशांत सिंह राजपूत की दुखद मौत से हुई पर 40 दिन के बाद मामले ने गम्भीर मोड़ ले लिया क्योंकि सुशांत के पिता को उसकी मौत के पीछे साज़िश नज़र आने लगी। उनकी उँगली सुशांत की गर्ल फ्रैंड रिया चक्रवर्ती की तरफ़ उठी जिसे परिवार ने सुशांत की अप्राकृतिक मौत के लिए ज़िम्मेवार ठहरा दिया। लेकिन फिर मामला परिवार के हाथ से निकल गया और वहाँ पहुँच गया जहाँ वह भी नही चाहतें होंगे। रिया चक्रवर्ती ज़रूर जेल में है पर यह भी साबित हो चुका है कि उनका पुत्र सुशांत नशेड़ी था मैंटल डिसॉडर से पीड़ित था और रिया से मिलने से पहले से ड्रग्स ले रहा था।
शुरू में बॉलीवुड में नैपोटिज्म अर्थात भाई भतीजावाद का आरोप लगाया गया जिसने सुशांत को बाहर की तरफ़ धकेल दिया और हताशा में उसने अपनी जान ले ली। आरोप लगाने वालों में कंगना रनोट प्रमुख थी। फिर आरोप लगा कि सुशांत के खाते से 15 करोड़ रूपए ग़ायब हैं और इशारा फिर रिया की तरफ़ था कि वह यह पैसा निगल गई हैलेकिन बाद में यह स्पष्ट हो गया कि कोई 15 करोड़ रूपया आया ही नही तो निगलने का सवाल ही नही। अब फिर मामले ने मोड़ लिया और ड्रग्स पर आ गया, जहाँ यह फ़िलहाल अटका हुआ है। इससे पहले बिहार के चुनाव को देखते हुए सुशांत की मौत की जाँच को ‘बिहारी गौरव ‘ से जोड़ दिया गया। वहां 40 प्रतिशत बेरोज़गारी है और बाढ़ से 80 लाख पीड़ित है पर इनकी अधिक चिन्ता किए बिना बिहार सरकार भी सुशांत को ‘जस्टिस’ दिलवाने में लग गई। मीडिया द्वारा उत्तेजित लोकराय को संतुष्ट करने के लिए पहले सीबीआई फिर ईडी और फिर एनसीबी को जाँच में लगा दिया गया। और सुशांत सिंह राजपूत की मौत घिनौने तमाशे में बदल दी गई।
केन्द्रीय सरकार को इस मामले में इतनी दिलचस्पी क्यों थी कि तीन तीन एजंसियों को एक लड़की के पीछे लगा दिया? रिया चक्रवर्ती से लगभग 100 घंटे पूछताछ की गई। बाद में मालूम हुआ कि उस से कुछ ग्राम गाँजा बरामद हुआ है क्या यह काम स्थानीय पुलिस नही कर सकती थी? यह एजेंसियाँ तो बड़े मगरमच्छों को पकड़ने के लिए हैं पर यह तो छोटे छोटे ड्रग पैडलर्ज़ के पीछे लगी हैं। न ही किसी एजंसी को सुशांत की मौत में कुछ गोलमाल मिला है। न ही यह सिद्ध हुआ कि किसी ने आत्महत्या के लिए उकसाया था। फिर इन एजेंसियों का समय क्यों बर्बाद किया गया? क्या सारा प्रयास लोगों का ध्यान कोरोना की भयावह स्थिति और गिरती अर्थव्यवस्था से हटाने का था?
इस बीच अपनी पुरानी ‘आ बैल मुझे मार’ की नीति पर चलते हुए कंगना रनोट ने विवाद के ठीक बीच छलाँग लगा दी। वह हिम्मती और प्रतिभाशाली हैं पर संयम कभी भी उनकी विशेषता नही रही। मुम्बई से 1949 किलोमीटर दूर मनाली से कंगना ने लगातार ट्वीट करते हुए शिकायत की कि फ़िल्मों में भाई भतीजावाद है, ‘मूवी माफिया’ के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा निकाला, आरोप लगाया कि 90 प्रतिशत से अधिक बॉलीवुड ड्रग्स लेता है,मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपशब्द कहे, और सभी हदें पार करते हुए मुम्बई जहाँ वह रहतीं हैं और जिसने उन्हें उनका स्टारडम दिया की तुलना पीओके और तालिबान से कर डाली। शिवसेना जो बराबर ग़ैर ज़िम्मेदार और बेकाबू है , एक अभिनेत्री से भिड़ गई। उसे गालियाँ निकाली गईं और संजय राउत तो मर्यादा की हर सीमा लाँघ गए।
शिकायत है कि कंगना ने यह कहा कि ‘उद्धव ठाकरे तुझे क्या लगता है…’। जिस भाषा का इस्तेमाल किया गया वह बिलकुल अनुचित है और नज़र आता है कि लड़की में संस्कारों की कमी है क्योंकि न केवल ठाकरे आयु में बड़े हैं बल्कि मुख्यमंत्री भी है पर यह केस दर्ज करने वाला मामला नही लगता। सीएम को ‘तुझे’ कहना अपराध नही है, बदतमीज़ी ज़रूर है। कंगना की अनुपस्थिति में बीएमसी जो मुम्बई की सड़कों के गड्ढे नही भर सकी ने उनके दफ़्तर का ‘अवैध’ हिस्सा गिरा दिया और कंगना को देश भर में सहानुभूति दिलवाने दी। पर शिवसेना बहुत चुस्त पार्टी है। उत्पात करने की अपनी क्षमता के कारण ही वह मुख्यमंत्री के पद तक पहुँचने में सफल रही है। वह बहुत स्ट्रीट स्मार्ट है इसलिए कंगना को भी सावधान रहना होगा।
इस वक़्त कंगना को केन्द्र और भाजपा का समर्थन प्राप्त है। केन्द्र सरकार ने भी उसे Y+ सुरक्षा प्रदान कर बता दिया कि सहानुभूति कहाँ है। यह वही सुरक्षा स्तर है जो मुख्य न्यायाधीश को प्राप्त है। कंगना द्वारा मुम्बई को पीओके और तालिबान कहना उसका और उसके समर्थकों का पीछा करता रहेगा। दफ़्तर तोड़ने पर अपनी फ़ज़ीहत के बाद सेना अभी कुछ ख़ामोश है पर वह ‘मराठी मानुस’ को कभी भी उत्तेजित कर सकती है। कंगना को घेरने की तैयारी चल रही है। एक बहुत पुराना ड्रग्स का मामला जीवित किया जा रहा है। उसका पुराना वीडियो वायरल हो गया है जिसमें वह कहती नज़र आ रहीं हैं कि ‘घर से भागने के बाद कुछ सालों में मैं फ़िल्म स्टार और ड्रग एडिक्ट बन गई’।
प्रोड्यूसर गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने शिकायत की है कि ‘सुशांत की मौत को लेकर कुछ लोगों ने फ़िल्म उद्योग तथा उसके सदस्यों को बदनाम किया है’। यह शिकायत सही है। काली भेड़ें हर उद्योग में हैं पर हमे नही भूलना चाहिए कि बॉलीवुड का देश के प्रति अपार योगदान है। इसी ने मुम्बई को सपनों की नगरी और देश की सांस्कृतिक राजधानी बना दिया है। यहाँ तैयार की गई हमारी ‘सॉफट पावर’ दुनिया के सर चढ़ कर बोल रही है। और अगर कश्मीर से कन्या कुमारी तक देश का युवक एक ही गाने पर थिरकता है तो देश की भावनात्मक एकता और मज़बूत होती है। यह देश में मनोरंजन का सबसे बड़ा स्रोत है इसे इस तरह कलंकित करने का प्रयास अनुचित है। और मुम्बई वह शहर है जिसने करोड़ों बेसहारों को सहारा दिया, छत दी, जिसने करोड़ों के सपने पूरे किए। जैसे किसी ने लिखा है,
जो भी आया इसका मोहताज हो गया,
सड़क पर सो कर भी यहाँ का सरताज हो गया
यश चोपड़ा ने कहा था कि जो मुम्बई आ गया यहाँ का हो कर रह गया। ऐसी कशिश है इस महानगरी में। बहुत सी सच्ची कहानियों है जहाँ सड़क या बैंच पर सोने वाला भी यहाँ सफल हो गया। मुम्बई करोड़ों की कर्मभूमि रही है, कर्मभूमि है और कर्मभूमि रहेगी। इसकी तुलना पीओके या तालिबान से करना शर्मनाक है।
लेकिन यह मामला तो कंगना का था ही नही,यह तो सुशांत -रिया का था। कहानी बनाने और ध्यान हटाने में कंगना का भी उतना ही इस्तेमाल किया गया जितना सुशांत-रिया का किया गया। मीडिया के एक बड़े वर्ग ने भी अपना नाजायज़ इस्तेमाल होने दिया। कई तो ‘मर्डर’ ‘मर्डर’ चिल्ला रहे थे। एक चैनल ने किसी ‘चोर दरवाज़े’ का ज़िक्र कर दिया जिस के द्वारा ‘हत्यारों ने सुशांत के कमरे मे दाख़िल हो उसकी हत्या की थी’। पर जासूस जी ने कोई प्रमाण नही दिया। रिया तथा उसके परिवार के पीछे कुछ चैनल उस तरह पड़े थे जैसे प्यासे शिकारी कुत्ते शिकार के पीछे पड़ते हैं। इन चैनलों पर इतना शोर शराबा था और इतना घटियापन परोसा गया कि पूर्व राज्यपाल और पूर्व वरिष्ठ अधिकारी गुरबचन जगत ने शिकायत की है, “स्वर, शब्द और विषय की बेहूदगी की इतनी गहराई है कि सभ्य इंसान इस टार्चर को कुछ समय से अधिक बर्दाश्त नही कर सकता”।
क्या यह चैनल किसी के इशारे पर नाच रहे थे? अगर हाँ तो पीछे कठपुतली को नचाने वाला कौन था?
अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ मे मीडिया का एक हिस्सा बेलगाम हो गया। अब तो इस गिरावट की विदेशों में भी चर्चा शुरू हो गई है। बड़ी अदालतें भी चिन्तित हैं। मुम्बई हाईकोर्ट ने केन्द्र से पूछा है कि टीवी समाचार मीडिया पर केन्द्र का नियंत्रण क्यों नही होना चाहिए? शशि थरूर की पत्नि सुनन्दा पुष्कर की मौत के मामले में रिपब्लिक टीवी के मुख्य सम्पादक अरनब गोस्वामी को अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने चैनल पर पुलिस के समानांतर जाँच नही चला सकते। शशि थरूर की शिकायत है कि अपने चैनल पर अरनब गोस्वामी कहते रहे कि ‘शशि थरूर हत्यारा है, मैं उसे हत्यारे के तौर पर बेनक़ाब करूँगा’। अदालत का सवाल था कि ‘क्या आप घटनास्थल पर थे? क्या आप गवाह हो’? अदालत ने संयम रखने कीसलाह दी जो लगभग सारे टीवी मीडिया पर लागू होती है। प्रिंट मीडिया सही चल रहा है पर टीवी मीडिया तो कई बार होशहवास खो बैठता है।
जिस तरह सुशांत के मामले पर हिस्टीरिया पैदा किया गया उस से समाज का नुक़सान हुआ है पर रिया की क़ैद के बाद मीडिया की अधिक दिलचस्पी नही रही। कंगना भी मुम्बई को तौबा कर लौट गईं हैं। अगला बटेर जो मीडिया के पैर के नीचे आया है वह बॉलीवुड में कथित ड्रग्स कलचर का है। ख़ुद बॉलीवुड का हिस्सा रहे सांसद रवि किशन ने संसद में भी मामला उठाया है। एक हिन्दी चैनल ने कहा है ‘धीरे धीरे ड्रग्स गैंग की पूरी लॉबी अपनी बिल ले निकलेगी और पूरी दुनिया उनका असली चेहरा देखेगी’। अर्थात मीडिया को अपना अगला विलेन मिल गया। सुशांत की मौत अब सनसनीख़ेज़ नही रही इसलिए कहानी बदली जा रही है। निशाने पर बॉलीवुड के ‘बिग विग’ हो सकतें है। ऐसे करवट के बारे ही किसी ने कहा है,
ज़रा सी देर में वो जाने क्या से क्या कर दें
किसे हवा बना दें किसे हवा कर दें !
और कहानी बदल गई And Then The Tale Turns ,