अमेरिका के राष्ट्रपति डानल्ड ट्रंप ने फिर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। नौ दिन पहले उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया था। तीन दिन वह अस्पताल में भी रहे थे जिस दौरान यह समाचार भी बाहर निकले थे कि उन्हें दो बार ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ी थी। लेकिन ट्रंप परेशान है क्योंकि 3 नवंबर को उनका चुनाव है और हर सर्वेक्षण बताता है कि वह अपने प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन से बहुत पीछे चल रहें है इसलिए यह कहते हुए कि ‘आई एम फ़ीलिंग ग्रेट’ वह जोश से चुनाव अभियान में कूद पड़ें हैं। ट्रंप बेधड़क है, उनका एकमात्र लक्ष्य चुनाव जीतना है उन्हें परवाह नही कि इसके रास्ते में वह और कितनों को संक्रमित करतें हैं। पिछले महीने उन्होंने नए जज की नियुक्ति के उपलक्ष्य में व्हाइट हाउस में कार्यक्रम रखा था जहाँ लगभग सभी मेहमानों ने मास्क नही डाला था। ट्रंप ने ख़ुद भी नही डाला था। अब अमेरिका के प्रमुख डाक्टर एंटनी फौसी ने कहा है कि व्हाइट हाउस का यह कार्यक्रम ‘सुपर स्परैडर’ अर्थात अति-संक्रमण फैलाने वाला था।
जब से दुनिया मे कोरोना वायरस फैला है अमेरिका के राष्ट्रपति का रवैया गैर ज़िम्मेदार रहा है। ख़ुद को बाहुबली साबित करने और अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए उन्होंने लगातार मास्क पहनने से इंकार कर दिया है। यह भी कह दिया कि देश को कोरोना से डरने की ज़रूरत नही जबकि अमेरिका में दुनिया में सबसे अधिक मौतें, 2,15,000 हुईं है और दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश से अभी भी वायरस सम्भाला नही जा रहा। जिन परिवारों के लोग कोरोना लील गया है वह विशेष तौर पर अपने राष्ट्रपति को कोस रहें हैं। लेकिन ऐसी किसी आलोचना से ट्रंप विचलित नही और ख़ुद को तगड़ा प्रस्तुत करने के लिए समय से पहले चुनाव प्रचार में कूद पड़े हैं।
ट्रंप के दबाव में व्हाइट हाउस में कोई मास्क नही डालता और जो डालते हैं उनका मज़ाक़ उड़ाया जाता है। परिणाम है कि उनके एक दर्जन नज़दीकी संक्रमित हो चुकें हैं और कई अधिकारी वहाँ जाने से क़तरा रहें हैं। ट्रंप ने तो कोरोना को आम फ्लू जैसा बता दिया है जिससे विशेषज्ञ आचम्भित है। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार, ‘व्हाइट हाउस में डर का माहौल है। अधिकारी कहतें हैं कि अगर बॉस को ख़ुश रखना है तो मास्क घर पर छोड़ कर आओ…उन्हें अपने चुनाव की अधिक चिन्ता है इसलिए स्कूल, चर्च और कारोबार जल्द खोलने के लिए लगातार दबाव डालते रहतें हैं’। अमेरिका के राष्ट्रपति के इस बुद्धिहीन रवैये के कारण उनकी रिपब्लिक पार्टी में भारी चिन्ता है कि ट्रंप की सनक और महत्वकांक्षा बहुत नुक़सान कर रही है। एक सहायक का कहना है कि ‘हम एक प्रकार से स्टूपिड (मूर्ख) पार्टी बनते जा रहें है’।
कहना तो नही चाहिए पर जिस पार्टी का नेतृत्व ही ‘स्टूपिड’ हो और वायरस से बहुत ही मूर्खता सेनिपटा हो उसका भविष्य बहुत उजला नही कहा जा सकता। हर राष्ट्राध्यक्ष ने इस महामारी को गम्भीरता से लिया है, दो तीन को छोड़ कर। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी इसे गम्भीरता से नही लिया था। बिना सावधानी से इधर उधर फिरते रहे और जब संक्रमित हुए तो बहुत मुश्किल से बचे। भारत में सरकार ने शुरू से ही इसे गम्भीरता से लिया है। प्रधानमंत्री ख़ुद लगातार लोगों को ढिलाई के ख़िलाफ़ सावधान करते आ रहें है। अब भी स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने त्यौहार के मौसम में लापरवाही न करने की चेतावनी दी है। ट्रंप के ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये पर विशेषज्ञ कहतें हैं कि ‘उनके द्वारा सावधानी की उल्लंघना से उनके दोबारा चुने जाने की सम्भावना न ख़त्म होना बहुत मुश्किल लगता है। इस वक़्त तो यही लगता है कि 77 वर्षीय जो बाइडेन ही अगले राष्ट्रपति होंगे’।
ट्रंप या बाइडेन ? भारत के लिए कौन बेहतर होगा? यह चर्चा भारत में भी है और अमेरिका स्थित भारतीय समुदाय में भी है। आमतौर पर भारतायों का झुकाव बाइडेन की डैमोकरैटिक पार्टी की तरफ़ रहता है पर प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप की ‘दोस्ती’ के कारण कुछ दुविधा है। यहाँ तो ट्रंप के स्वास्थ्य लाभ के लिए कुछ शुभचिन्तक हवन भी कर चुकें हैं। ट्रंप और बाइडेन दोनों इस वक़्त इंडियन-अमेरिकन को अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश कर रहें हैं। वहाँ लगभग 20 लाख इंडियन -अमेरिकन वोटर हैं। यह तादाद बहुत बड़ी तो नही पर कई प्रांतों में यह वोट निर्णायक हो सकता है। इसीलिए ट्रंप कह रहें है कि उन्हें ‘हिन्दू से लव है’ तो बाइडेन ने गणेश चतुर्थी पर बधाई दी और अब कहा है कि इंडियन-अमेरिकन समुदाय ने अमेरिका की तरक़्क़ी को ऊर्जा दी है। जो बाइडेन के पक्ष में यह भी जाता है कि उनकी उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस है जिनकी माता चेन्नई से थीं। कमला हैरिस का रवैया भारत पक्षीय नही रहा। धारा 370 पर उनका और बाइडेन का रवैया नकारात्मक रहा है। पर उनका यहाँ तक पहुँचना कहीं भारतीय समुदाय को रोमांचित करता है क्योंकि उनके संघर्ष और सफलता में वह अपना संघर्ष और सफलता देखतें है। ट्रंप ने चुनाव से ठीक पहले एच1बी वीज़ा पर पाबन्दी लगा दी है। पहले भी वह इमग्रेशन को लेकर नियम बदलते रहें है। अब वहाँ भारतीय पेशेवारों के लिए प्रवेश मुश्किल होगा और मौक़े घटेंगे। भारतीय आईटी कम्पनियाँ प्रभावित होगी और हमारे लोगों के लिए नागरिकता पाना मुश्किल होगा। इस मामले में बाइडेन अधिक उदार रहेंगे और पाबन्दियाँ कम कर सकते हैं जबकि ट्रंप का सारा प्रयास अपने कट्टर समर्थकों को प्रभावित करना है,मोदीको साथ ‘दोस्ती’ या ‘हिन्दू-लव’ सब बनावटी है।
एक सर्वेक्षण बताता है कि इंडियन-अमेरिकन समुदाय का दो तिहाई बाइडेन का समर्थन करेगा जबकि केवल 28 प्रतिशत ही ट्रंप को वोट करने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी नेउन्हें ह्युस्टन और अहमदाबाद में रिझाने का प्रयास किया पर ट्रंप ने भारत या भारतीयों के प्रति कोई विशेष नरम कोना प्रदर्शित नही किया। चीन के प्रति अमेरिका का रूख अवश्य सख़्त हुआ है पर इसका असली कारण है कि कोरोना से निबटने में अपनी असफलता से ध्यान मोड़ने के लिए ट्रंप चीनी-वायरस पर बरस रहें हैं। चीन का उत्थान और बराबर का सुपरपावर बनना अमेरिका पचा नही पा रहा पर कोई नही कह सकता कि अगर वह चुनाव जीत जातें हैं तो ट्रंप का रवैया क्या होगा। जहाँ तक भारत का सवाल है किसी भी अमेरिकी सरकार का हमारी तरफ़ रवैया आख़िर में हम पर निर्भर करेगा कि हमारी अपनी ताक़त और हिम्मत क्या है। जब तक हम तरक़्क़ी करतें जाएँगे और उनके लिए अपना बाज़ार खोलते जाऐंगे और महँगा सैनिक सामान ख़रीदते जाऐंगे,अमेरिका हमे महत्वपूर्ण सांझेदार समझता रहेगा।
एशिया में चीन को सम्भालने के लिए भी अमेरिका को हमारी ज़रूरत है। सीमा पर चीन की बराबरी कर हमने अपनी ताक़त और संकल्प प्रदर्शित कर ही दिए हैं पर कुछ लोग है जो समझते है कि हम अपना महत्व ज़रूरत से अधिक समझते हैं। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार रहे जॉन बॉल्टन का कहना है कि दोनों ट्रंप और बाइडेन का झुकाव चीन की तरफ़ होगा क्योंकि वह बड़ी शक्ति है। वह कहते है, “ट्रंप नक़ली है। अगर वह जीते तो शी को बोल सकतें हैं कि भारत या हांगकांग के साथ क्या हो रहा है उससे उन्हें फ़र्क़ नही पड़ता। बस,चीन मनमाफिक ट्रेड डील के लिए राज़ी हो जाऐ’।
‘ट्रंप बनावटी हैं’ बॉल्टन की यह परिभाषा याद रखनी चाहिए। वह अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए लड़ रहें हैं और किसी का कुछ महत्व नही। कल उन्होंने क्या करना है कोई जानता नही, वह झट नीति परिवर्तन कर सकते हैं। उनके कारण दुनिया में अराजकता और अनिश्चितताबढ़ें है। उनके साथी देश भी अमेरिका की कलेबाजियों से परेशान हैं। वह पेरिस में जलवायु सम्मेलन से बाहर निकल चुकें हैं। नाटो की ज़रूरत पर सवाल उठा चुकें है। कोरोना महामारी के दौरान डब्ल्यू एच ओ से बाहर आ चुकें हैं। ट्रंप जम्मू कश्मीर पर मध्यस्थता की बार बार पेशकश कर चुकें हैं यह जानते हुए भी कि भारत को ऐसे किसी प्रयास से चिढ़ है। भारत के कोरोना आँकड़ो को वह फ़र्ज़ी बता चुकें है और भारत के साथ किसी ट्रेड समझौते में उन्होंने कोई दिलचस्पी नही दिखाई। अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ सुमित गांगुली का ट्रंप के बारे कहना है, “भारत के साथ सम्बन्धों के प्रति उनका रवैया बिलकुल अस्थाई है। भारत का अमेरिका के लिए कोई वास्तविक महत्व नही है”।
मैं नही मानता कि अमेरिका के लिए हमारा कोई महत्व नही है। उन्हें हमारा बाज़ार चाहिए और चीन के ख़िलाफ़ सहयोगी चाहिए पर मैं उनसे सहमत नही हूँ जो समझतें हैं कि सनकी, अस्थिर और बेक़ाबू ट्रंप का दोबारा चुना जाना हमारे हित में है। यह बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी होगी। जिस व्यक्ति के बारे मालूम नही कि कल वह क्या पैंतरा अपनाएगे और जो अपने लोगों से लगातार झूठ बोलता रहा हो वह किसी का हितकर नही हो सकता। पर दुनिया को अमेरिका का नेतृत्व चाहिए विशेष तौर कोरोना से लड़ने और उसके परिणाम को सम्भालने के लिए। चीन के दुसाहस पर भी अमेरिका ही लगाम लगा सकता है लेकिन इसके लिए अमेरिका में एक स्थिर और परिपक्व नेतृत्व की ज़रूरत है। दुनिया को मालूम होना चाहिए कि अमेरिका की लम्बी अवधि की नीति,अच्छी या बुरी, क्या होगी? डानल्ड ट्रंप ऐसे राष्ट्रपति या इंसान नही जिन पर अमेरिका या दुनिया विश्वास कर सकें। न्यूयार्क टाईम्स ने सही लिखा है कि उनके न चुने जाने से अमेरिका और दुनिया सबको राहत मिलेगी।
ट्रंप का जीतना दुर्भाग्यपूर्ण होगा Trump’s Victory will Be Most Unfortunate,