
पाकिस्तान के लिए भी यह असाधारण और विचित्र घटनाक्रम था। रावलपिंडी के सैनिक मुख्यालय के आदेश पर पाक रेंजरों ने सिंध के आईजी मुश्ताक़ महार का अपहरण कर लिया। उन्हें ज़बरदस्ती बखतरबंद वाहन में डाल कर ब्रिगेड मुख्यालय ले जाया गया और वहाँ नवाज़ शरीफ़ के दामाद मुहमद सफ़दर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने के लिए मजबूर किया गया। उसके बाद कराची के होटल के कमरे में जहाँ नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ अपने पति के साथ ठहरी हुई थी, आधी रात को दरवाज़ा तोड़ कर पुलिस सफ़दर को ले गई। इस पर पत्रकार मरियामा बाबर लिखती हैं, “सोती हुई महिला के कमरे का दरवाज़ा तोड़ कर घुसने की बात कभी सुनी नही गई थी…सारा देश इस से स्तब्ध रह गया है”। उसके बाद सिंध के 70 से अधिक पुलिस अफ़सर छुट्टी पर चले गए। अपुष्ट समाचार यह भी है कि पाक सेना और सिंध पुलिस के बीच गोली चली और कई लोग मारे गए। फ़िलहाल मामला दबा दिया गया है पर एक समय तो गृहयुद्ध जैसे हालात बन गए थे। 1947 से ही सिंध,बलूचिस्तान,और पठानों में अलगाव की चिंगारी सुलग रही है। इस टकराव से इस भावना को बल मिलेगा।
लेकिन मामला सेना और पुलिस के टकराव से भी अधिक गम्भीर है क्योंकि निशाने पर केवल वज़ीरे आज़म इमरान खान ही नही, पहली बार पाकिस्तान के शक्तिशाली सेनाध्यक्ष जनरल कमार जावेद बाजवा भी हैं। महँगाई के कारण वहाँ हाहाकार मचा हुआ है। खाने पीने की चीज़ें बहुत महँगी है। कनक और चीनी की क़िल्लत है। पेट्रोल बेहद महँगा है और सरकारी कर्मचारी वेतन को लेकर प्रदर्शन कर रहें हैं। साउदी अरब जो बार बार पाकिस्तान को डूबने से बचाता रहा है, नाराज़ है और दिया गया पैसा वापिस माँग रहा है। आतंकवाद को पाकिस्तान के समर्थन के कारण आईएमएफ़ भी मदद नही कर रहा। अभी केवल ‘आयरन फ्रैंड’ चीन इस सरकार को समर्थन दे रहा है पर चीन भी पाकिस्तान के पतन से चिन्तित होगा क्योंकि उन्होंने उस देश में तथा बीआरआई गलियारें में बहुत निवेश किया है। 11 विपक्षी पार्टियों ने पहले गुजराँवाला, कराची और अब क्वेटा में अपनी ताक़त दिखा दी है। सरकार के ख़िलाफ़ जो एक प्रकार का गठबन्धन बना है उसे अभी मालूम नही कि आख़िर में उसकी शक्ल क्या होगी, लेकिन एक बात साफ़ है कि इमरान खान-जनरल बाजवा की संयुक्त सरकार की चूलें हिलने लगी हैं।
हताशा में इमरान खान लगातार विपक्ष को जेल में डालने की धमकी दे रह् हैं पर वह ख़ुद ऐसे नेता लग रहें हैं जिनके हाथ से नियंत्रण निकलता जा रहा है। सेना का नेतृत्व चिन्तित है क्योंकि विपक्ष केवल सरकार के ख़िलाफ़ ही नही बल्कि सेना के नेतृत्व के ख़िलाफ़ भी अभियान चला रहा है। मरियम नवाज़ का कहना है कि इमरान खान तो डमी (कठपुतली) है जिसे पीएम की कुर्सी पर बैठाया गया है, सत्ता तो किसी और के हाथ में हैं। जिसका अर्थ यह भी है कि अगर असली सत्ता सेना के पास है तो पाकिस्तान की जो दुर्गति हो रही इसके लिए सेना भी ज़िम्मेवार है। अभी तक जो हुआ वह शुरूआती फ़ायर है। विपक्ष जनवरी तक यह अभियान चलाना चाहता है जिसे जनता में असंतोष से बल मिल रहा है। अगर सेना के नेतृत्व को लगेगा कि अपने को बचाने के लिए इमरान खान की क़ुर्बानी देने की ज़रूरत है तो वह एक क्षण के लिए भी हिचकिचाएँगे नहीं। इतिहास गवाह है कि पाक सेना ने वहाँ सरकारों की कभी परवाह नही की, जब चाहा पलट दिया।प्रमुख अख़बार डॉन मे जाहिद हुसैन लिखतें हैं, “भारी गड़बड़ है …इमरान खान हर मोर्चे पर फ़ेल हैं जिस कारण विपक्ष को आक्रामक होने का मौक़ा मिल गया है…यह अत्यन्त ख़तरनाक स्थिति है क्योंकि प्रमुख राजनीतिक ताक़तें उस अशक्त सरकार के ख़िलाफ़ एकजुट है जो अपने अस्तित्व के लिए सुरक्षा बलों पर निर्भर है…गिरती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोज़गारी ने समाजिक अशांति पैदा कर दी है”।
पाकिस्तान में पहली बार जिन्हें लेफ़्ट और राइट कहा जाता है, सरकार के ख़िलाफ़ इकटठे हैं। मरियम नवाज़ और बिलावल भुट्टो में वहाँ नया नेतृत्व भी उभर रहा है जिस पर अभी भ्रष्टाचार के आरोप नही लगे। इनका आरोप है कि 2018 में इमरान खान चुनाव जीते नहीं थे, सेना ने धाँधली कर उन्हें ‘सिलैक्ट’ किया था। इमरान के पास केवल एक ही जवाब है कि यह सब भारत की शह पर हो रहा है और ‘मोदी पाकिस्तान को कमज़ोर करवाना चाहता है’। जबकि इसमें न भारत की दखल है न होनी चाहिए। हमे अलग रह इस तमाशे का आनन्द लेना चाहिए। जो ख़ुद को नष्ट करने में व्यस्त हैं उन्हें कोई रोक नही सकता। इमरान खान कश्मीर की रट तो लगाते रहतें हैं पर आम पाकिस्तानी देख रहा है कि धारा 370 हटा कर भारत ने अपना मसला हल कर लिया है और इमरान बड़बड़ाने के इलावा कुछ नही कर सके। उन्हें भी समझना चाहिए कि उनकी सरकार केवल भारत विरोध पर टिकी नही रह सकती।
पाकिस्तान के इस गम्भीर घटनाक्रम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि पहली बार सेना और उसके नेतृत्व पर निशाना साधा गया है। पाकिस्तान में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर लंदन में रह रहे नवाज़ शरीफ़ ने जनरल बाजवा और आईएसआई के चीफ़ ले.जनरल फ़ैज़ हमीद का नाम लेकर आलोचना की है कि उन्होंने इमरान खान को देश पर थोपा है इसलिए हालत के लिए वह ज़िम्मेवार है। लंदन से वीडियो द्वारा नवाज़ शरीफ़ ने आरोप लगाया है, “जनरल कमर जावेद बाजवा आपने हमारी सरकार को सत्ता से बेदख़ल कर दिया…और कठपुतली सरकार बनवा दी। जनरल बाजवा प्रत्यक्ष अपराधी हैं”। यह शब्द बहुत सख़्त हैं।
नवाज़ शरीफ़ अभी सेना को बक्शने के लिए तैयार नही लगते। कारगिल का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने भारी संख्या में हताहत हुए सैनिकों के लिए सेना के जनरलों को ज़िम्मेवार ठहराया है और आरोप लगाया कि उनके सैनिकों के पास हथियार भी नही थे। कराची की घटना के बाद वहाँ लोगों ने उस मॉल को आग लगा दी जिसका मालिक एक सैनिक अधिकारी है। लोगों ने अपना ग़ुस्सा दिखा दिया। इमरान खान ने बाजवा को तीन साल की सेवा वृद्धि दी है जिसका असर 30 जनरलों के कैरियर पर पड़ा है। इससे यह सब भी नाराज़ है और हैरानी नही होगी कि वह इस सरकार विरोधी भावना को भड़का रहें हों। अतीत में जब भी वहाँ ऐसे अभियान चले है तो सेना के आशिर्वाद से चलें हैं। पाकिस्तान में यह ज़बरदस्त चर्चा है कि विपक्ष के अभियान को जनरल बाजवा से ख़फ़ा ताकतवार जनरल शह दे रहें है ताकि ऐसी स्थिति आजाए कि केवल इमरान की नालायक सरकार से ही छुटकारा न मिले बल्कि जनरल बाजवा को भी जाना पड़े।
नवाज़ शरीफ़ के आक्रामक भाषण ने वहाँ माहौल बदल दिया है। इस बार मुशर्रफ जैसे पूर्व तानाशाह पर निशाना नही लगाया गया बल्कि नाम लेकर सेना चीफ़ पर फ़ायर किया गया है। बाक़ी के विपक्षी नेता केवल इमरान सरकार को निशाना बनाना चाहते थे पर ज़ख़्मी नवाज़ शरीफ़ ने बदला लेते हुए फ़ोकस सेनाध्यक्ष बाजवा की तरफ़ मोड़ दिया है। उन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है क्योंकि लोग जानते है कि देश को केवल नेताओं ने ही नही, सैनिक अधिकारियों ने भी लूटा है। पाकिस्तान के सेनाधिकारियों, सेवारत या पूर्व, पर आरोप है कि वह विदेशी सरकारों से पैसा लेते रहें हैं, विदेशी कम्पनियों में नौकरी की तलाश में रहतें हैं। पाकिस्तान में कईयों के धंधे चल रहें हैं, लोगों को ब्लैकमेल कर मोटा पैसा बनाते हैं और स्थानीय बिसनेसमैन के साथ साँठगाँठ कर अपने बच्चों को ‘सैटल’ करतें हैं। उद्योग, सिनेमा, मॉल, बड़ी बड़ी जायदाद सब इनके पास है। परवेज़ मुशर्रफ ने साउदी अरब के शाह से लाखों डालर लेकर लंदन और दुबई में जायदाद ख़रीदी है। पाकिस्तान के एक और जनरल असीम बाजवा को इमरान खान के विशेष सहायक के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा क्योंकि यह रहस्योद्घाटन हुआ है कि उस की चार देशों में 99 कम्पनियों हैं।
सही कहा गया है कि पाकिस्तान में दो-दो सरकारें चल रही हैं। एक इमरान खान के नाम से कमज़ोर सरकार चल रही है पर प्रभावी सेना की दूसरी सरकार है जिसके हाथ में असली सत्ता है। विपक्षी आन्दोलन के नेता मौलाना फजलुर रहमान ने चेतावनी दी है कि सेना सरकार और पुलिस के काम में दखल देना बंद करे नही तो देश में एकता नही रहेगी। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि आर्थिक पतन के कारण सेना के प्रभुत्व को लोगों की नाराज़गी से चुनौती मिल रही है। पेशावर विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर सरफराज खान कहतें हैं, “जो मैं अब देख रहा हूँ वह बिलकुल अलग है…मिडल क्लास का विस्तार हो रहा है और वह चाहते हैं कि सेना अपनी संस्थागत भूमिका तक सीमित रहे। उन्हें लोकतन्त्र, शान्ति और क़ानून का शासन चाहिए”।
कोरोना वायरस, बाढ़ और टिड्डी दल के कारण और तबाही हुई है जिन से निबटने में सरकार असफल रही है। जैसे एक प्रोफ़ेसर ने वहाँ कहा है, ‘इस समय हमे मिसाइल नही वैंटिलेटर चाहिए’। पाक सेना के उच्चाधिकारियों के लिए यह चिन्ता का विषय होगा कि उन्हें उस सरकार में संलिप्त पाया गया है जो पहले दिन से अक्षम साबित हो रही है और जिसके कारण लोगों की तकलीफ़ों बढ़ीं हैं। जनरल बाजवा को अपनी चिन्ता होगी कि सरकार की बदनामी के छींटे उन पर पड़ रहें हैं। पाकिस्तान में फिर ‘गेम’ शुरू हो रही है। लगता है कि इस बार केवल वजीरे आज़म की ही नही, सेनाध्यक्ष की भी बलि हो सकती है।
पाकिस्तान: ‘गेम’ फिर शुरू Pakistan : The ‘Game’ Starts Again,