16 जनवरी 2021 का दिन एतिहासिक रहेगा। ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:’ के श्लोक के साथ भारत में कोरोना के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का आग़ाज़ किया गया। इसे हम अंत की शुरूआत भी कह सकतें हैं।कुछ कमज़ोरियाँ रह जाऐंगी, कुछ ग़लतियाँ होंगी, यहां कुछ घपलों की सम्भावना से भी इंकार नही किया जा सकता, पर यह अभियान हमारे वैज्ञानिकों, डाक्टरों और विशेषज्ञों की प्रतिभा, उनकी मेहनत और संकल्प की महान उपलब्धि है। फ़्रंट लाइन वर्करस को भी सलाम ! कितने और देश हैं जो यह दावा कर सकतें हैं कि उन्होंने अपने लिए यह टीका बनाया है? चीन ने बनाया है पर उसकी क्षमता पर सवाल उठाए जा रहें हैं। पाकिस्तान हसरत से यहाँ बने टीके की तरफ़ देख रहा है पर इमरान खान सीधा माँगना नही चाहते इसलिए पाकिस्तान तीसरे देशों या किसी अंतराष्ट्रीय संस्था के द्वारा हमारे यहाँ बना टीका मंगवाएगा। हमारे लोगों ने जो काम वर्षों में होता था को दस महीने में कर दिखाया। पहले अनुमान था कि 2021 के मध्य तक हम इस मंज़िल तक पहुँचेंगे पर आपात हालात को देखते हुए हम छ: महीने पहले पहुँच गए हैं। सरकार की भूमिका भी प्रो-एक्टिव रही और उसने उत्पादकों को तेज़ दौड़ने के लिए खुला मैदान दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद तीन प्रमुख दवाई उत्पादकों के संस्थानों का दौरा कर चुकें हैं। आशा है कि जब पद्म सम्मानों का समय आएगा तो सरकार उनके प्रति उदार रहेगी जिन की प्रतिभा और हिम्मत की बदौलत हम आज इस सुविधाजनक स्थिति में है।
यह टीकाकरण अभियान उस वक़्त शुरू हो रहा है जब अमेरिका, योरूप और इंग्लैंड में यह वायरस तबाही मचा रहा है। चीन में भी फिर से कोरोना के लक्षण मिलने से कई शहर लॉकडाउन में हैं। भारत अब बेहतर स्थिति में है। हमारे रोज़ाना केस अब 10000 के क़रीब है और मृत्यु दर भी 150 के आसपास है। लेकिन क्योंकि आजकल देश एक दूसरे से जुड़े हुए है इसलिए कोई भी पूरी तरह सुरक्षित नही जब तक सारे सुरक्षित नहीइसलिए यह जरूरी है कि हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए, और इसके लिए टीका लगाना जरूरी है। हमने शुरू में बहुत सख़्त लॉकडाउन लगा दिया था जिससे अर्थ व्यवस्था को भारी नुक़सान पहुँचा था। बहुत लोग अब इसकी आलोचना कर रहे हैं। पर अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टलीना जार्जजीवा ने कोरोना और उसके आर्थिक दुष्परिणामों से निबटने में भारत के ‘बहुत निर्णायक’ क़दमों की प्रशंसा की है। उनका कहना है आर्थिक गतिविधियां तेज़ी से शुरू हो गईं हैं। लेकिन बहुत विशेषज्ञ है जो समझते है कि आर्थिक पहिए को एकदम रोक कर भारत ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। इस मुद्दे पर अभी अधिक बहस और अध्ययन की ज़रूरत है।
भारत का सफ़र किस क़दर दूसरों से बेहतर रहा यह इससे पता चलता है कि सितम्बर में हमारे केस दुनिया की औसत के बराबर थे और जनवरी आते आते हम एक तिहाई रह गए हैं। मौतें भी इसी अनुपात से कम हुई हैं। यह भी दिलचस्प अध्ययन होगा कि हम बेहतर स्थिति में कैसे रह गए? क्या इसका कारण है कि हम गंदगी, बीमारी, प्रदूषण में रहने के आदी हैं इसलिए प्रतिरोधक क्षमता अधिक है? या इसका कारण है कि हममें ‘हर्ड इम्यूनिटी’ पैदा हो गईहै? अर्थात यहाँ इतने लोग संक्रमित हो चुकें है कि वायरस ने फैलना बंद कर दिया और सामूहिक क्षमता पैदा हो चुकी है। कारण कुछ भी हो, हमे केवल अपनी ख़ुशक़िस्मत पर लड्डू ही नही बाँटने हमे बीमारी की विदाई निश्चित करनी है जिसके लिए टीका लगवाना जरूरी है।जैसे एम्स के निदेशक डा.गुलेरिया ने भी कहा है कि वायरस की ऋंखला तोड़ने के लिए टीका ही एकमात्र रास्ता है। सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला का कहना है कि टीका वह सफल समझा जाता है जो, (1) सुरक्षित हो,(2)बीमारी से लम्बे समय तक बचाए रखे, (3)उसे ऐसे तापमान में रखा जा सके जो सम्भाला जा सके, और, (4)इसे ख़रीदने में सब समर्थ हो। भारत में अब तक बनी दो वैक्सीन, कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों सस्ती हैं और दोनों ही सम्भाले जा सकने वाले तापमान में रखी जा सकती हैं। लेकिन अदार पूनावाला के पहले और दूसरे नुक्ते को लेकर ज़बरदस्त विवाद और बहस शुरू हो गई है।
एक तो यह निश्चित नही कहा जा सकता कि यह टीका ‘बीमारी से लम्बे समय तक’ बचाए रख भी सकता है या नही? अभी यह नया टीका है इसलिए मालूम नही कि इसका असर कुछ महीने रहेगा, कुछ साल या केवल कुछ महीने। लेकिन असली बहस और शंका पहले मुद्दे पर है कि इन वैक्सीन की क्षमता और इससे सुरक्षा के बारे बहुत कम डेटा सार्वजनिक किया गया है। सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड की क्षमता और नतीजों के बारे इंग्लैंड और ब्राज़ील से डेटा उपलब्ध है पर भारत का डेटा अभी सार्वजनिक नही किया गया जिससे मालूम नही कि यहाँ सफलता कितने प्रतिशत रही है? इस वैक्सीन के यहाँ तीन ट्रायल हो चुकें हैं जिन्हें सफल बताया जाता है पर कोवैक्सिन के तो तीन ट्रायल भी पूरे नही हुए और रिपोर्ट 31 जनवरी तक आएगी,पर उसे सरकार ने इजाज़त दे दी है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के रेज़िडेंट डाक्टरों ने यह टीका लेने से इंकार कर दिया और कोविशील्ड टीका लगवाने की माँग कर रहें हैं। उन्हें कोवैक्सिन के बारे संदेह है। डा. गुलेरिया जिन्होंने ख़ुद कोवैक्सिन टीका लगवाया है का कहना है कि यह पूरी तरह सुरक्षित है और टीका लगवाने के बाद किसी तरह की कोई दिक़्क़त नही आई। उनकी बात सही होगी। हो सकता है कि यह टीका बाद में सब से बेहतर निकले, पर इसे साबित करने के लिए अभी हमारे पास कोई जानकारी नही है।
कांग्रेस ने कोवैक्सिन को मिली इजाज़त को लेकर सवाल उठाए हैं। सांसद मनीष तिवारी का कहना है कि सही प्रक्रिया से गुज़रे बिना इस टीके को सरकार ने अनुमति दे दी। इसका जवाब यह बनता हैकि क्योंकि स्थिति गम्भीर है इसलिए इसके आपात इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। पर यह कहने की जगह भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा का कहना था कि, “जब जब देश कोई सराहनीय सफलता प्राप्त करता है कांग्रेस अफ़वाहें फैलाना शुरू कर देती है”। नड्डा का जवाब सही नही और कमज़ोरी प्रकट करता है। भाजपा के नेता हर आलोचना का इसी तर्ज़ में जवाब देते है कि जैसे आलोचना करना देश विरोध है। सही जवाब स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने दिया है कि टीका सुरक्षित है इसीलिए जाने माने चिकित्सक और अधिकारी आगे आ कर टीका लगवा रहें है। जवाब भी यही बनता है कि अगर पुरानी डगर पर चलते और सारे सरकारी नख़रों का ध्यान रखते तो छ: महीने और निकल जाते। हम और छ: महीने हाथ पर हाथ रख बैठे और संक्रमितों का आँकड़ा बढ़ते नही देख सकते थे। छ: महीने में बीमारी बेक़ाबू हो जाती और आर्थिक नुक़सान और होता।
टीके की आपात इजाज़त दे कर सरकार ने अपना राज धर्म निभाया है लेकिन सरकार को समझना चाहिए कि कोवैक्सिन को लेकर जायज़ सवाल है। शंका इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि कोवैक्सिन के उत्पादक भारत बायोटैक ने टीका प्राप्त करने वालों से अनुमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए है क्योंकि ‘इसकी अनुमति सरकार ने क्लिनिकल ट्रायल प्रक्रिया के बीच दी है’। अर्थात वैक्सीन की क्षमता अभी अज्ञात है। कम्पनी ने यह भी घोषणा की है कि अगर वैक्सीन से सम्बन्धित गम्भीर प्रतिकूल असर होता है तो कम्पनी मुआवज़ा देगी। शायद टीका शुरू करने के लिए उन्हें एक महीना और चाहिए था। पर यह उल्लेखनीय है कि दोनों टीके का अभी तक कोई विशेष साइड-इफ़ेक्ट अर्थात ख़राब असर नज़र नही आया। केवल 0.2% मामलों में ही समस्या आई है जो चर्चा में है,पर देखना यह है कि 99.8% मामलों में कोई दिक़्क़त नही आई।
वॉल स्ट्रीट जरनल ने लिखा है कि इसरायल में टीकाकरण के दो सप्ताह में ही संक्रमण की दर कम होना शुरू हो गई है पर नार्वे से चिन्ताजनक समाचार है कि फाइज़र टीका लगाने के बाद 75 वर्ष की आयु वाले 29 लोगों की मौत हो चुकी है। अर्थात अभी हम अंजान क्षेत्र में क़दम रख रहें हैं। संतोष है कि कुछ हिचकिचाहट के बावजूद हमारे देश में अभियान सुचारू चल रहा है। देश में और भी टीका तैयार हो रहा है और रूस के स्पुतनिक टीके का भी क्लिनिकल ट्रायल हैदराबाद में डा. रेड्डी की लैबारटरी मे चल रहा है। लेकिन जिस तेज़ी से यह टीके बने है, और जिस तेज़ी से रैगुलेटर ने इसकी इजाज़त दी है उससे कुछ स्वभाविक शंकाएँ उत्पन्न हुईं हैं। इनका जवाब तर्क से देना चाहिए कि सरकार अंधाधुँध आगे नही बढ़ रही, सब उच्च विशेषज्ञों की सलाह से किया जा रहा है। पर इन शंकाओं को ख़त्म करने का एक और बेहतर तरीक़ा है। अगर हमारे नेता, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री गण, विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री, सभी अगर आगे आकर टीका लगवाएँ, जैसा अमेरिका, इंग्लैंड, इसरायल जैसे देशों में हुआ है, तो शंका की सारी गुंजाइश ख़त्म हो जाएगी। न जाने इस पहल के बारे हमारा यह विशेषाधिकार सम्पन्न वर्ग सोच क्यों नही रहा ? मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मुझेअपने विशेषज्ञों पर भरोसा है, इसलिए जब मेरी बारी आएगी मैं टीका लगवाने के लिए क़तार में खड़ा हो जाऊँगा।