पिछले सप्ताह मैंने कोविड-19 की वैक्सीन कोवीशील्ड का पहला टीका लगवा लिया है।यह टीका जालन्धर के सिविल अस्पताल में लगाया गया। 28 दिन के बाद टीके की दूसरी डोज़ लगेगी। यह सारी कहानी इसलिए बता रहा हूं क्योंकि आज भी बहुत लोग टीका लगवाने से घबरा रहें हैं। एक दूसरे कि तरफ़ देखा जा रहा है कि इसका कोई साइड इफैक्ट अर्थात बुरा असर तो नही है? मुझे भी सावधान किया गया था। कईयों का कहना था कि भारत में बनी वैक्सीन से फाइज़र या स्पुटनिक अधिक प्रभावी हैं इसलिए इनकी इंतज़ार करनी चाहिए। लेकिन मेरा अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था पर भरोसा है इसलिए मैंने कोवीशील्ड का टीका लगवाया है। अगर डा. हर्ष वर्धन या डा. रणदीप गुलेरिया जैसे लोग कह रहें हैं कि देश में बनी वैक्सीन कारगर और सुरक्षित है, तो मैं आँख बंद कर विश्वास करने को तैयार हूँ। मेरी आयु 75 वर्ष है और अगर मुझे टीका लगवाने के बाद किसी दुष्प्रभाव का सामना नही करना पड़ा तो मैं आशा करता हूँ कि जब बारी आएगी तो और सीनियर सिटिज़न भी हिचकिचाहट छोड़ टीका लगवाने के लिए आगे आएँगे। इसी में सब का बचाव है।
जालन्धर के सिविल अस्पताल के एक कोने में टीका लगवाने का यह सेंटर है। प्रवेश करने पर पूछा गया कि कोई बीमारी तो नही, पर यह मात्र औपचारिकता ही थी। फिर बैठा कर टीका लगाया गया, कोई तकलीफ़ नही हुई। जैसे सामान्य टीका लगता है। फिर आधा घंटा रिकवरी रूम में बैठने के कहा गया ताकि अगर कोई बुरा प्रभाव हो तो सम्भाला जा सके। क्योंकि मुझे कुछ ऐसा नही हुआ इसलिए आधे घंटे के बाद घर जाने की इजाज़त मिल गई। मैं कोई पौना घंटा उस केन्द्र में रहा। सब कुछ व्यवस्थित था, स्टाफ़ सहयोग पूर्ण था। केवल एक शिकायत है कि कोई अनुशासन नही था, न कोई सोशल डिसटेंसिगं ही थी। अधिकतर लोगों ने मास्क नही पहने थे। इस मामले में सख़्ती करने की ज़रूरत है क्योंकि आने वाले दिनों में सीनियर सिटिज़न के लिए टीकाकरण खुल रहा है इसलिए सावधानी की बहुत ज़रूरत है। जो मास्क के बिना आए उसे प्रवेश नही मिलना चाहिए। अगले दिन मुझे भारत सरकार के परिवार कल्याण मंत्रालय का मैसेज आया कि आपको पहली डोज़ का टीका लगा है और आप अपना सर्टिफ़िकेट उमंग एप के डिजिलॉकर में देख सकते हैं। यह उमंग एप और उसका डिजिलॉकर किसी सरकारी भूलभुलैया से कम नही। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी बाबू ने इसे इतने प्यार से बनाया है कि आम आदमी सर्टिफ़िकेट तक पहुँच ही न सके ! चाहिए यह कि एकाध क्लिक से रिपोर्ट मिल जाए, जैसा बाक़ी लैब रिपोर्ट के बारे होता है ,पर यहाँ तो विशेषज्ञ की सहायता कि बिना आप सरकारी चक्रव्यूह में फँसे रहोगे।
भारत सरकार तथा भारत में टीका बनाने वाली कम्पनियों की यह बड़ी कामयाबी है कि एक साल के अन्दर अन्दर टीकाकरण शुरू हो गया है। जिस तरह मोदी सरकार इस बीमारी से निबटी है वह बढ़िया सफलता की कहानी है, एक सकसैस स्टोरी है। अगर केरल और महाराष्ट्र को छोड़ दें तो बाक़ी देश में कोरोना मामूली रह गया लगता है, इसका कारण कुछ भी हो। हम अमेरिका और योरूप से कहीं बेहतर स्थिति में रहें हैं। हमारी जनसंख्या दुनिया का छठा हिस्सा है, यहाँ कोरोना को कमज़ोर कर हमने दुनिया का भी भला किया है। चार महीने से यहाँ मरीज़ों की संख्या लगातार कम हो रही है जिसका मतलब है कि उतार अस्थाई नही है पर बताया गया है कि ऐसी बीमारी की पूँछ लम्बी होती है, इसलिए हमें असावधान नही होना चाहिए। लोगों ने मास्क डालना और सोशल डिसटेंस रखना बंद कर दिया है, इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। महाराष्ट्र में फिर कुछ चढ़ाव है। मुम्बई में फिर लॉकडाउन की चर्चा है।
हमारी सफलता की कहानी केवल यह ही नही कि हमने महामारी पर लगाम लगाई है। हमारी एक और बड़ी सफलता हमारी ‘वैक्सीन डिपलोमेसी’, अर्थात टीका-कूटनीति है जिससे हम दूसरे देशों की टीका दे कर मदद कर रहें हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटरस ने वैश्विक टीकाकरण में भारत के सहयोग की प्रशंसा की है। भारत क्योंकि दुनिया के वैक्सीन का 60 प्रतिशत उत्पादन करता है इसलिए 60 देश, विकसित और विकासशील,वैक्सीन के लिए हम से रिकवेस्ट कर चुकें हैं। हम अपने पड़ोसी देशों, नेपाल, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव,म्यांमार की तो मदद कर ही रहें है हम दूर के छोटे देशों तक मुफ़्त वैक्सीन पहुँचा रहे हैं। बारबाडोस की प्रधानमंत्री मिया ओमोर मौटले तो भारत से भेजी गईं 100000 डोज़ का स्वागत करने के लिए ख़ुद हवाई अड्डे पर मौजूद थीं। भारत एक करोड़ वैक्सीन अफ़्रीका भेजने की तैयारी कर रहा है। महामारी के इस संकट में वैक्सीन-डिपलोमेसी की कोई बराबरी नही। वॉल स्ट्रीट जर्नल, जो सदैव हमारा पक्ष नही लेता,का कहना है, “कोविड-19 की कूटनीति में भारत सुपरपावर बन उभरा है”।
हमारी वैक्सीन बनाने की क्षमता और दुनिया में इसे बाँटना कितना प्रभावी रहा है यह दो देशों की प्रतिक्रिया से पता चलता है, कैनेडा और चीन। सब जानते है कि कैनेडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो द्वारा वहाँ स्थित खालिस्तानी तत्वों को समर्थन देने से भारत सरकार के साथ उनका रिश्ता बहुत अच्छा नही है। लेकिन ट्रूडो को अपने लोगों के लिए वैक्सीन की कमी पड़ गई इसलिए कड़वा घूँट पी कर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को फ़ोन कर वैक्सीन भेजने का अनुरोध कर दिया। यह उनके लिए कितना कष्टदायक था यह इस बात से पता चलता है कि जब पत्रकारों ने इस बाबत प्रश्न किया तो परेशान ट्रूडो मामला गोल कर गए। उनकी परेशानी और बढ़ गई जब दो घंटे के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर दिया कि ‘माई फ्रैंड ट्रूडो’ ने फ़ोन कर वैक्सीन भेजने का अनुरोध किया है। वैसे भी यह वार्तालाप बताता है कि कैसे पासा पलट रहा है, अब विकसित देश दवाई के लिए हम से अनुरोध कर रहें है। ख़ैर, अब कैनेडा को भारत वैक्सीन भेज रहा है। चीन भी भारत की इस सॉफ़्ट पावरसफलता से असहज है। उन्हें परेशानी है कि भारत इस मामले में आत्म निर्भर है, सद्भावना अर्जित कर रहा है,और चीन को मात दे रहा है। चीनी मीडिया ने भारत के ख़िलाफ़ द्वेष पूर्ण अभियान चला रखा है जिससे पता चलता है कि कहीं मिर्ची लग रही है !
लेकिन इससे अधिक चिन्ता इस बात से है कि हमारा अपना टीकाकरण अभियान उस गति से नही चल रहा जैसा चलना चाहिए। 90 लाख लोगों को अब तक टीका लगा है जो हमारी जनसंख्या को देखते हुए निराशाजनक है। टीका लगाने कालक्ष्य केवल एक तिहाई ही पूरा हुआ है क्योंकि लोग अभी भी हिचकिचा रहें हैं जबकि टीके का बुरा प्रभाव केवल 0.18 प्रतिशत में ही देखा गया है। इससे एक भी मौत नही हुई। अब हमारे पास भारी मात्रा में टीका बचा हुआ है। कई सैंटर ख़ाली पड़ें हैं। पंजाब में 16 प्रतिशत वैक्सीन वेस्ट भी गई है। हमारे पास 10 करोड़ से अधिक वैक्सीन तैयार है और हर माह 8 करोड़ और बन रही है। पांच और कम्पनियों टीका बना रही है। अर्थात प्रोब्लम ऑफ़ पलैंटी ! ज़रूरत से ज़्यादा वैक्सीन है। अगर हमने महामारी पर स्थाई नियंत्रण करना है तो टीकाकरण की रफ़्तार बढ़ानी होगी जिसके लिए जरूरी है कि सरकार सोच बदले और नई लचीली नीति तैयार करे। वरिष्ठ नागरिकों का टीकाकरण मध्य मार्च से शुरू हो रहा है क्या यह फ़रवरी में शुरू नही हो सकता क्योंकि वैक्सीन तो हमारे पास है? बाबुआ मानसिकता जो सब कुछ जकड़ लेती है, जिसका कुछ ज़िक्र प्रधानमंत्री भी कर चुकें हैं, त्यागने की ज़रूरत है।
बहुत अधिक सरकारी दखल कई बार उलटा पड़ता है। दूसरी डोज़ लेने के लिए बहुत कम लोग आगे आ रहें हैं। अब चिन्ता यह है कि वैक्सीन बनाने में हमारी कामयाबी, टीकाकरण की कमज़ोर गति के कारण सही नतीजा प्राप्त करने में असफल न हो जाए। हमारे पास फ़ालतू वैक्सीन है पर जो लगवाना चाहतें है उन्हें टीका मिल नही रहा। इसलिए जरूरी है कि एक,जिन्हें वरीयता प्राप्त है उन्हें जल्द लगा कर बाकियों के लिए खोलने की तैयारी की जाए। अतिरिक्त वैक्सीन का एक हिस्सा प्राइवेट क्षेत्र को मिलना चाहिए। दूसरा, मुफ़्त टीका बंद होना चाहिए। मुझे भी मुफ़्त टीका लगा था जबकि मैं कीमत देने के लिए तैयार था। मुफ़्त केवल आर्थिक तौर पर कमज़ोर वर्ग को ही लगना चाहिए। तीसरा, और यह बहुत महत्वपूर्ण है। लोगों की हिचकिचाहट को बिलकुल ख़त्म करने के लिए जरूरी है कि वीवीआईपी वर्ग टीका लगवाए। इंग्लैंड में तो 94 वर्षकी महारानी एलिज़ाबेथ, और अमेरिका के 78 वर्ष के राष्ट्रपति जो बाइडेन टीका लगवा चुकें हैं पर हमारा विशिष्ट वर्ग अभी आगे नही आ रहा। जब नरेन्द्र मोदी या अमित शाह या सोनिया गांधी याहर्ष वर्धन या योगी आदित्यनाथ या अमरेन्द्र सिंह या शरद पवार या ममता बैनर्जी या अरविंद केजरीवाल आदि की टीका लगवाते की तसवीरें छपनी शुरू हो जाएगी तो लोगों को प्रेरणा मिलेगी। हिचकिचाहट कम होगी और लोग टीका लगवाने के लिए आगे आएँगे। टीके के प्रति इस विशिष्ट वर्ग के भरोसे का सार्वजनिक प्रदर्शन,टीकाकरण में वह तेज़ी ला सकता है जिसकी बहुत ज़रूरत है। जहां तक मेरा सवाल है, मैं अब दूसरी डोज़ लगने की इंतज़ार में हूँ।