महाराष्ट्र: एक बेमतलब सरकार, Maharashtra : A Pointless Government

मुम्बई जैसा कोई शहर नही।  कोलकाता और चेन्नई बहुत पिछड़ चुकें हैं और दिल्ली केवल अपने इतिहास और सरकारी घमंड पर इतराती हैपर भारत की प्रतिभा ने मिल कर जो शहर बनाया वह मुम्बई है। यह शहर है जहाँ सपने पूरे होते हैं पर यह सपनों का क़ब्रिस्तान भी है ! 1.2 करोड़ लोग यहां तंग जगह में रहते हैं। अगर यहाँ भारत का सबसे रईस शख़्स मुकेश अम्बानी  अपने 400000 वर्ग फ़ुट 27 मंज़िले बंगले एंटीलिया में परिवार सहित रहता है तो दुनिया का सबसे बड़ा स्लम धारावी भी यहीं है। मार्च 2019 की नाइट फ़्रैंक की रिपोर्ट के अनुसार मुम्बई दुनिया का 12 वाँ सबसे रईस शहर है। इस रिपोर्ट के अनुसार ‘शहर में दौलत पैदा होती है’। लेकिन मुम्बई दौलत ही नही बड़ी संख्या में अपराध भी पैदा करता है। न्यूयार्क और टोक्यो जैसे बड़े शहरों की तरह यहाँ भी असीम दौलत अपराध की जननी है।

मुम्बई वह शहर है जिसने देश को बालीवुड दिया और सुनिल गावस्कर तथा सचिन तेंदुलकर जैसे प्रसिद्ध खिलाड़ी दिए पर इसने करीम लाला, रत्न ख़तरी और दाऊद इब्राहिम जैसे बड़े छोटे ढेरों अपराधी भी दिए जिनमें से कईयों की  ज़िन्दगी परफ़िल्मे बन चुकी है। ज़बरदस्ती वसूली से शुरू हो कर यह गैंग तस्करी, अपहरण, हत्या और दाऊद इब्राहिम के मामले में आतंकवाद तक पहुँच चुकें हैं। दुबई और कराची में बैठे यह अपराधी-सिंडिकेट, मुम्बई की फ़िल्म और औद्योगिक दुनिया कोआतंकित कर नचाते रहे हैं। फिरौती के लिए या अपना फ़रमान मनवाने के लिए वह हत्यारे तक भेजते रहे। लेकिन अब अपराध का विचित्र अवतार सामने आया है। यह अवतार ख़ादी और खाकी का नापाक घालमेल है। पैसा बनाने के लिए राजनेता और पुलिस इकटठे हो रहें हैं। वैसे तो यह धंधा देश के कई और हिस्सों में भी फलफूल रहा है पर मुम्बई में इसका जैसा विस्फोट हुआ है वह पहले नही देखा गया। 

यह तो सिर्फ़ ट्रेंलर है। नीता भाभी, मुकेश भईया, फ़ैमिली, यह तो सिर्फ़ झलक है। अगली बार यह सामान पूरा हो कर तुम्हारे पास आएगा। पूरा इंतज़ाम हो गया है”। यह धमकी भरा पत्र मुकेश अम्बानी के भीमाकार बंगले एंटीलिया के बाहर खड़ी स्कोर्पियो  से बरामद किया गया, साथ थी जैलेटिन की 20 स्टिक जो पहाड़ों में सड़क बनाने के लिए विस्फोट करने के काम आती है।पर विस्फोट करने का ट्रिगर नही था जिससे पता चलता है कि धमका कर मक़सद पूरा करने का प्रयास था। देश में तहलका मच गया कि किस की हिम्मत है कि देश के सबसे रईस और  व्यक्ति को ऐसी धमकी दे सके? इरादा क्या था? क्या मोटी वसूली के लिए अम्बानी परिवार को डराया जा रहा था?  कई अटकलें थीं पर एक बात पर सहमति थी कि इतनी बड़ी हिमाक़त करने वाला कोई मामूली आदमी नही हो सकता और उसके पीछे बड़ी ताकत होगी।

और वह आदमी था भी खास। एनआईए की तेज़ जाँच के बाद मुम्बई के सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाझे को गिरफ़्तार कर लिया गया। इस कहानी का  कलाइमैक्स क्या होगा अभी कहा नही जा सकता पर निश्चित तौर पर महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार के लिए सुखद नही होगा। सचिन वाझे का भी दिलचस्प इतिहास है। उसे मुम्बई के ‘ज़बरदस्त कॉप’ में गिना जाता है जिन पर फ़िल्मे बनाई जाती हैं। उसके नाम  63 एंकाउंटर हैं। पुलिस हिरासत में ख्वाजा युनस की मौत के बाद वह 17 साल निलम्बित रहा। 2008 में वह शिवसेना में शामिल हो गया और उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2020 में उसे बहाल कर दिया गया। बड़ा सवाल तो यह ही है कि ऐसे व्यक्ति को बहाल क्यों किया गया, और वह भी 17 साल के बाद?क्या सारी नैतिकता और मर्यादा को ताक में रख  सचिन वाझे की बहाली इसलिए की गई क्योंकि उसका इस्तेमाल धन इकट्ठा करने के लिए किया जाना था? और बहाली भी हाई प्रोफ़ाइल क्राइम ब्रांच में की गई। शुरू में उद्धव ठाकरे ने वाझे का विधानसभा में बचाव यह कह कर किया था कि ‘वह ओसामा बिन लादेन’ तो नही है। लेकिन जवाब तो मुख्यमंत्री ने देना है कि उसे क्यों और किस मक़सद के लिए बहाल किया गया? तब बालीवुड की फ़िल्म की तरह कहानी ने टविस्ट लिया। मुम्बई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को बलि का बकरा बना कर होम गार्ड में तब्दील कर दिया गया पर इस क़दम ने सरकार की चूलें हिला दी क्योंकि परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख आरोप लगा दिया कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने वाझे को मासिक 100 करोड़ रूपए वसूली का लक्ष्य दिया था और रास्ता भी बताया था कि यह पैसा मुम्बई की 1750 बार, रैस्टोरैंट और ‘दूसरे साधनों’ से इकट्ठा किया जा सकता है। अनिल देशमुख का सम्बन्ध शरद पवार की एनसीपी से है।

अब मुम्बई हाईकोर्ट ने अनिल देशमुख पर लगे आरोपो की प्रारंभिक सीबीआई जाँच का आदेश दे दिया है लेकिन असली चिन्ता राजनेताओं और पुलिस के नापाक गठजोड़ को लेकर है जो लगभग हर प्रदेश में देखा जा सकता है। माननीय न्यायाधीशों ने भी कहा है, “ हम दोनों ने इस तरह का मामला पहले नही देखा, न ही सुना। एक आला अफ़सर ने इतने खुले रूप में एक मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं…संविधान ने क़ानून के पालन की परिकल्पना की है न कि राजनीतिक समर्थन प्राप्त गुंडों के राज की”। शिवसेना के अपने सांसद संजय राउत ने शुरू में लिखा है कि वाझे वसूली गैंग चला रहा था और सवाल किया कि , ‘वाझे मुम्बई पुलिस में ए.पी.आई. था। किसने उसे इतनी ताकत दी? किसका वह पसन्दीदा था?’ राउत का इशारा तो अनिल देशमुख की तरफ़ था पर यही सवाल सीएम उद्धव ठाकरे से भी तो पूछे जा सकतें हैं जिन्होंने उसे बहाल किया था। परमबीर सिंह ख़ुद भी सवालों के घेरे में है कि अगर उन्हे मालूम था कि गृहमंत्री वसूली के लक्ष्य दे रहा है तो उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नही की ? एफआईआर क्यों दर्ज नही करवाई जो उनकी ज़िम्मेवारी बनती थी?  प्रसिद्ध पूर्व पुलिस अफ़सर जूलियो रिबेरो ने भी लिखा है, “निश्चित तौर पर जैलेटीन  रखने की साजिश उस अफ़सर को मालूम थी जिसे वह रिपोर्ट करता था…”। यह अफ़सर परमबीर सिंह है।

 मुम्बई ‘हफ़्ता’ के लिए कुख्यात है। इसलिए कई लोग तो मज़ाक़ करतें है कि वहां 100 करोड़ रूपया इकट्ठा करना तो मूँगफली के बराबर है। मुम्बई के एक पत्रकार ने लिखा है, ‘मुम्बई की हॉसपिटैलिटी इंडस्ट्री में तो इससे सौ गुना अधिक पैसा पैदा करने की क्षमता  है। केवल सौ करोड़ रूपए इकट्ठा करने का लक्ष्य तो मुम्बई की तौहीन है’। बात ग़लत भी नही। वहां केवल बार और रैस्टोरैंट ही नही, सोने के अंडे देने वाली रियल इस्टेट, बिल्डर, बिसनेस, फ़िल्म इंडस्ट्री, तस्करी, अंडरवर्ल्ड जैसी बहुत सी मुर्ग़ियाँ है जो अंडे दे रही है और देती रहेगी। क्या  दूसरे मंत्री दूसरी मुर्ग़ियों के सोने के अंडे तो इकट्ठा नही कर रहे? इस सरकार के नीचे तो सब कुछ सम्भव लगता है। इसके इलावा पुलिस ट्रांसफ़र, पोस्टिंग का घोटाला है जिसमें विशाल भ्रष्टाचार है। थाने बिकने की बीमारी तो देश भर में है। मुम्बई के बारे एक और वरिष्ठ अफ़सर यशोवर्धन आज़ाद लिखतें हैं, “मुम्बई एक बार फिर वह घिनौना खेल देख रहा है जहाँ बेशर्म नेता पुलिस के बेशर्म तत्वों से मिल कर अत्यन्त फ़ायदेमंद व्यवस्था चला रहे हैं”।

मुम्बई बहुत आकर्षक इनाम है जिसे हर पार्टी हासिल करना चाहेगी। आख़िर यह देश की पैसे की राजधानी है जहाँ से बहुत ‘फंड’वसूल किया जाता है। राजनीतिक दलों के लिए यह ‘मनी मेकिंग मशीन’ है। उतावले देवेन्द्र फडनवीस भी 2019 नवम्बर में अजीत पवार को साथ लेकर तीन दिन के सीएम रह चुकें हैं। नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्रांच के अनुसार चौथे साल लगातार महाराष्ट्र भ्रष्टाचार के मामले में देश में शिखर पर रहा है। चुनाव होते है चेहरे और पार्टियों बदल जातीं हैं पर पैसे के लिए हवस वही रहती है।1993 के मुम्बई के विस्फोटों के बाद एन एन वोहरा रिपोर्ट ने अपराधियो, अफ़सरों, और नेताओं की सॉठगॉठ पर रिपोर्ट तैयार की थी। लिखा था  कि राजनेता गैंग के लीडर बन चुकें हैं। अक्तूबर 1993 मे दी गई इस 110 पृष्ठ कीरिपोर्ट के अभी तक केवल 2 पृष्ठ ही सार्वजनिक किए गए हैं।

इस हमाम में सब नंगे हैं पर महा विकास अघाड़ी सरकार तो इस मिलीभगत को नए शिखर पर ले गई है। लेकिन अब वह फँस गई है क्योंकि जाँच उन एजेंसियों के हाथ है जो प्रदेश सरकार के प्रभाव से मुक्त हैं। सरकार के नीचे टाइम बम टिक टिक कर रहा है। अनिल देशमुख की बलि हो चुकी है अब सवाल शरद पवार और उद्धव ठाकरे का है। सब जानते है कि पवार इस सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाते है इसलिए उनकी बड़ी ज़िम्मेवारी बनती है। वह राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाना चाहते है और सोनिया गांधी की जगह यूपीए का चेयरमैन बनना चाहतें हैं। उनकी इस महत्वकांक्षा को यह प्रकरण पलीता लगा गया है। उद्धव ठाकरे से जायज़ सवाल है कि वह कैसी भ्रष्ट सरकार के सीएम है? यह भी जायज़ सवाल है कि क्या और मंत्री भी वसूली के काम पर लगे हुए हैं? अहमदाबाद में अमित शाह और पवार की कथित मुलाक़ात चर्चा में रही है पर इस वक़्त भाजपा बदनाम एनसीपी को साथ क्यों लेगी? असली तमाशा 2 मई के बाद शुरू होगा तब तक यह सरकार थपेड़े खाती लड़खड़ाती रहेगी। लेकिन यह सरकार अब बेमतलब हो चुकी है। जिस सरकार का इक़बाल ख़त्म हो चुका है उसे  बने रहने का न अधिकार है,न औचित्य।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.