साउदी अरब की अबकैक और खुरेस तेल रिफ़ायनरी वहां की सबसे बड़ी तेल रिफ़ायनरी है। पूरी तरह से सुरक्षित समझी जाती थी आख़िर उनकी सुरक्षा के लिए अरबों डालर का पेट्रियॉट एयर डिफैंस सिस्टम तैनात है। इसके बावजूद सितम्बर 2019 में ईरान द्वारा समर्थित हूती बाग़ियों ने दस ड्रोन जिनकी कीमत कुछ करोड़ डालर होगी,भेज उन पर हमला कर इतना नुक़सान किया कि उन्हे कुछ सप्ताह बंद करना पड़ा। अनुमान है कि दैनिक 50 लाख बैरल तेल उत्पादन का नुक़सान हुआ। इससे दुनिया भर की तेल क़ीमतों में उछाल आगया। इस हमले को रोकने के लिए पेट्रियॉट डिफैंस सिस्टम इसलिए असफल रहा क्योंकि वह उच्चाई से होने वाले हमले, हवाई जहाज़ या मिसाइल, को रोकने के लिए बना है जबकि ड्रोन छोटी सी चीज़ है जो पेड़ों की उच्चाई पर उड़ान कर सकती है और अति आधुनिक रेडार की पकड़ से नीचेरहती है। यह कुछ करोड़ रूपए की कीमत वाला छोटा सा ड्रोन अब दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है। पिछले साल सितम्बर -नवम्बर में आरमीनिया और अज़रबाइजान के बीच युद्ध अज़रबाइजान जीतने में सफल रहा क्योंकि जहाँ आरमीनिया टैंक, तोपख़ाना और मिसाइल का इस्तेमाल करता रहा अज़रबाइजान ने तुर्की में बने 55 किलोग्राम विस्फोटक तक उठाने वाले ड्रोन का इस्तेमाल कर तबाही मचा दी। वाशिंगटन पोस्ट ने तब लिखा था, “अज़रबाइजान के ड्रोन युद्ध भूमि पर अधिकार करने में सफल रहे और उन्होंने युद्ध का भविष्य दिखा दिया”।
ड्रोन इतनी छोटी और सस्ती चीज़ है कि थलसेनाध्यक्ष जनरल नरवणे का कहना है कि इसे घर पर भी बनाया जा सकता है कारखाना लगाने की ज़रूरत नही। इसे ऑन लाइन आर्डर भी किया जा सकता है। शादियों में या खेल कार्यक्रम में इनके द्वारा तस्वीरें लेते हम प्रायः देखतें है पर अगर इस मासूम खिलौने जैसी वस्तु मे कोई कैमरे की जगह विस्फोटक भर दे तो? अब तेज़ी से ड्रोन का सैन्यकरण हो रहा है और न केवल कुछ सरकारें बल्कि आतंकवादी भी ड्रोन का इस्तेमाल कर रहें है। आतंकवादियों के पास उपलब्ध क्षमता में भारी उछाल आचुका है। अगस्त 2018 में वैनेज़ुएला के राष्ट्रपति जिस वक़्त सैनिक परेड का निरीक्षण कर रहे थे दो ड्रोन जिन पर एक एक किलोग्राम विस्फोटक लदा था,उन तक पहुँचने मे सफल रहे थे। वह बच गए पर भविष्य मे कोई बड़ा हादसा हो सकता है। ड्रोन के घातक इस्तेमाल की और बहुत सी मिसालें है। पर अब यह खतरा हमारे घर के अन्दर तक पहुँच गया है। वैसे तो पहले ही खतरे के संकेत हमे मिल चुके थे पर 27 जून की सवेरे जम्मू एयरफ़ोर्स स्टेशन पर हुए दो ड्रोन हमले हमे बता गए है कि अब खतरा कितना गम्भीर है। अगर यह ड्रोन पास ही खड़े जहाज़ों को नष्ट करने में सफल हो जाते तो एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच ख़तरनाक स्थिति बन जाती।
इस हमले के अगले ही दिन ड्रोन कालूचक छावनी पर मँडराते देखे गए। ड्रोन की रेडार से बचने,सामरिक प्रतिष्ठान पर तबाही मचानेऔर आतंकवादियों तक हथियार पहुँचाने की क्षमता घोर चिन्ता का विषय है। इन्हें बनाने की टैकनॉलोजी केवल सरकारों के पास ही नही, आतंकियों के पास भी है। सैन्य मामलों के समीक्षक मेजर जनरल(रिटायर्ड) हरविजय सिंह लिखतें हैं, ‘क्योंकि ड्रोन छोटे आकार के ख़ामोश और चुस्त होते हैं इसलिए इन्हें ढूँढना और नष्ट करना मुश्किल हो जाता है। उन्हे एक स्मार्ट फ़ोन से भी रिमोट कंट्रोल किया जा सकता है’। हवाई जहाज़ भेजने के लिए हवाई पट्टी चाहिए। मिसाइल का भी तामझाम होता है लेकिन ड्रोन को एक झुग्गी में बैठा एक बंदा उड़ा सकता है, नियंत्रण कर सकता है और तबाही मचा सकता है। मिसाइल सीधी जाती है,जहाज़ की उड़ान का भी सीधा रास्ता होता है पर ड्रोन को किसी भी तरफ उपर नीचे,बाएँ दाऐ घुमाया जा सकता है। एक लेखक एडुआरडो गलीनो ने बहुत साल पहले लिखा था, “सर्वशक्तिमान कम्प्यूटर के युग में ड्रोन अचूक योद्धा है। वह बिना किसी पश्चात्ताप से हत्या करता है, बिना सवाल किए आज्ञा का पालन करता है और कभी भी अपने मालिक का नाम प्रकट नही करता”। जम्मू एयर बेस पर हुए हमले ने बता दिया कि खतरा कितना नज़दीक है। पाकिस्तान की सीमा से यह बेस केवल 14 किलोमीटर दूर है। चाहे पाकिस्तान इंकार करता है पर 15 कोर के कमांडर लै. जनरल डी पी पांडे का कहना है कि ऐसे ड्रोन ‘ सड़क पर नही बनते। यह किसी सरकार द्वारा प्रायोजित सिस्टम है’। हमने पाकिस्तान के साथ अपनी सीमा को सुरक्षित रखने और घुसपैंठ को रोकने के लिए करोड़ों रूपए ख़र्च कर काँटेदार तार का स्मार्ट फैंस लगाया है पर यह केवल शारीरिक घुसपैंठ को ही रोक सकता है। आकाश से ड्रोन के द्वारा घुसपैंठ को यह रोक नही सकता। यह इतनी कम उंचाई पर उड़ते हैं कि रेडार की पकड़ में नही आते।
हम सैनिक शक्ति है। हमारे पास बहुत रक्षा सामान है। हमने राफेल विमान भी ख़रीदें है जिनका बहुत प्रचार किया। हर प्रकार का आधुनिक रेडार है पर यह सब धरे के धरे रह गए और दो छोटे ड्रोन जम्मू एयरबेस पर हमला कर ग़ायब हो गए। और यह भी निश्चित नही कि वह सीमा पार से उड़ाया गया। हो सकता है कि आतंकवादी हमारे अन्दर किसी कमरे से इन्हें उड़ा रहें हो। इनकी आसान ख़रीद इन्हें बहुत आकर्षक हथियार बना देते हैं। विज्ञान ने मानव कल्याण के लिए बहुत काम किया है पर वह साथ ही मानव विनाश के नए नए हथियार भी तैयार करता जा रहा है। लगभग 100 देशों के पास ड्रोन है। चिन्ता यह भी है कि भविष्य में विनाश के लिए एकाध ही नही, ड्रोन के झुंड के झुंड भेजे जा सकतें हैं। इन्हें नष्ट करना बहुत मुश्किल होगा। यह नही कि हमें पहले चेतावनी नही मिली। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र सुकमा इलाक़े में नवम्बर 2019 में सीआरपीएफ़ के कैम्प के उपर तीन दिन में चार बार ड्रोन देखे गए। पंजाब में कई बार सीमा पार से ड्रोन के द्वारा हथियार और ड्रग्स फेंकने की गम्भीर घटनाएँ हो चुकी हैं। इंसान के हाथों हथियार भेजने का जोखिम उठाने की ज़रूरत नही। जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद विशेष तौर पर पंजाब में ड्रोन द्वारा भारी मात्रा में हथियार भेजे गए। कई खेप पकड़ी गई और न जाने कितनी नही पकड़ी गई। स्थिति इतनी गम्भीर बन गई कि पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख इस खतरे से अवगत करवाया। यह पत्र जम्मू की घटना से महीनों पहले नवम्बर में लिखा गया था। अमरेन्द्र सिंह गृहमंत्री अमित शाह को भी इस बाबत मिल चुकें हैं। अधिकारियों के अनुसार पिछले दो सालों में 80-90 बार पंजाब पर ड्रोन मँडराते देखें गए है। पंजाब के डीजी पुलिस दिनकर गुप्ता के अनुसार ‘ यह एक सक्रिय और जारी खतरा है’।
जम्मू एयरबेस पर किसने हमला किया इसकी जाँच हो रही है। समझा जाता है कि यह लश्करे तोयबा की शरारत है। अर्थात पाकिस्तान के कदमों के निशान है। खतरा कितना वास्तविक और गम्भीर है यह इस बात से पता चलता है कि श्रीनगर में ड्रोन उड़ाने पर पाबन्दी लगा दी गई है। पाकिस्तान जानता है कि यह खेल दोनों खेल सकतें है और उसे यह स्पष्ट करने की भी ज़रूरत है कि वह भी असुरक्षित है और भारत बड़ा देश है,पर हमे तो इस खतरे से अपना घर सुरक्षित रखना है। यह भी जरूरी नही कि ड्रोन का इस्तेमाल केवल रक्षा प्रतिष्ठान पर ही किया जाएगा। इसके द्वारा व्यक्ति विशेष पर भी हमला हो सकता है जैसा प्रयास वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति पर किया गया। हर प्रमुख व्यक्ति,प्रतिष्ठान औरमहत्वपूर्ण इमारत को खतरा है। हरेक पर चारों तरफ नजर रखने वाले सुरक्षाकर्मी नही लगाए जा सकते। न ही हर जगह जैमर ही लगाए जा सकते है। इस खतरे से निबटने का और रास्ता ढूँढना पड़ेगा। अभी विस्फोटक ले जाने की ड्रोन की क्षमता सीमित है लेकिन क्योंकि देश एक दूसरे को नष्ट करने के लिए नई नई तरतीब ढूँढते रहते है इसलिए आने वाले समय में विस्फोटक उठाने की इनकी क्षमता निश्चित तौर पर बढ़ने वाली है।
सामरिक विशेषज्ञ अजय साहनी इसे ‘नई मुसीबत’ कहतें है। लेखक और विशेषज्ञ मारूफ रज़ा का कहना है कि, ‘भविष्य के युद्ध में ड्रोन का अधिक इस्तेमाल किया जाएगा’। सीडीएस जनरल बिपिन रावत का कहना है कि यह ‘अगली पीढ़ी के हमले होंगे’। थलसेनाध्यक्ष जनरल नरवणे का कहना है कि यह, ‘स्पष्ट और मौजूद खतरा है’। पर यह अहसास भी है कि इसका मुक़ाबला करने के लिए अभी हम पूरी तरह तैयार नही। हमे अगली पीढ़ी के ग़ैर-परम्परागत युद्ध के लिए तैयार होना है। पुरानी सोच बदलनी होगी। रिसर्च के मामले में हम पीछे हैं। देश में नई सोच को सही विकसित नही किया जा रहा।नई से नई टेक्नॉलोजी निकल रही है और निकलती रहेंगी। हमे क़दम मिला कर चलना है। जिस तरह के युद्ध को हम जानते है और जिसका सामना करने के लिए हम तैयार हैं, उसे ड्रोन जैसे लो-कौस्ट और लो- लैवल हथियार या मानव रहित जहाज़ों से चुनौती मिल रही है। इस तकनीक में चीन भी बहुत आगे निकल चुका है। हमारे यहाँ एंटी-ड्रोन सिस्टम नवजात स्टेज में है। मारूफ रज़ा ने भी लिखा है कि ‘डीआरडीओ ड्रोन विरोधी दौड़ में स्पष्ट तौर पर पीछे है’। भावी शरारत और उत्तेजना को रोकने के प्रबन्ध करने का समय अब है। खतरे के संकेत तो बहुत पहले से मिल रहें हैं केवल हम अब जाग रहें हैं। हम इस सम्भावना को भी रद्द नही कर सकते कि अगला हमला बेहतर टैंकनॉलोजी का इस्तेमाल करते हुए अधिक घातक और यह एक तरफ से नही, दो तरफ से हो सकता है। जम्मू वेकअप कॉल होनी चाहिए।