नरेन्द्र मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक, Narendra Modi’s Surgical Strike

मोदी मंत्रिमंडल में जो भारी फेरबदल हुआ है वह किसी राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक से कम नही। प्रधानमंत्री मोदी ने बता दिया कि अपनी पार्टी में वह सर्वशक्तिमान है, उनके निर्णय को कोई चुनौती देने वाला नही है।  मंत्रिमंडल से हटाने या शामिल करने के लिए उन्हे डा. मनमोहन सिंह की तरह किसी की परमिशन लेने की ज़रूरत नही। एक दर्जन मंत्रियों को हटा कर और तीन दर्जन को शामिल करने का साहसी निर्णय ले प्रधानमंत्री मोदी ने बता दिया कि वह अपने घर के पूरे मालिक हैं। कोई नाराज़ हो जाएगा इसकी  चिन्ता नही। पिछले कुछ समय में सरकार की जो आलोचना हुई है इसके बावजूद अन्दर या बाहर से कोई चुनौती नही। मोदी सरकार के आलोचक लंडन के द इकोनॉमिस्ट ने भी लिखा है, “अगर उनकी सरकार अब और भयंकर भूलें न करें और उनके विरोधी अपना मौजूदा बिखराव ख़त्म न कर सके तो बाज़ी मोदी के हाथ रहेगी”। लेकिन इस बड़े बदलाव मे यह स्वीकृति छिपी है कि सब सही नही चल रहा, विश्वसनीयता को भारी चोट पहुँची है, जुमलों या विचारधारा पर अत्याधिक जोर देने का समय निकल गया, लोग असंतुष्ट है इसलिए छवि और दिशा सही करने का समय है। इसीलिए इतना युवा मंत्रिमंडल देश को दिया गया है।लॉकडाउन में प्रवासी पलायन, आर्थिक मंदी, करोड़ों रोजगार का छिन जाना और  दूसरी लहर के बीच चारों तरफ हाहाकारी औरबेबसी से छवि बहुत प्रभावित हुई है। लगभग हर परिवार ने किसी न किसी को खोया है या किसी को जानते है जिसने खोया हो। सरकार ने कुछ आर्थिक मदद पहुँचाई पर जिनके प्रियजन मारे गए उनकी भरपाई तो नही हो सकती।

लोगों के ग़ुस्से को शांत करने के लिए कुछ मंत्रियों को हटाना जरूरी हो गया था। विशेष तौर पर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन बुरी तरह असफल रहे थे। महामारी उनके बस से बाहर थी। बाबा रामदेव की कोरोनिल का परोक्ष अनुमोदन और डार्क चॉकलेट खाने की सलाह भी महँगी पड़ी। नए स्वास्थ्य मंत्री गुजरात के मनसुख मंडाविया अब केन्द्र में बहुत महत्वपूर्ण मंत्री बन गए हैं। इस वक़्त वायरस ठहरा हुआ पर तीसरी लहर के  लक्षण भी नजर आरहे है। जून के अंतिम सप्ताह के बाद वैक्सीन लगाने की रफ़्तार सुस्त पड़ गई है। मनसुख मंडाविया की यह ज़िम्मेवारी होगी कि मई-जून में देश ने जो कष्टदायक दृश्य देखे थे वह दोहराए न जाऐं। राज्यमंत्री के तौर पर उनका काम अच्छा रहा है। उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए कुछ तो उन्हें ‘छोटा गडकरी’ कहते है पर इस बार तो नितिन गड़करी से भी एक विभाग छीन लिया गया है। मंडाविया की कमजोर अंग्रेज़ी के कारण उन्हे ट्रोल किया गया है। ऐसा करने वालों से मैंने दो बातें कहनी है। एक, मनसुख मंडाविया की इंग्लिश न देखें उनका काम देखें। दूसरा जो उनका मज़ाक़ उड़ा रहे हैं वह ख़ुद  शुद्ध हिन्दी का एक वाक्य  लिख कर तो दिखाओ। देश में इंग्लिश की धौंस अब तो ख़त्म होनी चाहिए।

रवि शंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर जैसे वरिष्ठ मंत्रियों की छुट्टी पर बहुत हैरानी व्यक्त की जा रही है। वह दोनों एक प्रकार से इस सरकार के प्रवक्ता थे। इन दोनो को हटाना यह संदेश है कि सरकार विदेश में बन रही नकारात्मक छवि से चिन्तित है। जहाँ हर्षवर्धन को हटा कर देश के अन्दर संदेश दिया गयावहां इन दो, विशेष तौर पर रविशंकर प्रसाद, को हटा कर भारत अंतराष्ट्रीय समुदाय (मतलब अमेरिका) को यह संदेश दे रहा है कि इस सरकार के नीचे देश संकीर्ण तथा असहिष्णु बनने नही जा रहाऔर सरकार की अंतराष्ट्रीय सोशल मीडिया जायेंटस के साथ पंगा लेने की  मंशा नही है।  ट्विटर के साथ तो रवि शंकर प्रसाद का लगातार युद्ध चलता रहा और ट्विटर ने तो कुछ देर के लिए मंत्री का अकाउंट बंद कर दिया था। आजकल के ज़माने में ताकतवार सोशल मीडिया से झगड़ा नही लिया जा सकता। नरेन्द्र मोदी की छवि बनाने में सोशल मीडिया का बड़ा हाथ रहा है आज वह ही एंटी हो गया लगता है। विदेशी मीडिया में भी नकारात्मक छवि बन रही है प्रकाश जावेड़कर कुछ नही कर सके। मेरा मानना है कि इस मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय बहुत कुछ नही कर सकता। अगर हालात अच्छे होंगे तो मीडिया कवरेज ख़ुद ही अच्छी हो जाएगी। अगर गंगा में शव बहते रहे और शमशान घाट पर लाइनें लगती रही तो छवि उसके अनुसार बनेगी। 84 वर्षीय बीमार स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत से भी अचछा संदेश नही गया।

नए सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के आगे  बडी चुनौती है। इन विकट परिस्थितियों में जब दूसरी लहर में कुप्रबन्ध और आर्थिक बदहाली को ले कर सवाल उठ रहे है सरकार की बात देश और विदेश तक पहुँचाना बहुत मुश्किल काम है।  वह प्रतिभाशाली है, मेहनती हैं और वित्तराज्य मंत्री के तौर पर सफल रहें हैं। मैं अनुराग ठाकुर को बचपन से जानता हूँ,उन्होंने शालीनता अपने पिताश्री प्रेम कुमार धूमल से सीखी है।बचपन के संस्कार काम आ रहें है। मैं उनमे हिमाचल प्रदेश का भविष्य भी देखता हूँ। मंत्रिमंडल में फेरबदल सोशल सर्जिकल स्ट्राइक भी है। भाजपा अब ब्राह्मण-बनिया पार्टी नही रही है। विशेष तौर पर  उत्तर प्रदेश के चुनाव को देखते हुए भाजपा का ‘मंडल- करण’ हो रहा है। बतायागया कि 77 मे से 27 मंत्री ओबीसी हैं। पहले समझा गया था कि हिन्दुत्व की छतरी के नीचे सब इकटठे हो जाएँगे। प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद कह चुके हैं कि भाजपा वह पार्टी नही जो जात-पात में विश्वास रखती हो। पर अब मीडिया ब्रीफ़िंग में बताया गया कि 27 ओबीसी के अतिरिक्त 12 एससी और 8 एसटी मंत्री है। अर्थात जो पार्टी जात पात से उपर उठ कर सब को इकट्ठा करने की कोशिश कर रही थी अब स्वीकार कर रही है कि यहां भी दिशा बदलने की ज़रूरत है, ज़मीनी हक़ीक़त से समझौता करना पड़ रहा है।

लेकिन एक और दिलचस्प स्वीकृति भी है कि भाजपा के पास प्रतिभा की कमी है इसीलिए टैकनोक्रैट और पूर्व नौकरशाह मंत्री बनाए जा रहें हैं। बाहर से टैलेंट लेना बुरी बात नही है लेकिन इस वक़्त तो विदेश, रेल, आवास,उर्जा, स्टील,पेट्रोल,आईटी, संचार सब के मंत्री पूर्व नौकरशाह हैं। दूसरी तरफ, 12 मंत्री जिन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया में से 10 संघ, भाजपा या एबीवीपी से है। प्रधानमंत्री का सारा ध्यान बेहतर प्रशासन और प्रदर्शन  देने पर है वह शायद समझतें हैं कि पूर्व ब्यूरोक्रैट और प्रोफैशनलस बेहतर कारगुज़ारी दिखा सकतें है। इसलिए अब विचारधारा को भी पीछे रखा जा रहा है।  अगले तीन साल आर्थिक स्थिति बेहतर करने पर लगाए जाएँगे। अश्विनी वैष्णव जो अमेरिका के प्रसिद्ध व्हार्टन से पढ़े है को रेल तथा आईटी दिया गया है। ऐसे प्रबुद्ध और प्रशिक्षित लोगों की नियुक्ति का स्वागत है पर अब यह कहना बंद होना चाहिए कि ‘हमें हार्वड नही हार्ड वर्क चाहिए’। वास्तव में दोनों चाहिए।

छवि बदलने की बेक़रारी तो साफ़ नजर आती है पर बहुत से अनुभवहीन मंत्री भी है। यह भी समझ नही आया कि नारायण राणे जैसे धारावाहिक दलबदलू और विवादास्पद को शामिल कर और नितिन गड़करी से एमएसएमई छीन कर उन्हे देने से देश का क्या भला होगा? पिछले दो साल देश के लिए बुरे रहें हैं। सीएए के ख़िलाफ़ आन्दोलन, दिल्ली मे सिखों के ख़िलाफ़ दंगों के बाद सबसे बुरे साम्प्रदायिक दंगें, महामारी के दौरान महा मानवीय त्रासदी और सरकारी असफलता,आर्थिक दरिद्रता, सब ने मिल कर 2019 की जीत की चमक को कम कर दिया है। इस असफलता का अहसास है इसीलिए यह सर्जिकल स्ट्राइक की गई है। पर आगे भी आसमान साफ़ नही लग रहा। कोरोना की तीसरी लहर दस्तक देती नजर आती है पर  इस बार सरकार का दोष नही होगा।  लोग भी बाज़ नही आ रहे जो भीड़ भरे हिलस्टेशन की तस्वीरों से पता चलता है। पेट्रोल की कीमत 100 रूपए लीटर पार कर चुकी है। एक सर्वेक्षण के अनुसार पिछले 12 महीनों में देश के 97 प्रतिशत परिवारों में वास्तविक आमदन में कमी आई है। 23 करोड़ लोग ग़रीबी की रेखा के नीचे गिर गए हैं। बहुत परिवारों ने सदमा बर्दाश्त किया है।ग़रीबी के कारण लाखों बच्चे स्कूलों से निकाल लिए गए हैं। गम्भीर आर्थिक, समाजिक और राजनीतिक असंतोष के लक्षण नजर आ रहे है। जैसे एक बार पी वी नरसिम्हा राव ने कहा था, ‘यहाँ तो चुनौतियों का ढेर लगा  है’।

इस बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत का महत्वपूर्ण बयान आया है कि सभी भारतीयों का डीएनए  एक ही है और जो हिन्दू यह मानता है कि मुसलमानों को भारत में नही रहना चाहिए वह हिन्दू नही है। उन्होंने ‘लिंचिंग’करने वालों को हिन्दुत्व के विरोधी कहा है।इससे पहले भी भागवत कह चुकें हैं कि, “देश के प्रति प्रेम का मतलब केवल ज़मीन ही नही,इसका मतलब लोग,नदियाँ, संस्कृति और परम्परा है”। भागवत की विचारों की धारा का स्वागत है। वह और प्रधानमंत्री मोदी मिल कर देश की फ़िज़ा बदल सकतें है और हिन्दू धर्म की मूल सहिष्णुता की विचारधारा को प्रबल कर सकतें हैं। समस्या यहाँ दो हैं। एक, जब लिंचिंग जैसी घटना होती है या किसी को पाकिस्तान जाने के लिए कहा जाता है तो उसकी तत्काल भर्त्सना नही की जाती। दो, जो ऐसा करतें हैं या भड़कातें हैं के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नही होती इसलिए कई ग़लत समझ बैठतें है कि उपर से इजाज़त है इसलिए बेलगाम हो जाते हैं। इससे बदनामी हुई है। अगर एक की  बदतमीज़ी के ख़िलाफ़ क़दम उठाया जाता तो बार बार ऐसी घटनाएँ दोहराई न जाती। बहरहाल नया सफ़र शुरू हो रहा है। कई पुराने चिराग़ गुल कर दिए गए हैं,देखना है कि नए चिराग़ कैसे जलतें हैं? कामना यही है कि वह खूब रोशनी दें क्योंकि दूर दूर तक कोई और चिराग़ नजर नहा आता।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0 (from 0 votes)
About Chander Mohan 708 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.