पंजाब कांग्रेस की ‘डैत्थ विश’, Congress’s Death Wish In Punjab

पंजाब कांग्रेस की गुत्थी सुलझ गई या और उलझ गई ? यह लाख टके का सवाल है। पिछले कुछ समय से पंजाब कांग्रेस में पंजाबी भाषा में, ‘डांगो डांगी’ चल रही है। हाईकमान शायद चुनाव में  ‘फ्रैश’ चेहरा उतारना चाहता है पर इस समय तो नवजोत सिंह  सिद्धू के माध्यम से उन्होने पार्टी का कबाड़ा कर लिया है। ज़बरदस्तकोल्ड वॉर शुरू हो गई है। कोई छ: महीने पहले तक यह लगता था कि  प्रभावी विकल्प न होने के कारण अगले चुनाव में कांग्रेस वापिसी करेगी। पर तब नवजोत सिंह सिद्धू बेलगाम हो गए और उन्होंने अपनी ही सरकार की कमज़ोरियों को हवा देना शुरू कर दिया। हर सरकार में कमज़ोरियाँ होती हैं पर अगर अपने ही इन्हें उजागर करने लग पड़े तो विरोधियों को कुछ अधिक करने की ज़रूरत नही रहती। हैरानी है कि इसके लिए सज़ा देने की जगह उन्हे पुरस्कृत कर प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है। सिद्धू निचले स्तर तक गिर कर मुख्यमंत्री  अमरेन्द्र सिंह के बारे अपशब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं। यहाँ तक कह दिया कि ‘वह आदतन झूठा है’, ‘मचला है’, ‘ दो बड़े परिवारों की यारी ने प्रदेश को तबाह कर दिया है’। अर्थात वह अमरेन्द्र सिंह और बादल परिवार के बीच ‘यारी’ का आरोप लगा रहे थे। पार्टी हाईकमान यह नजरंदाज कर गया कि इस कारण अमरेन्द्र सिंह को  सिद्धू से अलर्जी है और अगर बनावटी संघर्ष विराम हो भी जाता है तब भी अन्दर से दोनों एक दूसरे की टाँग खींचते रहेंगे। अब सिद्धू का कहना है कि एक दूसरे को कोस कर उत्थान सम्भव नही। पर खेल तो उनका ही शुरू किया  गया है।

ऐसे अपशब्द कोई भी बर्दाश्त नही करता, महाराजा के बर्दाश्त करने का सवाल ही नही। उन्होंने हरीश रावत को 150 ट्वीट की सूचि सौंपी है जो सिद्धू ने उनकी सरकार और व्यक्तिगत उनके ख़िलाफ़ की हैं लेकिन इसके बावजूद नवजोत सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का नया दुल्हा बना दिया गया। पाँच  साल पहले तक वह भाजपा को माँ कहते थे, अब कांग्रेस माँ बन गई है।  बीच में अगर आम आदमी पार्टी उन्हे सीएम बना देती तो उसे ‘मां’ कहने को तैयार थे! कांग्रेस के साथ परिवार का पुराना रिश्ता जतलाने के लिए  वह अपने पिता की नेहरूजी के साथ पुरानी  तस्वीर ट्वीट कर रहें है पर यही सिद्धू कह चुकें हैं कि ‘कांग्रेस मुन्नी से भी अधिक बदनाम है’। सिद्धू ने ही राहुल गांधी का ‘पप्पू’ नाम डाला था। वह किसी के बारे कुछ भी कह सकतें हैं। कांग्रेस हाईकमान, अर्थात गांधी परिवार के तीन सदस्य,शायद पीढ़ी परिवर्तन चाहता हैआख़िर 80 वर्ष के अमरेन्द्र सिंह कब तक यह भार ढोते रहेंगे। यह भी स्पष्ट संकेत हैं कि उनकी सरकार को शासन विरोधी भावना  का सामना है। नई लीडरशिप को आगे लाना बुरी बात नहीपर निर्णय लेते समय यह तो देखना चाहिए कि यह सही भी है? नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाते हुए जिस तरह मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह की भावना के प्रति बेदर्दी दिखाई गई है वह आगे परेशान करेगी। यह अर्थपूर्ण है कि न केवल अमरेन्द्र सिंह बल्कि पंजाब के कांग्रेसी सांसदों ने भी सिद्धू को बधाई नही दी है। पार्टी ने सेल्फ़ गोल कर लिया लगता है।

नवजोत सिंह सिद्धू ने बादल परिवार का विरोध कर अपनी लोकप्रियता बनाई है पर बादलों के साथ साथ वह अमरेन्द्र सिंह को भी ललकारते रहें है। किसी लक्ष्मण रेखा में रहना उनके स्वभाव से मेल नही खाता, किसी विचारधारा से उन्हे कोई मतलब नही। उनकी नीति तो सदैव ‘एकला चोलो रे’ की रही है। उनके आगे केवल अपना हित है इसीलिए पार्टियाँ बदलते रहतें हैं या पार्टी बदलने की धमकी देते रहतें है। न ही देखा गया कि सिद्धू से बहुत पुराने नेता मौजूद हैं जिनका प्रधानगी पर अधिक अधिकार बनता है। राहुल-प्रियंका  शायद पुराने नेताओं को भाजपा की तरह मार्ग दर्शक मंडल में धकेलना चाहता है ताकि पार्टी को युवा छवि दी जा सके पर उनमें  भाजपा नेतृत्व की कुशलता नही है। कांग्रेस के सीनियर नेता उस आसानी से बनवास के लिए तैयार नही होंगे जिस आसानी से भाजपा ने यह प्रक्रिया पूरी की है। जब सीएम भी जट हैं एक और जट सिख को बडी ज़िम्मेवारी सौंप कर हाई कमान ग़ैर-जट  जो कांग्रेस की रीड़ की हड्डी है, को क्या संदेश दे रहा है कि कांग्रेस के साथ उनका रिश्ता केवल वोट हासिल करने तक का है, सत्ता में बराबरी का नही?  पंजाब का इतिहास गवाह है कि सिख वोट का बहुमत कांग्रेस को नही मिलता वह सदैव हिन्दू और दलित वोट के बल पर सत्ता में आती रही है। मनीष तिवारी ने याद करवाया है कि प्रदेश में हिन्दू वोटर 38.49 प्रतिशत है और दलित(सिख और हिन्दू)31.94 प्रतिशत हैं पर  मंत्रिमंडल में इन्हें बराबरी नही है। हैरानी यह भी है कि संगठन में जो भी परिवर्तन किए गए है उसमें एक भी महिला को जगह नही दी गई। वैसे इस मामले में सभी दल एक जैसे पुरूष प्रभुत्व वालें हैं।

अमरेन्द्र सिंह की यह भी बड़ी कमज़ोरी है कि वह लोगों से कटे अपने फ़ार्म हाउस मे रहतें हैं। बग़ावत के बाद वह कुछ देर चंडीगढ़ सरकारी निवास स्थान में आगए थे पर फिर वहां लौट गए हैं। न ही वह बहुत अच्छा प्रशासन ही दे पाए हैं। वादे पूरे नही हुए। जिन्हें ड्रग, रेत, ट्रांसपोर्टर माफ़िया कहा जाता है उन पर कोई लगाम नही लगाई गई। न ही बेअदबी के मामले में वह कुछ कर सकें हैं। शिकायत है कि वह एक कोटरी से घिरे रहतें हैं। अब तो कुछ उद्योगपति महँगी बिजली और कट से परेशान  यूपी जाकर योगी आदित्यनाथ से जाकर मिल आए हैं। पंजाब सरकार कह रही है कि बादल सरकार के समय के बिजली समझौते परेशान कर रहें है पर इस सरकार ने साढ़े चार साल इन्हें सही करने की कोशिश क्यों नही की? पर अमरेन्द्र सिंह की विशेषता है कि वह पूरी तरह से राष्ट्रवादी हैं। करतारपुर कॉरिडोर के समय उन्होंने पाकिस्तान के इरादे के प्रति अपनी शंका प्रकट की थी और नवजोत सिंह सिद्धू को वहां जाने से बचने को कहा था। लेकिन सिद्धू वहां गए और वहां उनकी और जनरल बाजवा की जप्फी की तस्वीर सबने देखी है। पंजाब के हिन्दुओं में सिद्धू की कम लोकप्रियता का यह बड़ा कारण है। यह अर्थपूर्ण है कि पंजाब के हिन्दू मंत्रियों ने सिद्धू से दूरी बना कर रखी है, किसी ने बधाई नही दी।

 उतराखंड में हम ने देखा है कि किस तरह भाजपा के नेतृत्व ने पीड़ाहीन तरीक़े से सीएम बदल दिया। कर्नाटक में भी यही होगापर पंजाब कांग्रेस तो लहूलुहान हो चुकी है। दो धड़ों में बँटी नजर आ रही है। महीनों नवजोत सिँह सिद्धू को पब्लिक में सरकार और पार्टी के गंदे कपड़े धोने की इजाज़त दी गई और हाई कमान तमाशा देखता रहा। जब सिद्धू अमरेन्द्र सिंह को गालियाँ दे रहे थे तो उन्हे रोकने की जगह  गांधी परिवार के तीनों सदस्य उन्हे दर्शन दे रहे थे जबकि सीएम पंजाब को  दर्शन के लिए कुछ देर लटकाया गया। कांग्रेस के पास गिनचुन कर अपने तीन प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ रह गए है। अब पंजाब डांवाडोल है। जो मुद्दे दबे हुए थे, बेअदबी, ड्रग, महँगी बिजली, नक़ली शराब, सबको अपनो ने ही उछाल दिया। यह भी उललेखनीय है कि बिजली का मामला जोर शोर से उठाने वाले सिद्धू को अमरेन्द्र सिंह ने बिजली मंत्री बनाया था पर सिद्धू ज़िम्मेवारी से भाग गए। सिद्धू ने अभी तक अपनी प्रशासनिक क्षमता का कोई प्रदर्शन नही किया। पार्टी और सरकार चलाना कॉमेडी शो नही है।

 अपनी कमज़ोरियों की डबल बैरल गन सिद्धू की मार्फ़त कांग्रेस ने ही विपक्ष को सौंप दी है। अरविंद केजरीवाल और सुखबीर बादल दोनों सक्रिय हैं। नवजोत सिंह सिद्धू से ख़फ़ा हिन्दू मतदाता भाजपा की तरफ झुक सकता है, पर प्रदेश में काम का नेतृत्व नही है। केजरीवाल ने 300 युनिट बिजली मुफ़्त देने की घोषणा की है और साथ ही कहा है कि वह किसी सिख को मुख्यमंत्री बनाऐंगे। पंजाब पर पहले ही अढ़ाई लाख करोड़ रूपए का क़र्ज़ा है मुफ़्त बिजली से सर पर क़र्ज़ की गठरी और भारी हो जाएगी। मुफ़्तख़ोरी की जो आदत केजरीवाल चारों तरफ डालने की कोशिश कर रहें हैं वह लम्बे समय में अहितकर रहेगी क्योंकि लोगों आलसी और स्वार्थी बन जाते है। पंजाब को बेहतर प्रशासन चाहिए, रोजगार चाहिए, विकास चाहिए, मुफ़्तख़ोरी नही। हम सबसे तेज़ विकास करने वाले प्रदेशों में नही रहें। दूसरा, ‘सिख चेहरा’ कह कर उन्होंने मुख्यमंत्री के पद का साम्प्रदायिककरण कर दिया है। हैरानी है कि कुछ नेताओं का सैक्यूलरिजम कितना बारीक रहता है। अकाली दल ने बसपा के साथ समझौता किया है जिसे पिछली बार दो प्रतिशत से कम वोट मिले थे। पार्टी दस साल के अपने शासन और बेअदबी के कारण अभी भी रक्षात्मक है। पर अभी तो कांग्रेस का ड्रामा चल रहा है जहाँ दो बेमेल नेताओं को चुनौतीपूर्ण चुनाव लड़ने के लिए इकटठे बाँध दिया गया है। जिस तरह यह किया गया उसी में भविष्य के तकरार की  नींव रख दी गई है।

इस वक़्त तो सिद्धू जोश में हैं, कैप्टन कोपभवन में है और चिन्ता  है कि दोनों की न मिटने वाली रंजिश पार्टी को आईसीयू में न पहुँचा दे जहाँ कांग्रेस के तीन गांधी सर्जन चुनाव के बाद चुनाव में, प्रदेश के बाद प्रदेश में, अपनी अक्षमता प्रदर्शित कर चुकें हैं। मनोवैज्ञानिक इंसानों में ‘डैत्थ विश’ अर्थात मृत्यु इच्छा की प्रवृति की बात कहतें है, पर  लगता है कि पंजाब कांग्रेस भी डैत्थ विश से ग्रस्त है। शकील बदायूनी के शब्द याद आतें हैं,

मेरा अज़म इतना बुलंद है कि पराए शोलों का डर नही

                 मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है यह कहीं चमन को जला न दे !

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.