आजाद भारत के इतिहास में 31 दिसम्बर 1999 काला दिवस कहा जाएगा। इस दिन इंडियन एयरलाइंस की उड़ान IC 814 के अपहृत लगभग 160 यात्रियों कीजान बचाने केलिए भारत सरकार ने तीन आतंकवादियों को रिहा कर कंधार में तालिबान के हवाले कर दिया था। यह उड़ान 24 दिसम्बर को काठमांडू से नई दिल्ली के लिए शुरू हुई थी पर रास्ते में 5 आतंकवादियों ने इसका अपहरण कर लिया और अमृतसर, लाहौर और दुबई होते हुए इसे अफ़ग़ानिस्तान में कंधार ले गए थे। उनकी माँग थी कि 35 आतंकियों को भारत की जेल से रिहा किया जाए। आख़िर में माँग कम करते हुए उन्होने तीन, मसूद अज़हर, मुश्ताक़ अहमद ज़रगर तथा उमर शेख़ की रिहाई की माँग की थी। फ़ारूक़ अब्दुल्ला समेत बहुत लोग ने चेतावनी दी कि समर्पण से आतंक की बाढ़ आजाएगी, जो आई भी, पर प्रधानमंत्री वाजपेयी की सरकार ने घुटने टेक दिए। पूर्व मंत्री जसवंत सिंह जो इन तीन आतंकियों को लेकर विशेष विमान से कंधार गए थे ने अपनी जीवनी ए कॉल टू हॉनर मे इस घटनाक्रम का विस्तार से वर्णन किया कि किस तरह तालिबान अपहरणकर्ताओं की मदद कर रहे थे। वह लिखतें हैं, “ एक अनिष्टकारी ताकत जिसने अव्यवस्था, उग्रवाद, आतंकवाद और दशकों के टकराव को पैदा किया..यह तालिबान था”। वह यह भी बतातें हैं कि कंधार हवाई अड्डे पर छोड़े गए तीन आतंकवादी, “जैसे ही सीड़ियों से नीचे पहुँचे उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया..मुझे बताने की ज़रूरत नही कि किसने यह स्वागत किया”। जसवंत सिंह की बात को वहां नार्दन अलायंस जो तब भी और अब भी तालिबान का विरोधी है, के प्रमुख अहमद शाह मसूद ने पूरा कर दिया, “जल्द सब आतंकवादी गुप्त कच्चे रास्तों से पाकिस्तान पहुँचा दिए गए क्योंकि इस हाईजैक को तालिबान की मदद थी”। ख़ुद जसवंत सिंह ने कंधार पहुँच कर अपनी डायरी में तालिबान Ruffians अर्थात गुंडों का ज़िक्र किया था।
अमेरिका के शर्मनाक पलायन के बाद इन्हीं तालिबान Ruffians का अफ़ग़ानिस्तान में आज राज है। नई सरकार का गठन हो गया है जिसमें महत्वपूर्ण विभाग उनको दिए गए हैं जिनका उग्रवाद और आतंकवाद का इतिहास है। कई हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका आतंकवादी क़रार चुकें हैं। सबसे आपत्तिजनक सिराजुद्दीन हक्कानी का गृहमंत्री बनना है। इस कुख्यात आतंकवादी पर अमेरिका ने 50 लाख डालर का ईनाम रखा हुआ है। वह2008 में काबुल के सरीना होटल में हुए बम विस्फोट का भी मुख्य अभियुक्त है। पाकिस्तान इसके हक्कानी नैटवर्क का इस्तेमाल भारत और अमेरिका दोनों के ख़िलाफ़ करता रहा है। अमेरिका हक्कानी नैटवर्क को ‘अंतराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन’ क़रार दे चुका है। देखते है अब अमेरिका का नए गृहमंत्री के बारे क्या रवैया रहता है? हम अमेरिका के भरोसे रह गए लेकिन जैसे काबुल में हमारे पूर्व राजदूत राकेश सूद ने लिखा है, “हमने सारे अंडे एक ही टोकरी में रख दिए। टोकरी टूट गई और साथ अंडे भी टूट गए। पश्चिम के देश तो वहां से निकल सकतें हैं, भारत तो उस क्षेत्र का हिस्सा है..हम किधर जा सकतें हैं?” भारत सरकार ने बहुत अक़्लमंदी की और फटाफट अपने दूतावास और स्टाफ़ को वहां से निकाल लिया। कई लोग कहतें हैं कि हमने जल्दबाज़ी की पर क्या हम भूल सकतें हैं कि जुलाई 7,2008 को काबुल में हमारे दूतावास पर आतंकवादी हमला किया गया जिस में 6 भारतीय समेत 60 लोग मारे गए थे। हमला हक्कानी नैटवर्क ने किया था जो पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजंसी आईएसआई के साथ जुड़ा हुआ है। तब न्यूयार्क टाइम्स ने बताया था कि हमले की योजना आईएसआई ने बनाई थी। इस वक़्त दूतावास को न हटाने का मतलब ख़ुद को ब्लैकमेल के लिए खुला छोड़ना है। वहां लश्करे तोयबा और जैश ए मुहम्मद के आतंकवादी भी मौजूद है। सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री बनवा पाकिस्तान ने वहां हमारे लिए दरवाज़ा बंद करने की कोशिश की है।
अभी तक तालिबान का हमारे प्रति रवैया विदेश सचिव हर्षवर्धन ऋंगला के अनुसार ‘रीज़नेबल’ अर्थात ठीक ठाक है। कोई विशेष दुष्मनी प्रकट नही की गई। उनके नेता शेर मुहम्मद अब्बास स्टानकज़ई ने कहा है कि तालिबान भारत के साथ ‘राजनीतिक,आर्थिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाना चाहता है’। उनका यह भी कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान के लिए पाकिस्तान के रास्ते भारत के साथ व्यापार बेहद अहम है। स्टानकज़ई जिन्होंने देहरादून की इंडियन मिलिट्री अकादमी में ट्रेनिंग हासिल की है, ने दोहा में भारतीय राजदूत से भी मुलाक़ात की और फिर कहा है कि ‘भारत इस उपमहाद्वीप के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है’। इससे पहले तालिबान के लोग बार बार दोहरा चुकें हैं कि वह अपनी ज़मीन की किसी और देश के ख़िलाफ़ इस्तेमाल की इजाज़त नही देंगे। यह भारत की बड़ी चिन्ता है क्योंकि पिछली बार जब तालिबान वहां सत्ता में था तो कश्मीर में आतंकी घटनाएँ बढ़ गई थीं। इस मंत्रिमंडल के गठन के बाद चिन्ता बढ़ गई है।
दोहा में तालिबान के एक प्रवक्ता का यह भी कहना है कि, ‘हमें कश्मीर समेत हर कहीं मुसलमानों के पक्ष में आवाज़ उठाने का हक़ है’। यह उल्लेखनीय है कि जिन देशों की बात की गई उनमें चीन द्वारा बुरी तरह से उत्पीड़ित उइगर मुसलमानों का ज़िक्र नही किया गया। अमेरिका की सेना के निकलने के अगले ही दिन अल क़ायदा ने तालिबान से कहा कि ‘अफ़ग़ानिस्तान की ही तरह कश्मीर को भी आजाद करवाया जाए’। अर्थात कई क़िस्म की परस्पर विरोधी आवाज़ें वहां से निकल रहीं हैं। तालिबान के नेता अनस हक्कानी का कहना है कि, ‘हम कश्मीर के मसले में दखल नही देंगे। हम भारत के साथ अच्छे और दोस्ताना सम्बन्ध चाहतें हैं’। यह बात तो अच्छी है पर यह अनस हक्कानी उस कुख्यात हक्कानी नैटवर्क का उत्तराधिकारी है। अर्थात कोई स्पष्टता नही कि तालिबान की हमारे प्रति नीति क्या होगी? इसीलिए भारत सरकार भी ‘वेट एंड वॉच’ की नीति पर चल रही हैलेकिन हमे कश्मीर पर नकारात्मक असर के लिए तैयार रहना चाहिए।
भारत के लिए भी सब कुछ अंधकारमय नही है। हमें केवल इंतज़ार करना है। 20 सालों में स्थिति में बहुत परिवर्तन आया है। भारत पहले वाला भारत नही रहा। हम सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं और दुनिया में हमारी इज़्ज़त है। अगर तालिबान को अंतराष्ट्रीय मान्यता चाहिए तो यह पाकिस्तान द्वारा नही, भारत के द्वारा ही मिल सकती है। अफ़ग़ानिस्तान की बड़ी समस्या उनकी फटेहाल आर्थिक स्थिति है। पश्चिम ने उनके सभी खाते फ़्रीज़ कर दिए हैं। भारत सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध कमेटी का अध्यक्ष है। अफ़ग़ानिस्तान पर विश्व बैंक और आईएमएफ़ प्रतिबन्ध तब ही हटाएँगे अगर कुछ प्रमुख देश तैयार हो जाऐं, भारत की भूमिका प्रमुख होगी। मायरा मैकडोनाल्ड जिन्होंने दक्षिण एशिया पर तीन किताबें लिखी है का कहना है, “ यह अतीत की वापिसी नही। इस वक़्त भारत पाकिस्तान से आर्थिक तौर पर बहुत ताकतवार है”। एक और अंतराष्ट्रीय विशेषज्ञ एश्ले टैलिस ने भी लिखा है, “भारत के लिए स्थिति मुकम्मल मुसीबत की नही है”।
भारत के पक्ष में दो बातें जाती हैं। एक, वहां लोगों के बीच हमारे लिए बड़ी सद्भावना है। यह आज़ादी के समय से ही है जब अब्दुल गफार खान नाराज़ हो गए थे कि विभाजन करवा हमने उन्हे बेसहारा छोड़ दिया। हमने नए अफ़ग़ानिस्तान को बनाने पर तीन अरब डालर ख़र्च किए हैं। सलमा डैम बनाया, संसद भवन बनाया, सड़कें, अस्पताल, ट्रॉसमिशन लाइन सब बनाई। हमीद करजाई का कहना है कि ‘ भारत द्वारा भेजा एक डालर अमेरिका द्वारा भेजे 100 डालर के बराबर है’। असंख्य अफ़ग़ान छात्र यहाँ पढ़ते है। उनके मरीज़ यहाँ आते रहे हैं। उनकी क्रिकेट टीम यहाँ ट्रेन होती है।ईरान मे छाबाहार बंदरगाह बनाने का उद्देश्य भी यही था कि पाकिस्तान के अड़ंगे से बचते हुए अफ़ग़ानिस्तान के साथ व्यापार हो सके। दूसरा, चाहे तालिबान को पाकिस्तान ने पाला पलोसा और अमेरिका से बचा कर रखा है, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के राष्ट्रीय उद्देश्यों में बड़ा टकराव है। पाकिस्तान की आईएसआई के प्रमुख लै.जनरल फ़ैज़ हमीद की अचानक काबुल यात्रा के दौरान काबुल और तीन शहरों में हुए पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन जिसमें खुले ‘पाकिस्तान मुरादाबाद’ के नारे लगाए गए, बतातें हैं कि पाकिस्तान की साजिश का विरोध शुरू हो गया है। तस्वीरें बता रहीं है कि किस तरह तालिबान की बंदूक़ों के सामने प्रदर्शनकारी जिनमें अधिकतर महिलाऐं थीं डटी रहीं। लोग उस दिशा में नही जाना चाहते जिस दिशा में उन्हे धकेलने की कोशिश की जा रही है। उन दोनों देशों के राष्ट्रीय लक्ष्य में जो तनाव है उसका भारत फ़ायदा उठा सकता है। एक आजाद और आत्म विश्वस्त अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान के लिए आराम का मामला नही है।
लेकिन इस वक़्त तो कड़वी हक़ीक़त है कि वह तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में क़ाबिज़ है जिसके साथ हमारे रिश्ते बैरी रहें हैं। दक्षिण एशिया पर विशेषज्ञ क्रिस्टीना फ़ेयर का कहना है, ‘एक लिहाज़ से देखा जाए तो यह चीन के लिए जीत है जबकि दुख की बात है कि भारत बड़ा हारने वाला है’। पाकिस्तान को इस वक़्त बढ़त मिली है पर अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास साक्षी है कि जो उन पर धौंस ज़माने की कोशिश करता है उसे आख़िर में भारी शिकस्त मिलती है। लेकिन हमने सामरिक ज़मीन खोई है और मंत्रिमंडल में इन पुराने पापियों का भरमार को देखते हुए खतरा है कि अफ़ग़ानिस्तान फिर आतंकवाद का ब्रीडिंग ग्राउंड न बन जाए। पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन का अनुमान है कि वहां 10000 विदेशी आतंकवादी मौजूद हैं।पाकिस्तान इन में से कुछ का मुँह हमारी तरफ मोड़ने का प्रयास करेगा। हमें जेहादियों की एक और लहर के लिए तैयार रहना चाहिए।हमे इमरान खान और जनरल बाजवा को संदेश भेज देना चाहिए कि हमारे साथ शरारत की कीमत चुकानी पड़ेगी। हमे पाकिस्तान के प्रति प्रतिकार का विकल्प तैयार रखना चाहिए। ईरान ने अपनी ‘रेड लाइन’ बता दी है,हमें भी दोनों पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को यह स्पष्ट कर देनी चाहिए।