इस वक़्त तो यह मास्टर स्ट्रोक ही लग रहा है। पंजाब जहाँ 32 प्रतिशत शडयूल कास्ट जनसंख्या हैं और जिसकी 117 में से 34 विधानसभा सीटें रिसर्व हैं, वहां एक एस सी चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया है। वह पहले शडयूल कास्ट और ज्ञानी ज़ैल सिंह के बाद पहले नॉन-जट सीएम होंगे। साम्प्रदायिक संतुलन रखने के लिए एक हिन्दू, ओम प्रकाश सोनी और एक जट सिख सुखजिन्दर रंधावा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को फ़ायदा होगा। भाजपा ने कहा था कि वह एक एस सी को मुख्यमंत्री बनाएगी पर अभी तक नाम घोषित नही कर सकी। अकाली दल ने बसपा के साथ गठबन्धन किया है और घोषणा की थी कि वह एस सी को उपमुख्यमंत्री बनाएगी पर अभी तक कोई नाम आगे नही आया। बसपा को पिछले चुनाव में केवल 1.52 प्रतिशत वोट ही मिला था। उल्लेखनीय है कि 1992 मे यह समर्थन 16.32 प्रतिशत था। जो समर्थन कांशीराम ने बटोरा था उसे मायावती ने गँवा दिया। फिर भी सुखबीर बादल को आशा थी वह जट-एस सी गठबन्धन बना सकेंगे। इस पर कांग्रेस ने पानी फेर दिया। आप अभी तक ‘सिख फेस’ के चक्करमें फँसी हुई है। तलाश दुबई तक हो चुकी है पर अनिर्णय की स्थिति है जिससे भगवंत मान सब्र खो रहे हैं। कांग्रेस ने वह चेहरा आगे कर दिया जो दलित भी है और सिख भी। इससे सभी पार्टियों को अपनी रणनीति पर फिर से ग़ौर करना पड़ेगा।
कांग्रेस का नेतृत्व समझता है कि यह परिवर्तन कर उसने एंटी इंकमबंसी अर्थात शासन विरोधी भावना और अमरेन्द्र सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के टकराव से पार्टी को बचा लिया है। एस सी सीएम बना कर उन्होने सब को ख़ामोश कर दिया। जो विरोध करना चाहतें हैं वह भी अभी विरोध नही कर पा रहे। चरणजीत सिंह चन्नी का सीएम बनना एक स्मार्ट मूव है चाहे पार्टी नेतृत्व वहां झटके और धक्के खाता पहुँचा है। भाजपा ने छ: महीनों में चार मुख्यमंत्री बदल दिया कहीं फुसफुसाहट नही हुई। गुजरात में तो सारा मंत्रिमंडल ही बदल डाला। भाजपा का नेतृत्व जब परिवर्तन करने पर उतर आता है तो कोई अस्पष्टता या हिचकिचाहट नही होती। नाम पहले तय होता है। भाजपा नेतृत्व का सत्ताधिकार निर्विवाद है जो कांग्रेस के नेतृत्व के बारे नही कहा जा सकता इसीलिए इतनी मशक़्क़त करनी पड़ी और पार्टी अभी भी व्याकुल नजर आ रही है। जो नेतृत्व ख़ुद चुनाव जीतने के अयोग्य है उसकी बहुत ज़बरदस्ती नही चलती। इसीलिए अमरेन्द्र सिंह को हटाने का अभियान इतना लम्बा चला और अभी भी मालूम नही कि आगे क्या होने वाला है। कई नाराज़ है। गुटबाज़ी बढ़ेगा।
चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बन तो गए पर उनके आगे समस्याओं का ढेर है। चुनाव की आचार संहिता लागू होने में लगभग 100 दिन ही रह गए हैं। चुनाव से पहले इतने संक्षिप्त समय में वह क्या कर लेंगे? वह अमरेन्द्र सिंह का यह कह कर विरोध करते रहे कि वादे पूरे नही किए गए। यह ही नवजोत सिंह सिद्धू का भी राग रहा है। अब अपनी बारी है। विशेष शिकायत थी कि बेअदबी के मामले में कुछ नही किया गया। सिद्धू ‘दो परिवारों की यारी’ का भी आरोप लगाते रहे। उनकी शिकायत रही है कि बादल परिवार के ख़िलाफ़ अमरेन्द्र सिंह ने कुछ नही किया। यह भी शिकायत रही कि ड्रगज़ के मामले में छोटी मच्छलियों को ही पकड़ा गया है, बड़े मगरमच्छ खुले घूम रहें है। अब जबकि सत्ता उनके हाथ आगई है इसलिए पंजाबियों को आशा होगी कि नई हुकूमत उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी जिन्हें वह खलनायक करार चुकें हैं। बिजली कम्पनियों के साथ समझौते रद्द करने है जिसकी ऊँची माँग सिद्धू करते रहे। आगे चल कर किसान आन्दोलन क्या शक्ल अपनाता है यह भी मालूम नही। इसके कारण पंजाब में अनिश्चितता बनी हुई है।
जिस तरह ज़बरदस्ती यह परिवर्तन किया गया है उस से कटुता और दुर्भावना बढ़ी है। अमरेन्द्र सिंह की बड़ी शिकायत है कि उन्हे एक बार नही, तीन बार ‘हयूमिलियेट’ अर्थात अपमानित किया गया। सिद्धू भी उनकी शान में लगातार ग़ुस्ताख़ी करते रहे पर रोकने का कोई प्रयास नही किया गया, उलटा पुरस्कृत किया गया। अमरेन्द्र सिंह भी भाँपने में असफल रहे कि राहुल गांधी और प्रियंका वाद्रा अब बच्चे नही रहे और उन्हे अंकल की भावना की परवाह नही है। लेकिन क्या जरूरी था कि इस तरह उस नेता को ‘हयूमिलियेट’ किया जाए जिसने 2014 और 2019 की मोदी लहर में उस वक़्त पार्टी को बचाया जिस वक़्त गांधी परिवार ने लुटिया डूबो दी थी? और अमरेन्द्र सिँह को नीचा दिखाने के लिए उस नवजोत सिंह सिद्धू को आगे किया गया जिसका दलबदलने का रिकार्ड है और जिसने हाल ही में चेतावनी दी थी अगर उनकी बात नही सुनी जाती तो पार्टी की ईंट से ईंट बजा देंगे? अमरेन्द्र ज़ख़्मी है जो नए सीएम के शपथ समारोह से उनकी अनुपस्थिति से भी पता चलता है। लेकिन अमरेन्द्र सिंह के सामने भी विकल्प सीमित हैं। आयु साथ नही है। नई पार्टी खड़ी नही कर सकते। भाजपा में जा नही सकते। लोकप्रियता में गिरावट आई है। उनके युग का अंत नजर आ रहा है पर नवजोत सिंह सिद्धू को वह अवश्य डैमेज कर सकतें हैं।
कोप भवन में केवल अमरेन्द्र सिंह ही नही और भी बहुत सीनियर नेता हैं। सुनील जाखड़ एक वक़्त सीएम निर्वाचित लग रहे थे। मीडिया ने तो यह ख़बर भी दे दी थी कि विधायकों में उन्हे सबसे अधिक समर्थन है लेकिन वह रह गए क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धू ने इस कारण विरोध किया कि वह हिन्दू हैं। जहाँ इससे हिन्दुओं में नाराज़गी बढ़ेगी कि समर्थन हम देते हैं पर हिन्दू सीएम नही बन सकता, वहां सुनील जाखड़ भी खुली नाराज़गी व्यक्त कर रहें हैं। कांग्रेस का नेतृत्व भी जवाबदेह है कि उनका सैकयूलरिज़म इतना जाली क्यों है कि वह पंजाब में हिन्दू को सीएम बनाने के लिए तैयार नही? सुखजिन्दर रंधावा इसलिए नाराज़ है कि वह भी सीएम बनते बनते रह गए क्योंकि उनके मित्र नवजोत सिंह सिद्धू जिनके साथ मिल कर अमरेन्द्र सिंह के ख़िलाफ़ अभियान चलाया गया था, ने ही उनके नाम पर आपति कर दी जबकि उनके घर पर मिठाइयाँ बँटनी शुरू भी हो गई थीं। ब्रह्म महिन्द्रा दुखी है कि उनकी वरिष्ठता के बावजूद उन्हे उपमुख्यमंत्री नही बनाया गया। नए मुख्यमंत्री और पार्टी हाईकमान के लिए सबसे बडी समस्या होगी कि नवजोत सिंह सिद्धू को कैसे सम्भाला जाए ? सिद्धू जानते है कि उनके कंधे पर बंदूक़ रख अमरेन्द्र सिंह पर निशाना लगाया गया है। अब इस इस्तेमाल की वह कीमत माँग रहें हैं। यह भी समाचार है कि सीएम न बनाए जाने पर वह बैठक से ग़ुस्से में बाहर आगए थे। उन्हे मनाने के लिए हरीश रावत को घोषणा करनी पड़ी कि ‘चुनाव सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा’। हैरानी है कि हरीश रावत जैसा वरिष्ठ व्यक्ति ऐसा बेतुका बयान दे रहा है। अगर सिद्धू ने ही चुनाव में चेहरा होना है तो चन्नी क्या झक मार रहें हैं? एक तरफ आप यह श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हो कि आपने एक शडयूल कास्ट को सीएम बना दिया तो दूसरी तरफ उनके सर पर सिद्धू को बैठा रहे हो? अजीब तमाशा है। सुनिल जाखड़ ने भी ट्वीट किया है कि ‘रावत का यह बयान कि चुनाव सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा चकित करने वाला है।यह सीएम के सत्ताधिकार को न केवल खोखला करने वाला है बल्कि इस पद के लिए उनके चुनाव के उद्देश्य को नकारने वाला है’। लेकिन जिस हड़बड़ी में यह चुनाव हुआ है यह तो होना ही था।
ऐसा प्रतीत होता है कि गांधी परिवार सिद्धू को सीएम बनाना चाहता है पर इस परिस्थिति में बना नही सका। हैरानी है कि सिद्धू के बारे जो अमरेन्द्र सिंह ने कहा कि ‘पाकिस्तान की हुकूमत से इनकी नज़दीकी है’ को हाईकमान नजरंदाज कर गया। अमरेन्द्र सिंह ने तो सिद्धू को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। अमरेन्द्र सिंह की चेतावनी है कि ‘पंजाब में कुछ हो रहा है’। टिफिन बम तो मिल ही चुकें हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि आम तौर पर मुखर सिंद्धू पाकिस्तान की शरारत पर कभी मुँह नही खोलते। इस ख़ामोशी के कांग्रेस को दो नुक़सान होंगे। सिद्धू की इमरान-बाजवा के साथ कथित यारी को भाजपा चुनाव में उछालेगी, केवल पंजाब में ही नही बाहर भी कि पंजाब में कांग्रेस का चेहरा वह है जिस पर उनका ही पूर्व मुख्यमंत्री राष्ट्र विरोधी होने का आरोप लगा चुका है। दूसरा, इसका प्रभाव पंजाब की बड़ी जनसंख्या पर पड़ेगा जो पाकिस्तान की शरारत को समझता है। अगर सब कुछ सिद्धू के हवाले कर दिया गया तो कांग्रेस प्रभावशाली शहरी हिन्दू का समर्थन खो बैठेगी। दूसरी तरफ अगर चरणजीत सिंह चन्नी को कमजोर करने का प्रयास किया गया तो एस सी खफा हो जाऐंगे। कांग्रेस पार्टी पंजाब में जातियों के झमेले में फँस गई लगती है।
पंजाब में कांग्रेस ने पिटारा तो खोल दिया पर इस में से आख़िर में निकलता क्या है कहा नही जा सकता। नवजोत सिंह सिद्धू को प्रमुखता प्रदान कर नेतृत्व ने ही अस्थिर करने वाला तत्व अन्दर दाख़िल कर लिया। अभी तक सिद्धू चन्नी को समर्थन दे रहें है लेकिन देखना है कब तक? नवजोत सिंह सिद्धू ने जो लड़ाई लड़ी है वह किसी और को स्थाई सीएम बनाने के लिए नही लड़ी। अभी से वह प्रभाव दे रहें है कि जैसे यह उनकी सरकार है। भास्कर की सुर्खी कि ‘सीएम चन्नी बने लड्डू सिद्धू को खिलाए जा रहें है’ सब कुछ बयान कर गई है। नए मुख्यमंत्री से सहानुभूति है। ख़ज़ाना ख़ाली है। जट सिख और शहरी हिन्दू उन्हे कैसे स्वीकार करतें हैं यह भी देखने की बात है। पार्टी में गुटबाज़ी है और कोई नही जानता कि अमरेन्द्र सिंह का अगला क़दम क्या होगा। वह अपनी हयूमिलियेशन को पचा नही सकेंगे। उपर से चन्नी पर नवजोत सिंह सिद्धू जैसे तेज़ तरार नेता को लाद दिया गया है। कहीं यह न हो कि जिन्हें इस वक़्त मास्टर स्ट्रोक समझा जा रहा है वह नाइट वॉचमैन साबित हों !चुनाव से पहले के अंतिम ओवर चन्नी से खिलवाऐं जाऐं और अगर जीत गए तो बैटिंग सिद्धू को सौंप दी जाए।