आता है रहनुमाओं की नीयत में फ़ितूर
उठता है साहिलों में तूफ़ाँ न पूछिए
हरीश रावत बनाम अमरेन्द्र सिंह, अमरेन्द्र सिंह बनाम नवजोत सिंह सिदधू, नवजोत सिँह सिद्धू बनाम चरणजीत सिंह चन्नी, सुनील जाखड़ बनाम नवजोत सिंह सिद्धू, सिद्धू बनाम सुखजिन्दर सिंह रंधावा, पंजाब में कांग्रेस पार्टी का जो घटिया धारावाहिक चल रहा है उसका यह एक हिस्सा है। परेशान दर्शक पंजाब की जनता, समझने की कोशिश कर रही है कि अनाड़ी निर्देशक, राहुल गांधी, इस धारावाहिक को ले जाना कहाँ चाहते है? शायद उन्हे भी मालूम नही। और यह भी कोई नही जानता कि निर्देशक को किसने नियुक्त किया है? पर वह मुख्य पात्र को ज़बरदस्ती और अपमानित कर निकाल चुकें हैं और उनकी जगह कई परीक्षण करने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यपात्र अर्थात सीएम बना दिया गया है। लेकिन इस प्रक्रिया में पार्टी को इतने ज़ख़्म लगें हैं कि वह राजनीतिक मंच पर लड़खड़ाती नज़र आ रही है।
सितम्बर में किए गए एबीपी-सी वोटर सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब में बड़ा उलटफेर होने वाला है। सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस नही, आम आदमी पार्टी होगी। आप को 51-57 सीटें और 35.1 प्रतिशत वोट मिलने की सम्भावना है जबकि कांग्रेस पार्टी को 38-46 सीटें और 28.5 प्रतिशत वोट मिलने की सम्भावना है। कांग्रेस के लिए तब से लेकर अब तक स्थिति बदतर हुई है। अमरेन्द्र सिंह के अनुसार जब से सिद्धू ने अपना अभियान शुरू किया है और अपनी ही सरकार की ग़लतियाँ सार्वजनिक करनी शुरू की है, तब से पार्टी की लोकप्रियता में 20 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। यह आँकड़े कितने सही है यह कहा नही जा सकता, पर यह साफ़ है कि अंदरूनी लड़ाई के कारण पार्टी की लोकप्रियता और विश्वसनीयता ढलान पर है। पार्टी जीत के मुँह से कलह और अनिश्चितता छीनने में सफल रही है।
यह नही कि चरणजीत सिंह चन्नी का चुनाव ग़लत है। एक उच्च शिक्षित दलित को सीएम बनाकर कांग्रेस ने बहुत अच्छी परम्परा क़ायम की है। वह विनीत और सादें हैं जो बादलों और अमरेन्द्र सिँह के बाद अच्छा बदलाव है शर्त यह है कि उन्हे आजाद काम करने दिया जाए। शुरू में सिद्धू उनका हाथ पकड़ कर और पीठ थपथपा कर ऐसा प्रभाव दे रहे थे कि जैसे एक बाप बच्चे को पहले दिन स्कूल छोड़ने जा रहा है! जिस तरह नए सीएम द्वारा की गई नियुक्तियां पर सिद्धू ने न केवल सार्वजनिक एतराज़ किया बल्कि यहाँ तक कह दिया कि, “मैं समझौता नही करूँगा…”, उसने नए सीएम को पहले सप्ताह ही रक्षात्मक बना दिया है। सिदधू का यह भी कहना था कि “मैं सच की लड़ाई लड़ रहा हूँ”। सवाल उठतें है कि नई सरकार ने क्या ‘समझौते’ किए कि प्रदेश अध्यक्ष को ऊंची शिकायत करनी पड़ी ? और अगर वह सच की लड़ाई लड़ रहे है तो असत्य और झूठ कौन चला रहा है?
सिदधू न केवल अपनी सरकार को शर्मिंदा कर रहें है वह यह बता रहें हैं कि वह चन्नी की नियुक्ति को पचा नही पा रहे। पंजाब में दो पॉवर सैंटर नज़र आते हैं। सिदधू की राजनीति को देख कर तो बालीवुड का डॉयलॉग याद आ जाता है कि वह सरकार को न जीने देंगे न मरने देंगे! पर सिदधू को भी समझना चाहिए कि वह सदैव कोप भवन में नही रह सकते और सदा तमाशा नही खड़ा कर सकते। उनके भी विकल्प सीमित है। कांग्रेस की जो गत उन्होने बनाई है को देखते हुए उन्हे प्रवेश दे कर कोई और पार्टी अपने पाँव पर कुल्हाड़ी नही चलाना चाहेगी। अब उनका कहना है कि ‘पद रहे या न रहे वह राहुल और प्रियंका के साथ रहेंगे’। कुछ ऐसी ही वफादारी की क़समें वह भाजपा के नेतृत्व के प्रति भी खा चुकें हैं। पर राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा भी जवाबदेह है कि उन्होने ऐसे अस्थिर तत्व को पार्टी की कमान क्यों सौंप दी?
इस बीच अमरेन्द्र सिंह की भावी राजनीति और रणनीति को लेकर भी अटकलबाज़ी चल रही है। वह गृहमंत्री अमित शाह से लम्बी मुलाक़ात कर हटें हैं। क्या कुछ खिचड़ी पक रही है? वह कह चुकें हैं कि वह सिदधू को जीतने नही देंगे। पर क्या ज़ख़्मी महाराजा का अभियान यहाँ तक ही सीमित है या वह अपनी बेइज़्ज़ती का बदला लेने के लिए पंजाब में कांग्रेस की ईंट से ईंट बजाने (सिदधू की रंगीन भाषा में) का इरादा रखतें है ? वह कह चुकें हैं कि चुनाव में ‘न्यू फ़ोर्स’ भी हिस्सा लेगा। क्या यह नई शक्ति नई पार्टी होगी क्योंकि मीडिया में चर्चा है कि किसान आन्दोलन को समाप्त करवा अमरेन्द्र सिंह भाजपा के साथ गठजोड़ कर सकते हैं। मुझे शक है कि ऐसे किसी प्रयास को सफलता मिलेगी। एक, अमरेन्द्र सिंह सक्रिय नही हैं। हरीश रावत की सही शिकायत है कि वह अपने सिसवां फ़ार्महाउस से ही सरकार चलाते रहें हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर उनका रवैया सही और स्पष्ट रहा है पर नई पार्टी बनाने और चलाने के लिए यह ही काफ़ी नही। जहाँ तक किसान आन्दोलन का सवाल है लखीमपुर खीरी की दर्दनाक घटना ने इसे और उलझा दिया है। वीडियो साफ़ है कि पैदल चल रहे किसान प्रदर्शनकारियों पर जानबूझकर वाहन चढ़ाए गए। केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा ने माना है कि वाहन उसका है। उसे तत्काल हटा दिया जाना चाहिए। जिनकी यह हरकत है उन्हे कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। भाजपा के लिए असुखद स्थिति है। यूपी के चुनाव में इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
अकाली दल पर अभी लोगों का भरोसा बहाल नही हुआ। सुखबीर बादल का यह संकट है। आम आदमी पार्टी सक्रिय है। विभिन्न सर्वेक्षण उन्हे बढ़त दे रहें हैं। केजरीवाल पंजाब का दौरा कर लौटे है जहाँ इस बार उन्होने सरकारी अस्पतालों में बिलकुल मुफ़्त इलाज देने की घोषणा की है। इससे पहले वह हर घर में 300 युनिट बिजली मुफ़्त देने की घोषणा कर चुकें हैं। केजरीवाल को पंजाब में मौक़ा नजर आ रहा है। दिल्ली मॉडल के बल पर उनकी अखिल भारतीय छवि नही बनती। अगर वह पंजाब में सरकार बना लेते हैं और अच्छी तरह चलाने में सफल रहतें हैं तो उनकी महत्वकांक्षा को बल मिल सकता है। लेकिन आप के आगे भी दो समस्याएँ हैं। एक, कोई सीएम का उम्मीदवार नही है। केजरीवाल घोषणा कर चुकें हैं कि उनका सीएम ‘फेस’ ऐसा होगा जिस पर पंजाब को गर्व होगा। यह अद्भुत चेहरा है कौनसा, यह केजरीवाल बताने की स्थिति में नही है। इस तलाश में खूब हाथ पैर मारे जा रहें हैं, यहाँ तक कि दुबई में रह रहे एक दानवीर सिख से भी सम्पर्क किया जा चुका है, जिन्होंने दुल्हा बनने से इंकार कर दिया है। आप की दूसरी समस्या है कि हिन्दू समुदाय में उनके प्रति विरोध के हद तक अरूचि है। पिछले चुनाव मे आप ने जिस तरह सिख उग्रवादियों की मदद ली थी उसके लिए माफ़ नही किया गया। और केजरीवाल पहले ही सीएम के लिए ‘सिख फेस’ की बात कर चुकें हैं। जिस समुदाय को साम्प्रदायिक कारणों से बाहर कर दिया गया वह समर्थन क्यों देंगे? मुख्यमंत्री कौन बनता है इस पर मुझे कोई आपति नही पर यह क्यों कहा जाए, जैसे अम्बिका सोनी और नवजोत सिंह सिदधू भी कह चुकें हैं, कि कोई हिन्दू पंजाब में सीएम नही हो सकता? अगर डा.मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बन सकतें हैं तो कोई हिन्दू पंजाब का मुख्यमंत्री क्यों नही बन सकता? लोकतन्त्र में सबके लिए बराबर अधिकार है। खेद है कि जो बहुत सैकयूलरिस्ट बनते है वह ही साम्प्रदायिक रंगत दे रहें हैं।
लेकिन यह सब अलग मामला है। सवाल तो है कि सरकार किसी की भी बने क्या पंजाब की मूलभूत समस्याओं का इलाज निकलेगा? केजरीवाल मुफ़्त योजनाओं की घोषणा कर रहें है पर ख़ज़ाना तो ख़ाली है। लगभग तीन लाख करोड़ रूपए का क़र्ज़ है। मुफ़्तख़ोरी तो प्रदेश को और बीमार बना देगी। एक समय पंजाब देश के लिए मिसाल था पर आतंकवाद के दौर और कमजोर सरकारों ने इसे बहुत नीचे धकेल दिया है। प्रति व्यक्ति आय में हम 1991-1992 में देश में प्रथम थे। 2017-18 में हम 15वें नम्बर पर गिर चुके थे। ह्यूमन डैवैलपमैंट इंडेक्स में हम 9वें नम्बर पर है जबकि हिमाचल प्रदेश भी हमसे आगे है। पंजाब की जीडीपी विकास दर बिहार से भी कम है और राष्ट्रीय औसत से भी नीचे है। चिन्ता की और बात है कि कृषि में भी हम पिछड़ रहें हैं। 2004-2019 के बीच पंजाब ने कृषि में मात्र 2% की वृद्धि की जब कि बिहार ने 4.8 % और यूपी ने 2.8% की वृद्धि की है।
पंजाब का बैड लक चल रहा है। पतन के संकेत चारों तरफ हैं। कृषि फ़ायदेमंद नही रही जो किसान आन्दोलन का बड़ा कारण है। पानी ख़तरनाक स्तर तक नीचे जा चुका है। कई विशेषज्ञ कुछ जिलों के बंजर बनने की चेतावनी दे रहें है लेकिन फ़सल में बदलाव के प्रयास सफल नही हो रहे। शहरों की हालत बुरी है और वह महास्लम बनते जा रहे हैं। हमारे युवाओं के दिमाग़ में केवल कैनेडा हैं। उन्हे यहाँ भविष्य नजर नही आता जो हालात के प्रति बड़ा अविश्वास दर्शाता है। नशा चारों ओर फैला है। जो नशा करते है या छोटे मोटे विक्रेताओं को तो पकड़ा जाता है पर जो किंगपिन है उन्हे पकड़ने की कोशिश नही की जाती। पाकिस्तान शरारत का प्रयास करता रहता है। ड्रोन से हथियार गिराने के कई मामले हैं। पर ऐसा नेतृत्व दूर दूर तक नजर नही आता जो पंजाब को उभार सके। कोई नही है जो जड़ता के दलदल से निकाल सके। विकल्पहीनता की निराश और बेबस स्थिति बनती जा रही है। चुनाव भी कुछ तय न कर सकेंगे क्योंकि सम्भावना है कि शायद किसी को भी बहुमत न मिले। श्रीमान राहुल गांधी की अदूरदर्शिता ने पंजाब को और उलझा दिया है। जो अनिश्चित स्थिति बनती जा रही है उस पर तो कहा जासकता है,
ग़ैर मुमकिन है कि हालात की गुत्थी सुलझे
अहले दानिश ने बहुत सोच कर उलझाई है