यह सवाल मैं नही कर रहा, पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रधान सुनील जाखड़ ने पूछा है कि पंजाब में आख़िर सरकार किसकी है? उन्होने स्पष्ट तो नही किया पर पूछ वह यह रहें हैं कि मुख्यमंत्री कौन हैं, चरणजीत सिंह चन्नी है या प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिदधू? वैसे तो दोनों के अस्थिर रिश्तों को लेकर बहुत से सवाल उठते हैं पर नवीनतम मामला पंजाब के पूर्व एडवोकेट जनरल एपीएस देयोल को लेकर है जहां मुख्यमंत्री ने प्रदेश अध्यक्ष के दबाव के आगे घुटने टेक दिए और एक क़ाबिल अफ़सर को हटा दिया। इसी पर जाखड़ ने सीएम को ‘समझौतावादी सीएम’ कह दिया। चन्नी देयोल को हटाना नही चाहते थे पर सिद्धू ने इतना दबाव डाला कि आख़िर में समर्पण कर गए और यह प्रभाव दे गए कि सिद्धू उन्हे नचा रहें हैं। संविधान का अनुच्छेद 164 प्रदेश में मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद की बात कहता है जिन पर प्रदेश चलाने की ज़िम्मेवारी आती है। वह यह कहीं नही कहता कि प्रशासनिक निर्णय पार्टी अध्यक्ष लेंगे। यह तो कम्युनिस्ट प्रणाली है जहाँ पार्टी का महासचिव राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से सुप्रीम होता है। रूस और चीन इसके उदाहरण है। सोनिया गांधी अवश्य मनमोहन सिंह की सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाने की कोशिश करती रही पर सार्वजनिक तौर पर उन्होने कभी भी प्रधानमंत्री के पद की शान में गुस्ताखी नही की पर यहाँ तो सिद्धू खुलेआम कह चुकें हैं कि ‘नशे के सौदागरों पर कार्रवाई से हाथ पाँव काँपते है तो सरकार मुझे दे दो’। जब प्रदेश सरकार ने बिजली 3 रूपए सस्ती की तो प्रदेश अध्यक्ष ने इसे महज़ ‘लॉलीपॉप’ करार दिया। कोई और प्रदेश अध्यक्ष होता तो इस कटौती का खूब प्रचार करता पर सिद्धू चन्नी को कोई श्रेय नही देना चाहते। अब फिर सिद्धू ने ट्रिब्यून के साथ एक इंटरव्यू में कहा है, “ मेरा पंजाब के पुनरूत्थान का मिशन जमीन पर परिणाम दिखाने लग पड़ा है क्योंकि चरणसिंह चन्नी के नेतृत्व वाली सरकार ने मेरे 13- सूत्री कार्यक्रम पर अमल करना शुरू कर दिया है”। अर्थात सब कुछ ‘मैं’ और ‘मेरा’ है। चन्नी सरकार अगर कुछ ग़लत करेगी तो उनके खाते में जाएगा, पर अगर अच्छा करेगी तो श्रेय नवजोत सिंह सिद्धू को मिलना चाहिए !
इस बार संक्षिप्त विधानसभा अधिवेशन में दोनों चन्नी और सिद्धू एक दूसरे की तारीफ़ करते नजर आए और दोनों ने इकट्ठा विपक्ष के हमले का सामना किया। जहाँ सिद्धू ने चन्नी के प्रति अच्छी बातें कहीं वहां चन्नी ने भी कई बार ‘प्रधान साब’ का ज़िक्र किया। सिद्धू ने ख़ुद को गांधी परिवार का सिपाही ज़रूर कहा है पर अब तक तो परिवार भी समझ गया होगा कि यह कहना अर्थहीन है, समय के अनुसार वह कुछ भी कह सकतें है, किसी की भी प्रशंसा कर सकते हैं और किसी को भी रगड़ा लगा सकतें हैं। अमरेन्द्र सिंह का उन्होने जो हुलिया बिगाड़ा है वह हमारे सामने ही है। चननी और सिद्धू में यह जो जुगलबंदी देखने को मिल रही है यह ज़्यादा टिकाऊ रहने वाली नही है। एक, सिद्धू की नजर चन्नी की कुर्सी पर है। उन्होने इतनी मेहनत की, इतने पैंतरे बदले, अमरेन्द्र सिंह जैसे लोगों से बैर लिया, यह चन्नी को बड़ी कुर्सी पर स्थाई तौर पर बैठाने के लिए नही था। राजनीति में इतना कुछ दाव पर होता है कि कोई किसी पर मेहरबानी नही करता। सिद्धू की नजर चुनाव के बाद सीएम बनने पर है और यह महत्वकांक्षा टिकट वितरण और नए नेता के चुनाव के समय ज़रूर ज़ाहिर होगी। सिद्धू को तब नियंत्रण में करना मुश्किल होगा। विधान सभा में अचानक अमरेन्द्र सिंह और डा. मनमोहन सिंह की तारीफ़ कर सिद्धू ने इशारा दे ही दिया है।
सिद्धू की दूसरी बड़ी समस्या है कि चरणजीत सिंह चन्नी धीरे धीरे पर निश्चित तौर पर अपनी स्थिति मज़बूत करते जा रहे है। उनकी छवि एक मधुर भाषी नम्र और सादे व्यक्ति की है जिसने विपरीत परिस्थिति का सामना किया और अपनी जगह बना रहें हैं। पंजाब दो धनाढय परिवारों के शासन से तंग आ चुका है। महाराजा अमरेन्द्र सिंह और मालदार बादल परिवार के सामने चरणजीत चन्नी आम आदमी लगते हैं। उनकी बढ़ती लोकप्रियता न केवल विपक्ष बल्कि सिद्धू जैसे पार्टी के महत्वकांक्षी नेताओं के लिए भी खतरा है जो उन्हे टैमपरेरी समझते थे। 33 प्रतिशत दलित वोट का झुकाव तो चन्नी की तरफ है ही पर बाकी पंजाबी भी इन्हें सही विकल्प समझने लगे हैं। पंजाब सामंतवादी विशेषाधिकार सम्पन्न रईस परिवारों से छुटकारा चाहता हैं। सीएम चन्नी जो पहले से अधिक आक्रामक नजर आ रहे है ने तो सीधा आरोप लगाया है कि अमरेन्द्र सिंह और बादल परिवार ‘101 प्रतिशत’ आपस में मिलें हुए हैं’ और ‘राजवाड़ा शाही’ एक दूसरे के हित की रक्षक हैं। चन्नी आम आदमी के मुख्यमंत्री बन कर उभर रहे हैं जिससे आम आदमी पार्टी और बसपा जैसी पार्टियों के लिए भी समस्या खड़ी हो रही है। विधानसभा अधिवेशन के दौरान आप के दो विधायकों का कांग्रेस में शामिल हो जाना बताता है कि चन्नी वहां भी घुसपैंठ करने में सफल रहें हैं। आप विधायक जगतार सिंह जग्गा तो अधिवेशन की कार्रवाई के बीच चन्नी को जप्फा डाल सतारूढ बैंचों पर जा बैठे थे। आप की यह समस्या भी है कि उनकी राजधानी दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है जहाँ यमुना सफ़ेद झाग से भरी है इसलिए उनका शासन अब किसी के लिए आकर्षक मॉडल नही है।
चर्चा है कि आप के तीन और विधायक कांग्रेस में शामिल होने वाले हैं। आम आदमी पार्टी ने जो ज़मीन हासिल की थी उसे खो रहे लगतें हैं। बड़ा कारण है कि अरविंद केजरीवाल लगाम ढीली करने को तैयार नही और दिल्ली से पंजाब को चलाने की कोशिश कर रहें है जिसे लेकर पंजाब युनिट में बेचैनी है। बहुत लोग इसी कारण छोड़ गए हैं या छोड़ रहें हैं। पार्टी के पास 17 विधायक थे पर अब व्यवहारिक तौर पर 11 ही रह गए हैं। पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न घोषित करना भी मज़ाक़ का विषय बन रहा है। केजरीवाल ने कहा था कि वह ऐसा ‘सिख फेस’ देंगे जिस पर पंजाब गर्व करेगा। पहले तो हैरानी है कि वह साम्प्रदायिक कार्ड खेलने का प्रयास कर रहें हैं। दूसरा, यह ख़ूबसूरत ‘फेस’ है कहाँ ? क्या किसी मैट्रोमोनियल कॉलम में इस की तलाश करनी पड़ेगी ? भगवंत मान भी चिढ़े हुए हैं। अरविंद केजरीवाल का बिक्रम सिंह मजीठिया से माफी माँगना भी पसंद नही किया गया। हिन्दू वोटर पार्टी से दूरी बनाए हुए है। पर अब असली धक्का चरणजीत सिंह चन्नी के सीएम बनने से लगा है क्योंकि जो वोटर अमरेन्द्र सिंह और बादल का विकल्प चाहते थे उन्हे चन्नी में ज़मीन से जुड़ा ‘आम आदमी’ मिल गया है।
12 फ़रवरी 1997 को जब प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री बने (वह इससे पहले भी दो बार सीएम बन चुके थे) से लेकर 20 सितम्बर 2021 जब चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने, के साढ़े 23 वर्ष तक केवल दो परिवारों, बादल और अमरेन्द्र सिंह का ही शासन रहा है। लगभग आधा आधा। अब लोग बदलाव चाहते है इसीलिए अमरेन्द्र सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस को अधिक समर्थन मिलता नजर नही आ रहा। यही कारण भी है कि भाजपा हाईकमान भी बहुत उत्साहित नही लगता। चन्नी के आने के बाद ज़मीन खिसकती लगती है और कैप्टन का आधार कमजोर हो रहा है। वह राष्ट्रवादी नेता है और राष्ट्रीय हित में उनकी बात महत्व रखती है पर वोट नही मिलेंगे। शुरू में जो प्रभाव था कि वह कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर देंगे वह हल्का पड़ता जा रहा है। कैप्टन का कहना है कि उनके पास 30 कांग्रेस विधायकों के नाम हैं जो रेत माफिया से जुड़ें हैं। यह डरा कर विधायकों को साथ रखने का दयनीय प्रयास है। सीधा सवाल है कि अगर आपके पास नाम थे तो सीएम रहते कार्रवाई क्यों नही की? बेहतर होता कि इस बार वह चुनाव न लड़ते और इज़्ज़त के साथ रिटायर हो जाते अब तो वह अधिक और अधिक शेक्सपीयर के ट्रैजिक हीरो नजर आने लगे हैं।
लेकिन इस वक़्त कहानी न अमरेन्द्र सिंह, न सुखबीर बादल , न आप और न ही नवजोत सिंह सिद्धू की लगती है। चरणजीत सिंह चन्नी नवजोत सिंह सिद्धू के साए से बाहर आ रहें हैं और स्पष्ट कर रहें है कि वह किसी के इशारे पर नाचने वाले नही। जिस तरह मंत्री राजा वड़िंग को ट्रांसपोर्टर माफ़िया को सीधा करने की छूट दी गई है और जिस तरह महँगे बिजली के समझौते रद्द किए जा रहे है उससे माहौल बदला है। लेकिन चुनौती भी बड़ी है। आर्थिक हालत ख़स्ता है और नए सीएम की घोषणाओं से 9000 करोड़ रूपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जिस पर नवजोत सिंह सिद्धू का कहना है कि गृहयुद्ध शुरू हो सकता है। गृहयुद्ध? अगर वह कहते कि प्रदेश दिवालिया हो जाएगा तो समझ आता है गृहयुदध की बात कह कर तो सिद्धू आतंक फैला रहे है। कौन किस से भिड़ेगा? सिद्धू नही चाहते कि चन्नी टिक जाऐं इसलिए रोज़ाना सवाल उठा कर उन्हे अस्थिर रखना चाहतें हैं। और भी बड़ी समस्याओं हैं। बेअदबी के मामले को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना है। पंजाब के कुख्यात रेत, ड्रग और ट्रांसपोर्टर माफ़िया से भी जूझना है जिसका काफ़ी हिस्सा उनकी अपनी पार्टी में भी मौजूद है। रेत का रेट 5.50 रूपए किया गया है पर अभी भी 22 रूपए क्यूबिक फ़ुट बिक रही है। यह न हो कि सारे निहित स्वार्थ उनको ख़िलाफ़ इकटठे हो जाऐ। पर यह आगे कि बात है, फ़िलहाल तो लोग संतुष्ट हैं कि कुछ बदला है और दो परिवारों के शासन से मुक्ति मिल रही है। दलित परिवार में पैदा हुए और एलएलबी तथा एमबीए पास करने वाले चन्नी पंजाब की राजनीति के सरप्राइज़ पैकेज हैं। सुनिल जाखड़ कुछ भी कहें यह अब चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार नजर आती है चाहे उन्हे झटके मिलते रहतें हैं। जनता का दबाव उनके पक्ष में है इसलिए आशा है कि पार्टी के अन्दर उनके विरोधी भी लाईन पर आजाऐंगे। कुछ समझ गए कुछ समझ जाऐंगे।