पंजाब की राजनीतिकी नई बिसात, Punjab: New Political Chessboard

 चरणजीत सिंह चन्नी और भगवंत मान को मिली प्रमुखता से पंजाब की राजनीति में एक नए युग की शुरआत हो रही है। दशकों के बाद सामंती, ज़मीनदार उच्चवर्ग का पंजाब की राजनीति पर शिकंजा ढीला पड़ गया है और चाहे अभी भी बादल,रंधावा, सिद्धू,बाजवा जैसे नेता प्रमुख है पर पहली बार सत्ता उनके हाथ जा सकती है जिन्हें आम आदमी ही कहा जाएगा। अमरेन्द्र सिंह और बादल परिवार दोनो उच्च जट्ट सिख वर्ग का ही प्रतिनिधित्व करते रहे और उनके हितो पर पहरा देते रहे।अब यह बदल सकता है। कल को कौन सीएम बनता है या नही, किसी की सरकार बनती भी है कि नही या लटकती विधानसभा आजाती हैकहा नही जा सकतापर जो भी सीएम बनेगा  उसे वह पंजाब मिलेगा जो अपना प्रभुत्व और अपनी विख्यात उर्जा खो बैठा है। आज यह वह प्रांत है जिसकी राजनीति अस्थिर है, जो क़र्ज़ में बुरी तरह डूबा हुआ है, जिसका सीमित हिस्सा ही रईस है,जहाँ बहुत असमानता है, जहाँ बेरोज़गारी की दर देश की दर से अधिक है, प्रति व्यक्ति आय में जो हिमाचल और हरियाणा से पिछड़ रहा है, और जिसकी औलाद कैनेडा या दूसरी जगह भागने के लिए हर वक़्त बैग तैयार बैठी रहती है। लोकप्रिय कवि धनी राम चातरिक ने कभी कहा था, ‘पंजाब करां की सिफ़त तेरी’। दुख की बात है कि यह वह पंजाब नही रहा। बाकी कसर नशे ने पूरी कर दी।

चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम फेस बना कर कांग्रेस ने बहुत बड़ा कदम उठाया है। अगर वह सीएम बन गए तो यहाँ पहले दलित मुख्यमंत्री होंगे जहाँ 32 प्रतिशत से अधिक दलित जनसंख्या है।इससे समाजिक तौर पर पिछड़े वर्ग में जोश भरेगा। कांग्रेस ने दिलेरी दिखाते हुए पंजाब और उसके बाहर दलित सशक्तिकरण का संदेश दिया है जिसका पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर फ़ायदा हो सकता है। 2019 के चुनाव में यूपीए को केवल 26 प्रतिशत एससी वोट मिले थे जबकि एनडीए को 41 प्रतिशत मिले थे। चन्नी पढ़े लिखें हैं और उन्होने लॉ और एमबीए किया हुआ है और आजकल पीएचडी कर रहें हैं। उनका कहना है कि उन्होने ओटों रिक्शा भी चलाया हुआ है। पर तब से लेकर उन्होने बहुत तरक़्क़ी की है जो इस बात से पता चलता है कि उन्होने 8 करोड़ रूपए की संपत्ति का शपथ पत्र दायर किया है। वह पंजाब की राजनीति के ‘डार्क हार्स’ निकले हैं। दूसरी पार्टियाँ दलित को उपमुख्य मंत्री बनाने का ही वादा कर रही थीं कि कांग्रेस ने बड़ा कदम उठा कर दलित वोट जो बसपा के कमजोर होने  के बाद भटक रहा था को अपनी तरफ कर लिया है। डेरा सचखंड बल्लां मे उनका भारी स्वागत बता रहा है कि इस चयन को कितना पसंद किया गया है। यहाँ चन्नी डेरा प्रमुख की कुटिया में ज़मीन पर सोए थे।

पंजाब के जट्ट प्रभाव वाली राजनीति में पहला दलित सीएम पेश कर कांग्रेस ने बिसात बदलने की कोशिश की है पर देखना है कि जिस वर्ग से सत्ता छिन गई है उनकी प्रतिक्रिया क्या रहती है? जट्ट सिख पंजाब का 20 प्रतिशत है पर उनका प्रभाव उनके अनुपात से कहीं अधिक है पर वह लगभग हर पार्टी में बँटे हुए है। दूसरी तरफ पंजाब में 34 आरक्षित सीटे है और 20 और सीटें हैं जहाँ एससी संख्या 30 प्रतिशत से अधिक है। अगर सिद्धू बनते तो यह वोट दूर हो जाता। प्रधानमंत्री की फ़िरोज़पुर यात्रा के दौरान चन्नी का न झुकने वाला स्टैंड पसंद किया गया है। उनका कहना कि ‘मैं किसानों पर गोली नही चला सकता था’ ने उन्हे किसानों में लोकप्रिय बनाया है। उनके भांजे के घर पर छापे और वहां से 8 करोड़ रूपए बरामद से उन्हे धक्का पहुँचा है पर क्योंकि चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं पर छापे डालना आम हो गया है इसलिए अधिक नुक़सान नही हुआ। इसे एक दलित राजनेता के ख़िलाफ़ बदले की कार्यवाही बता कर वह सहानुभूति प्राप्त करने की कोशिश कर रहें हैं। पर यहाँ तक पहुँचना चन्नी के लिए आसान नही था। कदम कदम पर विरोध, विशेष तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा,का सामना करना पड़ा। चाहे लुधियाना की रैली में सिद्धू के बेलगाम वचनों को ‘इमोशनल’ कह राहुल गांधी ने परदा डालने की कोशिश की है, पर जब से सिदधू प्रदेश अध्यक्ष बने है वह बार बार मर्यादा की लक्ष्मणरेखा पार करते रहे हैं। वह तो यहाँ तक कह चुकें हैं कि सीएम पंजाब के लोग तय करेंगे, हाईकमान कौन होता है तय करने वाला? यह भी कह दिया कि ‘हमें ईमानदार नेता चाहिए’ और ‘टॉप के लोग कमजोर सीएम चाहते हैं’। बेहतर होता कि जब उन्होने सितम्बर में इस्तीफ़ा दिया था तो उसे स्वीकार कर लिया जाता।

लुधियाना की रैली में नवजोत सिंह सिदधू तथा सुनील जाखड़ की भारी प्रशंसा कर (कांग्रेस के हीरे) राहुल गांधी ने ‘ग़रीब घर के बेटे’  चन्नी को पार्टी का सीएम फेस घोषित कर दिया। इस से अनिश्चितता खत्म हो गई। यह राहुल गांधी का सबसे अहम फ़ैसला है।  चन्नी को सीएम चेहरा बना कर कांग्रेस फिर मुख्य खिलाड़ी बन गई है और एंटी इंकमबंसी से छुटकारा पा लिया है। पार्टी चुनाव जीतती है या नही  पर यह तय था कि अगर चन्नी की घोषणा न की जाती तो पार्टी हार जाती। अपने शांत और विनम्र स्वभाव से उन्होने संक्षिप्त समय में अपनी जगह बना ली है। देखने की बात रहेगी कि नवजोत सिंह सिदधू क्या कदम उठाते है पर उनके लिए भी विकल्प कम है। वह कह तो चुकें हैं कि वह ‘दर्शनी घोड़ा’ नही है, पर यह घोड़ा इतना चंचल है कि कोई और सवारी करने को तैयार नही होगा! हाँ, उनके पास अपने प्रोफैशन में लौटने का विकल्प है जहाँ उनकी पत्नि के अनुसार वह 25 लाख रूपया घंटा कमाते थे। चुनाव जीतने के लिए सिदधू को भी कड़ी मेहनत करनी पडं रही है क्योंकि वह चुनाव क्षेत्र से ग़ायब रहे और सीधा मुक़ाबला साधन सम्पन्न बिक्रमजीत सिंह मजीठिया से है।  पार्टी के अन्दर और बाहर विरोधी उनके ख़िलाफ़ एकजुट हो सकते हैं। उनके चुनाव क्षेत्र में मकबूलपुरा, वेरका और बटाला रोड जैसे क्षेत्र आतें है जो ड्रग्स के कारण बुरी तरह प्रभावित रहें हैं। सिदधू इनके बारे कुछ नही कर सके क्योंकि वह हर सीएम से झगड़ते रहें हैं।

भगवंत मान जो कॉमीडियन रहें हैं,ने कांग्रेस पर व्यंग्य कसते हुए कहा है कि यहाँ ‘बिट्टू दी रंधावा नाल नही बनदी, रंधावा दी बाजवा नाल नही बनदी, उस बाजवा दी तृप्त बाजवा नाल नही बनदी, बाजवा दी सिदधू नाल नही बनदी, अते सिद्धू दी किसे नाल नही बनदी’! बात बहुत ग़लत नही पर अगर मान कांग्रेस के अन्दर दरारों के भरोसे ही बैठे है तो वह बहुत ग़लतफ़हमी में हैं। बताया यह गया है कि उनकी पार्टी के अन्दर 93 प्रतिशत ने इन्हें समर्थन दिया है पर यह भी तो सच्चाई है कि केजरीवाल ने उन्हे बहुत देर लटकाए रखा और घोषणा तब की जब कोई और विकल्प नजर नही आया। वह पहली पसंद नही थे। बड़ी समस्या अपनी विश्वसनीयता कायम करने की है कि वह प्रशासन चलाने की क्षमता रखतें हैं। अभी तो उनका सहमा चेहरा उस हिरण की तरह लग रहा है जिसका अचानक कार की हैडलाइट से सामना हो गया हो। अपनी अत्याधिक शराब पीने की लत के बारे उनका कहना है कि वह उबर चुकें है। 2019 में बरनाला की रैली में केजरीवाल ने कहा था कि‘पंजाब के लोगो के लिए भगवंत मान ने शराब पीनी छोड़ दी है’। क्या खूब है कि शराब छोड़ने पर भी लोगो पर मेहरबानी की गई है!

लेकिन मान की तीन बड़ी  समस्या है। एक,आप के पास अनुभवी लोगो की कमी है। ख़ुद मान भी इसी श्रेणी में आतें हैं। दूसरी समस्या अरविंद केजरीवाल हैं। पंजाब की दीवारें ‘इक मौका केजरीवाल नू’ से भरी हुई है।अब ज़रूर संशोधन किया जा रहा है कि ‘मौक़ा भगवंत मान अते केजरीवाल नू’ पर मान को केजरीवाल के साए में काम करना पड़ेगा।  केजरीवाल ख़ुद पीछे हटने को तैयार नही और अपने नाम पर वोट माँग रहे है। पर अगर पीछे से केजरीवाल ने ही सरकार चलानी है तो भगवंत मान किस मर्ज़ की दवा हैं? केजरीवाल दिल्ली मॉडल की बात कर रहें है पर दिल्ली और पंजाब में बहुत फ़र्क़ है। तीसरी समस्या हिन्दू वोट है जो पिछली बार आप को मिले एनआरआई समर्थन और उस चुनाव के दौरान केजरीवाल के एक उग्रवादी के घर रूकने की घटना  के कारण अभी भी पार्टी को अविश्वास से देखते हैं। दिलचस्प  है कि जिस पार्टी ने बहुत पहले यह घोषणा की थी कि वह पंजाब को सीएम के लिए ‘सिख फेस’ देंगे,को अब परेशानी है कि कांग्रेस ने हिन्दू सुनील जाखड़ को सीएम का चेहरा क्यों घोषित नही किया? केजरीवाल को आपति है कि, ‘कांग्रेस लोगो से कह रही है कि चन्नी या सिद्धू के बीच चुनाव करो। कांग्रेस ने सुनील जाखड़ का नाम शामिल क्यों नही किया?’ पार्टी के राघव चड्ढा तो और भी आगे बढ़ गए और उनकी शिकायत है कि सुनील जाखड़ को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा गया है क्योंकि ‘वह हिन्दू हैं’। विडम्बना जिस पार्टी ने सबसे पहले साम्प्रदायिक कार्ड खेला था अब कांग्रेस की ‘गहरी साम्प्रदायिक राजनीति’ की शिकायत कर रही है!

लेकिन यह राजनीति है!यहाँ हर तरह के राजनीतिक तमाशे की गुंजाइश है।  भगवंत मान का यह प्लस पौयंट है कि वह पूरी तरह से ईमानदार है। सहज और साधारण है और दस साल राजनीति के शिखिर पर रहने के बावजूद एक किराए के घर में रहतें हैं। ऐसे राजनेता विरले ही मिलेंगे। उनका कहना भी है कि उन पर ईडी या किसी एजंसी का छापा नही पड़ सकता क्योंकि उनके पास कुछ भी नही है।आप को यह भी फ़ायदा है कि पंजाब के लोग दोनों बड़ी पार्टियों, कांग्रेस और अकाली दल, से ख़ुश नही है पर किसी पार्टी के पक्ष में निर्णायक फ़ैसला देंगे इसकी सम्भावना कम नजर आती है। केजरीवाल का कहना है कि उन्होने दिल्ली के हर सरकारी दफतर में अम्बेदकर और भगत सिंह का चित्र लगाने को कहा है। यह तो अच्छी बात है पर उनका यह भी कहना था कि वह रोज़ाना अम्बेदकर की पूजा करते हैं। इस पर शायर के साथ कहने को दिल चाहता है‘कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता’!

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About Chander Mohan 707 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.