
पंजाब के चुनाव ने अरविंद केजरीवाल को राष्ट्रीय मंच का बड़ा खिलाड़ी बना दिया है। जैसे कभी भाजपा थी आप भी नई चीज़ है, अतीत की कोई गंदगी उससे नही जुड़ी, कोई पुराने असबाब का बोझ नही है। कांग्रेस के पतन के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि एक दिन आप कांग्रेस की जगह ले सकती है, और भाजपा का राष्ट्रीय विकल्प बन सकती है। इस चर्चा को फैलाने में आप के नेतृत्व का भी बड़ा हाथ है। हर हार के बाद यही बताया जा रहा है कि कांग्रेस मंथन करेगी, पर कुछ नही बदला न बदलेगा। कांग्रेस और अकाली दल का पतन समानांतर चल रहा है। परिवारवाद ने दोनो पार्टियों को तबाह कर दिया जो कभी राजनीतिक दल से भी अधिक एक आन्दोलन थी। प्रकाश सिंह बादल का लांबी से हारना मामूली घटना नही है। हरियाणा के चौटाला परिवार को भी सावधान हो जाना चाहिए। जो दशकों से विशेषाधिकार सम्पन्न राजनीतिक परिवार है उनके लिए खतरे की घंटी जोर जोर से बज रही है। अभी यह उत्तर भारत तक सीमित है पर अगर दक्षिण भारत के परिवारवादी दल समय के अनुसार बदले नही तो वह भी इस बदलाव की तीव्र इच्छा के शिकार हो सकतें हैं।
राजनीति में ख़ालीपन नही रह सकता इसलिए कांग्रेस से बाहर कई नेता नरेन्द्र मोदी और भाजपा का विकल्प बनने के लिए कोशिश कर रहें है। ममता बैनर्जी बहुत सक्रिय है। तेलंगाना के सीएम केसीआर भी विपक्ष को इकट्ठा करने की कोशिश कर रहें है। शरद पवार की भी महत्वकांक्षा है पर आयु और सेहत शायद साथ न दें। इस क़तार में अब अरविंद केजरीवाल भी विधिवत शामिल हो गए हैं। उनके समर्थक तो अभी से लाऊडस्पीकर पर कह रहें हैं कि 2024 में वह नरेन्द्र मोदी को चुनौती देंगे। अरविंद केजरीवाल के पक्ष में बहुत कुछ है, पर बहुत कुछ ऐसा भी है जो उनके रास्ते में रूकावटें भी खड़ी कर रहा है। इसलिए मेरा मानना है कि 2024 उनके लिए असम्भव है पर अगर वह बाधाओं पर पार पा लें तो 2029 तक उनकी स्थिति मज़बूत हो सकती है। यह बड़ी बाधाऐं तीन हैं:-
1.विपक्ष: भाजपा विरोधी नेताओं की पहले ही भीड़ है। पुराने नेता नए को घुसने नही देंगे। ममता बैनर्जी जैसे जो पहले ही राहुल गांधी को चुनौती दे रहे हैं वह केजरीवाल को नेता क्यों स्वीकार करेंगें? ले दे कर केजरीवाल के पास दिल्ली और पंजाब है जहाँ से कुल 20 लोकसभा सीटें हैं जबकि केवल पश्चिम बंगाल से 42 सीटें हैं। अगर 2024 में तृणमूल कांग्रेस का वहां अच्छा प्रदर्शन रहता है तो उन्हे पीछे करना मुश्किल होगा। केजरीवाल को फ़ायदा है कि वह हिन्दी भाषी क्षेत्र से हैं जबकि ममता बैनर्जी की हिन्दी अटपटी लगती है। केजरीवाल राहुल गांधी नही इसलिए व्यक्तिगत तौर पर उन्हे घेरना मुश्किल है पर राष्ट्रीय नेता बनने के लिए यह ही काफ़ी नही। जिस पार्टी को उत्तर प्रदेश और उतराखंड के चुनाव में शून्य मिला हो, जिसकी बिहार और महाराष्ट्र में कोई उपस्थिति न हो, दक्षिण भारत जिससे दूर हो, दिल्ली में भी लोकसभा की एक सीट जीत न सकी हो, देश भर में पार्टी का संगठन न हो, उसके नेता को बहुत जल्द उपर तक पहुँचने का ख़्वाब नही देखना चाहिए।
2. भाजपा: केजरीवाल और आप जैसे जैसे कदम बढ़ाने की कोशिश करेंगे भाजपा से विरोध मिलेगा और केन्द्र सरकार से असहयोग।चंडीगढ़ के कर्मचारियों को सैंट्रल पूल में ला कर केन्द्र ने नई पंजाब सरकार को रक्षात्मक बना दिया गया है। केन्द्र दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक करने जा रही है और इनके चुनाव पीछे डाल दिए गए हैं। दिल्ली तो छोटा प्रदेश है जो आर्थिक तौर पर सुदृढ़ है पर पंजाब तो बुरी तरह से घाटे में चल रहा प्रदेश है। इसको केन्द्र के बड़े सहयोग की ज़रूरत है पर उस पार्टी की सरकार को यह कैसे मिलेगा जिसका नेता केन्द्र को चिढ़ाने का कोई मौक़ा नही जाने देता? हाल ही मे जब दिल्ली सरकार से माँग की गई कि कशमीर फाईलस को टैक्स फ़्री किया जाए तो केजरीवाल ने विधान सभा में जवाब दिया कि “ फ़्री करने का इतना ही शौक है तो विवेक अग्निहोत्री को कहो कि यूट्यूब में डाल दे सब फ़्री फ़्री हो जाएगा”। बात ग़लत भी नही पर निश्चित तौर पर उस पार्टी के नेतृत्व को पसंद नही आई होगी जो कश्मीरी पंडितों की त्रासदी को इस फ़िल्म के माध्यम से बड़ा मुद्दा बना रही है। एक और बात। जो कह रहें है कि कशमीर फाईलस बनाई ही क्यों गई फ़लाँ ‘फ़ाईल’ क्यों नही बनाई गई, वह कश्मीरी पंडितों की त्रासदी को छोटा कर रहें हैं। यह त्रासदी सस्ती बहस का मुद्दा नही है।
3.पंजाब: पंजाब ने अरविंद केजरीवाल को बड़ा खिलाड़ी बना दिया है पर वह यहां दलदल में फँस भी सकते है क्योंकि यह दिल्ली नही है। वैसे भी यह पंजाब का नतीजा है, देश का नही। यहां ऐसा कोई बहाना मौजूद नही कि ‘एलजी साहिब हमे काम नही करने देते’। शुरू में ही प्रधानमंत्री से मिल कर भगवंत मान द्वारा केन्द्र से 1 लाख करोड़ रूपए की माँग करना बताता है कि मर्ज़ कितना गहरा है। प्रदेश पर पौने तीन लाख करोड़ रूपए का क़र्ज़ है। उपर से जो मुफत करने की घोषणाऐं की गई है उनसे लगभग 20000 करोड़ रूपए का अतिरिक्त ख़र्चा पड़ेगा। केन्द्र सरकार जायज़ पूछ सकती है कि अगर मुफत बाँटने की स्थिति में हो तो हमसे पैसे क्यों माँग रहे हो? चुनाव से पहले केजरीवाल ने मुस्कराते हुए कहा था कि ‘मैंने बड़ा होमवर्क कर लिया है। 34000 करोड़ रूपए भ्रष्टाचार खत्म करने से और 20000 करोड़ रूपए रेत की चोरी बंद करने से आऐंगे’। फिर बड़े गर्व के साथ उनका कहना था कि ‘मैं 54000 करोड़ का इंतेजाम कर अभी से बैठा हूं’। अगर 54000 करोड़ रूपए का इंतेजाम वह पहले कर चुकें हैं तो फिर केन्द्र से माँग क्यों की जा रही है?
पंजाब को नई सोच की ज़रूरत है, मुफत बांटने की नही, विशेषतौर पर जब जेब में पैसे न हों। अटल बिहारी वाजपेयी ने सही कहा था, ‘जनता को कुछ मुफ्त न दो। केवल शिक्षा, न्याय और इलाज मुफ्त चाहिए। मुफ़्तख़ोरी लोगो को और देश को कमजोर बनाती है’। अफ़सोस है कि सब पार्टियों इधर की ओर चल रही है पर पंजाब जैसे प्रदेश के लिए तो यह और घातक होगी जहाँ भारी क़र्ज़ा है। नए सीएम ने 25000 नौकरियाँ पक्की करने की घोषणा की है। अच्छी बात है क्योंकि यह ग़रीब कई सालों से धक्के खा रहे थे पर इन्हें खपाने के लिए साधन कहा हैं जबकि पहले ही वेतन,पैंशन, भत्ते देना सरकार के लिए बड़ी समस्या है?
पंजाब पर शासन करना आसान नही है। बार्डर स्टेट है, पाकिस्तान शरारत करता रहता है। यहां 8 लाख बेरोज़गार हैं और बेरोज़गारी की 7.9 प्रतिशत की दर राष्ट्रीय दर से अधिक है। लोग ज़मीनें बेच बेच कर बच्चों को बाहर भेज रहे है। अरबों रूपए ऐसे बाहर जा रहा है किसी सरकार ने ध्यान नही दिया। एक सर्वेक्षण के अनुसार ग्रैजुएट और उच्च शिक्षा प्राप्त 16 प्रतिशत युवा नौकरी की तलाश में भटक रहें हैं। भ्रष्टाचार, केन्द्र की बेरुख़ी, बार बार हो रहे आन्दोलन ने न केवल निवेश को रोक दिया है, बल्कि उद्योग यहां से भाग रहा है। उद्योग वहां विकसित नही होता जहाँ बार बार रेल और सड़क यातायात रोका जाता है। बड़े औद्योगिक घरानों ने यहां से अपने हैडक्वार्टर निकाल लिए हैं। हीरो साइकल इसकी मिसाल है। बटाला और गोबिन्दगढ़ का उद्योग आधा रह गया। पंजाब की 131 आईटीआई में से 40 बंद हो चुकें हैं क्योंकि पढ़े लिखें की माँग कम हो गई है। बेरोज़गारी के साथ नशे का मुद्दा जुड़ा है जिसने असंख्य परिवार तबाह कर दिए। पीजीआई की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब का हर छठा व्यक्ति नशे का आदी है। कोई गाँव या शहर अछूता नही है। पुलिस, प्रशासन और राजनेताओं के एक वर्ग के संरक्षण के बिना यह सम्भव नही हो सकता। माफ़िया राज और उस गठजोड़ को तोड़ने के लिए बड़े दम की जरूरत है।
यहां हताशा का आलम यह है कि जवान होते ही यहां की संतान विदेश भागने की कोशिश करती है। जब वह घर छोड़ती है तो शुक्र मनाती है। कृषि लाभदायक नही रही और ग़लत फ़सलों के कारण भूजल नीचे जा रहा है। फ़सल के बदलाव का हर प्रयास असफल रहा है। प्रति व्यक्ति आय हिमाचल, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल तमिलनाडु से कहीं कम है। अरूणाचल प्रदेश भी आगे है। जो कभी देश का नम्बर 1 प्रदेश था वह 15 वें नम्बर पर है। जब पी वी नरसिम्हा राव से एक बार पूछा गया कि देश के आगे सबसे बड़ी समस्या क्या है, तो उनका जवाब था, ‘समस्या? यहां तो समस्या का ढेर है’। यही हालत पंजाब को लेकर केजरीवाल के लिए है। मुफत सुविधाएँ बांटना समस्या का इलाज नही है। इससे मर्ज़ बढ़ेगा क्योंकि विकास और धीमा पड़ जाएगा।पंजाब तो क़र्ज़ा चुकाने के लिए मार्केट से उधार ले रहा है। भ्रष्टाचार एकदम खत्म नही होगा इसकी जड़े बहुत गहरी है। हाँ, कम ज़रूर हो सकता है।
इस स्थिति का सामना करने के लिए गम्भीरता की ज़रूरत है। 2024 की महत्वकांक्षा को एक तरफ रख पंजाब की हालत सही करने का प्रयास होना चाहिए। पंजाब से बाहर के अख़बारों मे पंजाब सरकार के विज्ञापन प्रकाशित करवाना बताता है कि सारा ध्यान प्रचार पर है, फ़िज़ूलखर्च तो यह है ही। अभी तक अरविंद केजरीवाल जहाँ पहुँचे है वह दिल्ली मॉडल की सफलता को बेच कर पहुँचें है। आगे उनका सफ़र इस बात पर निर्भर करेगा कि कुछ वर्षों के बाद वह इसी तरह ‘पंजाब मॉडल’ पर गर्व कर सकेंगे या नही? जो दिल्ली में सम्भव हो सका वह जरूरी नही कि पंजाब में भी लागू हो सके।इसलिए जरूरी है कि वह 2024 के झंझट में न पड़ें और उसके आगे की सोचें। एक बार पंजाब का क़िला वास्तव में फ़तेह हो गया तो आगे का रास्ता समतल हो जाएगा। ‘होमवर्क’ की यह परीक्षा है।