पंजाब सरकार के लिए वेक अप कॉल, Wake Up Call For Bhagwant Mann

पिछले सप्ताह की पटियाला की घटनाएँ जितनी निन्दनीय है उतनी चिन्तनीय भी हैं। एक स्वयं नियुक्त शिवसेना नेता ‘खालिस्तान  विरोधी मार्च निकालता  है जिसका विरोध उग्रवादी सिख संगठन करतें है। प्रसिद्ध काली माता मंदिर के नज़दीक पुलिस की मौजूदगी में हिंसक टकराव होता है। सड़कों पर खालिस्तान के नारे लगाए जातें हैं।  दोनों तरफ़ से तलवारें चलाईं गईं। काली माता मंदिर जहां पटियाला के महाराजा नियमित माथा टेकने जाते थे, के परिसर में व्यापक तोड़फोड़ की गई। मंदिर पर पथराव किया गया।  जिन्होंने उपद्रव किया उन्होंने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि वह ऐसा करने जा रहें हैं पर प्रशासन सोया रहा यहाँ तक कि सामान्य बैरिकेडिंग भी नहीं की गई। अंत में पिस्टल और एके-47 से हवा में फ़ायरिंग की गई पर प्रदर्शनकारी पुलिस के सामने तलवारों से नाचते रहे। कथित सिखस फ़ॉर जस्टिस के प्रमुख आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 29 अप्रैल ‘खालिस्तान दिवस’ मनाने का एलान किया था। इसी के विरोध में शिव सेना बाल ठाकरे के उपाध्यक्ष हरीश सिंगला ने 17 अप्रैल को ‘खालिस्तान  मुरादाबाद’ मार्च निकालने की घोषणा की थी और सोशल मीडिया के द्वारा इसका प्रचार भी किया था।  सिंगला की घोषणा का विरोध उग्रवादी बलजिन्दर सिंह परवाना, जिसके ख़िलाफ़ पहले ही कई मामले दर्ज हैं,  ने 23 अप्रैल को दिया कि वह यह मार्च नहीं होने देगा। दोनों ने सोशल मीडिया में एक दूसरे को चैलेंज किया। अर्थात् टकराव से कई दिन पहले सरकार को जानकारी थी कि कुछ तत्व शरारत कर सकतें हैं पर सरकार और उसका ख़ुफ़िया विभाग सोए रहें। दोनों मार्च की अनुमति नहीं दी गई पर फिर भी दोनों सड़क पर उतर आए, हिंसक टकराव हुआ और मंदिर परिसर में उपद्रव किया गया। पंजाब के अल्पसंख्यकों में सारे घटनाक्रम, विशेष तौर पर मंदिर पर हमले, से घबराहट बढ़ी है। सिंगला  और बलजिन्दर सिंह परवाना को पकड़ लिया गया  हैं। पर नुक़सान तो हो गया।  गुरपतवंत सिंह पन्नू का पंजाब में कोई समर्थन नहीं, न ही कथित खालिस्तान का ही कोई मसला है। हरीश सिंगला जैसे लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए मसला उठा रहें हैं। पन्नू बार बार शरारत की कोशिश करता है पर कोई घास नहीं डालता। वह पैसे का  लालच दे युवाओं के भड़काने की कोशिश करता रहा है। यहाँ तक घोषणा कर दी कि 15 अगस्त को जो लाल क़िले पर खालिस्तान का झंडा लहराएगा उसे 5 लाख डालर दिए जाएँगे।  ऐसे तत्वों को नज़रअंदाज़ कर देना चाहिए पर  प्रशासन की कमजोरी के कारण उसे फिर प्रचार मिल गया है।

 बड़ा सवाल है कि अग्रिम सूचना के बावजूद  पंजाब का माहौल ख़राब करने का मौक़ा क्यों दिया गया? शान्ति की अपील करते हुए  मुख्यमंत्री भगवंत मान का कहना है कि पंजाब सीमा वर्ती  प्रांत है। यही तो सब कह रहें हैं पर यह देखते हुए भी आपकी सरकार गाड़ी चलाते वहील पर सोई क्यों पाई गई? यही चेतावनी तो अमरेन्द्र सिंह देते रहे कि पाकिस्तान की सीमा के कारण हमें बहुत चौकस रहना हैं पर 50 दिन पुरानी पंजाब सरकार घोर अकुशलता का परिचय दे गई है जिससे भविष्य को लेकर चिन्ता हो रही है। यहां तो निरंतर सतर्कता की ज़रूरत है।  हिन्दू सिख का कोई मसला नहीं पर ऐसे तत्व ज़रूर हैं जो शरारत करने की इंतज़ार में रहतें हैं। हमें दिल्ली माडल का झुनझुना दिखाया जा रहा है जबकि सरकार पहली परीक्षा में कानून और व्यवस्था को सम्भालने में असफल रही है। इस पर पुराना शे’र याद आता है,

                  निज़ामे मैकदा बिगड़ा है इस कदर साक़ी

                  कि जाम उनको मिला है जिन्हें पीना नहीं आता

पंजाब के लोगों ने बहुत उत्साह के साथ आप को वोट दिया था क्योंकि वह दोनों बड़ी पार्टियों कांग्रेस और अकाली दल से तंग आगए थे। पर  मुख्यमंत्री   असावधान नज़र आ रहें है।  पंजाब पर केन्द्रित होने की जगह ध्यान उस बात पर है जिसका पंजाबियों की ज़िन्दगी से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। चुनाव के दौरान ही जब ‘एक मौक़ा केजरीवाल नूं’ का नारा दिया गया तब ही आशंका थी कि सरकार को केजरीवाल रिमोट कंट्रोल से चलाएँगे। भगवंत मान और उनका सारा मंत्रीमंडल अनुभव हीन है। इसलिए अगर दिल्ली के सीएम से सलाह ली जाए तो बुरी बात नहीं पर प्रभाव यह मिल रहा है कि पंजाब की सरकार दिल्ली के इशारे पर चल रही है। अजीत अख़बार ने तो एक सम्पादकीय में इसे ‘सरकार-ए-दिल्ली’ कहा है। जिस तरह  पंजाब के उच्चाधिकारियों को दिल्ली बुला कर केजरीवाल ने उनकी क्लास ली उससे भी यहीं प्रभाव मिलता है पंजाब के सीएम की बेबसी के कारण केजरीवाल पंजाब को भी चलाना चाहतें हैं।

जब आलोचना शुरू हो गई तो दोनों सरकारों के बीच ‘ज्ञान आदान-प्रदान’ एमओयू कर लिया गया, जो ग़लत नहीं है पर पंजाबी किसी के अधीन चलने का विरोध करेंगे।  पंजाब और दिल्ली के बीच साँझ भी क्या है? खुद केजरीवाल पूरे सीएम भी नहीं प्रशासन को तो एलजी चलातें हैं, जबकि भगवंत मान संपूर्ण सीएम है। दिल्ली एक समृद्ध शहर है जबकि पंजाब पर पौने तीन लाख करोड़ रुपए का क़र्ज़ है। दिल्ली माडल यहाँ लागू हो ही  नहीं सकता। ‘मुहल्ला क्लिनिक’ की बहुत चर्चा रहती हैं पर पंजाब के ग्रामीण इलाक़ों में यह कैसे बनाएँ जाएँगे? शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली में बहुत काम हुआ है क्योंकि उनके पास भारी बजट है। दिल्ली में 1000 सरकारी स्कूल 1700 निजी स्कूल हैं जबकि पंजाब में 19000 सरकारी स्कूल हैं जिन्हें बहुत मुश्किल से चलाया जा रहा है। कई स्कूल कई कई साल से प्रिंसिपल के बिना चल रहे हैं क्योंकि पैसा नहीं है। एक समाचार के अनुसार नवांशहर, बंगा और बलाचौर के 25 सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में या टीचर नहीं है या एक टीचर है। ऐसे समाचार सारे पंजाब से मिल रहें हैं।  हायर एजुकेशन का अपना संकट है क्योंकि बच्चे विदेश भाग रहें हैं। हर यूनिवर्सिटी या कॉलेज में दाख़िला कम हो रहा है। प्रतिभा और पैसा दोनों का पलायन हो रहा है।जब तक यहां सही रोज़गार उपलब्ध नहीं होता यह पलायन नहीं रूकेगा।  भगवंत मान ने इसे रोकना का वायदा किया है पर यह रूकेगा कैसे?  दिल्ली अपने बजट का लगभग 25 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है पंजाब इससे आधा खर्च करता है। मुक़ाबला हो ही नहीं सकता।

 पंजाब की समस्या और हैं और बहुत हैं। बड़ी समस्या पैसे की है। कई बार सरकारी कर्मचारियों को वेतन  देने की समस्या आ जाती है। खेती लाभदायक नहीं रही। किसान आन्दोलन से असंतोष बढ़ा है। तेल और खाद की बढ़ती क़ीमतों ने खेती का संकट बढ़ा दिया है।  उपर से भीषण गर्मी पैदावार को प्रभावित करेगी जिसकी और समस्या होगी। उद्योग को यहां प्रोत्साहित नहीं किया जाता इसलिए वह भाग रहा है।  रोज़गार के साधन सीमित हो रहें हैं। भूजल का स्तर  नीचे जा रहा है जिसके कारण आगे चल कर बड़ा संकट आएगा।  फसल बदलने के प्रयास अभी तक सफल नहीं हुए। बिजली 300 युनिट मुफ़्त की जा रही है जबकि बिजली की कमी  से हाहाकार मचा हुआ है। विशेषज्ञ कह रहें हैं कि फ़्रीबीज़ से पंजाब की अर्थव्यवस्था और तेज़ी से नीचे गिरेगी।  ऐसा कर हिमाचल प्रदेश और गुजरात के वोटर को प्रभावित करने की कोशिश की जारही हैं पर पंजाब की आर्थिक स्थिति और कमजोर होगी। केन्द्र सरकार का अमरेन्द्र सिंह सरकार के प्रति सहयोगपूर्ण रवैया था,  भगवंत मान की सरकार के प्रति यह उदारता नहीं दिखाई जाएगी। उपर से पाकिस्तान, कैनेडा, अमेरिका में बैठे तत्व गड़बड़ करवाने का प्रयास करते रहते हैं, जैसे पटियाला  में होकर हटा है।पाकिस्तान से ड्रोन द्वारा हथियार, ड्रग्स और टिफिन बम गिराए जाने की घटनाओं हो चुकी हैं। पटियाला की घटना से एक रात पहले मलेरकोटला में खालिस्तान का झंडा लगाया गया। 

अर्थात् पंजाब को भी  पूरे समय और पूरा ध्यान की ज़रूरत है। अब तक तो यह प्रभाव मिलता है कि पंजाब के सीएम का इस्तेमाल केजरीवाल की महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए किया जा रहा है। विपक्ष को उन्हें कठपुतली कहने का मौक़ा मिल गया। पंजाब का पैसा दूसरे प्रदेशों में आप के बड़े बड़े विज्ञापनों पर खर्च किया जा रहा है।   पटियाला में इतना बड़ा टकराव हो गया क्योंकि कोई आदेश देने वाला नहीं था। अधिकारी फ़ैसले लेने से हिचकिचातें हैं। यह पुलिस की असफलता ही नहीं,राजनीतिक नेतृत्व की असफलता भी है। किसान संगठन वैसे ही किसी की नहीं सुनते।  हाईवे बंद करना आम हो गया है। अलका लाम्बा और कुमार विश्वास जैसे केजरीवाल के आलोचकों के खिलाफ पंजाब पुलिस की कार्रवाई भी कई सवाल छोड गई है। क्या पंजाब सरकार और पंजाब पुलिस केजरीवाल के विरोधियों के खिलाफ प्राक्सी वॉर लड़ेंगे? हमें  अरविंद केजरीवाल से नए और उदार राजनीतिक मॉडल की अपेक्षा है।

भगवंत मान ने पटियाला की घटना के लिए अकाली दल और भाजपा-शिवसेना को ज़िम्मेवार ठहराया है। पर सरकार आप की है, ज़िम्मेवारी आपकी बनती है। जैसे शहाब जाफ़री ने लिखा था,

               तू इधर उधर की न बात कर ये बता क़ाफ़िला कयूं लूटा

               मुझे रहज़नो से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है 

  आजकल सोशल मीडिया का जमाना है जो चुनौती को और गम्भीर बना देता है। बहुत लोग हैं जो इस सरकार को असफल देखना चाहतें हैं उन्हें मौका नहीं मिलना चाहिए क्योंकि यहाँ कांग्रेस और अकालीदल दोनों का एक्सपैरिमैंट फेल हो चुका है। मुख्यमंत्री को यहाँ टिक कर प्रशासन देना चाहिए। यह संतोष की बात है कि पटियाला बहुत जल्द सम्भल गया। यहाँ कोई साम्प्रदायिक मसला नहीं है। प्रसिद्ध गुरुद्वारा दुखनिवारण साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी प्रणाम सिंह ने सही कहा है कि सभी धर्म स्थल सम्माननीय हैं और कोई भी धर्म इनकी बेअदबी की इजाज़त नहीं देता। बहुत सिख काली माता मंदिर में माथा टेकने के लिए पहुँच रहे हैं। बाक़ी पंजाब ने भी संयम रखा है। कुछ तत्व शरारत करते रहतें है। आशा है कि सरकार बिना भेदभाव के इनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करेगी।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.