
श्रीलंका में फिर एमरजैंसी लागू कर दी गई है। अभूतपूर्व आर्थिक संकट और सरकार के खिलाफ बेक़ाबू होते जन विरोध के बीच सुरक्षा बलों को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। पूरे देश में कर्फ़्यू लगा दिया गया है लेकिन फिर भी लोग सड़कों पर हैं। पिछले सप्ताह ट्रेड यूनियन ने पूरे देश में हड़ताल रखी और छात्र संगठन देश की संसद के सामने धरना लगा कर बैठ गए थे कि संसद बदनाम राजपक्षे सरकार को हटाती क्यों नहीं? 28 दिन से प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति के कार्यालय के प्रवेश द्वार पर बैठे हैं कि राजपक्षे परिवार इस्तीफ़ा दे। लोग इतने दुखी हैं कि कई प्रदर्शनकारियों ने संसद की तरफ जाती सड़कों पर अंडरवियर लटका दिए कि ‘अब हमारे पास यही बचा है’। 1984 में आज़ाद होने के बाद श्रीलंका का यह सबसे बड़ा संकट है, गृहयुद्ध से भी बड़ा है। लोग राष्ट्रपति के आवास का घेराव कर चुकें हैं। प्रधानमंत्री के सरकारी आवास के अन्दर से गोली चलाई गई क्योंकि हज़ारों ने हमला कर दिया था, वह मुश्किल से जान बचा कर निकलें हैं।
क़र्ज़े के बोझ में दबे देश के वित मंत्री अली साबरी ने स्वीकार किया है कि ‘जितना चबा सकतें हैं उससे अधिक काट लिया है’। एक प्रकार से हालत है कि आमदंनी अठन्नी खर्चा रूपया ! उनकी सबसे बड़ी गैस कम्पनी के चेयरमैन डब्ल्यूएचके वेगापिताया का स्पष्ट कहना है कि ‘हम दिवालिया देश हैं’। अपनी संसद में साबरी ने बताया कि श्रीलंका के विदेशी मुद्रा के रिसर्व जो 2019 में 7 अरब डालर थे अब केवल 50 करोड़ डालर रह गए हैं। 2021 में कुल सरकारी आमदन 1500 अरब डॉलर थी जबकि खर्च 3522 अरब डालर था। वित्त मंत्री का कहना है कि अब सरकार आमदन से अढ़ाई गुना अधिक खर्च रही है। परिणाम है कि देश में अनाज से लेकर पेट्रोल से लेकर दवाइयों तक की भारी क़िल्लत है। सुबह से लेकर शाम तक लाइनें लगती हैं। पैरासिटामोल जैसी आम दवाई भी मुश्किल से मिलती है। दो साल में विदेशी मुद्रा का भंडार 70 प्रतिशत कम हुआ है जिस कारण थर्मल पावर के लिए इंधन ख़रीदना मुश्किल हो रहा है। मुद्रा स्फीति की दर भयानक 25 प्रतिशत को पार कर गई है। विदेश में बसे उनके नागरिक भी घर सीधा पैसा नहीं भेज रहे क्योंकि ग़ैरसरकारी तरीक़े से भेजने से अधिक डालर मिलतें हैं। कोविड की मार भी बहुत पड़ी है। इससे टूरिज़्म ख़त्म हो गया जबकि उससे बहुत पैसा आता था। इस संकट के लिए सारा देश राजपक्षे परिवार को ज़िम्मेवार ठहरा रहा है।
श्रीलंका का संकट केवल आर्थिक ही नहीं राजनीतिक भी है। इस देश पर राजपक्षे परिवार का क़ब्ज़ा है। प्रधानमंत्री बड़े भैया महिन्दा राजपक्षे थे जबकि राष्ट्रपति छोटे भैया गोटबाया राजपक्षे है। मंत्रिमंडल जो अब बर्खास्त कर दिया गया है, में राजपक्षे परिवार के तीन और सदस्य थे। एक समय महिन्दा राजपक्षे सिंहली बहुमत में बहुत लोकप्रिय थे क्योंकि उन्होंने तमिल विरोध को कुचल दिया था लेकिन अब परिवारवाद, भ्रष्टाचार और अर्थव्यवस्था के घोर कुप्रबंध के कारण इतने अलोकप्रिय हैं कि उन्हें हटाने के लिए पूरा देश सड़कों पर निकल आया था। बहुत देर लटकाने का बाद महिन्दा राजपक्षे ने इस्तीफ़ा दे दिया पर इससे लोग संतुष्ट नहीं होंगे। सड़कों पर आगज़नी और हिंसा बेक़ाबू हो रही है। वह अब परिवार के साथ नौसेना के बेस में छिपें हैं। एक सांसद मारा जा चुका है और क्रोधित भीड़ ने तो राजपक्षे परिवार के पुश्तैनी मकान सहित 50 राजनेताओें की जायदाद को जला दिया है। जनता तब तक संतुष्ट नहीं होंगी जब तक सभी राजपक्षे सत्ता से हट नहीं जाते। अब निशाना राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे हैं जो दमन के सहारे गद्दी बचाने की कोशिश कर रहें हैं। गोटबाया ने विपक्ष के नेता को अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने की पेशकश की थी पर जब तक ख़ुद गोटबाया राष्ट्रपति हैं तब तक कोई भी विपक्षी नेता सरकार का नेतृत्व करने को तैयार नहीं होगा।
पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक भ्रष्टाचार ने देश को बहुत कमजोर कर दिया है। ऐसा पतन वहाँ पहले नहीं देखा गया। रोज़मर्रा की चीजें इतनी महँगी हो गई हैं कि लोग रोटी, दवाई और तेल के लिए दर दर की ठोकरें खा रहें हैं। सरकार भारत से मदद की बार बार गुहार कर रही है, और हम कर भी रहें हैं पर एक समय तो उन्होंने चीन के साथ प्रगाढ़ सम्बंध बनाने की कोशिश की थी। भारत और चीन के बीच जो होड़ है उसका फ़ायदा उठाने की कोशिश की गई। पर अब पाकिस्तान और म्यांमार की तरह चीन के क़र्ज़ के जाल में फँस गए हैं। महिन्दा राजपक्षे की ज़िद्द कि उनके चुनाव क्षेत्र हमबनटोटा में बंदरगाह बनाई जाए ने भी श्रीलंका की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। सभी सर्वेक्षणों और सलाह के बावजूद महिन्दा ने इस बंदरगाह के लिए चीन से क़र्ज़ा ले लिया जिसे वह चुका नहीं सके क्योंकि योजना लाभकारी नहीं थी। अंत में इस क़र्ज़े के बदले वहाँ 99 वर्ष की लीज़ पर ज़मीन चीन को दे दी गई। इसकी आलोचना होना तो स्वाभाविक था कि नई ईस्ट इंडिया कंपनी आ गई है। न ही इस सरकार ने यह ही ध्यान रखा कि भारत को अपने इतने नज़दीक चीनी नौसेना अड्डा बिलकुल पसंद नही आएगा। पूर्व रियर एडमिरल राजा मोहन ने चीन और श्रीलंका की दोस्ती को ‘घातक दोस्ती’ बताया है।
पाकिस्तान ने चीन की मदद से ग्वाडर की बंदरगाह बनवाई थी। चीन इसके द्वारा हिन्द महासागर और इस्लामिक देशों तक पहुँचना चाहता था। इमरान खान सरकार चीनी निवेश को लेकर इतनी उत्साहित थी कि क़र्ज़े के जाल में फँस गई। इस वकत उन्हें 51 अरब डालर की तत्काल ज़रूरत है इसलिए इधर उधर हाथ पैर मार रहें हैं। हमारे पड़ोसी देश जो पहले चीन के निवेश को लेकर बहुत उत्साही थे, अब समझ गए हैं कि चीन किसी बेरहम साहूकार से कम नहीं। उसके क़र्ज़ के जाल में फँसे देश रियायत या रि-नेगोशियेट करने की गुहार लगा रहें है, पर चीन टस से मस नहीं हो रहा। श्रीलंका को तो यह सोहबत तबाह कर गई है। श्रीलंका पर सबसे अधिक क़र्ज़ चीन का है। चीन उस देश में 1 अरब डालर की लागत की 50 परियोजना बना रहा है। शिकायत यह है कि भ्रष्टाचार के कारण लागत बढ़ा-चढ़ाकर कर बताई गई है। चीन से प्राप्त क़र्ज़ा पर ब्याज दर 6.5 प्रतिशत तक बनती है जबकि एडीबी की ब्याज की दर 2.5 प्रतिशत है।
मुसीबत के समय भारत ने उन्हें लाईफ़ लाईन दी है। जापान के साथ मिल कर भारत निश्चित कर रहा है कि कोलम्बो बंदरगाह जिससे 70 प्रतिशत माल भारत को जाता है, चीन के हवाले न कर दी जाए। अब इस बंदरगाह के विस्तार में 51 प्रतिशत हिस्सा अडानी ग्रुप का होगा। 4 लाख टन से अधिक इंधन हम उन्हें भेज चुकें हैं। इसके इलावा लगातार ज़रूरी सामान और दवाई वहाँ भेजी जा रही हैं। इस साल की पहली तिमाही में भारत 3 अरब डालर की मदद कर चुका है। वहाँ के लोग इस मदद की इज़्ज़त कर रहें हैं और आम पब्लिक भी हमारा धन्यवाद कर रही है। चाहे वहाँ की सरकारों के साथ हमारे सम्बंध गर्म सर्द रह चुकें है, पर उस देश के साथ हमारे प्राचीन काल से सांस्कृतिक और धार्मिक सम्बंध है। दोनों के बीच केवल पाल्क स्ट्रेट ही है जहां अधिकतम फ़ासला 82 किलोमीटर हैं पर एक जगह मात्र 29 किलोमीटर ही रह जाता है। यहां ही रामसेतु है। तमिलनाडु में धनुषकोडी और श्रीलंका में तलायमन्नार के बीच ट्रेन -फेरी चलती है। महाराष्ट्र की जीया राय जो ऑटिज़म से प्रभावित है, तैर कर इसे 13 घंटे में पार करने में सफल रही है। अर्थात् वह देश हमारे बहुत पास है, बीच का समुद्र तो मात्र औपचारिकता हैं। कहते हैं कि रामसेतु के द्वारा 15वीं शताब्दी तक लोग इधर उधर जा सकते थे पर 1480 में चक्रवात से यह समुद्र में समा गया था।
हमारे कई पड़ोसी देश हैं पर श्रीलंका का एक मात्र पड़ोसी देश भारत है, इसलिए उनकी मुसीबत में मदद करना हमारा धर्म भी बनता है। एक दिलचस्प लेख में पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव लिखती हैं, “हमारे दो देशों को जो रिश्ते बांधते है वह इतने हैं कि वर्णन नहीं किए जा सकते…केवल यह कहना पर्याप्त है कि श्रीलंका के लोग, चाहे वह सिंहली हैं या तमिल, हमारे फ़र्स्ट कज़न हैं… भारत अपनी फ़ैमिली को अपने हाल पर नहीं छोड़ सकता। और श्रीलंका फ़ैमिली है”। इस भावनात्मक सच्चाई के अतिरिक्त सामरिक तौर पर भी श्रीलंका की स्थिति हमारे लिए केन्द्रीय है। दक्षिणी हिन्द महासागर का वह एक प्रकार से चौकीदार है। इसीलिए वहाँ चीनी इंफ़्रास्ट्रक्चर की सोच भी हमारे लिए अमान्य है। चीन ने श्रीलंका के लोगों की तकलीफों को कम करने का प्रयास नहीं किया क्योंकि उनका वह भावनात्मक रिश्ता नहीं जो हमारा है। हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर कोलम्बो की यात्रा के दौरान एक पेट्रोल पम्प का भी चक्कर लगा आए और लाईन में लगे लोगों से उनकी तकलीफ़ के बारे जानकारी प्राप्त की। इस पर उनके पत्रकार नामीनी विजयदासा ने लिखा है, ‘ हमारे किसी भी मंत्री ने लाइन में लगे लोगों से हालत के बारे नहीं पूछा। केवल भारत के मंत्री ने यह किया’।
श्रीलंका की जो हालत बन गई है उस पर दुख होता है। वह बहुत पढ़े लिखे होशियार लोग हैं। एशिया में जापान के बाद उस देश के मानव विकास सूचकांक सबसे बेहतर थे। जगह भी अत्यंत खूबसूरत है।एक प्रकार से जन्नत हैं पर इस जन्नत को राजपक्षे परिवार ने नरक में परिवर्तित कर दिया है। लोग इनसे छुटकार पाना चाहतें हैं पर वह सुरक्षा बलों के सहारे लोकतंत्र को कुचल कर अपनी हुकूमत क़ायम रखना चाहते हैं। अब यह ज़्यादा देर और सम्भव नहीं होगा क्योंकि लोग उठ चुकें हैं। इसलिए उस देश की मदद करते समय हमे ध्यान रखना है कि आम श्रीलंकन को यह प्रभाव न जाए कि हम उस बदनाम और विनाशक परिवार का भी समर्थन कर रहे हैं। हमें वहाँ के लोगों के दिल जीतने है और देश को अराजकता से बचाना है। निरपमा राव ने लिखा है, ‘आख़िर में फ़ैमिली फ़ैमिली होती है’। राजपक्षे फ़ैमिली नहीं, श्रीलंका के लोग ‘फ़ैमिली’ हैं’।