
हमें इलाहाबाद हाईकोर्ट का धन्यवाद करना चाहिए कि ताजमहल के बंद 22 कमरों को खोलने की माँग करती याचिका को उन्होंने रद्द कर दिया है नहीं तो मौक़े की तलाश लोगों को तमाशा खड़ा करने का एक और मौक़ा मिल जाता। याचिका में यह दावा किया गया था कि ताजमहल वास्तव में ‘तेजो महालय’ है। याचिका कर्ता ने इतिहासकार पीएन ओक की 1989 में लिखी किताब ताजमहल द ट्रू स्टोरी का हवाला दे कर यह दावा किया था कि ताजमहल मूल रूप से एक शिव मंदिर और राजपूत महल था जिस पर शाहजहाँ ने क़ब्ज़ा कर मक़बरा बना दिया था। इस थ्योरी को बार बार रद्द किया जा चुका है। 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने ओक की याचिका, कि यह घोषणा की जाए कि ताजमहल को हिन्दू राजा ने बनाया था, को रद्द कर दिया था। नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद भी 2015 में संसद में सरकार ने ओक के दावे को रद्द करते हुए स्पष्ट किया था कि ‘ ताजमहल में किसी मंदिर के कोई प्रमाण नहीं’। 2017 में फिर सरकार और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का कहना था कि राजा जय सिंह से ज़मीन लेकर शाहजहाँ ने यमुना के किनारे अपनी बेगम की याद में यह भव्य मक़बरा बनाया था। इस बात की पुष्टि जयपुर के पूर्व शाही परिवार की सदस्य और भाजपा सांसद दीया कुमारी ने भी की है। उनका कहना है कि आगरा की जिस ज़मीन पर ताजमहल बना हुआ है वह उनके राज परिवार की थी जिसे बादशाह ने अधिग्रहण कर लिया था। पर उन्होंने यह स्वीकार किया कि ‘अधिग्रहण के बदले कुछ मुआवज़ा दिया गया लेकिन उस वकत अपील करने या विरोध करने की गुंजायश नहीं थी’। अगर उस वकत कमजोरी दिखाई गई तो वह किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकते। अगर मुआवज़ा ले ही लिया तो इसे ‘क़ब्ज़ा’ भी नही कहा जा सकता।
ताजमहल दुनिया की सबसे अज़ीम इमारतों में से एक है। यह विश्व के 7 ‘वंडरस’ अर्थात् 7 अजूबों में से एक है। कहानी सब जानते हैं कि इसे बादशाह शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज़ महल की याद में बनवाया था जो 1631 में अपनी 14वीं संतान को जन्म देते वक़्त अल्लाह को प्यारी हो गई थीं। भारत की यह सबसे विश्व विख्यात इमारत है। हज़ारों लोग टूरिज़्म के लिए इस पर निर्भर हैं ,करोड़ो डालर यह अर्जित करती है। भारत सरकार के आँकड़ों के अनुसार जो टूरिस्ट भारत आते हैं उनमें से एक चौथाई ताजमहल देखने जाते है। हर विदेशी वीआईपी वहाँ ज़रूर जाता है और ताजमहल के सामने संगमर की बैंच पर बैठ कर फ़ोटो खिंचवाता हैं। ब्रिटेन के शाही परिवार की तीन पीढ़ियों से लेकर परवेज़ मुशर्रफ सपत्नी यहाँ आ चुकें हैं। केवल डायना अकेली आई थी क्योंकि तब तक चार्लस के साथ उसका रिश्ता टूट चुका था। और जिसे ‘मॉनियमैंट ऑफ लव’ कहतें हैं उसके सामने प्यार में ठुकराई उस अकेली ने झेंपते हुए तस्वीर खींचवाई थी!
ताजमहल का मुग़ल अतीत कईयों को कई कारणों से चुभता है। यूपी के एक मंत्री इसे ‘भारतीय संस्कृति पर कलंक’ कह चुकें हैं। एक तेज़तर्रार विधायक का कहना था कि इसे ग़द्दारों ने बनाया था जो हिन्दुओं को ख़त्म करना चाहते थे। योगी आदित्य नाथ का रवैया दुविधा वाला रहा है। पहले जब यूपी सरकार ने प्रदेश के टूरिस्ट आकर्षणों की सूचि निकाली तो ताजमहल उससे ग़ायब था।शोर मचने के बाद योगी आदित्य नाथ पलटे और उनका कहना था कि ‘ इसमें जाने की ज़रूरत नहीं कि किस ने इसे बनाया था। यह पर्याप्त है कि यह भारतीयों के खून पसीने से बनाया गया’।जब अमेरिका के राष्ट्रपति डानल्ड ट्रंप आगरा आए तो योगी आदित्य नाथ ने उन्हें ताजमहल का चित्र गिफ़्ट दिया था। विवादास्पद बयानों के बाद डैमेज कंट्रोल के लिए योगी खुद भी झाड़ू लेकर ताजमहल का दौरा कर आए है। लेकिन स्पष्ट है कि अभी तक लोग मौजूद हैं जो इसे लेकर तनाव खड़ा करना चाहते हैं। ताजमहल के बाद अब क़ुतुब मीनार को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है। कुछ हिन्दू संगठन क़ुतुब मीनार परिसर में हनुमान चालीसा का पाठ करने और इसका नाम बदल कर ‘विष्णु स्तंभ’ रखे जाने की माँग कर रहें हैं। वहाँ झगड़ा हो चुका है। जो विरोध कर रहें हैं उनका कहना है कि 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को गिरा कर जो सामान मिला उससे इस मीनार का निर्माण किया गया। और इसके परिसर में हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों लगी है, जो बात सही है। लेकिन इस बात को लेकर भी कोई विवाद नहीं कि 1193 में इसका निर्माण क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने शुरू करवाया था और उसके उत्तराधिकारियों ने इसे पूरा करवा था। यह दुनिया की सबसे ऊँची मीनार है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है। पर बड़ा सवाल तो यह है कि अब करना क्या है? क्या हमने आगे की तरफ़ देखना है या हमारी सारी उर्जा गढ़े मुर्दे उखाड़ने में ही बर्बाद हो जाएगी ?कल को अगर लालक़िले के नीचे से कुछ मिल गया तो? यह सम्भावना रद्द नहीं की जा सकती।
यह निर्विवाद है कि महमूद गज़नी जैसे आक्रांता और औरंगजेब जैसे धर्मांध मुग़ल बादशाह ने बड़ी तादाद में मंदिर तोड़े थे। कई जगह मंदिर तोड़ कर मस्जिदें बनाई गईं।हमारा इतिहास भरा हुआ है ऐसे उदाहरणों से। महमूद गज़नी ने 17 बार हमले किए और सोमनाथ और मथुरा जैसे मंदिरों को नष्ट किया। यहां से लूट कर वह गज़नी में अपनी राजधानी को संवारता रहा। जवाहरलाल नेहरू ने इसे ‘निर्मम सैनिक विजय’ कहा था। वह लुटेरा था। जीतने के बाद वह मंदिर का सोना और दूसरी बहुमूल्य चीजें साथ से जाता था। उस समय के बारे स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘विदेशी हमलावर मंदिर के बाद मंदिर तोड़ते गए’। अर्थात् इस हक़ीक़त पर तो विवाद ही नहीं है, पर सवाल तो है कि इस हक़ीक़त का करना क्या है? वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ लगती ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण हो कर हटा है। उसमें से क्या निकलना है सब जानते हैं। 1194 मेँ मोहम्मद गौरी, 1505-1515 के बीच सिकंदर लोदी ने और 1669 में औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर को तुड़वा कर मस्जिद बनाई थी। लेकिन मंदिर पूरी तरह नष्ट नहीं किया। इसका कुछ हिस्सा क़ायम रखा गया और इसे मस्जिद के साथ मिला दिया गया। मस्जिद की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र उसका मूल चरित्र बतातें हैं। मस्जिद का संस्कृत नाम ‘ज्ञानवापी’ भी बताता है कि असल में वहाँ क्या था ? वाराणसी के पूर्व सिटी मैजिस्ट्रेट अनिल सिंह का कहना है कि ‘परिसर की आत्मा मंदिर जैसी है’।
संसद 1991 नें क़ानून पास कर चुकी है कि अयोध्या में रामजन्मभूमि -बाबरी मस्जिद को छोड़ कर किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी भी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदला नहीं जाएगा। जब तक संसद इसे बदलती नहीं यही क़ानून रहेगा। पर सवाल तो यह है कि इस वकत जब हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे है, क्या यह समय पुराने बदले लेने की है ? क्या हमने अपना भविष्य संवारना है कि अतीत में उलझे रहना है? हम हिन्दू – मुसलमान ही करते रहेंगे? हमारी आज़ादी के समय चर्चिल ने कहा था कि यह इतने निम्न स्तर के लोग हैं कि यह लड़ाई झगड़ों में खो जाऐगे। हम उस कम्बख़्त को सही सिद्ध करने में क्यों लगे हैं? जो लोग ताजमहल या क़ुतुब मीनार के पीछे पड़े हैं क्या उन्होंने सोचा भी है कि एक खरोंच भी आगई तो दुनिया में कितना शोर मचेगा और देश और हिन्दुओं की कितनी बदनामी होगी? ताजमहल के बंद 22 कमरों में क्या है कोई नहीं जानता,पर अगर कभी कुछ विवादास्पद मिल भी गया तो क्या करना है? उसे ढहा देना है? अफ़सोस है कि हनुमान चालीसा को ही हथियार बना दिया गया है। कोई कहता है कि सड़क पर रख फ़लाँ के घर के सामने पढ़ूँगा तो कोई कहता है कि अगर मस्जिदों से लाउडस्पीकर बंद नही हुए तो हम सामने हनुमान चालीसा पढ़ेंगे।
जो यहाँ हिन्दू-मुस्लिम टकराव की कोशिश कर रहे हैं वह यह नहीं देखते कि लाखों की संख्या में हमारे लोग मुस्लिम देशों में काम कर रहे हैं। वहाँ से अरबों डालर इधर आ रहा है। बांग्लादेश में दंगे हो चुकें है। इंडोनेशिया में 88 प्रतिशत मुसलमान हैं पर वह राम को अपना इष्ट मानते हैं। रामलीला होती है। अगर ऐसे देशों में प्रतिक्रिया शुरू हो गई? इस साल रामनवमी और ईद इकट्ठे आए और लड़ते झगड़ते हम ने इन्हें मनाया। क्या हर साल ऐसा ही होगा? क्या धर्म हमारी राजनीति का हथियार बनेगा? हर देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि यहाँ आंतरिक सौहार्द है या नहीं? कोई भी वह देश तरक़्क़ी नहीं कर सकता जहां समाज आपस में युद्धरत हो।न ही ऐसी हरकतें हमारे लोकाचार का हिस्सा है। हमने कभी किसी के धर्मस्थल पर हमला नहीं किया। हमें यह सिखाया ही नहीं गया। संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि हिंसा से किसी का फ़ायदा नही होता। योगी आदित्य नाथ का भी कहना है कि, ‘दूसरों को परेशान करने के लिए धर्म का बदसूरत इस्तेमाल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा’। पर इनका संदेश ज़मीन तक क्यों नहीं पहुँचता? स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में सहिष्णुता और उदारता का तेजवान पाठ पढ़ाया था और सब धर्मों की बराबरी की बात समझाई थी। उनके भाषणों में यह विचार बार बार दोहराया जाता है। एक भाषण में उन्होंने कहा था, ‘सोच और क्रिया की आज़ादी ज़िन्दगी,विकास और भलाई की एकमात्र शर्त है’।
2001 मार्च को मुल्ला उमर के आदेश पर तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में बमियान में बुद्ध की 1400 साल पुरानी 180 फुट ऊँची दो विशाल प्रतिमाओं को विस्फोटक से उड़ा दिया था। आज वहाँ ख़ाली जगह तालिबान की क्रूरता और धर्मांन्धता की कहानी दुनिया को बताती है। हमें यह नहीं बनना। हमारा इतिहास ज़्यादतियों से भरा हुआ है। इन विवादों का समाधान या सहमति से हो या अदालत या संसद के द्वारा हो। एक आधुनिक,परिपक्व और आत्मविश्वासी राष्ट्र के तौर पर हमें इन ज़्यादतियों पर बुलडोज़र चलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।