‘टार्गेट किलिंग’ (चुन चुन कर हत्या) के बाद कश्मीर से कश्मीरी पंडितो और दूसरे हिन्दुओं का पलायन फिर शुरू हो गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि 1990 के दशक के स्याह दिन फिर लौट आए हैं। एक बार फिर आतंक का माहौल है, चिनार के पत्तों से बारूद की गंध उठ रही है। धारा 370 हटाए जाने के बाद जो उम्मीद जगी थी उस पर खून के धब्बे लग गए हैं। सरकार के आश्वासनों के बावजूद पलायन जारी है, घरों पर लगे ताले इसकी गवाही दे रहें हैं। प्रधानमंत्री के पैकेज के अनुसार वहाँ क़रीब 5900 कर्मचारी हैं जो असुरक्षित महसूस करते थे। सरकार उन्हें निकलने से रोकने की कोशिश कर रही है, पर रात के अंधेरे में 80 प्रतिशत कर्मचारी कश्मीर छोड़ कर जम्मू पलायन कर गए हैं। राहुल भट्ट, अमरीन भट्ट, रजनी बाला, राजस्थान से बैंक मैनेजर विजय कुमार की टार्गेट किलिंग के बाद भारी असुरक्षा की भावना है।आतंकित कर्मचारी सवाल कर रहे हैं कि कैसे यक़ीन करें कि हमें फूलप्रूफ सुरक्षा मिलेगी? इन सब को इनके कार्य क्षेत्र में घुस कर मारा गया। टेररिज़्म ऐसे ही चलता है। पंजाब में भी आतंकवादियों की कार्य प्रणाली ऐसी ही थी। एक टीचर को मारो सब टीचर डर जाएँगे, एक सरकारी कर्मचारी को मारो सब सहम जाएँगे, एक पत्रकार को मारो सब दुबक जाएँगे। संदेश है कि सरकार आपको सुरक्षित नहीं रख सकती। उस महिला प्रिंसिपल सुपिनदर कौर जिसने शिक्षा के लिए एक अनाथ मुस्लिम लड़की को गोद लिया हुआ था, कि भी हत्या कर दी गई। ग़ैर मुसलमानों में अनजान का आतंक है। मालूम नहीं कि किधर से गोली आजाए और कौन आपके बारे सूचना दे रहा है।
ग़ैर- मुस्लिम कर्मचारी शिकायत करते हैं कि स्थानीय कर्मचारी साथ नहीं है। उनकी ‘ आपराधिक चुप्पी’ की शिकायत हो रही है। यह एक कड़वा सच है कि यह हत्याऐं स्थानीय सहयोग के बिना नहीं हो सकती थीं। उन्होंने ही बताया कि कौन आसान टार्गेट हैं, नहीं तो इतनी आसानी से हत्या कर वह निकल नहीं सकते थे। यहां यह भी दिलचस्प है कि इस हिंसात्मक माहौल के बीच एक भी टूरिस्ट को हानि नहीं पहुँचाई गई। इस मामले में स्थानीय लोग होशियार है। उन्हें वह हिन्दू पसंद हैं जो वहां पैसे खर्च करने आता है, पर वह नहीं जिसे सरकार ने वहाँ बैठा दिया है या जो बस जाना चाहता है। टूरिज़्म से पैसे, और सरकार के विरोध, को अलग अलग रखा गया है। अतीत में टूरिस्ट पर हमला हो चुका है, यहाँ तक कि टूरिस्ट बसों पर भी हमला हो चुका है पर इस बार तो कश्मीर के लिए टूरिस्ट सीजन बम्पर रहा है। आख़िर रोज़ी रोटी का सवाल है। भारत सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। अमित शाह ने कहा था कि आतंक 5 अगस्त 2019 जब धारा 370 हटाई गई थी, के बाद ख़त्म हो गया है । पत्थरबाज़ी ज़रूर रूक गई है, एंकाउंटर भी कम हो गए हैं पर आतंक में स्थानीय युवाओं की भर्ती जारी है। आतंकवादियों ने अपना तरीका बदल लिया है पर मक़सद नहीं बदला।अब तो पिस्तौल से हत्या हो रही है। आतंक का नेटवर्क क़ायम है और सक्रिय है। सरकार ‘नया कश्मीर’ बनाना चाहती है पर यह तब ही हो सकेगा अगर ‘पुराना कश्मीर’ पीछा छोड़ेगा। सरकार नहीं चाहती कि पंडित और दूसरे हिन्दू वादी छोड़ जाएँ। अगर ऐसा हो गया तो यह आतंकवादियों की जीत होगी, पाकिस्तान का मक़सद पूरा होगा, और मोदी सरकार की नीति की असफलता होगी। यह भी कहा जा रहा है कि अक्तूबर में भी तो हत्याऐं हुईं थीं, उन्हें रोक दिया गया था। यह बात तो सही है पर अगर फिर हिंसा हो रही है तो इसका मतलब है कि जो कार्यवाही अक्तूबर में की गई उसका स्थाई नतीजा नहीं निकला।
जम्मू और कश्मीर में आज कोई निर्वाचित सरकार नहीं है जिस पर दोष मढ़ा जा सके, न ही ‘तीन परिवारों’ को ही दोषी ठहराया जा सकता है। वहाँ एलजी का शासन है। न विधानसभा सभा है न ही जन प्रतिनिधि काम कर रहे हैं इसलिए सारी ज़िम्मेवारी केन्द्र पर है। दूसरी तरफ़ वहाँ रह रहें ग़ैर-मुस्लिम कर्मचारी हैं जिन्हें अपनी और अपने परिवार की जान की चिन्ता है। वह जानते हैं कि हर व्यक्ति को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। 19 जनवरी 1990 की रात सबको याद हैं जब लाउडस्पीकर से नारे लगाएँ गए थे कि ‘रालिव,गलिव या चलिव’, अर्थात् या धर्म बदलो या मौत को स्वीकार करो या चले जाओ। मस्जिदों से काफिर मुरादाबाद के नारे लगाए गए। कई बार तो यह भी कहा गया कि अपनी औरतों को छोड़ जाओ। लेखक राहुल पंडिता अपनी किताब ‘आवर मून हैस बल्ड कलॉटस’ अर्थात ‘ हमारे चांद पर खून के धब्बे हैं’, में बताते हैं कि ‘मस्जिदों में भारी संख्या में भारत और पंडित विरोधी नारे लगाते भीड़ इकट्ठी हो गई…अगले कुछ महीनों में कई सौ बेक़सूर कश्मीरी पंडितों को टार्चर किया गया, उन्हें मारा गया और बलात्कार किया गया’।
अब वैसी अराजक स्थिति तो नहीं बनेगी क्योंकि सरकार दूसरी और सख़्त है पर वहाँ रह रहे ग़ैर-मुसलमानों पर तलवार तो लटक रही है। सरकार के आश्वासनों से वह संतुष्ट नहीं है। वह अपने लिए कश्मीर वादी में अलग होमलैंड जो केंद्रीय शासित प्रदेश हो, चाहतें है। कश्मीर फ़िलिस्तीन की तरह स्थाई अशांत प्रदेश बन चुका है। ‘रा’ के पूर्व प्रमुख ऐ एस दुल्लत जिन्हें बहुत कश्मीर और कश्मीरी हितैषी समझा जाता है, ने भी अपनी किताब ‘ कश्मीर ,द वाजपेयी ईयरज़’ में यह स्वीकार किया है कि,’जहां पाकिस्तान कश्मीर में फ़ैक्टर रहेगा पर असली ख़तरा है कि कट्टरपंथी विचारधारा कश्मीर की स्थाई राजनीतिक विरासत बन कर रह जाएगी’। राहुल पंडिता ने भी हाल में लिखा है, ‘ कश्मीरी पंडितों का भविष्य क्या है? पहले शुरुआत इस स्वीकृति से होनी चाहिए कि उनका कश्मीर में क़तई कोई भविष्य नहीं है। न कल, न परसों, न पांच साल में, न दस साल में कुछ बनने वाला है’। यह कड़वी सच्चाई है कि भारत राष्ट्र अपनी इस औलाद को न्याय नहीं दिलवा सका। वह सब शिक्षित हैं, उनके पीछे हज़ारों वर्षों की संस्कृति है। उन्हें कश्मीर से बाहर अपनी ज़िन्दगी के बारे सोचना होगा।
इस बीच एक अनावश्यक विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा के प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा पैग़म्बर मुहम्मद साहब के बारे कहे गए अपशब्दों के कारण देश के मुसलमानों और इस्लामी देशों में उग्र प्रतिक्रिया हो रही है। कई इस्लामी देशों में हमारे राजदूतों को तलब किया गया है और घोर विरोध व्यक्त किया गया है। कई तो सरकार द्वारा माफ़ी माँगने की बात कह रहें हैं । कुछ खाड़ी देशों में भारतीय चीजों का बहिष्कार शुरू हो गया है, जो अरब समाज में उग्र प्रतिक्रिया का सूचक है। वहां भारत की स्थिति पर नकारात्मक चर्चा हो रही है। जो हितैषी हैं वह भी पूछ रहें हैं कि इंडिया को क्या हो गया ? मुझे नहीं याद आता कि कभी इस तरह हमारे राजदूतों को तलब किया गया हो। कतर ने तो उस वकत तलब किया जब हमारे उपराष्ट्रपति वहाँ राजकीय यात्रा पर थे। वहाँ के छोटे अमीर ने उपराष्ट्रपति के लिए दिए जाने वाले भोज को रद्द कर दिया।प्रधानमंत्री मोदी ने खाड़ी के देशों के साथ सम्बन्ध बेहतर करने में बहुत मेहनत की है। उन देशों ने भी बराबर की गर्मजोशी दिखाई है ।पर इस एक महिला की बदतमीजी ने पानी फेर दिया और सरकार डैमेज कंट्रोल में लगी है। सरकार का कहना है कि वह सब धर्मों का सम्मान करती है और किसी भी धर्म का अपमान अस्वीकार्य है। यह तो सही है पर भाजपा ने दस दिन इस महिला के खिलाफ कारवाई क्यों नहीं की? अगर समय रहते की होती तो यह फ़ज़ीहत नहीं उठानी पड़ती कि 15 इस्लामी देश हमसे स्पष्टीकरण माँग रहे हैं। उनके आपसी मतभेद हैं पर पैगम्बर साहब की इज़्ज़त के मामले में सब इकट्ठे है। आजकल सोशल मीडिया का युग है कुछ भी छिपा नहीं रह सकता। जो यहाँ हो रहा है वह सब बाहर जा रहा है। जैसे यूएई और मिस्र में हमारे पूर्व राजदूत नवदीप सूरी ने आलोचना करते हुए लिखा है, ‘शायद वह समझते नहीं कि हम परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में रहते हैं जहां शब्द और वीडियो सीमाएँ पार कर घूमते रहते हैं”।
प्रायः देखा जाता है कि यहाँ साम्प्रदायिकता फैलाने वाले तत्वों पर या कार्यवाही नहीं की जाती या देर से की जाती है इसलिए बहुत लोग बेलगाम हो रहे है । जो अब हुआ वह एक न एक दिन होना ही था। अगर गाड़ी असंतुलित और अनियंत्रित लोगों को सौंप दी जाएगी तो एक न एक दिन दुर्घटना होगी ही। इन उग्रवादी प्रवक्ताओं के कारण भाजपा, भारत और प्रधानमंत्री की छवि को धक्का पहुँचा है। 30 सेकेंड के क्लिप ने बहुत नुक़सान किया है। मैंने मई 19 के अपने लेख में लिखा था, ‘ जो यहाँ हिन्दू मुस्लिम टकराव की कोशिश कर रहें हैं वह नहीं देखते कि लाखों की संख्या में हमारे लोग मुस्लिम देशों में काम कर रहें हैं। वहाँ से अरबों डालर इधर आ रहे हैं…अगर ऐसे देशों में प्रतिक्रिया शुरू हो गई’? खाड़ी में उठे तूफ़ान के बाद सरकार रक्षात्मक है। हमारा विदेश विभाग ऐसे तत्वों को ‘फ़्रिंज एलिमेंट’ अर्थात् किनारे पर लोग कहा है पर किनारे वाले लोग पार्टी प्रवक्ता कैसे बन गए? भारत का खाड़ी के देशों के साथ व्यापार 90 अरब डालर का है। तेल और गैस की भारी आपूर्ति वहां से होती है। कतर ही गैस की हमारी 40 प्रतिशत ज़रूरत पूरी करता है। कुछ नासमझ उनके बहिष्कार की बात कर रहे है, यह समझते नहीं कि 70 लाख भारतीय खाड़ी में काम कर रहे हैं। हमारे लोग वहाँ चिन्तित हैं। हमारे बहुत से टीवी एंकर भी देश को उस तरफ़ धकेल रहें हैं जहां बर्बादी है।
इस संदर्भ में संघ प्रमुख मोहन भागवत का बहुत स्टेटसमैन वाला बयान आया है कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखें’? उनका कहना है, ‘ इतिहास को हम बदल नहीं सकते।इतिहास को न हमने बनाया है न आज के हिन्दू ने या मुसलमान ने’। उन्होंने विवादों के हल के लिए कोर्ट का रास्ता सुझाया है। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी स्पष्ट कर चुकें हैं भाजपा के एजेंडे में केवल राम मंदिर था जो काम हो गया, और कोई मंदिर नहीं है। पर चिन्ता है कि जिन्हें पिछले कुछ वर्षों से नफ़रत का पाठ पढ़ाया गया वह सुनने के लिए तैयार नहीं। क्या उन्हें अहसास भी है कि उनके कारण हमें राष्ट्रीय अपमान सहना पड़ा है ? भागवत के इस बयान के बाद विश्व हिन्दू परिषद का आह्वान आया है कि वह टीपूँ सुल्तान की राजधानी श्रीरंगपट्टनम की जामा मस्जिद में पूजा करना चाहते हैं क्योंकि उनके अनुसार यह हिन्दू मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी। बचपन में कहानी सुना करते थे कि जिन जब बोतल से बाहर आ जाए तो वापिस नहीं जाता !