जिसने सुरक्षा देनी है उसे असुरक्षित मत बनाओ, Don’t Make The Soldier Insecure

सरकार की नई अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं में व्यापक  आक्रोष है। जगह जगह से बर्निंग ट्रेन के वीडियो और तस्वीरें देख कर देश स्तंभित है।   कई सौ ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं। युवाओं की शिकायत कितनी भी जायज़ हो हिंसा या आगज़नी की लोकतन्त्र में कोई गुंजाइश नहीं। जो हिंसा कर रहें हैं वह सिद्ध कर रहें हैं कि वह सशस्त्र सेना जैसी अनुशासित संस्था में सेवा करने के लायक़ नहीं है। मैं किसी के घर पर बुलडोज़र चलाने के खिलाफ हूं। इसमें यह स्वीकृति छिपी है कि वह सामान्य ढंग से कानून और व्यवस्था सम्भालने में असफल है लेकिन एक पूर्व सैनिक अधिकारी मेजर गौरव आर्य ने कहा है कि ‘जो ट्रेन फूंक रहें हैं और राज्य की जयदाद नष्ट कर रहें हैं, मैं कामना करता हूँ कि बुलडोज़र को आपके घर का शीघ्र पता लग जाए’। यह उग्र विचार हैं। घर बनाने में लोगों की ज़िन्दगी निकल जाती है किसी घमंडी शासक को उस पर बुलडोज़र चलाने का हक़ नहीं होना चाहिए पर मैं इस बात से सहमत हूं कि जिन्होंने दंगा किया और सार्वजनिक संपत्ति  को नुक़सान पहुँचाया उन्हें सरकारी नौकरी से आजीवन प्रतिबंधित कर देना चाहिए। अफ़सोस है कि देश में क़ानून हाथ में लेकर रेल या सड़क यातायात रोकना सामान्य बन गया है। हमें अपने अधिकारों का बड़ा ज्ञान है, कर्तव्यों के प्रति हम पूर्ण लापरवाह है।

अग्निपथ योजना के अनुसार 45000 सैनिकों को चार साल के कॉन्ट्रैक्ट पर भर्ती किया जाएगा और उसके बाद इनमें से 25 प्रतिशत को स्थाई कर दिया जाएगा और बाकियों को दूसरी सेवाओं और  कॉरपोरेट में एडजस्ट करने का ‘प्रयास किया जाएगा’। जैसे सामान्य जवान को पैंशन और परिवार सहित मैडिकल सुविधा मिलती है उससे यह वंचित रखे जाएँगे। अब लड़कों के ग़ुस्से को देखते हुए बताया जा रहा है कि फ़लाँ सेवा में जगह दी जाएगी, फ़लाँ विभाग भर्ती करेगा। हो सकता है कि इससे कॉरपोरेट में जगह मिल जाए पर इस से सेना को क्या मिलेगा, जो भर्ती का मुख्य उद्देश्य है ?चार साल में यह लड़के कोई भी काम अच्छी तरह से सीख नहीं सकेंगे। जिस तरह अब ताबड़तोड़ घोषणाएँ की जा रही है उससे तो यह प्रभाव मिलता है कि सेना जैसी संवेदनशील संस्था से छेड़खानी करते समय भी गम्भीरता नहीं दिखाई गई। इस नई व्यवस्था से  केवल वही प्रभावित नहीं होंगे  जो सड़कों पर प्रदर्शन कर रहें है, वर्तमान सैनिक भी प्रभावित होंगे जो अपने रिश्तेदारों को सेना में भर्ती करवाना चाहते हैं। करोड़ों भारतीय परिवार हैं जिनके लिए सेना में भर्ती सबसे सम्मानित व्यवसाय है। इस योजना से सब परेशान है। सब समझते हैं कि चार साल से बाद रिटायर उनके लड़के कहीं के नहीं रहेंगे। एक लड़के ने भी सवाल किया है कि ‘कॉर्पोरेट में हम क्या करेंगे? हम तो सैक्यूरिटी गार्ड ही लग सकते हैं’। एक कार्टून देखा है जहां महिला कह रही है कि बाप तो काम कर रहा है, पर बेटा रिटायर हो गया !

ऐसा प्रभाव मिलता है कि यह कदम  पूरा होमवर्क किए बिना उठाया गया।  इन अग्निवीरों को पैंशन नहीं मिलेगी। फ़ैसला वह राजनीतिक वर्ग ले रहा है जो पांच साल सांसद या विधायक रहने के बाद आजीवन पैंशन का फ़ायदा उठाता है, और इस योजना को लागू वह बड़े अफ़सर कर रहे हैं जो रिटायर होने पर दो-दो लाख रुपए पैंशन प्राप्त करेंगे।पर इन लड़कों को बेसहारा छोड़ दिया जाएगा क्योंकि ‘पैंशन का बिल बहुत है’। सेना के ‘बड़े खर्चे’ को कम करने के बारे बहुत चर्चा रहती है पर यह नीचे से क्यों शुरू हो रहा है? सीडीएमए के पी संजीव कुमार जो टैस्ट पायलेट भी रह चुकें हैं, का पूछना है ‘भर्ती की जो व्यवस्था सही चल रही थी उसे निरुत्साहित करने की जगह क्या  चारों तरफ़ मोटापा कम करने की तरफ़ ध्यान दिया गया’?  इसके साथ मैं यह जोड़ना चाहूँगा कि  क्या सिविल सर्विस का मोटापा कम करने का भी प्रयास होगा? इस की सम्भावना कम है क्योंकि सरकार तो बड़े बड़े ब्यूरोक्रैट चला रहें हैं। वह अपना मोटापा क्यों कम करेंगे?   क्या आईएएस में इतनी भर्ती की ज़रूरत है? प्रदेशों में तो आईएएस अफ़सर हाउसिंग बोर्ड और नगर निगम तक सम्भाल रहे हैं।

सेना में भर्ती व्यवस्था दो सौ साल से अधिक पुरानी है। समय, ज़रूरतें और चुनौतियाँ  बदल गईं इसलिए अगर परिवर्तन करने का प्रयास किया जाए तो ग़लत नहीं, पर यह ऐसा नहीं होना चाहिए कि देश भर में बेचैनी पैदा हो जाए। यह समय ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक के लिए बिल्कुल उपयुक्त नही है। पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश का लिखना है, ‘ देश के उत्तरी और पश्चिमी सीमा पर ख़तरनाक सुरक्षा स्थिति और आंतरिक अशांति को देखते हुए  सशस्त्र सेनाओं को इस नई उग्र और अप्रशिक्षित भर्ती प्रणाली में झोंकने का यह उपयुक्त समय नहीं है’।  मेजर जनरल (रिटायर्ड)जी डी बक्शी जो कई वर्षों से टीवी पर आकर सरकार का ज़ोर-शोर से समर्थन करते रहें हैं ने भी कहा है, “चीन और पाकिस्तान से भारी ख़तरे को देखते हुए  संस्था में उथल-पुथल पैदा करने का यह उपयुक्त समय नहीं है… पैसा बचाने के लिए प्रभावी संगठन को नष्ट मत करो…अग्निपथ स्कीम ने मुझे भौंचक्का छोड़ दिया है”। अगर जनरल बक्शी जैसा व्यक्ति  भी स्वीकार कर रहा है कि वह भौंचक्का रह गए हैं तो सरकार को ज़रूर सोचना चाहिए कि जो आपत्ति कर रहे हैं वह अकारण नहीं।

 जहां तक पैसे बचाने का सवाल है क्या राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी बजट की कैंची चल सकती है? पिछले दशक के शुरू में हम रक्षा पर जीडीपी का 2.8 प्रतिशत खर्च रहे थे जो 2021 में घट कर 2.1 प्रतिशत रह गया है। जिसने  आपको सुरक्षा देनी हैं उसे असुरक्षित बना कर देश कैसे सुरक्षित रहेगा? दो साल पहले पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने तो कहा थी कि पैंशन का मसला हल करने के लिए जवान की रिटायरमेंट की आयु को बढ़ा दो। आज कहा जा रहा है कि जवान युवा नहीं रहे इसलिए आयु कम करने की ज़रूरत है। इससे सेना का जो फीडर एरिया है, जो क्षेत्र एक प्रकार से पोषक है, में बेचैनी है। इसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। सेना के लिए हथियार चाहिए। इसके लिए पैसे चाहिए। पर इसके लिए कैंची केवल जवान पर क्यों चले? लड़ाई आख़िर में ज़मीन पर ही लड़ी जाती है। रूस बेहतर उपकरणों के बावजूद यूक्रेन को कुचलने में असफल रहा है। सबसे ताकतवर अमरीकी सेना को वियतनाम और अफ़ग़ानिस्तान से भागना पड़ा था क्योंकि ज़मीन पर मिली चुनौती का वह सामना नहीं कर सके। कारगिल की लड़ाई हम जीत सके क्योंकि हमारे बहादुर अफ़सरों और जवानों का दुष्मन मुक़ाबला नहीं कर सका। आधुनिक हथियारों की ज़रूरत है, पर हर कमांडर बताएगा कि आख़िर में युद्ध में जीत हार इंसान की बहादुरी और कुशलता पर निर्भर करती है। हमारी सेना हर परिस्थिति में अपना बैस्ट देती रही है। जैसे पूर्व ले.जनरल और पूर्व गवर्नर बी के एन छिब्बर ने भी लिखा है, ‘हमें सेना की इस क्षमता से बेवजह खिलवाड़ नहीं करना चाहिए’।

लेकिन समस्या और भी है।  हताश और निराश युवाओं के सामने मिसाल बहुत ग़लत रखी जा रही है। महाराष्ट्र का नया राजनीतिक तमाशा और राज्यसभा चुनावों में विधायकों की रिसॉर्ट् राजनीति बताती है कि नेता-वर्ग कितना ख़ुदगर्ज़ है। कई सांसद  चार चार पाँच पाँच पैंशन ले रहे है और युवाओं को कहा जा रहा है कि तुम्हारी पैंशन देश पर बोझ है। क्या देश हित में हमारे माननीय यह घोषणा करेंगे कि हम पैंशन नहीं लेंगें?  असंख्य परिवार हैं जिनके लिए सेना व्यवसाय ही नहीं जीवन पद्धति है। सरकार ने इस पर चोट मारी है। कई युवा हैं जो कोचिंग क्लास पर लाखों रूपए खर्च चुकें हैं, कई वर्ष से तैयारी कर रहे है। कई है जो दो वर्ष पहले फिसिकल टैस्ट पास कर चुकें हैं और लिखित की इंतज़ार में हैं। इन्हें बताया जा रहा है कि वह मेहनत फिजूल गई, अब आप चार साल के लिए अग्निवीर बनने की तैयारी करो। वरिष्ठ अफ़सर भी हैरान हैं कि एक सेना में दो दो क़िस्म के सैनिक होंगे, एक रेगुलर और दूसरे अग्निवीर? पूर्व वायुसेना के एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने सवाल खड़ा किया है, ‘ अलग क़िस्म का सैनिक क्यों हो’?  वह सैनिक अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा नही सकेगा जो अपने दिन गिन रहा है और जो अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के प्रति असुरक्षित है। समाज में सेना के प्रति  लगाव कम होगा। अब तो किसी रेल स्टेशन पर जवान निकल  रहें हों तो लोग तालियाँ बजाने लग जाते है,  अग्निवीर के लिए क्या ताली  बजेगी ?

 लेकिन इस समस्या का एक और पहलू हैं जो देश को परेशान करता रहेगा। बेरोज़गारी ! अगर इतना बड़ा विस्फोट हुआ है तो इसका एक कारण देश में फैली बेरोज़गारी है। देश में रोज़गार नहीं है। यह विस्फोट एक से अधिक समस्याओं का लक्षण है। यह सरकार दो करोड़ रोज़गार पैदा करने के वादे के साथ आई थी। पर पहले नोटबंदी और फिर कोविड के कारण बेरोज़गारी कम होने की जगह बहुत बढ़ गई है। बिहार में जो व्यापक अराजकता हुई है इसका बड़ा कारण है कि बिहार की बेरोज़गारी की दर बाक़ी देश से लगभग दोगुनी है। नीतीश कुमार की कार्यक्षमता की भी एक्सपायरी डेट निकल चुकी है। देश में मार्च और अप्रैल के बीच  बेरोज़गारी की दर 7.60 प्रतिशत से बढ़ कर 7.83 प्रतिशत हो गई है। 2019-20 में मनरेगा से 5.48 करोड़ लाभार्थी थे जो 2020-21 में बढ़ कर 7.55 करोड़ हो गए। यह भी चिन्ता की बात है कि बेरोज़गारी की दर युवाओं और शिक्षितों में अधिक है। बलूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार 5 साल में 2.1 करोड़ जॉब घटे हैं और 45 करोड़ ने तो काम की तलाश ही छोड़ दी है। कोविड के बाद लगाए गए लॉकडाउन के कारण करोड़ों रोज़गार का सफ़ाया हो गया।

सरकार के लिए बेरोज़गारी और बढ़ती महंगाई दोहरी चुनौती हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने  डेढ़ साल में सरकारी विभागों में 10 लाख भर्ती करने का आदेश दिया है। यह सही कदम है। पर ऐसे समय में जब चारों तरफ़ आपदा के संकेत हैं, अग्निपथ लागू करने की टाइमिंग बहुत ग़लत है। यह विस्फोट अकारण नहीं हुआ। इसका एक बड़ा कारण  हताशा और  ख़त्म होती उम्मीद  है। प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए बिना सरकार को इस योजना पर दोबारा गौर करना चाहिए। जो लड़का सेना में शामिल होता है वह सैनिक बनने के लिए शामिल होता है, न कि चौकीदार या नाई या धोबी या इलैकटरिशियन बनने के लिए, जैसे  भाजपा के कुछ नेता सुझाव दे रहें हैं।

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About Chander Mohan 755 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.