
पहली तीन भयानक लहरों में बचने के बाद कोरोना वायरस जिसे कोविड-19 कहा जाता है, की चौथी लहर में हम क़ाबू आगए। 16 जून को हमारा टैस्ट पॉसिटिव आया। दो दिन पहले से हल्का बुख़ार और खांसी इत्यादि थी। शरीर भी टूट रहा था। सोचा वायरल भी हो सकता है पर जब टैस्ट करवाया तो कोविड निकला। अधिकतर लोग टैस्ट नहीं करवाते क्योंकि लक्षण हल्के होते है। वह इससे वायरल की तरह निबटते हैं और इंफ़ेक्शन फैलाते जाते हैं। हमे दो दिन हल्का बुख़ार जो 101 तक रहा, आता जाता रहा। केवल दो बार पैरासिटामोल दवाई लेनी पड़ी। हमने सात दिन खुद को आईसोलेट रखा। बुख़ार एकदम उतर गया यहाँ तक कि 97 पर गिर गया। तब इसकी चिन्ता हुई पर डॉक्टर ने बताया कि यह सामान्य है चिन्ता तब करनी चाहिए जब बुख़ार 104-105 तक पहुँच जाए। दस दिन के बाद धीरे धीरे सैर शुरू कर दी पर मैं नियमित अपनी 55-60 मिनट की सैर तक अभी नहीं पहुँच सका। खांसी और गले में ख़राश दो सप्ताह से अधिक चली पर कोविड में इसे सामान्य समझा जाता है। कभी कभी कमजोरी लगती है, पर यह कम होती जा रही है। गला अब ठीक हो गया है।
यह इनफ़ेक्शन कहाँ से आया, मालूम नहीं। सड़कों पर लगा नोटिस याद आता है, ‘सावधानी हटी दुर्घटना बढ़ी’। पहली लहरों में हम बहुत सावधान रहे थे। खुद पर ज़बरदस्त पाबन्दियाँ लगाईं। डेढ़ साल तो घर से बाहर नहीं निकले। सारा काम ऑनलाइन होता था। बाहर से जो सामान आता उसे सैनेटाइज़ करते थे। मैंने खुद को केवल यह रियायत दी थी कि पहले की तरह जो दस अख़बार मैं पढ़ता था, वह पढ़ना बंद नहीं किया। बहुत कहा गया कि घर के अन्दर इनफ़ेक्शन आजाएगा पर सर्च करने पर पता चला कि इनफ़ेक्शन काग़ज़ी सतह पर नहीं टिकती इसलिए अख़बार पढ़ना बंद नहीं किया। आख़िर अख़बार पढ़ें बिना ज़िन्दगी भी क्या है ! पर अख़बार पढ़ने के बाद हाथ अवश्य साबुन से धो लेता हूँ। पहले दो टीके लगवाए फिर बूस्टर शॉट लगवाया। इससे रोग से निबटने की क्षमता, जिसे इम्मयूनिटी कहा जाता है, काफ़ी प्राप्त कर ली। इसी कारण जब पकड़े गए तो हमला हल्का हुआ।
पिछले साल के आख़िरी महीनों और इस साल फ़रवरी में विदेश यात्रा भी की पर पूरी सावधानी से। सारा वकत मास्क डाले रखा। किसी से हाथ नहीं मिलाया। हवाई अड्डों पर बहुत भीड़ होती है। जहाज़ भी बंद होता है चाहे बताया जाता है कि वह हवा बदलते रहते हैं। विदेशों में लोग नियमों का पालन करते हैं पर हमारे लोग बहुत असावधान हो जाते हैं इसलिए खुद इतियात करनी पड़ती है। हवाई कम्पनियाँ भी पूरी सावधानी रखती है। कोविड के बाद जब पहली बार अबूधाबी गए तो हवाई जहाज़ के अन्दर परिचालक दल ने सर से पैर तक पूरा किट डाला हुआ था कि जैसे किसी सर्जन का ऑपरेशन थेयटर हो! फ़्लाइट भी रात की थी इसलिए काफ़ी अप्रिय माहौल था। अब क्योंकि इनफ़ेक्शन कम हो गई हैं इसलिए जहाज़ के अन्दर माहौल अधिक ढीला है पर मास्क डालने की पाबंदी अभी भी है जो लम्बी यात्रा में कुछ परेशान करती है।
यह सारी कहानी लिखने के मेरे तीन मक़सद हैं। एक, यह नही समझना चाहिए कि करोना हमें नहीं हो सकता। हम भी यही समझ बैठे थे कि तीन लहर निकल गई, हमने तीन शॉट लगवा लिए, इसलिए किसी का डर नहीं। लेकिन क़ाबू आए। बाक़ी शहर , यूँ कहिए कि बाक़ी देश, की तरह हमने भी बिना मास्क घूमना शुरू कर दिया था जबकि डाक्टर कहतें है कि मास्क को जीवन का हिस्सा बनना पड़ेगा। तीन साल के बाद पिछले महीने जब फ़िल्म देखने गए तो थेयटर में केवल हमने और सिनेमा स्टाफ़ ने ही मास्क लगाया हुआ था बाक़ी सब तो कह रहें प्रतीत हो रहे थे कि ‘ आ बैल मुझे मार’! डाक्टर कह रहें हैं कि कोरोना अभी गया नही और हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाएगा जैसे बाक़ी फ़्लू हैं पर पहले कि तरह घातक नहीं रहेंगा। चाहे मरीज़ बढ़ रहें हैं पर मौते नहीं बढ़ रही। डा. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि ‘कोविड अभी भी मौजूद हैं। नियमों के पालन न करने और बूस्टर शॉट न लगवाने के कारण यह फैल गया है’। कई लोग बूस्टर शॉट नहीं लगवाते पर विशेषज्ञ कह रहें हैं कि गम्भीर बीमारी और मौत को दूर रखने कि लिए यह ज़रूरी हैं। जापान की आबादी सबसे बुजुर्ग है पर धनी देशों में मृत्यु दर वहाँ सबसे कम हैं क्योंकि सब मास्क लगाते है। पर हमारे तो नेता ही सही मिसाल क़ायम नहीं करते। प्रसिद्ध कारडिऔलोजिस्ट डा. श्रीनाथ रेड्डी का कहना है, ‘ हम ऐसा जगह पहुँच गए लगतें हैं…कि वायरस यहाँ ही रहेगा और हमें इसके साथ सबसे कम नुक़सानदेह सहअस्तित्व करना है’। डाक्टर यह भी चेतावनी दे रहें हैं कि वायरस ‘मयुटेट’ अर्थात् अपना रूप बदलता रहता है और नई नई वंशावली पैदा करता रहता है। डा. श्रीनाथ रेड्डी के अनुसार ‘ ओमीकरॉन के प्रकार ने अपना वंश क़ायम कर लिया है। परिवार के विभिन्न लोग दुनिया में विभिन्न जगह राजगद्दी सम्भाल कर बैठे हैं’। विशेषज्ञ B.1, B.2, B 2.12.1,B4 B.5 वायरस के प्रकार की बात कर रहें हैं। देश में बढ़ने का यह बड़ा कारण है। बड़े शहरों से शुरू हो कर अब यह धीरे धीरे अंदरूनी क्षेत्रों की तरफ़ बढ़ रहा है। इसका सामना करने के लिए वैक्सीन में भी लगातार परिवर्तन करते रहना होगा।
दो, लेकिन इसके प्रसार से आतंकित नहीं होना चाहिए जिस तरह लापरवाह होने की ज़रूरत नहीं। अधिकतर लोगों को दो टीके लग चुकें हैं। दूसरी लहर में जो तबाही हुई थी उसके बाद सरकार ने बहुत अच्छी तरह टीकाकरण अभियान चलाया है। साइंस पत्रिका लैंसँट के अनुसार टीकाकरण से देश में 42 लाख मौतें बची हैं।लेकिन अब कइयों को बूस्टर शॉट की ज़रूरत है। यह भी याद रखना चाहिए कि जो वैकसीनेटेड हैं वह वायरस से 100 प्रतिशत बचे नहीं हुए। हमें खुद तीन टीकों को बावजूद इनफ़ेक्शन हो गया था। क्रिकेट खिलाड़ी रोहित शर्मा दोबारा कोरोनावायरस पॉसिटिव पाए गए हैं चाहे अब वह पूरी तरह तंदुरुस्त है। वैक्सीन का यह फ़ायदा होता है कि जब वायरस आता है तो वह हल्का रहता है। दूसरी लहर जैसा हाल नहीं होगा। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि जिन्होंने टीका नहीं लगाया, अभी ऐसे लोग हमारे देश में ही नहीं अमेरिका जैसे विकसित देश में भी है, अपनी और अपनों की सुरक्षा लिए तत्काल टीका लगवाएँ। प्रसिद्ध टैनिस खिलाड़ी जोकोविच टीका लगाने से इंकार कर रहा है। यह उसका व्यक्तिगत मामला है, पर वह मिसाल बहुत ग़लत क़ायम कर रहा है। पंजाब से रिपोर्ट है कि अस्पतालों में दाखिल होने वाले 40 प्रतिशत मरीज़ वह है जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगाया। कोरोनावायरस से दम तोड़ने वालों में भी अधिकतर वह हैं जिन्होंने टीका नहीं लगाया। ऐसे लोग न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी ख़तरा है।
तीन, नियमित ज़िन्दगी अब जारी रहनी चाहिए। न लॉकडाउन लगना चाहिए, न उद्योग बंद होने चाहिए, न ट्रैवल बंद होना चाहिए। चीन ने बहुत ज़बरदस्त लॉकडाउन लगाया था। लोग ज़रूरी चीजों के लिए भी घरों से निकल नहीं सकते थे पर वह संक्रमण को नहीं रोक सके और शंघाई और बीजिंग को लम्बे संकट से गुजरना पड़ा।हमारे लोग भी खूब ट्रैवल कर रहे हैं। एक प्रकार से ट्रैवल का विस्फोट है। अमेरिका के लिए फ़्लाइट नहीं मिलती, जो मिलती है वह बहुत महँगी है। दो साल घरों में बंद रहने के बाद हमारे लोग ‘रिवेंज टूरिज़्म’ पर निकले हुए हैं। थाईलैण्ड में सबसे अधिक भारतीय पहुँच रहे हैं। हमारी मिडल क्लास को कई कारणों से थाइलैंड पसंद है। सस्ता है और बहुत पाबंदियाँ नहीं हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि विदेशों में भारतीय आदर्श टूरिस्ट माने जाते हैं। हर नियम का पालन करतें है पर देश के अन्दर हमें न जाने क्या हो जाता हैं ? हम उद्दंड बन जाते है। इस बार कश्मीर की धूम रही। अभी तक लगभग 7 लाख टूरिस्ट कश्मीर की यात्रा कर चुकें हैं जो पिछले साल से पाँच गुना ज़्यादा है। यह संतोष का बात है कि देश में सामान्य जनजीवन लौट रहा है। अर्थ व्यवस्था भी तब ही तरक़्क़ी करेगी अगर जीवन सामान्य रहेगा। लेकिन जैसे जैसे हम इस नई हल्की लहर का सामना कर रहें हैं हमें सावधानी नहीं छोड़नी चाहिए। डाकटर तथा विशेषज्ञ कह रहें हैं कि ‘मास्क इंफ़ेक्शन से बचातें है, और वैक्सीन गम्भीर बीमारी से बचाती है। इन दोनों को अपनाने की ज़रूरत है’। इसके साथ मैं यह भी जोड़ना चाहता हूँ कि इंसान की उम्र कुछ भी हो शारीरिक और मानसिक तौर पर सक्रिय रहना चाहिए । किसी भी बीमारी से बचाव के लिए शारीरिक और मानसिक मज़बूती ज़रूरी है । अपनी आयु और अवस्था के अनुसार व्यायाम या योग करना चाहिए। सही आहार भी ज़रूरी है।
लेकिन हम भारतीय क्या जो हर मामले में कोई रास्ता न निकाल लें। अब नया घोटाला है कि कोविड की फेक नेगेटिव रिपोर्ट मिलने लगी है। अगर आपने ट्रैवल करना है तो क्यू-आर कोड लगी नक़ली रिपोर्ट आसानी से मिल जाती है। जालन्धर से समाचार है कि एक महिला ने टैस्ट करवाया पर रिपोर्ट आने से पहले वह जाली रिपोर्ट लेकर उड़ गई। जब रिपोर्ट आई को वह पासिटिव निकली। ऐसा अब आम होगया हैं इसलिए स्वास्थ्य मंत्रालय को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। कई लैब इस में संलिप्त होंगी। इस महिला की तरह बेशर्म लोग बाहर इनफ़ेक्शन फेलाते है, देश को बदनाम करते हैं और हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता ख़त्म करते है। जब से मनसुख मॉडविया स्वास्थ्य मंत्री बने है विभाग बहुत सक्रियता से काम कर रहा है उन्हें अब सख़्ती से उन पर नियंत्रण करना चाहिए जो फेक रिपोर्ट तैयार करते हैं। यह अब बड़ा घोटाला बन चुका है।
मैं अपनी संक्षिप्त बीमारी के दौरान सुखद अनुभव का भी ज़िक्र करना चाहता हूँ। लैब ने हमारी पॉसिटिव रिपोर्ट सरकार को भेज दी। अगले दिन शाम से ही सरकारी विभागों से फ़ोन आने शुरू हो गए कि आपको कोई ज़रूरत है? हम किट दे जाएँ? अस्पताल जाना है ? तीन विभिन्न सरकारी विभागों दवारा हमारा हाल चाल पूछा गया। रविवार को भी दो फ़ोन आए। यह पता लगने पर कि हम वरिष्ठ नागरिक हैं, एक सरकारी कर्मचारी ने तो मुझे कहा, ‘सर, आप मेरा नम्बर सेव कर लें। मैं रात को खुला रखूँगा। अगर ज़रूरत हो तो बिना झिझक के फ़ोन करें’। मैं निस्तब्ध था। सोचा नहीं था कि अभी भी हमारे देश में ऐसी संवेदनशील सरकारी संस्कृति ज़िन्दा है !