
लद्दाख की गलवान वादी में भारत और चीन के बीच हिंसक टकराव के दो वर्ष से उपर हो चुकें हैं। इस टकराव में हमारे 20 जवान शहीद हुए थे और चीन के हताहत का सही आँकड़ा जारी नहीं किया गया। इस टकराव ने भारत चीन रिश्तों को दशकों के सबसे निचले स्तर पर ला खड़ा किया था। तब से दोनों देश सम्बंध सुधारने का कुछ प्रयास तो कर रहें हैं पर परनाला वहीं का वहीं है। रविवार को दोनों के बीच 16वें दौर की बारह घटें चली वार्ता भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँची। भारत चाहता है कि दोनों देशों की सेनाएँ उस जगह लौट जाएँ जहां मई 2020 के चीन के अतिक्रमण से पहले थीं, पर चीन का रवैया तो प्रतीत होता है कि जो हो गया सो हो गया अब बाक़ी मामलों में आगे बढ़ो। दोनों विदेश मंत्री बाली में जी-20 बैठक के दौरान मिल चुकें हैं जहां एक बार फिर एस जयशंकर ने ‘पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर.. जल्द समाधान’ की बात की है। पर इसका चीन पर असर पड़ा हो यह नज़र नहीं आता। ब्रिक्स शिखर वार्ता, जिसकी अध्यक्षता चीन के राष्ट्रपति शी जीनपिंग ने की थी और जिसके लिए चीन अति उत्सुक था कि प्रधानमंत्री मोदी ऑनलाइन शामिल हो जाएँ, के बाद चीनी विदेश मंत्री वॉग यी ने जयशंकर से कहा था कि दोनों देशों को ‘आपसी रिश्तों के सुनहरे भविष्य को प्रकाशमान करना चाहिए’। लेकिन उन्होंने पूर्वी लद्दाख जहां दोनों देशों के एक लाख सैनिक जमा हैं, से अपने सैनिकों को पीछे करने के बारे कुछ नहीं कहा। अब तो दोनों में मुलाक़ात नहीं होती, पर 2014-19 के बीच मोदी और शी जीनपिंग 18 बार मिल चुकें हैं पर एलएसी पहले की तरह विवादित है।
चीन के बोल आजकल ज़रूर कुछ नरम है। ग्लोबल टाईम्स जैसे उनके अख़बार जो न केवल हमारी आलोचना करते थे बल्कि हमारे कथित पिछड़ेपन का मज़ाक़ भी उड़ाते थे, का सुर कुछ बदला हुआ है। यह अख़बार तो हमारी पानी पुरी की भी तारीफ़ कर चुका है !आजकल चीन कह रहा है कि भारत और चीन सांझीदार है, प्रतिद्वंद्वी नही, पर ज़मीन पर कुछ असर नहीं हो रहा जिससे यह आभास मिलता है कि चीन जहां जम गया और जहां उसने बड़ा इंफ़्रास्ट्रक्चर खड़ा कर लिया है, वहाँ से वह हटने को तैयार नहीं। बीजिंग में भारत के नए राजदूत प्रमोद कुमार को वॉग यी ने कहा है कि, ‘ भारत और चीन को प्रतिस्पर्धी के तौर पर नहीं बल्कि साझेदार के तौर पर सीमा के मुद्दे को उपयुक्त जगह रखना चाहिए’। यह कथित ‘उपयुक्त जगह’ कौनसी है यह चीन खुद तय करना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी ने दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई दी है। कुछ चीनी कम्पनियों पर छापे मारे गए जिन पर आरोप है कि वह अवैध तरीक़े से पैसा चीन भेज रहें हैं। इसके साथ ही भारत सरकार ने यह सूचना बाहर निकाल दी कि भारत की अध्यक्षता में होने वाली जी-20 की तैयारी करने के लिए बुलाई जाने वाली बैठकें न केवल कश्मीर बल्कि लद्दाख में भी रखी जाएँगी। पाकिस्तान को तो तकलीफ़ होनी ही थी, चीन को भी तकलीफ़ हो रही है। यह उनके इस बयान से पता चलता है, ‘ सभी पक्षों को एकतरफ़ा फ़ैसले कर स्थिति को और पेचीदा बनाने से बचना चाहिए’।
पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फ़र्नाडिस ने एक बार चीन को भारत का दुश्मन नम्बर 1 कहा था। दबाव में उन्होंने अपना कहा तो वापिस ले लिया पर तब से लेकर अब तक स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन नहीं हुआ। आख़िर जून में गलवान में हिंसक हमले का मक़सद इसके सिवाय क्या था कि वह यथा स्थिति को बदलना चाहते हैं और हमारी सेना का अपमान करना चाहते थे? यह निश्चित राजनीतिक-सामरिक लक्ष्य को लेकर किया गया था। चाहे हमारी सेना ने जवाब दिया पर चीन की सेना ने क्योंकि पहल की थी इसलिए फ़ायदा में रहें और अब अंतहीन वार्ता में हमें उलझाए हुए हैं। हमने कैलाश रेंज पर क़ब्ज़ा कर उन्हें पैंगॉग झील के क्षेत्र में वार्ता के लिए मजबूर कर दिया था लेकिन वार्ता सभी टकराव क्षेत्रों के बारे करने की जगह सेक्टर अनुसार की गई। परिणाम है कि जहां से चीन नहीं निकलना चाहता था वहाँ वह आज भी जमा हुआ है।
हाल ही में अमेरिका के रक्षा मंत्री जेम्स आस्टिन ने भारत को चेताया है कि चीन हमारी सीमा पर लगातार अपनी स्थिति मज़बूत करता जा रहा है। एक और प्रमुख अमरीकी जनरल जो प्रशांत सागर क्षेत्र के कमॉंडिंग अफ़सर हैं, जनरल चार्लज़ फलिन्न ने कहा है, ‘चीन की सक्रियता आँखें खोलने वाली है। पश्चिमी क्षेत्र में जो इंफ़्रास्ट्रक्चर बन रहा है वह ‘अलॉरमिंग’ (ख़ौफ़नाक) है’। अमेरिका क्यों ऐसी भड़कीली भाषा का इस्तेमाल कर रहा है इसके अलग कारण हो सकते हैं कि वह चाहते हैं कि हम चीन के डर से पूरी तरह उनके कैम्प में आजाऐं, पर हमारे अपने अधिकारी और विशेषज्ञ चीन की हरकतों से परेशान हैं। थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडेय का कहना है कि चीन सीमा विवाद को जीवंत रखना चाहता है। मेजर जनरल जी जी द्विवेदी जो इस क्षेत्र में रैजिमैंट का नेतृत्व कर चुकें हैं, का कहना है कि इस क्षेत्र में अतिक्रमण कर चीन को टैकटिकल फ़ायदा यह है कि यहाँ से कई रास्ते जाते हैं जो चीन के नियंत्रण में आ जाएँगे। उनके अनुसार चीन भारत की सेना को भविष्य में आक्रामक कार्रवाई से रोकना चाहता है। ले.जनरल दीपेन्द्र हुड्डा चीन के इरादे की चेतावनी देते हुए सलाह देते हैं कि हमें अपनी क्षमता बढानी चाहिए ताकि भविष्य में टकराव की स्थिति में हम उन पर ‘दंडात्मक लागत’ वसूल कर सकें। एलएसी पर चीन के बढ़े इंफ़्रास्ट्रक्चर के बारे जनरल हुड्डा का कहना है कि हमें प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानी चाहिए।
चीन की सक्रियता कैसी है यह पैंगॉग झील के उपर पुल के निर्माण से पता चलता है। यहाँ पहले एक पुल का निर्माण किया गया अब दूसरे पुल का निर्माण किया जा रहा है। हम कह चुकें है कि यह अवैध है और हमारी भूमि पर बनाया जा रहा है पर चीन परवाह नहीं कर रहा। पहले चीन को अपनी उत्तरी पोसीशन से दक्षिणी पोसीशन तक घूम कर 150 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता था। जून 2020 के टकराव से सबक़ लेते हुए अब पुल निर्माण किए जा रहे हैं जिससे दस घंटे की जगह वह केवल तीन घंटो में उत्तर से दक्षिण तक पहुँच सकेंगे और टैंक और भारी तोपख़ाना पहुँचा सकेगा। 130 किलोमीटर लम्बी पैंगॉग झील के उत्तर से दक्षिण अपने सैनिक पहुंचाना चीन के लिए सदा ही समस्या रही है। अब उन्होंने इसका हल तैयार कर लिया है।
चीन का इरादा नियंत्रण रेखा को अस्थिर रखना है। उसने अरुणाचल प्रदेश जिसे वह दक्षिणी तिब्बत कहता है, में 15 जगह को चीनी नाम दे दिए हैं। वह जानता है कि उसकी आर्थिक ताक़त हमसे बहुत अधिक है। उसे एक क्षेत्र में सफलता भी मिल रही है। 2021 में भारत और चीन के बीच व्यापार रिकार्ड् 125.6 अरब डालर था। एक साल में यह 43 प्रतिशत की भारी वृद्धि है जबकि इसका उलट होना चाहिए था, व्यापारिक रिश्ते कमजोर होने चाहिए थे। व्यापार का संतुलन चीन की तरफ़ 70 अरब डालर झुका हुआ था। यह हैरानी की बात है कि भारत सरकार का इस तरफ़ उदार रवैया है। अब अवश्य कुछ चीनी मोबाइल कम्पनियों पर छापे पड़ रहे हैं पर असली ज़रूरत है कि चीन पर निर्भरता कम की जाए। भारत वियतनाम जैसे देशों के साथ अपने सैनिक सम्बंध बढ़ा रहा है जिनके चीन के साथ विवाद हैं। चीन को बड़ा संदेश टोक्यो के कवाड शिखर सम्मेलन के द्वारा दिया गया है कि कमजोर होने की जगह यह गठबंधन और मज़बूत हो रहा है और वह इस क्षेत्र में संतुलन क़ायम रखना चाहता है।अमेरिकी अधिकारी तो कह ही रहें है कि भविष्य में उन्हें चीन से सबसे अधिक ख़तरा है पर हमारी सुरक्षा के लिए भी कवाड जैसे गठबंधन सामरिक अनिवार्यता बन गए हैं।
इस बीच यूक्रेन में युद्ध चल रहा है जिसका अंत क्या होगा कोई नहीं जानता पर यह तो साफ़ है कि पुटिन का आँकलन ग़लत निकला। वह पश्चिमी देशों के गठबंधन को कमजोर करना चाहते थे उल्टा मज़बूत कर गए। न ही युद्ध अल्पकालिक रहा जैसा उन्होंने सोचा था। आख़िर में रूस कमजोर पड़ेगा और इसका असर चीन पर भी पड़ सकता है। जिस तरह के प्रतिबंध रूस पर लगाए गए हैं उनसे चीन को भी संदेश भेजा जा रहा है। शी अपने से पहले चीनी नेता डेंग की सलाह पर नहीं चल रहे कि धीरे चलो और चुपचाप खुद को मज़बूत करो। चीन अपनी धौंस के कारण अपने पड़ोसियों का विश्वास पूरी तरह खो बैठा है। ग्लोबल सप्लाई चेन को लेकर भी हमारे साथ तगड़ी स्पर्धा है। भारत में लेबर कॉस्ट कम है और कई कम्पनियाँ चीन को छोड़ कर यहाँ आना चाहती हैं। निकट भविष्य में भारत की विकास दर चीन से अधिक रहने की सम्भावना है। भारत की मैनुफ़ैक्चरिंग हब बनने की महत्वाकांक्षा भी चीन को नापसंद है। वह समझते हैं कि भारत और पश्चिमी देशों के बीच जो लगातार उच्च स्तरीय बैठकें हो रही हैं, उनका भी एक मक़सद चीन की आर्थिक ताक़त का स्थान लेना है और पश्चिमी देशों को तैयार करना है कि वह अपनी टैकनालिजी और निवेश चीन से हटा कर भारत ले आएँ।
अमेरिका की वह ताक़त नहीं रही पर अभी भी वह सबसे शक्तिशाली गठबंधन का नेतृत्व करता है। अमेरिका की आपत्ति के बावजूद भारत द्वारा रूस से तेल मँगवाने की प्रशंसा करते हुए चीन ने इसे ‘भारत की स्वतंत्रता’ की परम्परा कहा है। चीन भारत को अमेरिका से दूर रखना चाहता है पर उनकी अपनी हरकतों के कारण उलट हो रहा है और भारत और अमेरिका बहुत नज़दीक आ गए हैं। चीन की धौंस का सामना करने के लिए हमें ताकतवर साथी चाहिए चाहे ज़मीन पर मुक़ाबला हमने ही करना है। देश के अन्दर बहुत भारी चीन विरोधी भावना है जिसे कोई सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। बहरहाल सम्बंध तनावपूर्ण है, और रहेंगे भी। एशिया की म्यान में दो तलवारें है। चाहे उनकी तलवार का आकार बढ़ा है पर ज़ख़्म पहुँचाने की क्षमता हम भी रखते है। इस क्षमता को और बढ़ाने की ज़रूरत है।