देश आर्थिक और सामरिक तौर पर मज़बूत हो रहा है, इसके बारे अब कोई शक नहीं रहा। दो साल के गतिरोध के बाद चीन भी अपने सैनिक वापिस ले जाने के लिए तैयार हो गया है। अगर यहाँ राजनीतिक अस्थिरता का दौर नहीं आया तो भारत लगातार तरक़्क़ी करता जाएगा। पर जहां देश तरक़्क़ी कर रहा है, हमारा समाज पहले से अधिक विभाजित और अनुदार बनता जा रहा है। आज तो हालत यह है कि एक ट्वीट आपको जेल भेज सकता है। सागर के जैन मंदिर का समाचार है जहां पुजारी ने एक बच्चे को पेड़ से बांध कर पीटा क्योंकि उसने पूजा की थाली से बादाम खा लिए थे। क्रिकेट के खिलाड़ी अर्शदीप का मामला बहुत पुराना नहीं जब एक कैच छोड़ने पर उसे ‘खालिसतानी’ करार दिया गया जबकि दो मैचों में आख़िरी ओवर में उसने ग़ज़ब का नियंत्रण दिखाया। सोचता हूँ कि अगर यही कैच कहीं शमी से छूट जाता तो हमारे ठेकेदार तो उसे पाकिस्तान जाने की सलाह दे देते ! हाल ही में ‘ब्रह्मास्त्र’ फ़िल्म के एक्टर रणबीर कपूर तथा आलिया भट्ट को उज्जैन के महाकाल मंदिर मे दर्शन करने से कुछ लोगों ने रोक दिया। दोनों के खिलाफ उनके अतीत के कथन को लेकर यह प्रदर्शन किया गया। सवाल है कि कोई किसी को मंदिर में जाने से ज़बरदस्ती कैसे रोक सकता है? किसने इन लोगों को यह अधिकार दिया है? हमारे धर्मस्थलों के द्वार तो अपराधियों के लिए भी खुलें है फिर इन्हें क्यों रोका गया?
लेकिन सबसे चिन्ताजनक बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई और उनका स्वागत है। बीबीसी ने एक रिपोर्ट में सवाल किया है कि क्या भारत मे बलात्कारियों के सत्कार से यह समझा जाए कि भारत में रेप सामान्य जाने लगा है? जब निर्भया का मामला हुआ तो सारा देश एक आवाज़ में चीख उठा था और सरकार को सख़्त कानून बनाने के लिए मजबूर कर दिया था। पर जब बिलकिस बानो के रेपिस्ट और उसकी तीन वर्ष की बेटी का सर ज़मीन से पटक पटक कर मारने वालों को रिहा कर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया कि जैसे वह कोई बड़ा मोर्चा फ़तह कर आए हो, देश लगभग चुप रहा। तुषार गांधी ने कहा है, “निर्भया के समय सारा देश एक जुट हो कर उठ खड़ा हुआ और यह देखा कि न्याय किया जाए। पर जब बिलकिस बानो के मामले में न्याय का मज़ाक़ उड़ाया गया और उसे निष्फल बनाया गया, तो हम भारत के लोग ख़ामोश हो गए। शेम !’
2002 के गुजरात के दंगों के दौरान बिलकिस बानो नामक गर्भवती महिला के साथ 11 लोगों ने बलात्कार किया था। पहले उसकी माँ के साथ किया गया फिर माँ ने अपनी बेटी से बलात्कार होते देखा।फिर उसकी दो बहनों से बलात्कार किया गया। उसकी गोद में उसकी तीन साल की बेटी को छीन कर उसका सर जमीन से पटक पटक कर उसे मार दिया गया। और यह करने वाले कोई अनजान नहीं थे बल्कि उसके पड़ोसी थे। न्याय हो इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुजरात से निकाल कर मुम्बई भेज दिया जहां इन 11को आजीवन कारावास की सजा दी गई । लेकिन 15 साल में ही उन्हें गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया। जिस तरह रिहा किया गया वह ही कई सवाल खड़े कर गया है। जिस सुप्रीम कोर्ट ने मामला गुजरात से बाहर भेजा था उसी ने रिहाई का फ़ैसला गुजरात सरकार पर छोड़ दिया। और गुजरात सरकार ने जो कमेटी बनाई उसमें भाजपा समर्थक भरे हुए थे। 2014 में इस सरकार ने कानून बनाया था कि जो हत्या और सामूहिक बलात्कार के अपराधी हैं उनकी दया याचिका ही स्वीकार नहीं हो सकती, पर इन्हें विजेताओं की तरह रिहा कर दिया गया। गृह मंत्रालय की अपनी गाइडलाइन कहती है कि रेप करने वालों को जल्दी रिहा करने की रियायत से बाहर रखा जाए।अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है। आशा है देश की बड़ी अदालत न केवल बिलकिस बानो तथा उसके परिवार के साथ न्याय करेगी बल्कि देश की इज़्ज़त पर लगा यह धब्बा भी मिटा देगी। देश में न्यायिक प्रक्रिया की शुचिता पर आँच नहीं आनी चाहिए। यह प्रभाव सही नहीं कि यहाँ मज़हब देख कर न्याय, या अन्याय, मिलता है।
जब निर्भया कांड हुआ तो कई विदेशी अख़बारों ने भारत को ‘दुनिया की रेप-राजधानी’ कहा था। तब हम सबने इस पर तीखी और जायज़ आपत्ति की थी। पर यहाँ तो कुछ बेशर्म और आगे बढ़ गए और उन्होंने सरेआम इन ग्यारह लोगों को हार डाले, पाँव छुए और उन्हें मिठाई खिलाई। पर अफ़सोस है कि इस घृणित हरकत पर इस बार इस देश की आत्मा तड़प नहीं उठी। क्या बिलकिस बानो भारत की बेटी नहीं है? क्या रेप जैसी घृणित घटना पर भी हमारा नज़रिया फ़िरक़ापरस्त होगा? ऐसा आभास मिलता है कि पुरानी नफ़रतें आज के भारत के समाज को फाड़ रही है। भाजपा के नेता सी के रौलजी जो उस कमेटी के सदस्य थे जिसने इनकी रिहाई की थी, का कहना है कि ‘यह सब ब्राह्मण है और ब्राह्मणो के अच्छे संस्कार होते हैं’। समाज में अभी कुछ लोग अवश्य है जो इस घटनाक्रम जिससे हर भारतीय का सर झुकना चाहिए, की निन्दा कर रहें हैं। शांता कुमार का कहना है कि इन्हे फाँसी की सजा मिलनी चाहिए थी। भाजपा नेता ख़ुशबू सुन्दर का कहना है कि ‘मैं स्वीकार नहीं कर पा रही कि दोषियों की रिहाई हुई है…एक देश के तौर पर हम कहाँ जा रहे है?’ महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री दवेन्द्र फडणवीस ने भी निन्दा की है। अफ़सोस की न्यू इंडिया में एक नेता नहीं जो बढ़ती नफ़रत को रोक सके। क्या सब कुछ राजनीति है? हम ‘संस्कार वाले रेपिस्ट’ तक कैसे पहुँच गए?
मामला इंसानियत का है। बिलकिस बानो ने भी दुखी हो कर पूछा है कि क्या न्याय के लिए एक महिला के संघर्ष का यह भी अंत हो सकता है? जिस जज ने बिलकिस बानो के रेपिस्ट को सजा दी थी, रिटायर्ड जज उमेश सालवी, ने भी सवाल किया है कि ‘सरकार के पास रिहाई का अधिकार है…लेकिन उसे अधिक संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी… रिहाई क़ानून के अनुसार थी, पर क्या वह न्याय संगत थी’? अफ़सोस है कि समाज बुरी तरह बंट गया है। हम सबने साम्प्रदायिक चश्मा लगा लिया है और सब कुछ हिन्दू- मुस्लिम हो गया है। हमारी हर प्रतिक्रिया तीखी हैं। जब से भाजपा नेता नूपुर शर्मा ने पैगम्बर साहिब के खिलाफ टिप्पणी की है, हालत और बिगड़ गए है। तेलंगाना के भाजपा विधायक राजा सिंह ने फिर पैगम्बर साहिब के खिलाफ टिप्पणी की है। क्या ज़रूरत थी इसकी इसके सिवाय कि विधायक और तनाव खड़ा करना चाहता था? मई में जयपुर में भाजपा कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताओं को सम्भल कर बोलने की नसीहत दी थी पर कोई असर नहीं हुआ लगता। राजा सिंह को पार्टी ने तत्काल निलम्बित कर दिया और उसे गिरफतार कर लिया गया। मामला ख़त्म हो जाना चाहिए था पर हैदराबाद में व्यापक प्रदर्शन हुए। वहाँ ‘सर तन से जुदा’ के सार्वजनिक नारे लगाए गए। मैंने पहले कभी ऐसे नारे नहीं सुने। जिस प्रकार नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद उदयपुर के दर्ज़ी का सर कलम किया गया और उसका वीडियो बनाया गया, ऐसी घटनाएँ भी पहले हमने सुनी नहीं थी। भारत में ऐसी क्रूर इस्लामी सजा की जगह नहीं होनी चाहिए।
अफ़सोस है कि हम ग़लत रास्ते पर चल निकलें हैं। बैंगलुरु जैसे मार्डन शहर में टीपू सुल्तान और वीर सावरकर की तस्वीरों को लेकर विवाद हो चुका है। हमने राजपथ का नाम बदल कर वहाँ इंडिया गेट पर नेताजी का बुत लगा दिया है पर क्या हम नेताजी के पूर्ण सैकयूलर ‘कर्तव्य पथ’ पर भी चलेंगे? इतिहासकार सुगाता बोस ने बताया है कि नेताजी की आईएनए के तिरंगे झंडे के बीच में पहले टीपू सुल्तान का ‘उड़ता टाइगर’ था। लेकिन अब झगड़ा है। इस देश में दोनों टीपू सुल्तान और वीर सावरकर की जगह क्यों नहीं हो सकती? लखनऊ और भोपाल की मॉल में नमाज़ पढ़ने का प्रयास हो चुका है। जवाब में कहा गया कि हम हनुमान चालीसा पढ़ेंगे। हमारे देश में इतने ख़ाली लोग क्यों है जिनका धंधा शरारत करना है? बेंगलूर के ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी मनाने को लेकर विवाद हो गया जिसमे सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा। अव्वल तो वहाँ यह माँग उठनी ही नहीं चाहिए थी क्योंकि जैसे बड़ी अदालत ने भी कहा है, वहाँ 200 सालों से गणेश चतुर्थी नहीं मनाई गई। पर अगर माँग आई है तो ईदगाह के प्रबंधक इसे मान लेते तो क्या हर्ज होता? पर ऐसी उदारता हमारे समाज से लुप्त होती जा रही है।
भाजपा के पूर्व मंत्री जयंत सिन्हा ने उन 8 व्यक्तियों का हार डाल कर स्वागत किया था जिन पर लिंचिंग का आरोप था और जो परोल पर रिहा हो कर आए थे। उनका कहना था कि वह ‘न्यायिक प्रणाली का सम्मान कर रहे हैं’। किसी भी समाज में रेपिस्ट या हत्यारों का तुष्टिकरण या महिमागान पूर्ण रूप में अस्वीकार होना चाहिए पर यहाँ तो हार डालना शुरू हो गया है। सबसे अधिक चिन्ताजनक घटनाएँ कर्नाटक से मिल रही है। यह वही सरकार है जो बैंगलुरु को डूबने से बचा नहीं सकी पर अगले साल होने वाले चुनावों को देखते हुए उन घटनाओं की इजाज़त दे रही है जिनका अंजाम और अधिक बँटवारा होगा। बैंगलुरु अपनी प्रतिभा और खुली सोच वाले युवाओं के लिए दुनिया में प्रसिद्ध है पर अब वैकल्पिक नकारात्मक छवि बन रही है।
ऐसा आभास मिलता है कि हम एक दूसरे से युद्धरत हैं जबकि असली ख़तरा सीमा पर है। विचारों में उदारता की जगह कर्कशता ने ले ली है। हमारा समाज सदैव उदार और परिपक्व रहा है। हमने दुनिया भर के बेसहारों को सहारा दिया था पर अब सब बदल रहा है। हमारे विचारों में अकड़ आगई है और बर्दाश्त ख़त्म हो रही है। हमारे सभी धर्म और विचारधारा प्राचीन है। हमलावर इन्हे ख़त्म नहीं कर सके, मात्र एक टिप्पणी या ट्वीट से यह ख़तरे में पड़ने वाले नही। उल्टा हमें आज अपने स्वयंभू संरक्षकों से ख़तरा है जिनका बेअकल जोश बराबर नुक़सान कर रहा है। इस बीच ‘ब्रह्मास्त्र’ फ़िल्म रिकार्ड तोड़ रही है। जिन्होंने बॉयकॉट का आह्वान किया था उनके मुँह पर जनता का यह कड़ा थप्पड़ है।