जिस ग्रेट ब्रिटेन, अब तो ख़ैर वह ‘ग्रेट’ रहा नही, ने 200 साल भारत पर राज किया उसी ने अपने बनाए घपले से निकलने के लिए अपनी बागडोर एक ऐसे भारतवंशी को सौंप दी है जो गर्व के साथ कह रहा है कि वह हिन्दू है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे सही ‘अभूतपूर्व मील पत्थर’ कहा है। ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले ग़ैर ईसाई प्रधानमंत्री है। वह पूरी तरह से ब्रिटिश है पर संस्कार पंजाबी हिन्दू के है। भारत में उनके ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने पर बहुत ख़ुशी हैं। एक चैनल ने इसे ‘दिवाली धमाका’ कहा है। एक ने हेडलाइन दी थी कि ‘साम्राज्य पर भारतीय पुत्र का सूर्योदय’ तो जोश में बहते हुए एक ने इसे ‘दुनिया में भारतवंशियों की धाक’ कहा है। यह याद किया जा रहा है कि भारतीय मूल के नौ लोग या तो विभिन्न राज्यों के प्रधान है या सरकार के प्रमुख है। इसी के साथ कमला हैरिस को भी जोड़ा जासकता है जो अमेरिका की उपराष्ट्रपति हैं, चाहे बहुत प्रभावी नहीं है।
पर ऋषि सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना विशेष है। जब अपने सरकारी आवास 10 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर उन्होंने लोगों का अभिवादन किया तो उनके हाथ में कलावा बांधा हुआ था। यह भी नोट किया जा रहा है कि वह शाकाहारी हैं, शराब नहीं पीते और गो-पूजा करतें हैं। वहाँ रह रहे भारतीय समुदाय के लिए यह जश्न का समय है कि जिस देश में वह दशकों से नस्ली ताने सुनते रहे वहाँ उनमें से एक प्रधानमंत्री बन गया है। फ़िल्म निर्माता गुरिन्दर चड्डा वहाँ बसे भारतीय समुदाय की भावना व्यक्त करती हैं, ‘ अगर हम यह देखें कि मेरे माँ-बाप ब्रिटिश ईस्ट अफ़्रीका में दुर्दशा और अपमानित ज़िन्दगी से गुजरे थे और इंग्लैंड में आने पर उन्हें नस्ली कीचड़ सहना पड़ा था, हम इस लम्हे का आनन्द ले रहे हैं’। फ़िल्म निर्माता शेखर कपूर भी बताते हे कि उनकी वहाँ पिटाई इसलिए हो गई थी कि उन्होंने एक गोरी के साथ घूमने की जुर्रत की थी। टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार वहाँ हिन्दुओं की जनसंख्या का 10 लाख हैं। यह वही लोग हैं जिनके बारे आज तक के उनके सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा था कि वह ‘इंडियनस से घृणा करता है’ जो ‘ जाहिल लोग हैं जिनका जंगली धर्म है’। चर्चिल ने तो भारतीय नेतृत्व के बारे यह भी कहा था कि ‘यह तिनकों से बने लोग है…जिनका 50 साल में नामोनिशान नहीं मिलेगा’। इतिहासकार याद करते हैं कि एक समय गोरों के क्लबों के बाहर लिखा होता था कि ‘इंडियनस ऐंड डॉग्स नॉट अलाउड’।
यह एक सुखद विडम्बना है कि न केवल हम 75 वर्ष पार कर गए, हमारी अर्थव्यवस्था इंग्लैंड को पार कर पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है, और आज एक ‘हिन्दू’ वहाँ का प्रधानमंत्री बनाया गया है ताकि गोरों द्वारा खोदे गए कुऐं से उन्हें निकाला जा सके ! सचमुच इतिहास का पहिया पूरा घूम गया है! चर्चिल के देश में ऋषि सुनक ने मंत्री बनते वकत गीता पर हाथ रख शपथ ली थी। उनकी पत्नी ने अपनी भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी। जिस देश में एंग्लिकन चर्च हावी है और नेता लोग बाइबिल का सार्वजनिक पाठ करतें हैं, वहाँ ऋषि सुनक ने कभी भी अपनी ‘हिन्दू- नैस’ नहीं छिपाई। यह निश्चित तौर पर उनकी ईमानदारी प्रदर्शित करती है, पर यह भी बताती है कि वह देश भी कितना बदल रहा है। बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल में 20 प्रतिशत सदस्य अश्वेत या एशियन मूल के थे। पिछले चार वित्त मंत्री और दो गृहमंत्री और एक विदेश मंत्री आप्रवासी परिवारों से थे। यह भी उल्लेखनीय है कि कंजर्वेटिव पार्टी के 200 सांसदों ने ऋषि सुनक का समर्थन किया था। उनके गोरे प्रतिद्वंद्वी तो शुरूआती समर्थन भी प्राप्त नहीं कर सके। संदेश अब यह जा रहा है कि इंग्लैण्ड धीरे धीरे वह समाज बन रहा है जहां धर्म या जाति या नस्ल पर योग्यता को प्राथमिकता दी जाती हैं। न्यूयार्क टाईम्स में मार्क लैंडलर ने भी विशेष टिप्पणी की है कि ब्रिटेन के सर्वोच्च पद पर वह व्यक्ति विराजमान हैं जो हिन्दू धर्म को मानता है।
यह नहीं कि ऋषि सुनक के सामने चुनौती नहीं है। यह मालूम नहीं कि किंग चार्ल्स की पत्नि कैमिला के ताज में कोहीनूर का हीरा होगा या नहीं क्योंकि वहाँ यह राय है कि भारत को चिढ़ाना बंद करें और कोहीनूर को ताले में रख दें, पर ऋषि सुनक के सर पर निश्चित तौर पर काँटों का ताज है। उनके चुनाव क्षेत्र के पूर्ववर्ती सांसद लार्ड हेग जो विदेश मंत्री भी रह चुकें है, ने उनकी क्षमता की प्रशंसा करते हुए कहा है कि ‘उनकी ज़िम्मेदारी दुनिया में सबसे मुश्किल जॉब में गिनी जाएगी। ऐसे समय में जिसे इतिहास में सबसे बुरा कहा जा सकता है’। इंग्लैंड के सामने ‘गम्भीर आर्थिक चुनौती’। ऋषि सुनक का पहला काम तो जहाज़ को और डूबने से बचाना होगा। जब से वह देश यूरोप से बाहर आया है उसकी समस्या नियंत्रण में नहीं आ रही। एक तरफ़ अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए और निवेश की ज़रूरत है तो दूसरी तरफ़ बजट में 43 अरब डालर का घाटा है। इसका अर्थ है कि सरकार को खर्च कम करना पड़ेगा और राजस्व बढ़ाने के लिए कदम उठाने होगा। कोविड और यूक्रेन युद्ध के कारण समस्या बढ़ गई है। नए प्रधानमंत्री ने ‘ विश्वास और स्थिरता बढ़ाने के लिए कड़वे कदम’ उठाने का वादा किया है पर इसकी राजनीतिक क़ीमत भी तो चुकानी पड़ेगी। महंगाई के कारण लोग महसूस कर रहें हैं कि उनके पैसे की क़ीमत कम हो रही है। रेल, पोस्टल, शिक्षा, नर्सिंग से जुड़े बहुत यूनियन या तो हड़ताल पर चले गए हैं, या जाने की धमकी दे रहे हैं। नए प्रधानमंत्री को एक साथ महंगाई को सम्भालना है, सरकार की आर्थिक सेहत बेहतर करनी है, विकास को नई गति देनी है, अपनी विभाजित पार्टी में एकता लानी है और यह सब करते हुए देश को राजनैतिक स्थिरता देनी है। और यह ऐसे समय में करना है जब दशकों की वृद्धि के बाद देश की जीडीपी गिरने लगी है।
भारत में, और दुनिया के दूसरे कोनों में स्थित भारतवंशी ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर खुश तो बहुत हैं पर हमें समझना चाहिए कि चाहे वह हिन्दू हैं पर उनकी ज़िम्मेदारी उनका अपना देश है। जैसे लार्ड मेघनाद देसाई ने लिखा है ‘ऋषि सुनक उतने ही भारतीय होंगे जितने बराक ओबामा कीनियावासी थे’। ओबामा के साथ तुलना बहुत की जाती है क्योंकि दोनों ने अपने अपने देश के पूर्वाग्रहों पर विजय पाई है। ओबामा की प्राथमिकता अमेरिका थी, कीनिया का चक्कर वह लगा आए थे पर और दिलचस्पी नहीं थी। ऋषि सुनक की प्राथमिकता केवल और केवल उनका देश होगा जहां पहले ही उनके विकल्प सीमित है। उनकी विदेश नीति भी अमेरिका और पश्चिम के देशों के अनुसार होगी। पूर्व राजदूत नवदीप सूरी ने सही लिखा है कि ‘भारत उनके एजेंडे में पहला विषय नहीं है’। भारत में उनकी दिलचस्पी इस बात को लेकर होगी कि हम क्या मदद कर सकते है? अनुभव यह है कि ऋषि सुनक जैसे जितने लोग विदेशों में सफल होते हैं वह ज़रूरत से अधिक मातृभूमि से दूरी बनाने की कोशिश करते हैं। यह लोग तो मुहावरे के अनुसार किंग से भी अधिक वफादार साबित होने की कोशिश करते हैं। क्या कोई कह सकता है कि कमला हैरिस का भारत से कोई सम्बन्ध है? सुनक को यह भी चिन्ता होगी कि वहाँ का मीडिया जो आमतौर पर नस्ली और भारत विरोधी है, उनके पीछे न पड़ जाए। इसलिए भारत के प्रति बहुत सम्भल कर चलेंगे।
भारत के साथ ऋषि सुनक की पहली दिलचस्पी मुक्त व्यापार समझौते को लागू करना होगी। यह मामला कुछ देर से लटक रहा है। नया विवाद उनकी गृहमंत्री सुएला बेवरमैन की टिप्पणी से पैदा हुआ था कि अगर यह समझौता हो जाता है तो अवैध प्रवासियों की बाढ आ जाएगी जिसमें सबसे अधिक भारतीय होंगे। यह उन्होंने पिछली सरकार के समय कहा था जिस पर घोर आपत्ति करते हुए भारत ने समझौते से हाथ खींच लिए थे। भारत सिर्फ़ अपने प्रोफेशनलस के लिए के लिए उदार वीज़ा नियम चाहता है जो बेवरमैन विरोध कर रही थी। अब ऋषि सुनक ने इसी सुएला बेवरमैन के दोबारा गृहमंत्री बना दिया है। जिसका अर्थ है कि वह उसके कट्टर विचारों से सहमत हैं। उल्लेखनीय है कि सुएला बेवरमैन के दोनों माता पिता भी भारतीय मूल के हैं। समझ जाना चाहिए इनके लिए भारत भी एक और देश है, केवल रिश्ते मैत्री पूर्ण हैं। भारत को यह आशा नहीं करनी चाहिए कि सुनक हमें प्राथमिकता देंगे या कोई रियायत देंगे। वह कह ही चुकें हैं कि रिश्ता दो तरफ़ा होना चाहिए । लंडन के किंग्स कॉलेज के प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत का कहना है , ‘ उनकी नियुक्ति से मुक्त समझौते में और अड़चन आ सकती है … भारतीय मूल के व्यक्ति होने के कारण वह यह नहीं दिखाना चाहेंगे कि वह भारत के प्रति नरम हैं’।
पश्चिम के देश चीन विरोध के कारण इस समय हमारे पक्ष है पर उनका इतिहास बताता है कि वह किसी नई शक्ति को उभरते नहीं देख सकते। हमारा उभार भी एक सीमा तक ही बर्दाश्त किया जाएगा। जहां तक ऋषि सुनक का सवाल है हमें उनकी कामयाबी की दुआ करनी चाहिए, इससे अधिक कुछ आशा नहीं करनी चाहिए। दोनों के राष्ट्रीय हित अलग हैं, टकराव भी हो सकता है। क्या सुनक के उत्थान में हमारे लिए भी कोई सबक़ है? शशि थरूर ने सवाल किया है कि, ‘ ईमानदारी से पूछिए क्या यहाँ ऐसा हो सकता है’? इसको लेकर कुछ विवाद भी हुआ है। हमारे तीन मुस्लिम राष्ट्रपति और एक सिख प्रधानमंत्री रह चुकें हैं पर मैं नहीं समझता कि अभी देश मुस्लिम प्रधानमंत्री स्वीकार करने को तैयार होगा। इतनी उदारता अभी हमारे में नहीं है। अफ़सोस है कि अभी तक सोनिया गांधी के इतालवी मूल का मामला भी पीछा नहीं छोड़ रहा जबकि इंग्लैंड में कोई आपति नहीं कर रहा कि नए प्रधानमंत्री की पत्नि ने अपना भारतीय पासपोर्ट नहीं छोड़ा। हम अक्षता मूर्ति सुनक पर तो गर्व करते हैं पर अपने देश में ऐसी उदारता से दूर जा रहे हैं। ऋषि सुनक की भारी कामयाबी पर ख़ुशी मनाते हुए हमें भी सोचना चाहिए कि हमारी दिशा कुछ गड़बड़ा गई है। इसे सही करने की ज़रूरत है।