
बेनजीर भुट्टो की हत्या.27 दिसम्बर 2007 को रावलपिंडी में एक रैली में हुई थी। यह उनकी हत्या का पहला प्रयास नहीं था। दो महीने पहले 18 अक्तूबर 2007 को जब वह निर्वासन से कराची लौटी थीं तो हवाई अड्डे से रैली की तरफ़ जाते हुए दो बड़े बम विस्फोट हुए थे। बेनजीर बच गईं थीं पर विसफोट इतने भारी थे कि 139 लोग मारे गए और 450 घायल हो गए थे। इमरान खान पर जो क़ातिलाना हमला हुआ उससे पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की हत्या के घटनाक्रम की याद ताज़ा हो गई है। क्या यह ट्रेलर है? कराची के द डौन अख़बार ने अपने सम्पादकीय में देश को चेतावनी दी है कि, ‘ सब पक्षों को एकमत होना चाहिए कि बेनजीर भुट्टो की हत्या, उसके बाद पैदा हुई अराजकता और विनाश, दोबारा देश में पैदा न हों’। चिन्ता स्वभाविक है। बेनजीर की ही तरह इमरान खान देश में बहुत लोकप्रिय है और उनका भी जिसे वहाँ इसटैबलिशमैंट अर्थात् स्थापित व्यवस्था, (सरकार, सेना और आईएसआई), के साथ भीषण टकराव चल रहा है। उन्होंने अपनी हत्या के प्रयास के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह और आईएसआई के उच्चाधिकारी मेजर जनरल फैज़ल नसीर पर इलजाम लगाया है।
पाकिस्तान में अब आशा की जा रही है कि यह मामला यहाँ तक ही रूक जाए और बेनजीर वाला हश्र न हो नहीं तो खून की नदियाँ बह जाऐंगी। हत्या के प्रयास के बाद इमरान खान की लोकप्रियता आसमान तक पहुँच चुकी है और वह न केवल अपने राजनीतिक विरोधियों पर बल्कि सेना पर भी आरोप लगा रहें हैं। वह तो सेना के उच्चाधिकारियों को ‘जानवर’ और ‘ग़द्दार तक कह चुकें हैं। पाकिस्तान जहां सेना का दरजा बहुत ऊँचा है, में ऐसी गाली निकालने की जुर्रत पहले कोई नहीं कर सका। पर इमरान खान लापरवाह हैं। ईगो भी बहुत बड़ी है। अपने संक्षिप्त शासन में अपने असावधान बोल के कारण सेना के इलावा उन्होंने अमेरिका को भी नाराज़ कर लिया है। पाकिस्तान का खूनी इतिहास है कि वहाँ की ‘स्थापित व्यवस्था’ किसी को माफ़ नहीं करती। कोई भी ऐसा नेता नहीं जिसने सेना को चुनौती दी हो और अपनी सफलता का आनन्द उठा सका हो। पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान को रावलपिंडी में गोली मार दी गई थी। ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फाँसी पर चढा दिया गया था। बेनजीर को हत्या के पहले असफल प्रयास के दो महीने के बाद ख़त्म कर दिया गया। नवाज़ शरीफ़ लंडन में निर्वासन की ज़िन्दगी व्यतीत कर रहें हैं और वापिस लौटने से घबरा रहें है। और अब इमरान खान का शक्तिशाली व्यवस्था के साथ पंगा पड़ गया है। अंजाम शांतिमय नही होगा। प्रसिद्ध विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन का कहना है कि पाकिस्तान बारूद के ढेर पर बैठा है और कभी भी धमाका हो सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि बेनजीर का कातिल आज तक पकड़ा नहीं गया। कहा जा रहा है कि इमरान खान पर हमला एक आदमी ने नहीं किया और उसके पीछे बड़ी साज़िश है। अगर यह हक़ीक़त है तो मामला अभी ख़त्म नहीं हुआ।
बेनजीर के समय और आज के पाकिस्तान में एक बुनियादी अंतर है। पाकिस्तान की सेना की प्रतिष्ठा बहुत गिर चुकी है। पहली बार है कि खुलेआम सेना पर आरोप लग रहें हैं और सेना को बचाव के लिए आगे आना पड रहा है। देश की वर्तमान हालत के लिए ‘दो परिवारों’, अर्थात् शरीफ़ और ज़रदारी परिवार, के अतिरिक्त सेना के उच्चाधिकारियों को भी बराबर ज़िम्मेवार ठहराया जा रहा है। सारा पाकिस्तान जानता है कि जब देश का पतन हो रहा था तो सैनिक उच्चाधिकारी अपनी जेबें भर रहे थे। इमरान खान पर हमले के बाद पेशावर में लोग कोर कमांडर के आवास के बाहर आज़ादी के नारे लगाते प्रदर्शन कर रहे थे। पेशावर में ही लोग एक टैंक पर चढ़ गए और खूब तोड़फोड़ की। कुछ समय पहले तक ऐसी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी कि लोग ‘फ़ौज’ के खिलाफ भी प्रदर्शन कर सकतें हैं। सेना के लिए भारी धर्म संकट है। वह इस खुली चुनौती को अधिक देर बर्दाश्त नहीं कर सकते पर अगर दमन का सहारा लेते हैं तो सड़कों पर लोगों से टकराव हो सकता है। पाकिस्तान में हमारे पूर्व राजदूत टी.सी.ऐ.राघवन ने लिखा है, ‘ पाकिस्तान की सेना ऐसी स्थिति नहीं चाहेगी जहां उसे बड़ी संख्या में लोगो पर ताक़त का इस्तेमाल करना पडे ‘।
इस समय तो इमरान खान हीरो बन चुकें हैं। वह चुनाव जल्द करवाने की माँग को लेकर लॉंग मार्च पर निकले हुए हैं। मार्च फिर शुरू कर दी गई है। लाहौर स्थित राजनीतिक और सैनिक विश्लेषक इज़ाज़ हुसैन का इमरान खान के बारे कहना है, ‘ उनकी व्यवस्था- विरोधी और अमेरिका- विरोधी आवाज़ भीड़ को अपनी तरफ़ आकर्षित कर रही है। अगर चुनाव जल्द होतें हैं तो वह सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें जीत जाएँगे’। पाकिस्तान के शहरों और सोशल मीडिया पर उनके प्रति सहानुभूति की लहर चल रही है जिससे सेना और सरकार दबाव में हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। जैसे पाकिस्तान में रहे हमार राजदूत अजय बिसारिया ने लिखा है, ‘अभी तो वह जनरलों का पसीना बहा रहे हैं’। पाकिस्तान की सेना के युवा अफ़सरों में वह लोकप्रिय हैं पर देश के सबसे ताकतवर सेना के प्रमुख जनरल के खिलाफ अभियान चलाना जोखिम भरा भी है। सेना में जो युवा या दूसरे अधिकारी उनका समर्थन कर रहें हैं वह भी नहीं चाहेंगे कि सेना का दबदबा ख़त्म हो जाए क्योंकि वह भी हिस्सेदार हैं और नहीं चाहेंगे कि हलवा- पूरी बिलकुल बंद हो जाए।
सेना की समस्या है कि इमरान खान पीछे हटने या समझौते के कोई संकेत नहीं दे रहें और अब इस क़ातिलाना हमले के बाद उनका रवैया और तीखा हो सकता है और वह व्यवस्था के खिलाफ खुले टकराव पर उतर सकते हैं। लोगों में उनके प्रति हमदर्दी बढ़ी है। वह लगातार चुनाव जीत रहें है। उनकी टांग पर लगी गोलियों से स्थिति में उनके पक्ष में भारी परिवर्तन आ सकता है। कोई भी राजनेता उनसे टक्कर लेने की स्थिति में नहीं है। अगर पर्दे के पीछे कोई समझौता नही होता तो हालत बेक़ाबू हो सकते हैं। ‘यह खूनी बन सकता है’, सिंगापुर से प्रोफ़ेसर लेखक अनित मुखर्जी लिखतें हैं, ‘ उनके समर्थकों मे आक्रोश है और वह इसटैबलिशमैंट से बदला ले सकतें है’। लेकिन पाकिस्तान का इतिहास साक्षी है कि ऐसे चैलेंजर को बहुत देर बर्दाश्त नहीं किया जाता। इमरान खान को रोकने का हर सही -ग़लत प्रयास किया जाएगा। सेना ने सरकार से कहा है कि वह संविधान के उस प्रावधान का इस्तेमाल करें जिसमें सेना और न्यायपालिका पर आरोप लगाने वाले को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यह सेना की बेबसी भी दिखाता है क्योंकि अतीत में ऐसी चुनौती से सेना खुद निपटती रही है।
पाकिस्तान का नवीनतम संकट उस समय आया है जब वह इतिहास की सबसे बुरी बाढ़ से जूझ रहे हैं और अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने के लिए मंत्री और अधिकारी कटोरा लिए विभिन्न राजधानियों के चक्कर लगा रहे हें। 43 अरब डालर का क़र्ज़ा है। और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि ‘ पाकिस्तान शायद दुनिया में सबसे ख़तरनाक जगह है’। आने वाले दिनों में यह और ख़तरनाक जगह बन सकता है। लोगों के समर्थन से इमरान खान अपनी माँगे मनवाने की कोशिश करेंगे और ताकतवार व्यवस्था प्रतिरोध करेगी। सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा इस महीने के अंत तक रिटायर हो रहे है। बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि उनका उत्तराधिकारी कौन बनता है, उसे कौन बनाता है, और उनका नज़रिया क्या होगा? एक बार फिर पाकिस्तान को लेकर बहुत से सवाल उठ रहें हैं। बड़ा सवाल है कि पाकिस्तान का बनेगा क्या? क्या इमरान खान को सरकार विरोधी और सेना विरोधी अभियान जारी रखने की इजाज़त होगी? या इसटैबलिशमैंट सदा के लिए काँटा निकाल देगी, जैसा ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो के साथ किया गया? क्या पाकिस्तान की सेना के बीच इमरान खान को लेकर दरार पैदा होगी? क्या उन्हें शांत करने के लिए सेना प्रभावहीन शाहबाज़ शरीफ़ से छुटकारा पा कर इमरान से समझौता कर लेगी? बड़ी ताक़तें, चीन, अमेरिका, साऊदी अरब की क्या भूमिका होगी?
घटनाक्रम किस करवट बैठता है कहा नहीं जा सकता पर इसका न केवल पाकिस्तान बल्कि क्षेत्रीय राजनीति और स्थिरता पर भी असर पड़ेगा। भारत ने खुद को पाकिस्तान के नवीनतम संकट से दूर रखा है पर पाकिस्तान की घटनाओं का हमारी सुरक्षा पर असर पड़ता है। 2008 के मुम्बई हमले के बाद अमेरिका की विदेश मंत्री ने सही उस देश को ‘अंतरराष्ट्रीय माइग्रेन’ कहा था और साथ जोड़ा था कि ‘ इनके पास परमाणु हथियार हैं,आतंकवाद उग्रवाद और भ्रष्टाचार सब है। और वह बहुत गरीब है’। भारत का हर प्रधानमंत्री, वर्तमान प्रधानमंत्री समेत, पाकिस्तान के साथ दोस्ती का प्रयास कर अपने हाथ जला चुकें है। जैसे पाकिस्तान में हमारे पूर्व राजदूत शरत सभ्रवाल ने अपनी किताब इंडिया पाकिस्तान कॉननड्रम में लिखा है, ‘ भारत ने पिछले सालों में जो भी नीति विकल्प का इस्तेमाल किया है … पाकिस्तान को अपनी दिशा बदलने में और भारत के साथ सामान्य सम्बंध रखने में असफल रहें हैं’। जहां तक उनके वर्तमान संकट का सम्बंध है हम कुछ नहीं कर सकते इसके सिवाय कि आशा करें कि उन्हें सुबुद्धि आ जाए। इमरान खान बार बार हमारी स्वतन्त्र विदेश नीति की प्रशंसा करते रहे हैं पर हमें किसी ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए। अगर वह सत्ता में लौट जाते हैं तो उनका भारत विरोध जारी रहेगा और सीमा पार से आतंकवाद और तनाव बढ़ने की सम्भावना है। पिछले 21 महीनों से नियंत्रण रेखा पर जो शान्ति है वह भी ख़तरे में पड़ सकती है। पर इस समय तो हमारा पश्चिमी पड़ोसी खुद से भिड़ रहा है,खुद को तबाह करने में लगा हुआ है। इस प्रक्रिया में हम न दखल दे सकतें हैं न दखल देनी ही चाहिए। वैसे भी अगर कोई ख़ुदकुशी करने पर बाज़िद हो तो हम कर भी क्या सकते हैं!