अमेरिका के राष्ट्रपति, फ़्रांस के राष्ट्रपति और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गद्गद् हैं। एयर इंडिया ने 470 विमान ख़रीदने का सौदा किया है इनमें से 250 विमान एयरबस होंगे जो इंग्लैंड और फ़्रांस मिल कर बनाते हैं और 220 विमान बोइंग होंगे जो अमेरिका बनाता है। इस पर प्रफुल्लित बाइडेन का कहना था कि इससे अमेरिका के 44 राज्यों में 10 लाख रोज़गार पैदा होंगे। इसी तरह दोनों फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों और इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी बहुत प्रसन्न हैं कि दोनों के देशों में इस सौदे से रोजगार और राजस्व बढ़ेगा। तीनों का प्रसन्न होना स्वाभाविक है क्योंकि यह अकेला सौदा 45.9 अरब डालर का है। यह कितनी बड़ी राशि है यह इससे पता चलता है कि कंगाली से बचने के लिए पाकिस्तान आईएमएफ़ से 1अरब डालर प्राप्त करने के लिए नाक से लकीरें खींचने को तैयार है पर फिर भी वह संस्था मान नहीं रही। चाहे यह सौदा एयर इंडिया ने किया है पर इसे भारत की बढ़ती आर्थिक ताक़त का भी प्रमाण समझा जाता है। पासा अगर पलटा नही तो बराबर तो हो रहा है! पहले माना जाता रहा कि पश्चिम की कम्पनियाँ यहाँ रोज़गार बढ़ाती पर अब एक अकेली भारतीय कम्पनी उनकी अर्थव्यवस्था में भारी योगदान डालने जा रही है। यह विमानन के इतिहास में सबसे बड़ी डील है। एयर इंडिया भविष्य में और विमान ख़रीदने में भी दिलचस्पी दिखा रही है। साथ ही देश के अंदर उनकी प्रतिद्वंद्वी इंडिगो, जिसके पास 60 प्रतिशत मार्केट शेयर है, ने भी 500 और विमान ख़रीदने की बात कही है। अनुमान है कि अगले दशक में भारत को 2000 से अधिक विमानों की ज़रूरत होगी। इससे पता चलता है कि हमारा देश अब किस ऊँचे आसमान में उड़ रहा है।
इस वकत हमारी हवाई कम्पनियों को अंतरराष्ट्रीय रूटों पर बहुत स्पर्धा देखने को मिल रही है और हम तेज तर्रार कम्पनियों, जैसे एमिरेटस, कतर एयरलाइंस, सिंगापुर एयरलाइंस, लुफ़्तांसा, ब्रिटिश एयरवेज़ से पिछड़ गए हैं। खाड़ी के देशों में जहां बहुत भारतवासी रहतें हैं,वहाँ से भी अधिकतर यात्री एमिरेटस या एतिहाद एयरलाइंस में सफ़र करते है। यह एयरलाइंस भी भारत के हर बड़े शहर तक पहुँच रहीं है। वाइडबॉडी विमान मिलने के बाद एयर इंडिया गल्फ़ एयरलाइंस को चुनौती दे सकेगी। अमेरिका और आस्ट्रेलिया जहां भारी संख्या में भारतवंशी रहते हैं और जिनकी संख्या बढ़ती जा रही है, के लिए और नॉन स्टॉप फ़्लाइट चलाई जा सकेगी। घरेलू हवाई ट्रैफ़िक में एक साल में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2023 का अनुमान है कि 20 करोड़ यात्री अंतरराष्ट्रीय और घरेलू उड़ानें भरेंगे। इस दशक के अंत तक हवाई यात्रियों की संख्या में तीन गुना वृद्धि होगी। इस आर्डर से एयर इंडिया ने साफ़ कर दिया कि वह चुनौती स्वीकार करने को तैयार है।
लेकिन इस महासौदे के और भी पहलु हैं। इसका महत्व एयर इंडिया और विमानन सेक्टर से बहुत आगे जाता है। घोषणा के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अतिरिक्त जो बाइडेन, मैक्रों और ऋषि सुनक की ऑनलाइन मौजूदगी बताती है कि इसका विस्तार बहुत बड़ा है। प्रमुख पश्चिमी अर्थव्यवस्था आजकल मंदी से गुजर रहीं हैं और आर्थिक गतिविधि और रोज़गार बढ़ाने के मौक़ों की तलाश कर रहीं हैं। एयर इंडिया के आर्डर के द्वारा भारत अमेरिका और योरूप में रोज़गार बढ़ाता नज़र आ रहा है। इससे अच्छा संदेश गया है कि भारत और उसकी कम्पनियाँ बड़ी बिज़नेस के लिए तैयार हैं। यह हमारी कूटनीतिओं दक्षता भी प्रदर्शित करती है कि एक तरफ़ तो हम रूस से सस्ता तेल ख़रीद रहें हैं तो दूसरी तरफ़ पश्चिम के देशों के साथ भी आर्थिक सम्बंध मज़बूत करते जा रहें हैं। अब शायद ही कोई पश्चिमी देश रूस से हमारे सम्बंधों पर आपत्ति करने की स्थिति में होगा। चीन अपनी आर्थिक ताक़त के बल पर बहुत कूटनीति फ़ायदा उठा चुका है। आर्थिक वजन और सामरिक ताक़त एक दूसरे से जुड़े हैं। दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने वाले देश अब इसका फ़ायदा उठा रहा है। दुनिया को नज़र आ रहा है कि हमारा बाज़ार बहुत आकर्षक है।
लेकिन इसके साथ यह भी देखना है कि अरबों डालर के ऐसे सौदों से केवल निर्माण करने वाले देश को ही फ़ायदा न हो हमारे देश में भी रोज़गार बराबर बढ़े। वैसे तो विमान बढ़ने से टूरिज़्म और सामान्य आर्थिक गतिविधि को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बढ़ावा मिलेगा ही पर इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि सुधार केवल आसमान में ही नहीं, ज़मीन पर भी हो। पिछले आठ वर्षों में देश में एयरपोर्ट की संख्या 74 से बढ़ कर 147 हो चुकी है। दिल्ली, मुम्बई और बैंगलोर जैसे हवाई अड्डे अब दुनिया में व्यस्तम हवाई अड्डों में गिने जाते हैं। यात्रियों की संख्या इस तेज़ी से बढ़ रही है कि इन्हें सम्भालना मुश्किल हो रहा है। वैसे तो यह हालत दुनिया के सब बड़े हवाई अड्डों की है कि यात्रियों की संख्या सम्भाली नहीं जा रही। एक मित्र जो साल में दो तीन बार लंडन जाते हैं ने बताया कि प्रसिद्ध हीथरो हवाईअड्डा तो अब ‘नाईटमेयर’ है। दुबई का हवाईअड्डा बहुत मशहूर है पर वहाँ भी पिछले सप्ताह चंडीगढ़ से गई इंडिगो की फ़्लाइट के यात्रियों को दो घंटे सामान आने के लिए इंतज़ार करना पड़ा था। हमारे हवाई अड्डों पर यह नहीं होता। हमारी कार्यकुशलता अब काफी बेहतर हो गई है। लेकिन दबाव लगातार बढ़ रहा है जिसके कारण कई बार लड़ाई झगड़े हो जाते हैं। अड्डों पर सुरक्षा चेक की व्यवस्था को चुसत करने की ज़रूरत है।
एक और समस्या है कि हमारे देश में कई यात्री फ़्लाइट-संस्कृति का पालन नही करते। वह इसे सरकारी बस ही समझते हैं !एयर इंडिया की न्यूयार्क -दिल्ली उड़ान में एक पढ़े लिखे व्यक्ति द्वारा महिला पर पेशाब करना बताता है कि बहुत कुछ सिखाना बाक़ी है। तत्काल एयर इंडिया की प्रतिक्रिया भी नाकाफ़ी थी। घरेलू उड़ान से पहले भाजपा के एक युवा सांसद द्वारा ‘अचानक’ एमरजैंसी दरवाज़ा खोलना भी बताता है कि जो विशेषाधिकार सम्पन्न वर्ग है वह खुद को नियमों से उपर समझता है। अगर इस सांसद पर कार्यवाही कर दी जाती और कुछ देर के लिए उसे नो-फलाई लिस्ट में डाल दिया जाता तो सब बिगड़े नवाबों को बहुत अच्छा संदेश जाता। पर लंगड़ा स्पष्टीकरण स्वीकार कर मामला ऱफादफा कर दिया गया।
सरकार ने बढ़ती यात्री संख्या को देखते हुए बैंगलुरु हवाई अड्डे में खूबसूरत टर्मिनल 2 शुरू किया है जो 2.5 करोड़ यात्रियों को सम्भाल लेगा। क्योंकि बैंगलुरु को गार्डन सिटी कहा जाता है इसलिए इसे भी गार्डन-टर्मिनल का स्वरूप दिया गया है। यह संकल्पना है तो बढ़िया पर यह दुखती रग पर भी हाथ रखती है कि बैंगलुरु अब गार्डन सिटी रहा ही नहीं। वह हमारे बाक़ी महानगरों की तरह भीड़ भरा अराजक शहर बन चुका है। आप कितने भी अच्छे विमानों में सफ़र कर लो, कितने भी चमचमाते एयरपोर्ट पर उतर जाओ, जाना तो इन प्रदूषित अव्यवस्थित शहरों में ही है। दिल्ली अड्डे पर तो चज की टैक्सी भी नहीं मिलती। जो टैक्सी हैं वह पिछली सदी की है। हमारे शहरी क्षय की बड़ी मिसाल बैंगलुरु है जिसे ‘सिलकन वैली ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। यह देश का सबसे बड़ा इंफरमेशन टैंकनालिजी का निर्यातक है लेकिन अगस्त में यहाँ बाढ़ कारण तीन दिन शहर पानी में डूबा रहा। जिनके घरों में बीएमडबलयू और मर्सीडिज हैं उन्हें भी ट्रैक्टर ट्रॉली से निकाला गया!
बैंगलुरु की यह हालत क्यों बनी? विशेषज्ञ बातें हैं कि झीलों, तालाबों, ड्रेनों पर अतिक्रमण और निर्माण और पानी की निकासी में रूकावटों के कारण बैंगलुरु पर अब लगातार बाढ़ का ख़तरा बना रहेगा। सरकार बेबस है। बैंगलुरु लंडन के बाद दूसरा सबसे बड़ा भीड़ वाला शहर है। लंडन के बाद सबसे बड़ा जाम यहाँ लगता है दिल्ली 34वें स्थान पर है। एक मित्र ने बताया कि बैंगलुरु में दो घंटे की फ़्लाइट के बाद उसे एयरपोर्ट से घर पहुँचने में भी बराबर दो घंटे लग गए।
बैंगलुरु वाली हालत लगभग सभी बड़े शहरों की है। हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि दिल्ली सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में नहीं है। जिस रिपोर्ट का उन्होंने हवाला दिया उसके अनुसार मुम्बई सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में दूसरे नम्बर पर है। लेकिन कई रिपोर्ट तो अभी भी दिल्ली को टॉप 10 प्रदूषित शहरों में बता रही हैं।एनसीआर में जो भी रहता है वह बता सकता है कि दीवाली के आसपास वहाँ प्रदूषण से हालत कितनी ख़राब होती है। मैंने भी कुछ दिन तब गुज़ारे थे, सामने की इमारत सुबह नज़र नहीं आती थी। दिल्ली ही नहीं हमारे सब महानगर मुम्बई, कोलकाता, बैंगलुरु, सब महा प्रदूषित शहर है। छोटे शहरों की भी बुरी हालत है। सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया है ताकि शहरों को रहने लायक़, मैत्री पूर्ण,साफ़ सुधरा बनाया जा सके। पर मैं अपने शहर की हालत देख कर कह सकता हूँ कि यहाँ तो वर्षों सड़कें ठीक नहीं होती, कूड़ा उठाने का कोई प्रबन्ध नहीं, ट्रैफ़िक पर कोई नियंत्रण नहीं। शहरों में हिंसा भी बढ़ रही है। शहर तो पहले से अधिक ‘अनसमार्ट’ हो गया है!
इंफ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हमने बहुत तरक़्क़ी की है। हाल ही में 1350 लम्बी दिल्ली -मुम्बई एक्सप्रैसवे के एक बड़े हिस्से को खोल दिया गया है। दिल्ली जयपुर का सफ़र पहले के 5 घंटो से अब आधा हो जाएगा। जब 8 लेन की यह एक्सप्रैसवे पूरी बन कर तैयार हो जाएगी तो दिल्ली से मुम्बई का सफ़र 24 घंटे से कम होकर 12 घंटे रह जाएगा। इससे समय,पैसे और तेल की बचत होगी। सारा देश धीरे धीरे नज़दीक आ रहा है। 10 वंदे भारत ट्रेन भी चल रही है। और शुरू होंगी।100 के क़रीब वॉटरवेयज़ तैयार हो रही है। यह सब सरकार का देश को आधुनिक बनाने के प्रशंसनीय प्रयास का हिस्सा है। मानना पड़ेगा कि इस सरकार ने इंफ़्रास्ट्रक्चर को बेहतर और चुस्त करने में वह ज़ोर लगाया है जो पहले कोई सरकार नहीं लगा सकी। पर मुश्किल यही है कि एयरपोर्ट की तरह जब इंसान इन सुपर हाईवे से उतरेगा तो भीड़भाड़ वाले, टूटी सड़कों वाले और प्रदूषित शहरों की हकीकत से सामना होगा। हमारी जो यह ज़मीनी स्थिति है इसकी तरफ़ सरकार को उसी तरह ध्यान देने की ज़रूरत है जिस तरह वर्ल्ड क्लास इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने की तरफ़ ध्यान दिया जा रहा है।