पंजाब: एक बार फिर?, Once Again In Punjab?

क्या पंजाब में फिर काले दिनों की वापिसी हो रही है? क्या फिर 1980-1990 वाले दिन आ रहें हैं ? यह सवाल अब सब पंजाबियों को परेशान कर रहा है। ख़तरनाक संकेत कुछ समय से मिल रहे हैं। कुछ सप्ताह पहले मोहाली-चंडीगढ़ सीमा पर ‘बंदी सिखों की रिहाई’ को लेकर प्रदर्शन कर रहे क़ौमी इंसाफ़ मोर्चे के हथियारों से लैस कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर हमला कर दिया और 40 के करीब पुलिस कर्मी घायल हो गए। एक पुलिस अधिकारी का कहना था कि “अगर हम भागते नहीं तो हमें मार दिया जाता”। लेकिन जो पिछले सप्ताह अमृतसर में अजनाला में हुआ वह तो और भी अधिक ख़तरनाक है। खालिस्तान के  समर्थक और ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखी अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में तलवारों और बन्दूकों से पुलिस थाने पर हमला किया गया। वह पवित्र श्री गुरू ग्रंथ साहिब को पालकी साहिब में लेकर आए थे। आधा दर्जन पुलिस कर्मी बुरी तरह घायल हो गए। यह लोग अपने एक साथी की रिहाई की माँग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे जिसे पाँच दिन पहले अपहरण करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। समर्पण करते हुए पुलिस ने अगले दिन इस व्यक्ति को भी रिहा कर दिया। जिन्होंने प्रदर्शन किया और पुलिस कर्मियों को ज़ख़्मी किया उनके ख़िलाफ़ जिस समय तक मैं लिख रहाँ हूँ,  कोई कार्यवाही  नहीं की गई।

 अक्तूबर 1981 में सरकारी वकील का कहना था कि लाला जगत नारायण की हत्या के मामले में पुलिस को जरनैल सिंह भिंडरावाले की हिरासत की और ज़रूरत नहीं है।  मैजिस्ट्रेट ने भी  लिखा दिया कि इस हत्या के मामले में भिंडरावाले की क़ैद की ज़रूरत नही। उसे रिहा कर दिया गया। उसके बाद जो हुआ वह सब जानते है। क्या इतिहास दोहराया जा रहा है? पुलिस को मालूम था कि अपने लोगों की रिहाई को लेकर अमृतपाल प्रदर्शन करने आ रहा है। 6 ज़िलों से 600 पुलिस जवान बुला लिए गए पर इसके बावजूद हथियारबंद उग्रवादियों ने थाने पर हमला कर दिया जो सारे देश ने देखा। पुलिस अधिकारियों ने सफ़ाई यह दी है कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब की मौजूदगी के कारण वह असहाय हो गए। अगर कुछ ग़लत हो जाता तो सात साल पहले बहिबल कलाँ वाली हालत बन जाती। यहाँ मैं सहमत हूँ कि किसी भी हालत में श्री गुरू ग्रंथ साहिब या किसी भी धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी नहीं होनी चाहिए। जो हालत बन गई थी उस समय  हमले सहते हुए पंजाब पुलिस के अधिकारियों तथा जवानों ने उच्च अनुशासन दिखाया है। यह भी संतोष की बात है कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब को थाने ले जाने की घटना की सिख क्षेत्रों में भरपूर निन्दा हुई है। अजीत के सम्पादक बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने लिखा है, ‘इस झगड़े में श्री गुरू ग्रंथ साहिब को ले जाना और फिर वहाँ लगातार हंगामा करना धार्मिक पक्ष में बड़ी बेअदबी माना जाएगा’। पर अफ़सोस है कि अभी तक दोनों श्री अकाल तख़्त साहिब के जत्थेदार और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी इस मामले में चुप हैं।  भिंडरावाले के समय भी यह संस्थाएँ ख़ामोश हो गई थी जिसकी क़ीमत पंजाब को बहुत चुकानी पड़ी थी।

लेकिन बड़ी चिन्ता पुलिस और ख़ुफ़िया विभाग की असफलता है। पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह ने  इसे ‘‘अशुभ घटनाक्रम’ कहा  है। यह तो अच्छा है कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब की  मौजूदगी में पुलिस ने  संयम दिखाया पर सवाल तो है कि यहाँ तक पहुँचने की नौबत क्यों आने दी गई? उन्हें पहले क्यों नहीं रोका गया? जब चंडीगढ़ में हमला हुआ तब भी पुलिस बल बेतैयार पाया गया। इस पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और मणिपुर के गवर्नर रहे गुरबचन जगत ने सवाल किया है कि ‘क्या यह ख़ुफ़िया एजेंसियों की असफलता थी, या ज़बरदस्त लापरवाही या सरकार की तरफ़ से स्पष्ट निर्देश की कमी थी’? यह सवाल अजनाला की घटना के बाद और प्रासंगिक हो गए है। ऐसी हालत क्यों बनने दी गई?  पंजाब में तो नवम्बर से खुले आम हथियार ले जाने पर पाबंदी है। अगर आप लागू नहीं कर सकते तो घोषणा क्यों की गई?  प्रशासन इतना प्रभावहीन हो चुका है कि जिसे चाहे वह सड़क पर धरना लगा कर बैठ जाता है।  मुख्यमंत्री मान निवेश लाने की बहुत कोशिश कर रहें हैं पर इस स्थिति में कौन कारख़ाना लगाएगा जब खुलेआम हथियारबंद घूम सकतें हैं और जो चाहे सड़क पर क़ब्ज़ा कर सकता है?

अमृतपाल सिंह का उत्थान भी रहस्यमय है। वह पिछले साल सितंबर में दुबई में दस साल व्यतीत करने के बाद लौटा था और दुर्घटना में मारे गए सिंगर दीप सिद्धू की संस्था ‘वारिस पंजाब दे’ का मुखिया बन गया जबकि दीप सिद्धू के परिवार का कहना है कि इसका उनके साथ कोई सम्बंध नहीं। चार पाँच महीने में वह इतना ताकतवार कैसे बन गया कि थाने पर हमला करने की जुर्रत कर बैठा? यह जाँच का विषय होना चाहिए। किसने साधन दिए कि महँगे वाहन भी है, असला भी है और समर्थक भी है? पंजाब के खूनी इतिहास को देखते हुए केन्द्रीय और प्रादेशिक एजंसियीं एक और खालिस्तानी उग्रवादी नेता के उभार को रोक क्यों नहीं सकीं? हम इतिहास से कुछ सीखने को तैयार क्यों नहीं रहते? अमृतपाल सिंह सरकार से आर पार की लड़ाई लड़ने की धमकी दे रहा है। कहना है कि मैं भारतीय नहीं हूँ और पासपोर्ट केवल ट्रैवल डॉक्यूमेंट है। वह दूसरों को लगातार चुनौती दे रहा है यहां तक कि देश के गृहमंत्री अमित शाह का इंदिरा गांधी वाला हश्र करने की धमकी दे चुकाहै। और वह सरकार जिसने प्रधानमंत्री का नाम बिगाड़ने पर कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा को जहाज़ से उतार कर गिरफ़्तार कर लिया था, इस धमकी के बारे अजब निष्क्रियता दिखा रही है। एनआईए जैसी ताकतवार एजेंसी जो प्रदेशों की अनुमति के बिना दखल दे सकती है को इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया? विदेशों में खालिस्तानी गतिविधियों को लेकर हम वहाँ की सरकारों, विशेष तौर पर कनाडा और ब्रिटेन की सरकारों से ज़बरदस्त  प्रोटैस्ट करते रहते हैं पर यहाँ वह सक्रियता नहीं दिखाई जा रही।

पंजाब के अल्पसंख्यकों में फिर असुरक्षा की भावना नज़र आ रही है। वह देख रहें हैं कि फिर एक और सरकार का रवैया रक्षात्मक है। घबराहट है कि फिर स्थिति नियंत्रण से बाहर न  जाए। पुलिस का मनोबल भी कमजोर हुआ है। मुख्यमंत्री का कहना है कि पाकिस्तान दखल दे रहा है। इस में हैरान होने की क्या बात है? पाकिस्तान ने खालिस्तान की माँग का समर्थन और पंजाब में आतंकवाद को जीवित रखने का ऐजंडा कभी नहीं छोड़ा।पाकिस्तान के अख़बार एक्सप्रेस न्यूज़ ने लिखा है कि ‘ पंजाब में सिखों  में खालिस्तान की माँग का समर्थन बढ़ रहा है’।जो भी आतंकी बचे थे उन्हें पाल पलोस  कर पाकिस्तान ने अपने पास रखा हुआ है।  मुख्यमंत्री मान की टिप्पणी सही है कि ड्रोन से पंजाब में ही क्यों, राजस्थान में हथियार और ड्रग्स क्यों नहीं गिराए जारहे ?इस का जवाब स्वतः स्पष्ट है कि पाकिस्तान फिर पंजाब को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं जिस कारण हमें तो और चौकस रहना है।चिन्ता के और भी कई कारण है। पंजाब की आर्थिक तरक़्क़ी कमजोर पड़ चुकी है। बेरोज़गारी बहुत है। बहुत युवा हैं जो ख़ाली बैठे हैं जिन्हें  भड़काना मुश्किल नहीं होता। खेती में ठहराव आ गया है। लम्बे चले किसान आन्दोलन ने भी पंजाब के देहात में असंतोष पैदा किया है। ड्रग्स की समस्या ने एक पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है।  

पंजाब की बड़ी समस्या है कि जो संस्थाएँ प्रदेश को दशकों से सम्भालती रहीं वह कमजोर पड़ गई है।  शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी कई प्रादेशिक हिस्सों में बंट चुकी है और  अपना प्रभाव खो चुकी है।कांग्रेस, अकाली दल और वामदल सब अब चले हुए कारतूस नज़र आते है। इनमें पंजाब को इस दलदल से निकालने का दम नहीं है। जब तक अकाली-भाजपा या कांग्रेस की सरकारें थीं स्थिति नियंत्रण मे रहीं।  राजनीतिक और धार्मिक संस्थाओं से मोहभंग के कारण भी सिख युवाओं का एक वर्ग ग़लत रास्ता पकड़ रहा हैं। पुरानी राजनीति से तंग आ कर पंजाब ने आप का परीक्षण किया था इस आशा के साथ कि पंजाब अतीत से पल्ला झाड़ कर आगे बढ़ेगा। यह संतोष की बात है कि मुख्यमंत्री मान अब अधिक आत्मविश्वास दिखा रहें है कि वह किसी का मोहरा नहीं है पर अजनाला की घटना ने छवि बिगाड़ दी है।  यह प्रभाव मिल रहा है कि सरकार ने अलगाववादियों के आगे समर्पण कर दिया है और कोई नहीं जानता कि इनसे कैसे निपटना है। चिन्ता यह भी  है कि पुराने राजनीतिक दलों की कमजोरी के कारण ख़ाली जगह खालिस्तान समर्थक अलगाववादी न भर लें। पहले खुले आम खालिस्तान के नारे नहीं लगते थे। कभी कहीं कोई पोस्टर लग जाता था। पर अब तो खुलेआम तलवारों के साथ ललकारा जा रहा है।    

आतंकवाद का पिछला दौर ख़त्म होने के बाद खालिस्तान का विचार कमजोर पड़ गया था पर यह  बिलकुल ख़त्म नहीं हुआ। मुख्यमंत्री मान की अपनी संगरूर लोकसभा सीट से अलगाववादी नेता सिमरनजीत सिंह मान का भारी बहुमत से  जीतना बताता है कि कहीं राख के नीचे शोले धधक रहे हैं। आप और उनकी सरकार को समझना चाहिए कि जो पंजाब में हो रहा है उसके उनके लिए राष्ट्रीय परिणाम निकल सकते हैं। आप का भविष्य पंजाब को सही रखने से जुड़ा हुआ है। साख दांव पर है।  केन्द्र सरकार और पंजाब दोनों को अपना अपना राजधर्म निभाना चाहिए और  मिल कर इस उभर रहे ख़तरे का सामना करना चाहिए। यह तुच्छ राजनीति या नम्बर बनाने का मामला नहीं है। चाहे  केन्द्रीय सरकार और आम आदमी पाटी के रिश्ते बिलकुल टूट चुकें है पर पंजाब और उसकी सुरक्षा और चैन को  राजनीति से उपर रखा जाना चाहिए। जो मदद पंजाब को चाहिए वह मिलनी चाहिए। न ही सरकार के कामकाज में रुकावट खड़ी करनी चाहिए। जिस तरह का दुर्भाग्यपूर्ण झगड़ा पंजाब के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच शुरू हो गया है वह किसी और प्रदेश में तो  बर्दाश्त हो सकता है, पंजाब में नहीं। यहां राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों को फटकार लगाई है। याद रखना चाहिए कि पंजाब को मिसहैंडल करने की देश ने बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई थी। 25000 लोग मारे गए थे।  हमने एक प्रधानमंत्री और एक मुख्यमंत्री को खो दिया था।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 0 (from 0 votes)
About Chander Mohan 732 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.