संघीय लोकतंत्र की जीत, Victory of Federal Democracy

आख़िर में कुछ काम नहीं आया। न हिजाब, न हलाल, न टीपूँ सुल्तान, न अज़ान, न केरल स्टोरी, न मुस्लिम आरक्षण, न राम मंदिर और न ही बजरंगबली। जब लोग बदलाव पर उतरते हैं तो किसी की परवाह नहीं करते। कोई नारा उन्हें प्रभावित नहीं करता। कर्नाटक में  83 प्रतिशत हिन्दू जनसंख्या है, मुसलमान 13 प्रतिशत हैं पर लोगों ने भाजपा को नकार दिया क्योंकि उनका ध्यान  उन मुद्दों पर था जो उनकी जेब पर असर डालतें हैं, महंगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार। कांग्रेस की बम्पर जीत के पीछे व्यापक समर्थन है।  हिमाचल प्रदेश में भी 97 प्रतिशत हिन्दू जनसंख्या है जहां कांग्रेस को अच्छी जीत मिली थी। ध्रुवीकरण और विभाजित करने वाली राजनीति की एक सीमा है जो कर्नाटक के लोगों ने समझा दी। साथ यह भी संदेश है कि ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत नहीं होने जा रहा। हिमाचल प्रदेश का भी यही संदेश है। दक्षिण में भाजपा का प्रसार रूक गया पर यह उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में भाजपा का 36 प्रतिशत वोट बैंक जो उन्हें पिछली बार मिला था, वह क़ायम है। इस बार भी बराबर वोट मिला है। अर्थात् जो लोग जोश में ‘भाजपा मुक्त दक्षिण भारत’ कह रहें हैं वह भी ग़लतफ़हमी में हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस ने मिल कर सरकार बनाई थी पर अगले साल भाजपा 28 में से 25 लोकसभा जीतने में सफल रही। लेकिन पार्टी के लिए चिन्ताजनक है कि दक्षिण भारत की 130 लोकसभा सीटों में से उसके पास जो 29 हैं उनमें से 25 कर्नाटक में हैं।

 कांग्रेस को इस जीत से उत्साह मिलेगा।  राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा वहां तीन सप्ताह घूमती रही। इसका प्रभाव पड़ा है। मल्लिकार्जुन ख़रगे को पार्टी अध्यक्ष बना कर दलित समर्थन बढ़ा है। लिंगायत समुदाय की नाराज़गी थी  कि येदियुरप्पा को हटा दिया गया।  मुसलमानों ने इकट्ठे हो कर भाजपा के खिलाफ वोट डाले। पर कुछ बड़े कारण नज़र आतें हैं। एक, वहाँ अच्छी सरकार नहीं दी गई। जिसका डब्बल इंजन सरकार कह कर खूब प्रचार किया गया पहले हिमाचल में और अब कर्नाटक में उसका डीज़ल ख़त्म हो गया।  कुछ सप्ताह पहले कर्नाटक के लोगों का रुझान जानने के लिए एनडीटीवी ने सर्वेक्षण करवाया था। उसके अनुसार 35 प्रतिशत लोग समझते हैं कि कांग्रेस अधिक भ्रष्ट है जबकि 59 प्रतिशत समझतें हैं कि भाजपा अधिक भ्रष्ट है। विकास के लिए 37 प्रतिशत ने कहा भाजपा और 49 प्रतिशत ने कहा कांग्रेस बेहतर है।  वहां छवि मैली हुई है।  विशेष तौर पर 40 प्रतिशत कमीशन का मामला पार्टी को बहुत परेशान करता रहा।

जब बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री बनीं तो उनके पति आसिफ़ ज़रदारी को ‘मिस्टर 10 परसेंट’ अर्थात् श्रीमान दस प्रतिशत से ज़ाना जाता था कि वह हर सौदे में दस प्रतिशत कमीशन लेते हैं। कर्नाटक की बोम्मई सरकार को ‘40 परसेंट सरकार’, अर्थात् जो सरकार चालिस प्रतिशत कमीशन खाती है से जाने जाना लगा। यह आरोप प्रदेश के ठेकेदारों की एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में लगाया था। 2022 में पार्टी के एक कार्यकर्ता ने भी यही आरोप एक मंत्री पर लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी। दोनों ही मामलों में कोई कार्यवाही नहीं हुई।अफ़सोस  है कि पार्टी के लोगों पर जब  भी आरोप लगतें हैं कोई कार्रवाई नहीं होती जैसे महिला पहलवानों की शोषण की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही और मामला लटकाया जा रहा है। मार्च में लोकायुक्त ने वहाँ  भाजपा के एक विधायक को भ्रष्टाचार के आरोप मे गिरफ़्तार किया था। 40 प्रतिशत भ्रष्टाचार के आरोप पर भाजपा ने जवाब दिया कि कांग्रेस के समय 85 प्रतिशत भ्रष्टाचार था। पर नुक़सान तो हो गया। भाजपा की सरकार की छवि एक भ्रष्ट सरकार की बन गई और लोगों ने माफ़ नहीं किया।

दूसरा, विचारधारा को भुनाने की भी सीमा है। जो पक्का वोट है वह तो मिल जाएगा लेकिन पक्का वोट बहुमत नहीं देता।  चुनाव  ‘फ़्लोटिंग’ अर्थात् तैरता या अनिर्णीत वोट तय करता है। यह नहीं कहा जा सकता कि कर्नाटक के लोगों ने कांग्रेस के सैक्यूलरिजम के लिए वोट किया और भाजपा का  हिन्दुत्व रद्द कर दिया। लोगों ने अच्छे शासन की उम्मीद में और महंगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट दिया है। लोग व्यवहारिक है और विचारधारा से एक सीमाँ तक ही प्रभावित होता है।  कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी निगेश जिन्होंने शिक्षा संस्थानों में हिजाब पर बैन लगवाया था विधानसभा का चुनाव हार गए। भाजपा का नेतृत्व ज़मीनी स्थिति को पहचान नहीं सका और जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आते गए अनावश्यक बजरंगबली का मामला उठा लिया। बाद में ‘सैक्यूलर’  कांग्रेस का भी कहना था कि वह हर ज़िले में  हनुमान के मंदिर बनवाएँगे। यह हो क्या रहा है? हमारी राजनीति में बजरंगबली की एंट्री कैसे हो गई? क्या बाक़ी मसले हल हो गए? धर्म तो निजी मामला है। उसे निजी रहने देना चाहिए।  

तीसरा, इस चुनाव में कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है। पहले राहुल गांधी ने अडानी और चीन जैसे मुद्दे उठाए थे पर फिर समझ आगई कि प्रादेशिक चुनाव प्रादेशिक मुद्दों पर ही लड़ा जाना चाहिए। ‘लोकल फ़ैक्टर’ कांग्रेस की जीत का बड़ा कारण है।  कांग्रेस की जीत में सिद्दारमैया और डीके शिवकुमार जैसे मज़बूत स्थानीय नेताओं का बड़ा योगदान है चाहे अब दोनों को एक साथ संतुष्ट करना मुश्किल हो रहा है। भाजपा प्रदेशों में शक्तिशाली नेतृत्व को उभरने नहीं देती। विडम्बना है कि जिस पार्टी ने कभी कांग्रेस की हाईकमान कलचर का मज़ाक़ उड़ाया था ने अपने लिए उससे भी वज़नी  हाई कमान क़ायम कर लिया। स्थानीय मुददे और स्थानीय नेता आगे रख कर कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल रही। न ही वह नरेन्द्र मोदी से ही उलझे जैसी राहुल गांधी की आदत है।  सब कुछ लोकल रखा गया जो फ़ार्मूला कांग्रेस आगे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में लागू करने की कोशिश करेगी। पर पहले उन्हें राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट कलह पर क़ाबू पाना है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा मेयर पद की सभी 17 सीटें जीतने में सफल रही है। बड़ा संदेश है कि अगर प्रादेशिक नेतृत्व सबल है तो वोट खुद ही पड़ जाएँगे। वहाँ भाजपा अजेय नज़र आती है।  योगी आदित्य नाथ अब एक विशिष्ट श्रेणी में है जिनका कोई मुक़ाबला नही है। अखिलेश यादव उनके सामने बहुत कमजोर लगते हैं। अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस हिरासत में हत्या से शोर बहुत मचा है पर  एक एक कर गैंगस्टर ख़त्म होने से लोगों को  राहत  मिली है। और यह भी नहीं कि केवल मुस्लिम गैंगस्टर ही मुठभेड़ों में मारे गए हैं। 200 के क़रीब मुठभेड़ों में 65 प्रतिशत मारे गए गैंगस्टर हिन्दू हैं। अगर आप अच्छा प्रशासन देंगे तो वोट खुद ही पड़ जाएँगे। भाजपा को अपनी रणनीति दोबारा से तैयार करनी है और मज़बूत लोकल फ़ैक्टर पर ज़ोर देना चाहिए।  गेंदें से ढके वाहनों पर सवार हाथ हिलाते नेताओं के दृश्य कुछ एंकरों को तो उत्साहित करते हैं पर आम आदमी प्रभावित नहीं हुआ।  प्रधानमंत्री मोदी का भी प्रादेशिक चुनावों में कम इस्तेमाल करना चाहिए। नीचे वाले इंजन की नाकामी का काला धुआँ उपर वाले इंजन को भी परेशान कर सकता है। अगर उनके मुद्दों का इलाज नही होगा तो लोगों के लिए बड़े नारों या बड़े नेताओं का कोई आकर्षण नहीं है। केंद्रीयकृत राजनीति लोकसभा चुनाव में तो काम आ सकती है, प्रादेशिक चुनाव में उसकी सीमा है जो कांग्रेस समझ गई, भाजपा को समझना है।  अगर लोगों का मूड ख़राब है तो मोदी भी उसे बदल नहीं सकते।

जालन्धर लोकसभा उपचुनाव आम आदमी पार्टी अच्छी तरह से जीत गई है। इससे राहत मिलेगी क्योंकि पार्टी संगरूर लोकसभा बुरी तरह से हार गई थी जहां से दो बार मुख्यमंत्री भगवंत मान जीतने में सफ़ल रहे थे। इस बार उन्होंने मेहनत भी बहुत की थी। कांग्रेस के लिए धक्का है कि वह अपनी परम्परागत सीट नहीं जीत सके।  स्पष्ट संकेत है कि लोग भगवंत मान की सरकार को और समय देना चाहते हैं। अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया जिससे कोई विवाद उठे या सरकार बदनाम हो। पिछली कांग्रेस और अकाली-भाजपा सरकार जैसा कोई नकारात्मक नहीं है। मुख्यमंत्री की अपनी छवि साफ़ सुथरी है। 300 युनिट मुफ़्त बिजली से लोगों को बहुत राहत मिली है चाहे बजट पर बुरा प्रभाव पड़ा है और चुनाव ख़त्म होते ही दरें बढ़ा दी गई है। अमृतपाल सिंह वाला मामला भी अत्यन्त समझदारी से निपटाया गया है। वह डिब्रूगढ़ जेल में बंद  है और पंजाब सामान्य है। पर आप को भी इस विजय से संतोष नहीं करना चाहिए। अभी स्थानीय नेतृत्व जमा नहीं।  विजेता उम्मीदवार सुशील कुमार रिंकू को भी 34 दिन पहले कांग्रेस से इम्पोर्ट किया गया था।  पर सबसे चिन्ताजनक है कि आप को केवल 34 प्रतिशत वोट ही मिले। आप को 302279 मत मिले जबकि बाक़ी पार्टियों का जोड़ 536833 बनता है। यह तो सही है कि सब विभाजित हैं और इकट्ठा होने की कोई सम्भावना नहीं पर इतने अधिक वोट विरोध में पड़ना असंतोषजनक ही कहा जा सकता। अकाली दल का पतन जारी है और सरदार प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद यह और बढ़ेगा। भाजपा का उम्मीदवार अपनी ज़मानत नहीं बचा सका पर वोट 4 प्रतिशत बढ़ा है। पार्टी ने छ: केन्द्रीय मंत्री मैदान में उतारे थे पर जैसा कर्नाटक के परिणाम से पता चलता है जब स्थानीय मुद्दे हावी हो तो केन्द्रीय नेता प्रभावहीन हो जाते है। भाजपा को राहत है कि वह जालन्धर सैंट्रल और जालन्धर नार्थ के शहरी इलाक़ों में बढ़त हासिल कर सकें। भाजपा यहाँ शहरी पार्टी है और रहेगी। किसान आन्दोलन के कारणों से गाँवों में पैर नहीं जम रहे।

कर्नाटक में कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में भाजपा और पंजाब में आप की जीत वास्तव में हमारे संघीय लोकतंत्र की जीत है।लोगों ने यह बता दिया है कि वह आकर्षक नारों के झाँसे में नहीं आते और जो राजनीतिक दल अपनी संवैधानिक ज़िम्मेवारी सही नहीं निभाते उन्हें वह सजा देने से नहीं चूकते। लोकतन्त्र यहाँ  अपनी शक्ति और अपनी उर्जा क़ायम रखे हैं। हाल के चुनाव और उपचुनाव अच्छा संदेश दे गए हैं कि सबसे समझदार भारत की जनता है। उसे लोकतांत्रिक संतुलन क़ायम करना आता है।

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About Chander Mohan 739 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.