ममता दीदी का सुर कुछ बदला हुआ है। एकला चलो की नीति पर चल रही ममता बैनर्जी ने कर्नाटक के चुनाव परिणाम के बाद यू-टर्न ले लिया है। अब वह कांग्रेस को लताड़ नहीं रही और उनका कहना है कि जहां कांग्रेस मज़बूत है वहाँ हम समर्थन देंगे पर जहां क्षेत्रीय दल मज़बूत है वहाँ कांग्रेस को समर्थन देना चाहिए। ममता का कहना है कि “ हमारा आँकलन है कि लोकसभा की 200 सीटों पर कांग्रेस मज़बूत है लेकिन यूपी में सपा, दिल्ली में आप, बंगाल मे तृणमूल, बिहार में जेडीयू- आरजेडी मज़बूत हैं”। यह पहली बार है जब ममता बनर्जी ने भाजपा के खिलाफ किसी विपक्षी गठबन्धन में कांग्रेस की केन्द्रीयता स्वीकार की है। खुद तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन चुका है। पश्चिम बंगाल का सागरदीघी उपचुनाव कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस से 23000 से जीतने में सफल रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा की सफलता और कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस फिर प्रासंगिक हो गई है।
कांग्रेस देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब कर्नाटक में उसकी सरकारें है। उसके पास 20 प्रतिशत वोट शेयर है जबकि किसी भी तीसरी पार्टी के पास 5 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं है। अधिकतर पार्टियों के पास एक ही प्रदेश की सरकार है केवल आप का पंजाब और दिल्ली में शासन है पर दिल्ली पूरा प्रदेश नहीं है। यह सभी पार्टियाँ अपने अपने प्रदेश में मजबूत हो सकती हैं पर राष्ट्रीय स्तर पर इनकी उपस्थिति नही है और न ही राष्ट्रीय दृष्टिकोण ही है। ममता बैनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय स्तर पर चमकने का प्रयास किया था पर सफलता नहीं मिली। नीतीश कुमार भी लगे हुए हैं कि वह एक प्रकार के अगले वी पी सिंह नहीं तो देवेगौड़ा या इन्द्र कुमार गुजराल ही बन जाएँ, पर उनके पास वह संगठन या नेतृत्व नहीं है जो भाजपा का मुक़ाबला कर सके। न ही बोफ़ोर्स जैसा कोई सकैंडल ही सरकार को परेशान कर रहा है। नीतीश कुमार की बड़ी कमजोरी है कि वह बिहार में अच्छा प्रशासन नहीं दे पाए। बिहार मॉडल किसी को आकर्षित नहीं करता। भागलपुर में गंगा पर निर्माणाधीन पुल का दोबारा टूटना बताता है कि कितना घटिया प्रशासन है। इस पर 1700 करोड़ रूपया लगा है और यह पिछले साल भी टूटा था।अर्थात् लगभग 3400 करोड़ रूपया गंगा जी में बह गया। अगर विरोधी इसे ‘भ्रष्टाचार का पुल’ कहें तो ग़लत नहीं है।
भाजपा को विपक्षी गठबंधन के बिना हराया नहीं जा सकता और ऐसा कोई गठबंधन कांग्रेस की केन्द्रीयता के बिना सफल नहीं हो सकता। कर्नाटक से संदेश है कि हिन्दुत्व का मुद्दा प्रादेशिक स्तर पर नहीं चल रहा। वहाँ भाजपा 15 में से एक भी आदिवासी सीट जीत नहीं सकी। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में यह रुझान तकलीफ़ देगा। दक्षिण भी भाजपा के हाथ से फिसलता लगता है। दक्षिण भारत की 130 सीटों में से भाजपा के पास 29 हैं जिन में से 25 कर्नाटक से हैं। कर्नाटक के परिणाम से विपक्ष में जान पड़ गई है। भाजपा अब अजेय नज़र नही आती। इस बीच राहुल गांधी की एक और विदेश यात्रा हो रही है। वह अमेरिका में घूम रहें हैं और सवालों के खुले जवाब दें रहे हैं। भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों को सम्बोधित करते हुए उनका कहना था कि अगर विपक्ष Properly Aligned अर्थात् ठीक से इकट्ठा हो जाए तो भाजपा को हराया जा सकता है और कांग्रेस इसके लिए काम कर रही है जो अच्छी तरह से हो रहा है, सिर्फ़ कुछ लेन-देन की ज़रूरत है। उन्होंने प्रश्नकर्ता से कहा Just Do Your Maths, अर्थात् अपना हिसाब करो।
और ‘हिसाब’ क्या कहता है? पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 37.4 प्रतिशत वोट मिला था और वह 303 सीट जीतने में सफल रही थी। अर्थात् अल्पमत वोट प्राप्त करने के बावजूद भाजपा विभाजित विपक्ष का लाभ उठाते हुए बहुमत का आँकड़ा आसानी से पार कर गई थी। विपक्ष समझता है कि अब कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल से उनकी सीटों में भारी वृद्धि हो सकती है। पर पिछला चुनाव बताता है कि 186 सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर थी। भाजपा 170 जीतने में सफल रही थी। भाजपा का स्ट्राइक रेट भारी 91.4 प्रतिशत था। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां कांग्रेस का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन बढ़िया रहा था लोकसभा चुनाव में वह नरेन्द्र मोदी से बुरी तरह पिट गई और इन तीन प्रदेशों की 65 सीटों में से वह केवल 3 जीतने में सफल रही। राजस्थान में तो शून्य भी नहीं टूटा। महाराष्ट्र और यूपी से भी केवल 1-1 सीट मिली और राहुल गांधी अपनी अमेठी की सीट भी हार गए। निश्चित तौर पर राहुल गांधी के ‘मैथ्स’ पर सवाल खड़े होंगे। सुधार कैसे और कहाँ से होगा? क्या उत्तर प्रदेश में अपनी ज़मीन हासिल किए बिना कांग्रेस का उद्धार हो सकता है? राहुल गांधी एक साल में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते और शायद वह बनना भी नहीं चाहते पर क्या वह अपनी पार्टी का वोट शेयर बढ़ा सकेंगे ? क्या कांग्रेस की लोकसभा सीटें 52 से बढ़ कर 100 पार कर जाएगी? क्या वह अमेठी को फिर जीतने में सफल होंगे? राहुल गांधी की छवि में बहुत सुधार आया है पर उन्होंने अभी यह प्रदर्शित करना है कि अगर वह विजय नहीं दिलवा सकते तो कम से कम वोट बढ़ा सकते हैँ।
सारा दारोमदार वन-टू-वन पर है कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार खड़ा हो। पर बंगाल या पंजाब या दिल्ली जैसे प्रदेशों का क्या होगा? क्या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस और सीपीएम के लिए कुछ जगह ख़ाली करेगीं ? क्या क्षेत्रीय दल अपनी क़ीमत पर कांग्रेस को बढ़ने देंगे? नवीन पटनायक और वाईएस जगन मोहन रेड्डी विपक्ष के प्रयासों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। क्या आपसी अविश्वास ख़त्म होगा? दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस नेता तो अभी से आप की मदद करने का विरोध कर रहें हैं। क्या पटना में कुछ तय होगा?
विपक्ष को फ़ायदा है कि भाजपा का ग्राफ़ कुछ गिरा है। बहुत कुछ इस साल होने वाले पाँच विधानसभा चुनाव भी तय करेंगे। नौ साल के बाद सरकार के खिलाफ एंटी-इंकमबंसी अर्थात् शासन विरोधी भावना नज़र आने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी के इर्द गिर्द जो अपराजेय का प्रभामंडल निर्मित हो गया था उसमे छिद्र नज़र आने लगे हैं। महिला पहलवानों के मामले में न जाने क्यों सरकार ने अपना गोल कर लिया है। वह ही हठधर्मिता दिखाई जा रही है जो किसान आन्दोलन के समय दिखाई गई है। एफ़आइआर मे लिखा है कि बृजभूषण शरण सिंह महिला खिलाड़ियों के सीने और पेट पर हाथ फेरता था। उनसे सैक्सुअल फ़ेवर माँगता था। सात राष्ट्रीय स्तर महिलाओं ने शिकायत की है। एक नाबालिग भी है पर अभी तक सरकार कह रही है कि क़ानून अपना काम करेगा। जनता और विशेष तौर महिलाओं में क्या संदेश जा रहा है कि अगर आप शक्तिशाली नेता हो तो आपको हाथ लगाने से क़ानून भी घबराता है? अगले साल हरियाणा में चुनाव है जहां पहलवानी एक खेल ही नहीं, संस्कृति का हिस्सा है।
उड़ीसा में बालासोर के नज़दीक भयानक हृदय विदारक रेल दुर्घटना देश को सुन्न छोड़ गई है। जो अपनों की फ़ोटो लेकर लाशों में उन्हें ढूँढ रहे है उनकी क्या दर्दनाक स्थिति होगी अंदाज़ा लगाया जा सकता है। बाक़ी का जवाब तो जाँच देगी पर वह ‘कवच’ कहाँ है जिसके बारे प्रचार किया गया था कि वह ऐसी ही टक्कर को रोकेगा? जनसंख्या के बढ़ते दबाव में नई और तेज ट्रेन की ज़रूरत महसूस हो रही है पर यह विस्तार सुरक्षा की क़ीमत पर नहीं होना चाहिए। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार 2017 से 2021 मे 2017 रेल दुर्घटना हुई थी जिसने 293 लोग मारे गए थे। रिपोर्ट ने ट्रैक में कमजोरी, रखरखाव में कमी, पुरानी सिग्नल प्रणाली और इंसानी गलती को इसके लिए ज़िम्मेवार ठहराया है। इंसानी गलती का तो कोई इलाज नहीं पर प्रणाली में सुधार की ज़रूरत है कि ऐसी भयानक दुर्घटना फिर न हो। क्या रेल मंत्री के इस्तीफ़ा देना चाहिए जो माँग विपक्ष कर रहा है ? राहुल गांधी ने कहा है कि रेल दुर्घटना के ‘बाद कांग्रेस के मंत्री’ ने इस्तीफ़ा दे दिया था। हैरानी है कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का नाम नहीं लिया। ख़ैर, शास्त्री जी जैसे लोग तो विरले मिलते हैं। इस्तीफ़ा देना या न देना व्यक्ति विशेष की अंतरात्मा पर निर्भर करता है। इस देश में अब कौन नैतिक ज़िम्मेवारी लेकर इस्तीफ़ा देता है ? मेरा तो मानना है कि बिहार में दो बार भागलपुर पुल टूटने के बाद सम्बंधित मंत्री तेजस्वी यादव को इस्तीफ़ा देना चाहिए। कांग्रेस को भी याद दिलवाना चाहता हूँ कि उनके समय भोपाल गैस त्रासदी हुई थी जिसमें 3500 लोग तत्काल मारे गए थे और 15000 बाद में मारे गए। किसी ने इस्तीफ़ा तो क्या देना था, यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वैरन एंडरसन को अर्जुन सिंह ने जहाज़ में बैठा कर देश से बाहर कर दिया कि उसे देश के क़ानून का सामना न करना पड़े। लेकिन बालासोर ट्रेन ट्रैजेडी सरकार के लिए धक्का है क्योंकि इस सरकार की बड़ी उपलब्धि, इंफ़्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, पर भी सवाल उठ रहें है। कई बार ज़रूरत से अधिक प्रचार भी उल्टा पड़ता है।
बहरहाल चुनाव को एक साल का समय रह गया है। कांग्रेस आगे से अधिक आशावान और आक्रामक है लेकिन नरेन्द्र मोदी की भाजपा तक पहुँचने के लिए उन्हें बहुत पुल पार करने है। नए संसद भवन का उद्घाटन हो चुका है। अगले साल भव्य राम मंदिर का उद्घाटन भी धूमधाम से हो जाएगा। प्रधानमंत्री की अपनी लोकप्रियता में अभी गिरावट नज़र नहीं आ रही वह बाक़ी सब पर हावी हैं लेकिन नौ साल के शासन ने भाजपा को कमजोर कर दिया है। वह हर चुनाव हिन्दुत्व के नाम पर नहीं जीत सकते और कर्नाटक का परिणाम बता गया है कि लोगों की दिलचस्पी उन मुद्दों में है जो उनके दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं। प्रधानमंत्री का आकर्षण पर्याप्त नहीं होगा जैसा अटलजी को भी 2004 मे समझ आ गई थी। क्या मोदी राजनीति का मैथ्स एक बार फिर अपनी तरफ़ बदलने में सफल होंगे या राहुल गांधी का मैथ्स रंग लाएगा? कौन कह सकता है आख़िर राजनीति खूबसूरत अनिश्चितता का खेल है। किसी का भी हिसाब बिगाड़ या बना सकती है!