मुख़्तार अंसारी, आनन्द मोहन सिंह, अतीक अहमद, बृजभूषण शरण सिंह, जो सब हाल ही में सुर्ख़ियों में रहें हैं, में क्या समानता है? अतीक अहमद तो अब मारा गया पर इन चारों को आजकल की भाषा में बाहुबली कहा जाता है। चारों का लम्बा अपराध का इतिहास रहा है और चारों को राजनीतिक दलों का आशीर्वाद मिलता रहा है। आपराधिक पृष्ठभूमि के बावजूद वह बार बार निर्वाचित होते रहें हैं। अर्थात् पब्लिक को तनिक फ़र्क़ नही पड़ा कि यह सब बड़े बड़े अपराधी है। वास्तव में हमारा राजनीतिक वर्ग ही अपराधियों से भरा हुआ है। वोट बैंक की राजनीति कि कारण सब दलों को इन कथित बाहुबलियों की ज़रूरत है। ‘मेरा अपराधी’, ‘तेरा अपराधी’ अवश्य किया जाता है पर हैं इस हमाम में सब नंगे! आँकड़े डरावने हैं। लोकसभा के 539 निर्वाचित सांसदों में से 233 ने बताया है कि उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामले हैं। 2009 के बाद से अपराधी- सांसदों में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। केरल से कांग्रेस के सांसद डीन कुरियाकोसे के ख़िलाफ़ सबसे अधिक 204 आपराधिक मामले है। लगभग 29 प्रतिशत सांसदों के विरूद्ध रेप,हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण,महिलाओं के खिलाफ अपराध के गम्भीर मामले हैं जिनकी उनहोने खुद घोषणा की है।
वैसे तो कोई भी प्रदेश अपराधी राजनेताओें से अछूता नहीं पर सबसे उपर उत्तर प्रदेश और बिहार हैं जिनकी जातीय और मज़हबी राजनीति इन लोगों का बचाव करती है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ अपराध को ख़त्म करने की कोशिश कर रहें है। अतीक अहमद की पुलिस हिरासत में हत्या से पहले उन्होंने कहा थी कि ‘ इस माफिया को मिट्टी में मिला दूँगा’। यह मानना पड़ेगा कि इस मामले में योगी साम्प्रदायिक भेदभाव नहीं कर रहे। प्रदेश में हुए लगभग 200 एनकाउंटर में से केवल 31 प्रतिशत ही मुसलमानों के विरूद्ध थे बाक़ी मारे गए हिन्दू गैंगस्टर थे जिनमें योगी की ठाकुर जाति के लोग भी हैं। पर योगी आदित्य नाथ भी क्या कर सकते हैं जब विधानसभा में 403 में से 205 विधायकों का क्रिमिनल रिकार्ड हो। उनके ख़िलाफ़ हत्या, रेप, अपहरण जैसे मामले हों। यह भी चिन्ता की बात है कि सबसे अधिक अपराधी भाजपा के पास है क्योंकि जन प्रतिनिधियों की संख्या भी उनके पास अधिक है ।दूसरे नम्बर पर कांग्रेस और तीसरे पर तृणमूल कांग्रेस है। लेकिन ऐसा तो नहीं होना था। सोचा था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार व्यवस्था को साफ़ कर देगी ताकि राजनीतिक ठग अपना प्रभाव और प्रासंगिकता खो बैठेंगे, महिलाऐं सुरक्षित रहेंगी और फिर कोई निर्भया जैसा कांड दोहराया न जाएगा। पर जिस तरह सरकार महिला पहलवानों की उनके सांसद के खिलाफ शिकायतों से निबटी है उससे यह भ्रम ख़त्म हो गया है कि सही बदलाव होगा। जिन चार बाहुबलियों का मैंने शुरू में ज़िक्र किया है उनके मामले देखें जाएँ तो बची खुची आशा भी ख़त्म हो जाती है कि कुछ बेहतरी होगी।
मुख़्तार अंसारी: उत्तर प्रदेश के इस पूर्व विधायक को 1991 के एक मामले में उम्र क़ैद की सजा हुई है। वाराणसी में उसने कांग्रेस के नेता अजय राय के भाई अवधेश राय को उसके घर के सामने भून दिया था। इन तीन दशकों में दोनों अजय राय और मुख़्तार अंसारी पार्टियाँ बदलते रहें और अदालत में लड़ाई लड़ते रहे। अंसारी पाँच बार मऊ सदर चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीत चुका है जिस दौरान उसने 40 के क़रीब गम्भीर अपराधों को अन्जाम दिया। अब वह आख़िरी साँस तक जेल में रहेगा। दो गम्भीर चिन्ताएँ हैं। एक, अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि के बावजूद वह लगातार पाँच बार चुनाव जीत सका। पिछला चुनाव वह नहीं लड़ा और अपनी जगह अपने लड़के को खड़ा किया जो जीत गया। जनता ऐसे अपराधियों में बार-बार विश्वास क्यों प्रकट करती हैं? अगर यह सिलसिला नहीं रूका तो सिस्टम कैसे साफ़ होगा? दूसरी बड़ी चिन्ता हमारी न्यायपालिका की स्लो स्पीड है। हत्या के मामले का फ़ैसला 32 वर्षो के बाद आया। 32 लम्बे वर्ष हमारी न्यायिक प्रणाली क्या करती रही? कितने जज बदले गए? कितने सरकारी वकील बदले गए ? कितने गवाह मर गए? न्यायपालिका की कमजोरी हमारी बहुत सी समस्याओं की जड़ है। अपराधी समझते हैं कि या तो पकड़े नहीं जाएँगे या राजनीतिक दबाव मे छूट जाएँगे। जैसे आनन्द मोहन सिंह के मामले में बिहार में हुआ है।
आनन्द मोहन सिंह: इसका मामला अलग चिन्ता पैदा करता है। यह राजनीतिक दखल है। जिसे मुख़्तार अंसारी की तरह अंतिम साँस तक जेल में रहना था वह घटिया राजनीति के कारण खुली हवा में घूम रहा है। क़िस्सा 5 दिसम्बर 1994 का है जब बिहार के गोपालगंज के डीएम जी.एम.कृष्णैय्या को भीड़ ने गाड़ी से निकाल कर पत्थर और ईंटें मार मार कर मार डाला था। उसके बाद 36 लोग पकड़े गए थे पर केवल आनन्द मोहन सिंह को फाँसी की सजा हुई थी। इस फाँसी की सजा को हाईकोर्ट ने उम्रक़ैद में बदल दिया था। लेकिन आगे चुनाव हैं और आनन्द मोहन एक पावरफुल राजपूत नेता हैं इसलिए नीतीश कुमार की सरकार ने नया तिकड़म लगाते हुए जेल मैनुअल में परिवर्तन कर दिया।जेल मैनुअल कहता है कि किसी सरकारी कर्मचारी की ड्यूटी पर हत्या की सजा उम्रक़ैद से कम नहीं हो सकती। इसको ही बदल कर आनन्द मोहन सहित 27 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया गया है। क़ानून का ही शीर्षासन कर दिया।
यह प्रमाण है कि हमारे राजनेता कितने निर्लज्ज हो गए हैं कि उन्हें केवल वोट की चिन्ता है इस बात का दुख नहीं कि समर्पित अधिकारी की ईंटें मार मार कर हत्या कर दी गई थी। आनन्द मोहन केवल 15 साल जेल में रहा। इससे पहले हम देख चुकें हैं कि कैसे गुजरात में बिलकिस बानो के परिवार के हत्यारों की गुजरात सरकार ने समय से पहले रिहाई कर दी थी और जब वह बाहर आए तो फूल माला और मिठाई के साथ उनका स्वागत किया गया। आनन्द मोहन सिंह का मामला बताता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कितने ख़तरनाक राजनेता है। कोई पार्टी नहीं जिसके साथ उन्होंने दगा नहीं किया। कांग्रेस, भाजपा, राष्ट्रीय जनतादल सबको वह नचा चुकें है। अब आनन्द मोहन सिंह को रिहा कर उन्होंने अपनी असली चेहरा दिखा दिया कि लोकलाज या सार्वजनिक शिष्टता की तनिक भी चिन्ता नहीं। वह भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता के सूत्रधार बनना चाहते हैं। कई कथित लिबरल उन्हे नरेन्द्र मोदी का बड़ा सैक्यूलर विकल्प समझते है। इसीलिए नीतीश कुमार की वह आलोचना नहीं हो रही जो बृजभूषण शरण सिंह प्रकरण को लेकर मोदी सरकार की हो रही है जबकि जो नीतीश कुमार ने किया वह बराबर घटिया है।
अतीक अहमद: इसकी 15 अप्रैल को तीन लडकों ने हत्या कर दी थी जब उसे अदालत के आदेश के अनुसार मेडिकल के लिए ले ज़ाया जा रहा था। हमलावर पत्रकार बन कर आए थे। यह सवाल बना रहेगा कि उनके पास हथियार कहाँ से आए और पुलिस के पहरे में वह निकट आकर अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ़ को कैसे ख़त्म कर सके? वह उत्तर प्रदेश का सबसे कुख्यात अपराधी था जिस पर 100 से अधिक मामले चल रहे थे। वह समाजवादी पार्टी की तरफ़ से सांसद और विधायक दोनों रह चुका था। वह उस फूलपुर चुनाव क्षेत्र से चुना गया जो कभी जवाहरलाल नेहरू का चुनाव क्षेत्र था। मार्च 2023 तक पुलिस उसकी 11684 करोड़ रूपए की जायदाद ज़ब्त कर चुकी है। जहां उसकी मौत से बहुत लोगों को राहत पहुँचेगी सवाल वही है कि ऐसे कुख्यात गैंगस्टर को लोग बार-बार क्यों चुनते है? दूसरा सवाल उत्तर प्रदेश की क़ानून और व्यवस्था पर है कि पुलिस के घेरे में उसे कैसे मारा गया? वह हमदर्दी का पात्र नहीं था पर सजा उसे क़ानून के मुताबिक़ मिलनी चाहिए थी। यह घटनाक्रम यह भी बताता है कि माफिया और राजनीति की दोस्ती साम्प्रदायिकता से उपर है। उल्लेखनीय है कि जिन लड़कों ने उसे मारा उनका कहना था कि वह ‘फ़ेमस’ अर्थात् मशहूर बनना चाहते थे और अपराध की दुनिया में नाम बनाना चाहते थे। अर्थात् देश में हत्या भी एक स्टेट्स सिम्बल बनती जा रही है।
बृज भूषण शरण सिंह: कुश्ती संघ के प्रधान बृज भूषण शरण सिंह का मामला बड़े दिनों से सुर्ख़ियों में है। महिला खिलाड़ियों ने उस पर यौन शोषण के गम्भीर आरोप लगाए हैं पर अभी तक उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ। उसका चुनावी हलफ़नामा उसके आपराधिक अतीत की गवाही देता है। एक वेबसाइट को दी गई इंटरव्यू में उसने स्वीकार किया है कि, “मेरे हाथ से एक हत्या हुई थी”। पर इस हत्या के बाद उस पर कोई मुक़दमा चला हो इसका कोई रिकार्ड नहीं है। वह दाऊद इब्राहीम के शूटर को पनाह देने के आरोप में टाडा में गिरफ़्तार हो चुका है। हैरानी है कि भाजपा जैसी ‘राष्ट्रवादी’ पार्टी को इसे टिकट देने में कोई आपत्ति नहीं है। जब उसे टिकट नहीं दिया गया तो उसकी पत्नी को दे दिया। वह छ: बार सांसद रहा है जिससे पता चलता है कि जनता को उसके विवादास्पद अतीत से कोई दिक़्क़त नहीं। यही कारण है कि सरकार उसके ख़िलाफ़ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने को तैयार नही। अब फिर उसने घोषणा की है कि ‘मैं चुनाव लड़ूँगा,लड़ूँगा, लड़ूँगा’। आत्मविश्वास ग़लत भी नहीं। कोई उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
यह हमारी राजनीति के चार आपराधिक चेहरे है जो सुर्ख़ियों में रहें है। ऐसे असंख्य और होंगे। हर प्रदेश में होंगे, हर पार्टी के पास होंगे। अपराधी हर रंग के मौजूद है। हिन्दू, मुसलमान, दलित, ठाकुर, ब्राह्मण सब हैं। इस मामले में बहुत लोकतांत्रिक मैदान है। क्या कुछ बदलेगा? इसके लिए एक, राजनीतिक दलों को सोच बदलनी होगी। जब तक वह ‘मेरा गैंगस्टर’ को संरक्षण देते रहेंगे देश से अपराध कम नहीं होगा। बिलकिस बानो के परिवारजन की हत्या करने वालों का महिमागान बहुत ग़लत संदेश देता है। क्या अतीक अहमद और उसके भाई के हत्यारों को भी इसी तरह जल्द रिहाई मिल जाएगी आख़िर हत्या करने के बाद उन्होंने भी ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए थे? दो, न्यायपालिका को चुस्त होना पड़ेगा। अगर 1991 की हत्या के मामले का फ़ैसला 2023 मे आएगा तो कोई दंड से नहीं घबराएगा। ऐसे मामलों में सजा टाईम बाउंड होनी चाहिए। तीसरी बड़ी ज़िम्मेवारी हम भारत की जनता की है। जब तक हम निजी स्वार्थों से अपराधियों को वोट देते रहेंगे अपराध फलता फूलता रहेगा। आम शिकायत है कि अपराधियों के मामले में हमाम में सब दल नंगे है, पर कड़वी सच्चाई है कि इस हमाम में हमने भी पैर गीले किए हुए हैं।