खालिस्तानी और चार ‘गोरे’ देश, Khalistan and Four ‘White’ Nations

अमेरिका,कैनेडा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया में क्या समान है ? एक वह सब ईसाई बहुसंख्यक देश हैं। अमेरिका का राष्ट्रपति बाइबल पर हाथ रख कर शपथ लेता है तो इंग्लैंड के किंग चार्लस का राज्याभिषेक वैस्टमिनस्टर एब्बे के रॉयल चर्च में हुआ था। चारों देशों में अंग्रेज़ी बोली जाती है। चारों देश गोरों के अधीन है। बराक ओबामा या ऋषि सुनक जैसे अपवाद हैं। चारों ही देश ब्रिटिश उपनिवेशवाद से जुड़े  है। चारों ही देशों में कथित खालिस्तानी आन्दोलन चल रहा है जो अब हिंसक होने लगा है। और चारों ही सरकारें इसके प्रति वह उदारता दिखा रही है जो समझ से बाहर है। क्या यह पुरानी औपनिवेशिक गोरी मानसिकता है कि इन ‘काले’ लोगों को नियंत्रण में रखने के लिए शरारत होने दो? आख़िर इन चार देशों के सिवाय बाक़ी दुनिया में भी तो भारतीय मूल के लोग बसे हैं वहाँ यह शरारत क्यों नहीं हो रही?  सवाल यह भी उठता है कि जो उदारता इन तथाकथित खालिस्तानियों के प्रति दिखाई जा रही है क्या वह ही उदारता आईएसआईएस या अल क़ायदा जैसे संगठनों से सम्बंधित तत्वों पर भी दिखाई जाएगी? पंजाब में खालिस्तान की कोई माँग नहीं है। सिख जिनका देश के प्रति महान योगदान है इस अभियान से दुखी और परेशान है। भारत में गिरती लोकप्रियता और सिकुड़ती राजनीतिक जगह के कारण वह विदेश में क्लेश खड़ा कर रहें हैं। सिख उग्रवादियों को यहां चुनाव में कभी भी समर्थन नहीं मिला पर हज़ारों मील दूर विदेश में सरकारों की कृपा से यह अभियान ज़िन्दा है और लगातार उग्र हो रहा है। टैरी मिलेवस्की जिन्होंने ‘ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट’ पर किताब लिखी है का कहना है कि “ पश्चिम की सरकारों की कमजोर प्रतिक्रिया ने खालिस्तानियो के लिए दरवाज़े खोल दिए हैं”।

 जिस तरह सिख फ़ॉर जस्टिस के प्रमुख जी एस पन्नू को पश्चिम में भारत के खिलाफ अभियान चलाने की इजाज़त मिली हुई है उससे टेरी मिलोवस्की की बात की पुष्टि होती है। कई बार यह अहसास होता है कि यह  पुरानी चर्चिलयन मानसिकता है जो आज़ाद भारत की तरक़्क़ी को बर्दाश्त नहीं कर पा रही। आख़िर हमारी अर्थव्यवस्था तीन ‘गोरे’ देश, ब्रिटेन, कैनेडा और आस्ट्रेलिया से आगे निकल चुकी है। पन्नू कई बरसों से खालिस्तान को लेकर अभियान चलाए हुए हैं। कई बार कथित रिफरैंडम करवा चुका है। हमारी सरकार बार बार विरोध प्रकट कर चुकी है पर वहाँ कोई ठोस परिवर्तन नहीं आया। उल्टा एक सुनियोजित अभियान के द्वारा  इन चारों देशों में हमारे राजनयिकों के नाम लेकर उन्हें  कैनेडा के एक गुरुद्वारे के बाहर मारे गए आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का ज़िम्मेवार ठहराया जा रहा है और खुली धमकियाँ दी जा रहीं हैं। और यह सरकारें हाथ पर हाथ धरी बैठी है। वैसे अपना घर सम्भालने के प्रति वह इतने गम्भीर है कि अगर कोई अश्वेत कार चालक रोकने पर न रूके तो सीधा गोली से उड़ा दिया जाता है। अमेरिका में ऐसा बार बार हो चुका है। हाल ही में पेरिस में एक 17 वर्षीय अश्वेत को वाहन न रोकने पर गोली से उड़ा दिया गया जिसके बाद देश भर में दंगे भड़क गए। पर अभी तक उन खालिस्तावियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई जिन्होंने मंदिरों पर हमले किए या लंडन में हमारे दूतावास पर चढ़ाई की या सैनफ्रैंसिसको के हमारे वाणिज्य दूतावास को आग लगाई या गांधीजी की मूर्ति को तोड़ा।

हाल ही में तीन प्रमुख खालिस्तानियो की विभिन्न जगह विभिन्न कारणों से मौत हो गई। पाकिस्तान में परमजीत पंजवाड़ की हत्या, लंडन में अवतार खंडा की बीमारी के बाद अस्पताल में मौत और हरदीप निज्जर की गुरुद्वारे के बाहर अपनी कार में मौत के बाद खालिस्तानी अधिक उग्र हो गए है। आस्ट्रेलिया में इस साल  पाँच हिन्दू मंदिरों पर हमले हो चुकें हैं। पदाधिकारियों को फ़ोन पर धमकियाँ मिल रही है।  वहाँ हमारे उच्चायुक्त और मेलबर्न में हमारे वाणिज्य दूतावास  के उच्चाधिकारी की तस्वीरों को सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया कि यह ‘शहीद निज्जर के हत्यारों के चेहरे है’। अमेरिका में 100 दिन में दूसरी बार सैन फ़्रैंसिस्को में हमारे दूतावास पर हमला किया गया और उसे आग लगा दी गई। हैरानी है कि वहाँ कि पुलिस या एफ़बीआई जो ट्रिगर- हैप्पी अर्थात् बहुत जल्द आपा खो बैठने के लिए जानी जाती है, ने  न पहले कोई कार्रवाई की और न अभी तक की गई जबकि हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका की यात्रा कर लौटें है जहां दोनों देशों ने मिल कर प्रेम गीत गए थे। दूतावास पर हिंसा के बाद हरदीप निज्जर की हत्या का ज़िक्र करते हुए वहाँ लिखा है कि ‘हिंसा हिंसा पैदा करती है’।  खालिस्तानियों ने खुलेआम भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह साधु को धमकी दी है।  लेकिन अमेरिकी सरकार के बारे यह ज़रूर कहा जा सकता है कि वह लापरवाह रही है यह नहीं कहा जा सकता कि वह इन उग्रवादियों को समर्थन दे रहें हैं। यही बात ब्रिटेन और कैनेडा की सरकारों  के बारे नहीं कही जा सकती।

 ब्रिटेन में बड़ी संख्या में भारत और पाकिस्तान से गए लोग रहतें हैं जो अपने झगड़े वहाँ ले गए हैं। इन्हें ख़ामोश करने की जगह  इन्हें लड़ने झगड़ने के लिए खुला छोड़ दिया जाता  है। फ़रवरी 1984 में हमने बड़ी क़ीमत चुकाई थी जब कश्मीरी उग्रवादियों ने  बरमिंघम में हमारे  राजनयिक रविन्द्र म्हात्रे का अपहरण कर लिया था। हमारी शिकायत को गम्भीरता से नहीं लिया गया और 48 घंटो के बाद म्हात्रे का गोलियों से छलनी शव बरामद किया गया। जिस प्रकार पश्चिम की राजधानियों में हमारे राजनयिकों के चित्रों के साथ उन्हें ‘किल’ अर्थात् कत्ल करने की धमकी दी जा रही है उससे वह कष्टदायक याद ताज़ा हो गई है। क्या यह देश ऐसी और घटना दोहराने की इंतज़ार में है ? जिस तरह लंडन स्थित हमारे दूतावास पर 19 मार्च को हमला किया गया और अवतार खंडा ने इमारत की बॉलकनी पर चढ़ कर तिरंगे का अपमान किया और लंडन पुलिस तमाशा देखती रही, वह गम्भीर घटना है।  उस दिन हमारे  दूतावास और हमारे लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया था। कुछ भी हो सकता था।  बार बार स्पष्टीकरण यह दिया जाता है कि हम प्रदर्शन रोक नहीं सकते क्योंकि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी है। पर क्या किसी दूतावास पर चढ़ाई करना इस आज़ादी का हिस्सा है ?

हमारे सख़्त विरोध के बाद ब्रिटेन तो कुछ सीधा हुआ है। उनकी अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं चल रही और उन्हें हमारे बाज़ार की ज़रूरत है। लंडन में खालिस्तानियों  का 8 जुलाई का प्रदर्शन नाकाम रहा पर जो देश बिलकुल सीधा होने को तैयार नहीं वह है कैनेडा जो खालिस्तानी साज़िश और उत्तेजना का केन्द्र  बन चुका है। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो भी ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का बहाना बना रहें हैं। ब्लू स्टार की बरसी पर कैनेडा में झांकी निकाली गई जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या का दृश्य दिखाया गया। इंदिरा गांधी को खून से सनी साड़ी डाले दिखाया गया और उनके हाथ खड़े थे।पीछे दो आदमी खड़े थे जिनके हाथों में बंदूक़ थी और उपर लिखा गया था Revenge अर्थात् बदला। कैनेडा में ऐसे पोस्टर लगाए जा चुके हैं जिन पर लिखा था KILL INDIA और नीचे दो भारतीय राजनयिकों के चित्र लगा कर लिखा हुआ था KILLERS IN TORONTO और नीचे उनके मोबाइल नम्बर दिए गए थे। अगर यह हिंसा को उत्तेजना देना नहीं तो और क्या है? ऐसी हरकतें तो उस पाकिस्तान में भी नहीं होती जिसे हम आतंकी देश कहते हैं। और कैनेडा वह देश है जिसकी धरती से उड़ान भरने के बाद खालिस्तानियों ने एयर इंडिया के विमान ‘कनिष्क’ को अटलानटिक महासागर के उपर बम से उड़ा दिया था और 329 लोग मारे गए थे।

कोई और देश होता तो सम्भाल जाता पर जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में तो इस देश की दिशा उल्टी है।  ब्रैम्पटन जैसे शहर  भारत विरोधी गतिविधियों के  केन्द्र बन चुकें है। बार बार वहाँ मंदिरों पर हमले हो चुकें हैं। क्या यह सम्भव है कि वहाँ की एजेंसियों को खबर न हो कि कौन अनसर ऐसी हरकतें कर रहे है? फिर वह ख़ामोश क्यों हैं? उन्हें कथित खालिस्तान में क्या दिलचस्पी है ? उल्लेखनीय है कि वहाँ स्थित सिख समुदाय के भारी हिस्से की इन उग्रवादियों में कोई दिलचस्पी नहीं है। एसोसिएट टाईम्स के सर्वेक्षण के अनुसार वहाँ रहे पंजाबियों में से केवल 2 प्रतिशत ही खालिस्तान के एजेंडे को समर्थन देते है। यह भी बताया गया कि कुछ बेरोज़गार युवक खालिस्तान के नाम पर पैसा इकट्ठा कर रहे हैं। ट्रूडो भारत विरोधी जगमीत सिंह जैसे राजनीतिज्ञ को नाराज़ नहीं करना चाहते इसलिए भी लगाम नही कसना  चाहते।   समय आगया है कि ऐसी सरकारों को बता दिया जाए कि भारत विरोधी ताक़तों का समर्थन करने की उनकी कोई भी मजबूरी हो इससे भारत के साथ उनके रिश्तों पर असर पड़ेगा।  उन्हें यह भी बताने की ज़रूरत है कि ऐसे अराजक तत्व हाथ से निकल सकते हैं। पाकिस्तान के कई नेता यह पछतावा प्रकट कर चुके हैं कि उन्होंने आतंकवादियों को पाला जो उनके लिए ही मुसीबत बन चुकें हैं। हिलेरी कलिंटन ने पाकिस्तान को यह नसीहत दी थी कि अगर आप अपने पिछवाड़े में साँप पालोगे तो यह उम्मीद मत रखो कि वह केवल आपके पड़ोसियों को ही डँसेंगे।  यह नसीहत विशेष तौर पर कैनेडा और ब्रिटेन को याद रखनी चाहिए। ब्रिटेन की पिछली सरकार द्वारा बनाई ब्लूम कमेटी ने सावधान किया था कि ‘सिख उग्रवाद’ उनके देश के लिए बढ़ता खतरा है।  जिसे भारत हिंसा की वकालत कहता है उसे जस्टिन ट्रूडो जैसे ‘फ़्रीडम ऑफ एक्सप्रैश्न’ अर्थात् अभिव्यक्ति की आज़ादी कहते हैं। फ़्रांस की क्रान्ति का प्रसंग है। मैडम रोलैंड उन लोगों में से थी जिनका इस क्रांति के शुरू करने में बड़ा हाथ था। उनका विशेष तौर पर पर लिबर्टी अर्थात् आज़ादी में बहुत विश्वास था पर एक दिन उनका ही सर काट दिया गया। जब उन्हें ले ज़ाया जा रहा था तो रास्ते मे गॉडस लिबर्टी की मूर्ति थी जिसे देख कर मैडम रोलैंड ने कहा, जो शब्द आज तक याद किए जातें हैं, “ ऐ लिबर्टी, तेरे नाम पर कैसे कैसे अपराध हो रहें हैं!” इन ‘गोरे’ देशों का दोमुंहापन देख कर हम भी कह सकते हैं, ‘ऐ फ़्रीडम ऑफ एक्सप्रैश्न, तेरे नाम पर कैसे कैसे अपराध हो रहें हैं’!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.