इस देश में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार होते रहते हैं। यह केवल एक प्रदेश या एक क्षेत्र तक सीमित भी नहीं हैं पर मणिपुर में दो महिलाओं के साथ जो हुआ वह तो पाशविकता और क्रूरता की हर हद पार कर गया हैं। हम चरित्रहीनता के सभी रिकॉर्ड पार कर गए हैं। 16 दिसम्बर 2012 का निर्भया कांड याद आता है अंतर यह है कि 4 मई को मणिपुर में जो घटा वह सारे देश ने देख लिया, और सारी दुनिया ने देख लिया। दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर सरेआम घुमाया गया। फिर एक के साथ खुलेआम गैंगरेप किया गया। एक पीड़िता ने बताया है कि पुलिस भीड़ के साथ थी और उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया। एक ने तो आरोप लगाया है कि पुलिस ने ही उन्हें भीड़ को सौंप दिया। क्या यह आज का भारत है? हमारे तो नेता दावा करते हैं कि हम दुनिया को दिशा दिखाएँगे पर यहाँ तो महिलाओं के साथ वह दरिन्दगी की गई जिसकी कहीं और मिसाल नहीं मिलती। जब आप किसी घाव को खुला सड़ने दो तो वह विषैला हो जाता है। कई महीनों से मणिपुर जातीय टकराव के कारण जल रहा था पर परवाह नहीं की गई। उस मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के हवाले छोड़ दिया जिनका लापरवाह कहना है कि, ‘आप लोगों को एक केस दिख रहा है, यहाँ सैकड़ों ऐसे मामले हैं’। प्रधानमंत्री ने कहा है कि, ‘मेरा हृदय क्रोध से भर गया है। देश शर्मसार हुआ, दोषियों को छोड़ेंगे नहीं’। काश! वह पहले चेतावनी दे देते तो शायद देश इस तरह शर्मसार न होता। यह भी दुख की बात है कि प्रधानमंत्री मणिपुर के मुद्दे पर संसद में बोलने को तैयार नही। देश को वह ही आश्वस्त कर सकते हैं।
इस वीडियो से देश की रूह काँप उठी है। आप किसी भी पार्टी या विचारधारा के समर्थक हो अगर इस बर्बरता से आप विचलित नहीं हुए तो आप में इन्सानियत की कमी है। कहा जा रहा है कि महिलाओं के खिलाफ राजस्थान, बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार आदि में भी तो अत्याचार होते है। बंगाल में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर चोरी के आरोप में पीटा गया। बाक़ी प्रदेशों से भी समाचार हैं पर क्या वहाँ की घटनाएँ मणिपुर की घटना को कम वीभत्स बनाती हैं? क्या दो ग़लतियाँ मिल कर एक सही बनती है? क्या दरिंदगी की ऐसी घटनाओं पर भी तुच्छ राजनीति होगी?। बाक़ी प्रदेशों में तो सरकारों ने तत्काल कदम उठा कर दोषियों को पकड़ लिया पर मणिपुर की घटना के बारे प्रदेश की सरकार ने अजब और ग़ज़ब की निष्क्रियता और नालायकी दिखाई। हालत यहाँ तक पहुँच गए कि सुप्रीम को कहना पड़ा कि ‘सरकार एक्शन ले नहीं तो हमें लेना पड़ेगा’। मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बैंच का कहना था कि, ‘वीडियो देख कर हम बहुत परेशान है। महिलाओं को हिंसा के साधन की तरह इस्तेमाल करना अस्वीकार है…”।
मणिपुर की स्थिति अत्यंत जटिल है। प्रदेश मैदान में रह रहे मैतेई और पहाड़ों में रह रहे जनजाति कुकी और नागा के बीच बँटा है। झगड़ा हाईकोर्ट के फ़ैसले से शुरू हुआ कि ग़ैर जनजाति मैतेई समुदाय को भी जनजाति की श्रेणी में शामिल किया जाए। मैतेई जो अधिकतर हिन्दू हैं पहाड़ों में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते पर अब जनजाति का दर्जा मिलने के बाद यह पाबंदी हट जाएगी। जनसंख्या का 64 प्रतिशत हिस्सा मैतेई के पास अभी केवल 8 प्रतिशत ज़मीन है। हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद बवाल मच गया और जनजाति कुकी के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। कोई और सरकार होती तो क़ानून और व्यवस्था पर निगरानी रखती पर वहाँ की बीरेन सिंह सरकार सोई रही और यह अनर्थ हो गया। महिलाओं को निर्वस्त्र करने की घटना 4 मई की है। एफआईआर 18 मई को दर्ज की गई पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 19 जुलाई को वीडियो वायरल होगया। अगले ही दिन पहली गिरफ़्तारी हो गई। उसके बाद भी गिरफ़्तारियाँ हो रही है। अगर देश को शर्मसार करने वाला वीडियो बाहर न निकलता तो क्या यह सरकार अपनी ज़िम्मेवारी को त्याग कर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती? कार्यवाही इसलिए करनी पड़ी क्योंकि और देर आँखें बंद कर बैठा नहीं जा सकता था? क्या ऐसी असंवेदनशील और निर्लज्ज सरकार तो बने रहने का कोई अधिकार भी है? क्या समय नहीं आगया कि केन्द्र बीरेन सिंह को बर्खास्त कर वहां किसी अच्छे प्रशासक को तैनात करें ताकि हिंसा और पागलपन का यह कुचक्र रूक सके?
यह बहुत संवेदनशील जनजाति इलाक़ा है। इस घटना में सारे उत्तर पूर्व को अस्थिर करने और हमारे दुश्मनों को दखल देने का मौक़ा मिल सकता है। राज्य वहाँ ध्वस्त हो चुका है। दो बातें नज़र आ रही हैं। 1.क़ानून और व्यवस्था जैसी कोई चीज वहाँ बची नहीं। सशस्त्र मॉब इधर उधर घूम रहें हैं। महिलाओं और परिवारों पर अत्याचार हो रहें हैं। 2. दोनों समुदायों के बीच विश्वास बिलकुल टूट चुका है। समाजिक ताना बाना पूरी तरह से फट चुका है जिसके भयंकर दुष्परिणाम निकल रहें हैं। जातीय दरारें चौड़ी हो गई है। गृह युद्ध जैसी स्थिति बन रही है। प्रदेश और उसके साथ वाले इलाक़ों को सम्भालना चुनौती होगा।
वहाँ ढाई महीने में सरकारी मालखाने से 3 हज़ार बंदूक़ें और 6 लाख गोलियाँ लूटी गईं। ऐसी अराजकता तो जम्मू कश्मीर में मिलिटैंसी के चरम काल में भी नहीं देखी गई। डेढ़ हज़ार महिलाओं की भीड़ ने सेना के क़ब्ज़े से 12 उग्रवादी छुड़वा लिए जिनमें 18 सैनिकों की मौत का मास्टर माइंड भी शामिल है। एक रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षाबलों के सामने दोनों कुकी और मैतेई एक दूसरे पर अंधाधुंध फ़ायरिंग कर रहें हैं। खूब आगज़नी हो रही है। जिन दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया उनमें से एक रिटायर्ड सूबेदार की पत्नि है जिसने कारगिल के मोर्चे पर बहादुरी दिखाई थी। अब वह दुखी कह रहा है कि “मैंने मोर्चे पर देश को बचाया पर अपनी पत्नि की लाज नहीं बचा सका”। इस फ़ैज़ी को कौन सांत्वना देगा? मणिपुर में तो रेप को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। रोज़ाना सौ के क़रीब एफ़आइआर दर्ज की जाती हैं जिन में से एक तिहाई महिला उत्पीड़न के मामले हैं। इम्फ़ाल में एक केन्द्रीय मंत्री का घर जलाए जाने की घटना के बाद वहाँ रह रहे रिटायर्ड ले.जनरल एल. निशिकांत सिंह ने लिखा है, ‘ स्टेट अब स्टेटलेस’ अर्थात् राज्य राज्यविहीन हो गया है। वह आगे लिखतें हैं, “ जीवन और जायदाद किसी भी समय किसी के भी द्वारा नष्ट किए जा सकते हैं। जैसे लिबिया,लेबेनॉन, सीरिया,नाइजीरिया आदि में हो रहा है। क्या कोई सुन रहा है”? इस मंत्री के घर पर सोमवार फिर हमला हो गया।
उत्तर पूर्व की बड़ी समस्या है कि यहाँ बहुत तरह की जनजाति रहतीं हैं जिनका परस्पर विरोधी इतिहास रहा है। विशेष तौर पर नागालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर में अतीत में बहुत टकराव रहा है। एक प्रदेश में झगड़ा आम तौर पर दूसरे प्रदेश तक पहुँच जाता है। मिज़ोरम में कई वर्ष पहले मामला शांत हो गया था। नागालैंड को शांत करने में केन्द्रीय सरकार ने बहुत मेहनत की है। मणिपुर भी सही दिशा में चल रहा था कि अब वहाँ लगी आग मिज़ोरम तक पहुँच गई है। नागा अपनी जगह विचलित है कि जनजाति महिलाओं पर अत्याचार किया गया। मणिपुर के पड़ोसी राज्य मिज़ोरम से 10 हज़ार मैतेई लोगों ने असम और मणिपुर की तरफ़ पलायन शुरू कर दिया है। सम्भावना है कि यह पलायन बढ़ेगा और सारे पूर्वोत्तर को अपनी लपेट में ले सकता है। इस क्षेत्र में तनाव से देश की सुरक्षा को चुनौती मिल सकती हैं, ऐसी चेतावनी सुरक्षा विशेषज्ञ दे रहें है। सैनिक मामलों के टिप्पणीकार रिटायर्ड मेजर जनरल अमृतपाल सिंह लिखतें हैं, “जून के शुरू में इम्फ़ाल के आसपास पुलिस के शस्त्रागार से भीड़ ने 3000-5000 आधुनिक हथियार जिनमें एके-47 और स्नाईपर राईफले और भारी संख्या में गोला बारूद शामिल है, लूट लिए …स्थिति बहुत जल्द हाथ से निकल सकती है”। आपसी अविश्वास ऐसा है कि मैदान में भी और पहाड़ों में भी एक दूसरे को ढूँढते अवैध संगठन खुलेआम घूम रहे हैं।
म्यांमार से मणिपुर की निकटता बाहरी तत्वों के दखल की सम्भावना को बल देती है। भारत की आंतरिक समस्याओं को और जटिल बनाने में चीन और पाकिस्तान की सदैव दिलचस्पी रही है। चीन पूर्वोत्तर में बाग़ियों की मदद पहले भी कर चुका है। दूसरा इससे भारत की छवि मैली हो रही है ठीक उस समय जब हम जी-20 की अध्यक्षता कर रहे हैं। विदेशी मीडिया में मणिपुर की खबरों को प्रमुखता दी जा रही है। अमेरिका के राजदूत मदद की पेशकश कर चुकें हैं। यह क्या होगी शायद उन्हें भी नहीं मालूम होगा। कि यह पीड़ित महिलाएँ ईसाई समुदाय से सम्बन्धित है के कारण पश्चिम की कई राजधानियाँ विचलित हो सकती है।
लेकिन इस सब से महत्वपूर्ण है कि हम अपना घर सम्भाले। यह आग और नहीं फैलनी चाहिए। यह राजनीतिक तू तू मैं मैं का मामला नहीं है। यह देश के अति संवेदनशील क्षेत्र के अमन और चैन से जुड़ा हुआ है। विश्वास की बहाली होनी चाहिए। पहला कदम मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाना होना चाहिए। वह सबका विश्वास खो चुके हैं और उनका पद पर बने रहना अब मान्य नहीं है। राज्य ध्वस्त हो चुका है। अफ़सोस है कि संसद में ऐसे ज्वलंत मुद्दे पर बहस नहीं हो रही। 60000 लोग विस्थापित है, 200 के क़रीब मारे जा चुकें है पर संसद में नियमों को लेकर टकराव चल रहा है। उत्तर पूर्व के लोगों की शिकायत रही है कि दिल्ली उनसे दूर है। दिल्ली उनको सही साबित करने में लगी है। इस वीडियो ने देश और दुनिया के सामने वहाँ की नंगी तस्वीर रख दी है। किसी भी महिला के शरीर का उल्लंघन चाहे कारण कुछ भी हो, अस्वीकार्य है। मणिपुर के समाज में दरारें तो पहले से मौजूद थीं पर वह अब और चौड़ी हो गई हैं पर जैसे ले. जनरल एल. निशिकांत सिंह ने सवाल किया है, क्या कोई सुन रहा है? जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं? कहाँ हैं?