जैसी सम्भावना थी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव गिर गया। विपक्ष का कहना है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सदन में बुलाना चाहते थे और मणिपुर के बारे विचार रखने के लिए मजबूर करना चाहते थे। इनका यह सीमित लक्ष्य तो पूरा हो गया पर लोकसभा में लम्बी और कई बार उबाऊ बहस सुनने के बाद कह सकता हूँ कि दोनों विपक्ष और सत्तापक्ष ने ही देश के साथ न्याय नहीं किया। बहस के बाद यह अहसास है कि जैसे हम ख़ाली हाथ रह गए, कुछ भी प्राप्त नहीं किया। राहुल गांधी ने उस समय भाषण दिया जब भारत जोड़ों यात्रा के कारण और जिस तरह हड़बड़ी में उनकी सदस्यता छीन ली गई थी और यहाँ तक कि बेघर कर दिया गया था, उससे उनके प्रति सहानुभूति थी। लोग उन्हें सुनने के लिए उत्सुक थे । उनका कहना था कि ‘मैं दिमाग़ से ही नहीं दिल से बोलूँगा’। काश! वह दिल के साथ दिमाग़ से भी बोलते। उनके भाषण में तथ्य कम थे हिस्टीरिया अधिक था। उन्होंने बताया कि कैसे वह मणिपुर में एक कैम्प में दो महिलाओं से मिले जिनमें से एक ऐसी माँ थी जिसका बेटा उसके सामने गोली से उड़ा दिया गया। यह बहुत भावुक क्षण था सब इंतज़ार में थे कि वह वहाँ की त्रासदी की भयावहता को देश के सामने रखेंगे। आख़िर वह उस त्रस्त मणिपुर हो कर आए थे जहां प्रधानमंत्री अभी तक नहीं पहुँचे।
लेकिन राहुल गांधी ने निराश किया। भयंकर मानवीय त्रासदी पर केन्द्रित रहने की जगह वह नरेन्द्र मोदी पर बरस पड़े और अशिष्टता की हर सीमा पार कर गए। ‘रावण’, ‘देशद्रोही’, ‘अहंकारी’ बहुत कुछ कह गए। कहना था कि ‘भारत माता की हत्या मणिपुर में की गई’ और ‘आपने मणिपुर में केरोसिन फेंक चिंगारी लगा दी। हरियाणा में भी वही कर रहे हैं’। जिन्होंने समझा था कि वह सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकेंगे को उनकी बहकी बहकी बातों से निराशा हुई होगी। वह ज़रूरत से अधिक नाटकीय थे। शायद बार-बार भारत माता का ज़िक्र कर वह भाजपा से राष्ट्रवाद का मुद्दा छीनना चाहते थे और भारत माता की उनकी अवधारणा को चैलेंज करना चाहते थे पर वह मौक़ा खो गए। उल्टा वह सरकार को प्राईम टाईम पर अपनी बात कहने का मौक़ा दे गए जिसका पहले अमित शाह और बाद में नरेंद्र मोदी ने दो-दो घंटे के भाषण देकर खूब फ़ायदा उठाया। रही सही कसर राहुल गांधी द्वारा दी गई कथित ‘फलाईंग किस’ ने पूरी कर दी कि वह वास्तव में गम्भीर नहीं थे। एक बार वह पहले ज़बरदस्ती प्रधानमंत्री से लिपट चुकें है और उसके बाद मज़ाक़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया को आँख मार कर बता चुकें हैं कि देखा मैंने क्या कमाल कर दिया। जब जब देश राहुल गांधी को गम्भीरता से लेना शुरू करता है वह कुछ न कुछ ऐसा कर देते हैं कि प्रभाव धुंधला हो जाता है। उन्हें समझना चाहिए कि वह जवाहरलाल नेहरु और फ़िरोज़ गांधी- इंदिरा गांधी के वंशज है। उन्हें सदैव गरिमायुक्त रहना चाहिए। अमित शाह अपनी बात ज़ोर से कहतें हैं पर उन्होंने कभी अशिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं किया।
राहुल गांधी के सामने भी कई प्रकार की बाधाओं हैं। बड़ी बाधा है कि कांग्रेस देश के बड़े हिस्से में कमजोर है। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, बंगाल में अस्तित्व ही नहीं रहा। बिहार और महाराष्ट्र में वह सहयोगियों पर आश्रित हैं। इसके बावजूद राहुल गांधी अब विपक्ष के सबसे महत्वपूर्ण नेता है। उन्हें यह श्रेय भी जाता है कि मणिपुर की त्रासदी को मज़बूती से राष्ट्रीय चेतना में स्थापित करने में सफल रहें हैं। शरद पवार की पार्टी का विभाजन हो चुका है और खुद उनका पता नही कि वह किधर बह जाएँ। नीतीश कुमार, ममता बैनर्जी आदि का प्रभाव अपने अपने प्रदेश तक सीमित है। अरविंद केजरीवाल ने भी समझौता कर लिया लगता है कि अभी उनका समय नहीं आया और वह अकेले भाजपा का मुक़ाबला नहीं कर सकते। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 12 करोड़ और 19 प्रतिशत वोट मिले थे ( भाजपा को 23 करोड़ और 37 प्रतिशत वोट)। चार प्रदेशों में इनकी सरकारें हैं। अर्थात् भाजपा का सामना कांग्रेस को गठबंधन के केन्द्र में लेकर ही किया जा सकता है। इस कांग्रेस के केन्द्र में राहुल गांधी स्थापित हो चुकें हैं। 130 दिन की भारत जोड़ों यात्रा ने उन्हें पार्टी में सर्वोच्च बना दिया है। अब वह 2 अक्तूबर से गुजरात में पोरबंदर से अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर निकलने वाले है। इससे भी उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी विशेष तौर पर इसलिए भी क्योंकि भाजपा के नेताओं ने लोगों के बीच जाना बंद कर दिया है।पर ज़रूरी है कि राहुल गांधी अपनी छवि न केवल एक संवेदनशील इंसान की बल्कि एक ज़िम्मेवार राजनेता की बनाने की कोशिश करें।
उत्तर प्रदेश की कमजोरी बहुत तकलीफ़ दे रही। है। बहुत महत्व रखेगा कि राहुल गांधी स्मृति ईरानी का चैलेंज स्वीकार करतें हैं और फिर अमेठी से चुनाव लड़ते हैं या नहीं? पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस आप के बाद दूसरे नम्बर पर हैं। बहुत कुछ मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनावो पर भी निर्भर करता है। दूसरा, अभी विपक्ष का ‘इंडिया’ गठबंधन बहुत सार्थक नहीं बन सका। संसद में भी कई बार तालमेल की कमी नज़र आई। विपक्ष बहुत धीमी गति से चल रहा है जबकि चुनाव में एक वर्ष से कम का समय रह गया है। अभी तक साँझे कार्यक्रम की कोई रूपरेखा सामने नहीं आई, सीटों का बँटवारा कब और कैसे होगा? कांग्रेस विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी है उससे बड़ी क़ुर्बानी अपेक्षित होगी। आशा है 31 अगस्त को मुम्बई में होने वाली ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक से कोई स्पष्टता दिखेगी।
इसी के साथ यह भी तय करना है कि राहुल गांधी की अपनी भूमिका क्या होगी? विपक्ष को भी साथ लेकर कौन चलेगा? अतीत में राहुल गांधी के नेतृत्व का अनुभव अच्छा नही रहा विपक्षी नेता उनसे अधिक सोनिया गांधी से सहज हैं। आग बुझाने के काम में प्रियंका गांधी भी अधिक समझदार है। राहुल आर पार की राजनीति करते हैं जो बड़े विपक्षी गठबंधन के लिए उपयुक्त नहीं है। बड़ा सवाल है कि क्या वह यह लड़ाई मोदी बनाम राहुल बनाना चाहते हैं या एनडीए बनाम ‘इंडिया’ ? भाजपा इसे मोदी बनाम राहुल चुनाव बनाना चाहेगी यह जानते हुए कि चाहे वृद्धि हुई है पर लोकप्रियता में राहुल अभी मोदी के सामने टिक नहीं सकते। ऐसा कर वह ‘इंडिया’ गठबंधन को भी डराना चाहेंगे कि कांग्रेस का विस्तार उनकी क़ीमत पर होगा। 2024 की रेस शुरू हो चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने बता ही दिया कि अगले साल भी वह ही लालक़िले से देश को सम्बोधित करेंगे!
लेकिन समस्या भाजपा के सामने भी है। चाहे नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है पर सरकार को 10 साल बाद शासन विरोधी भावना का सामना करना पड़ सकता है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के परिणामों ने संकेत दे ही दिया था। भाजपा के पास केवल हिन्दुत्व का मुद्दा बचा है। बेरोज़गारी और महंगाई से जनता त्रस्त है। गैस सिलेंडर ही 1100-1200 रूपए तक पहुँच गया है। कुछ सालों में हम तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएँगे, जैसे प्रधानमंत्री ने भी कहा है , पर इसका फल नीचे तक क्यों नहीं पहुँच रहा ? अजीत पवार को मिला कर राजनीति में शुचिता का मुद्दा भी गँवा लिया गया है। बहुत बड़ा नुक़सान मणिपुर की घटनाओं के बारे लम्बी चुप्पी से हुआ है। संसद में लम्बे भाषण में प्रधानमंत्री ने मणिपुर के बारे बहुत कम बोला। भावनात्मक स्पर्श जिसके लिए नरेन्द्र मोदी विख्यात है, ग़ायब था। लालक़िले से अपने सम्बोधन के द्वारा कुछ भरपाई की कोशिश की गई है। उनका कहना था कि देश मणिपुर के साथ है। यही बात अगर उन्होंने कुछ सप्ताह पहले कहीं होती तो हालात कुछ और होते। मणिपुर का मुद्दा, विशेष तौर पर वह शर्मनाक वीडियो, देश भर में गूंज रहा है। मैंने पिछले दिनों मीडिया के कुछ छात्र -छात्राओं के साथ वर्तमान स्थिति पर वार्तालाप किया है। सब मणिपुर को लेकर सवाल कर रहे थे। छात्राऐं विशेष तौर पर उत्तेजित थीं।
आज़ादी का अमृत महोत्सव समाप्त हो गया है पर हम अमृतकाल में रह रहे हैं जो 2047 तक चलेगा। इस दौरान भारत तरक़्क़ी करेगा।2030 तक हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे और उससे अगले दो दशकों में हम दूसरे नम्बर पर हो सकते हैं। यह विशेषज्ञ कह रहें हैं। यह उस देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी जिसे अंग्रेज कंगाल छोड़ गए थे। पर इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपना घर सही रखें, तरक़्क़ी का फल नीचे तक पहुँचे और देश में साम्प्रदायिक सौहार्द रहे। मणिपुर और नूंह जैसी घटनाऐं और देश में बढ़ रहा समाजिक तनाव हमें पटरी से उतार सकता है। सुप्रीम कोर्ट के बार बार कहने के बावजूद हेट- स्पीच पर रोक नहीं लग रही। अफ़सोस है कि जो दरारें बढ़ रही है उन्हें पाटने का भी कोई प्रयास नहीं हो रहा। कहीं सब को साथ लेकर शान्ति -मार्च नहीं निकाला जा रहा जैसे पहले होता था। अगर बढ़ती नफ़रत पर रोक नहीं लगाई जाती तो देश को बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है। हमारी अनेकता हमारी ताक़त है। असली तरक़्क़ी तब होगी जब अमन और चैन होगा। लड़ता झगड़ता भारत विश्वगुरु नहीं बन सकता।
इस बीच हिमाचल प्रदेश से अत्यंत हृदय विदारक समाचार मिल रहे हैं। रविवार से लगातार बारिश के कारण अनेक जगह भूस्खलन और बादल फटने के समाचार मिल रहे हैं। लगभग सब नदियाँ उफान पर हैं। बहुत सड़कें और रेल लाइनें टूट गई है। लोग दहशत में हैं। शिमला में ही कई मकान गिर गए हैं। क्योंकि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ कमजोर हैं इसलिए भारी बारिश को बर्दाश्त नहीं कर सकते इसलिए जगह जगह भूस्खलन हो रहा है, चट्टाने खिसक रही है। तीन दिन में 55 मौतें हो चुकीं हैं। इस मानसून सीजन में 300 के क़रीब लोग जान गवां चुकें हैं। 1400 मकान ढह चुके है और 10000 के क़रीब मकान क्षतिग्रस्त हैं। 7000 हज़ार करोड़ रूपए की सरकारी या ग़ैर सरकारी जायदाद तबाह हो चुकी है। लोग भी असुरक्षित जगह निर्माण करतें है। पर यह अलग बात है। अभी तो देश के सबसे शांत और सुन्दर प्रदेश जिसने कभी कोई राष्ट्रीय समस्या खड़ी नहीं की, को मदद की ज़रूरत है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखु ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की माँग की है। आशा है केन्द्र सरकार इस प्रदेश की उदारता से मदद करेगी ताकि वह फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकें।