हम रोज़ कितने सिगरेट पीते हैं? How Many Cigarettes Do We Smoke Daily?

बारिश से अचानक मौसम साफ़ हुआ था और कुछ राहत मिली थी पर यह सब अस्थाई रहा।  दिवाली की रात चले पटाखे सब बराबर कर गए। प्रदूषण से फिर दम घुट रहा है। अख़बारों की सुर्ख़ियों चीख चीख कर बता रही है कि दिल्ली गैस चेम्बर बन गया है। पंजाब मे जलाई जा रही पराली को इसके लिए ज़िम्मेवार ठहराया जा रहा है। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की सरकारें एक दूसरे पर दोषारोपण का खेल खेल रहीं हैं।  नाराज़ सुप्रीम कोर्ट सरकारों को लगातार फटकार लगा चुका है कि हमें बातें नहीं, एक्शन चाहिए, हम प्रदूषण से लोगों के मरने नहीं दे सकते। दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी घोषित किया गया है।  दिल्ली सरकार ने एक बार फिर वाहनों के लिए ऑड-ईवन योजना लागू करने की घोषणा कर दी थी( बारिश के बाद यह अस्थाई तौर पर रोक दी गई है)।  न केवल दिल्ली बल्कि उतर भारत के हर शहर में साँस की तकलीफ़ के मरीज़ों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। नासा की तस्वीरें बता रही हैं कि ज़हरीला स्मॉग पाकिस्तान से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ है। बताया जा रहा  है कि प्रदूषण से ज़िन्दगी घट जाती है, कैंसर तक हो सकता है।  कोई विशेषज्ञ कह रहा हैं कि हम रोज़ 40 सिगरेट के बराबर पीते हैं, तो कोई कह रहा हैं कि हम 30 सिगरेट रोज़ पीतें है।

पर क्या प्रदूषण की यह फ़िल्म हमने पिछले साल नही देखी थी?और उससे पिछले साल? और उससे भी पिछले साल, वास्तव में कई दशकों से देख रहें हैं? क्या अगले साल भी यही होगा? यही सुर्ख़ियाँ दोहराई जाएँगी? यही सिगरेट हम पीते जाऐंगे?

दिल्ली वासियों ने नीला आकाश पिछली बार कब देखा था? पंजाब में हालत कुछ बेहतर है पर बचपन में छत पर चढ़ कर जो स्पतार्षि तारामंडल हम देखा करते थे वह आज क्यों नज़र नहीं आते? देश का स्वाभाविक ध्यान दिल्ली की शोचनीय हालत पर रहता है पर दिवाली के बाद देश के 245 शहरों में हवा गंदी थी और 52 शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक एक्यूआई 300 से उपर था, अर्थात् हवा बेहद ख़राब थी।  यह समस्या केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं यह सारे देश में फैली हुई है।  मुम्बई के बारे इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार शहर के उपर  घनी भूरी धुँध छाई हुई है और शहर “एक प्रकार से हवा के लिए हाँफ रहा था”। फ़रवरी में स्विस कम्पनी आइक्यू एयर ने मुम्बई को विश्व का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया था। क्योंकि प्रदूषण किसी सीमा की परवाह नहीं करता इसलिए लाहौर भी सबसे प्रदूषित शहर घोषित हो चुका है। लाहौर और कराची दोनों प्रदूषित शहरों में गिने जा चुकें है पर असली समस्या हमारी है। सर्वेक्षण यह बतातें हैं कि दुनिया में सबसे प्रदूषित 30 शहरों में भारत महान के 22 शहर हैं। यह कैसी ज़िन्दगी है ? हम अपनी और अपने बच्चों की सेहत और कल्याण के प्रति इतने लापरवाह क्यों है? सरकारें भी और लोग भी। या फिर  हालात हमारे नियंत्रण से बाहर हो गए हैं और हम रोज़ाना दर्जनों सिगरेट पीने के लिए मजबूर हैं?

दिल्ली के प्रदूषण के संदर्भ में पंजाब के खेतों में हर साल जलाई जा रही पराली को ज़िम्मेवार ठहराया जा रहा है। हाँ, पराली जलाने का न केवल दिल्ली बल्कि खुद पंजाब की हवा पर बुरा असर पड़ता है। पर केवल पराली जलाना इस समस्या के लिए ज़िम्मेवार नहीं हैं, चाहे इस समय यह बड़ा योगदान डालता है। अगर पंजाब में जलाई जाने लाली पराली ही अपराधी होती तो मुम्बई में आजकल स्काईलाइन क्यों नज़र  नहीं आती? हैदराबाद प्रदूषित क्यों होता? दूर उड़ीसा तक के शहर भी प्रदूषित क्यों हैं? 2022 में दिल्ली की हवा केवल 68 दिन संतोषजनक रही थी। पराली तो आजकल जलाई जाती है, बाक़ी 297 दिन क्या हुआ?  विशेषज्ञ बताते हैं कि पराली जलाने से प्रदूषण में 38 प्रतिशत योगदान है तो बाक़ी 62 प्रतिशत के लिए कौन ज़िम्मेदार है? इनके बारे वह सक्रियता क्यों नहीं देखने को मिल रही जो पराली के बारे नज़र आती है?  सैंटर ऑफ सांईस एंड एनवायरनमैंट की विशेषज्ञ अनुमिता रॉय चौधरी का सही कहना है कि, “फसल का जलाना केवल दिल्ली में प्रदूषण के भयानक प्रसार के लिए ज़िम्मेवार नहीं हो सकता था अगर वाहनों के उत्सर्जन जैसे स्थानीय कारक ने पहले ही राजधानी की हवा को ज़हरीला न बना दिया होता… प्रदूषण का बड़ा हिस्सा स्थानीय स्रोतों से आ रहा है। अगर हम इन पर ध्यान नहीं देते और एक फ़ैक्टर पर केन्द्रित रहते हैं तो हम समस्या का समाधान नहीं निकाल सकते…स्थानीय स्रोतों के कारण प्रदूषण की दर  पहले ही बहुत ऊँची है”।

हक़ीक़त है कि दिल्ली के प्रदूषण में पंजाब में पराली जलाने से अधिक स्थानीय फ़ैक्टर अधिक ज़िम्मेवार है। जब तक वहाँ वाहनों का उत्सर्जन कम नहीं होता, उद्योग और निर्माण पर कुछ नियंत्रण नहीं लगाया जाता, दिवाली पर लोग संयम नहीं दिखाते, तो यह समस्या ख़त्म नहीं होगी। दिल्ली में मैट्रो के बावजूद सार्वजनिक परिवहन पर्याप्त नहीं है। राजधानी में 80 लाख वाहन है जो रोज़ाना 280 लाख चक्कर लगाते हैं। इनसे कितना प्रदूषण फैलता है? सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हम पराली से लोगों को मरने नहीं दे सकते, पर अगर वह वाहन प्रदूषण से मरते हैं तो क्या वह सही होगा? अब तो बड़ी  ईंधन फूँकती एसयूवी आम हो गईं। ईवी भी बिकने लगी है पर महँगी है और पर्याप्त चार्जिंग स्टेशन नहीं है। वाहन प्रदूषण को ख़त्म करने का इलाज केवल ईवी है जिसके लिए परिवहन नीति में परिवर्तन करना होगा। दिल्ली में हर साल 6 लाख नए वाहन सड़कों पर उतरतें है और रोज़ाना बाहर से लाखों वाहन प्रवेश करतें है। दुनिया के बड़े शहरों में लोग साइकल का बहुत इस्तेमाल करते पर यहाँ वह कलचर तैयार नहीं हो सकी। वाहनों के प्रदूषण को कम करने की तरफ़ पूरा ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? इसलिए कि जिन्होंने नीति निर्धारित करनी है वह खुद दोषी है ? वह अपने लाइफ़स्टाइल में कोई क़ुर्बानी करने को तैयार नही और किसान को कोसना आसान है।

पर पंजाब में पराली जलाए जाने की समस्या को गहराई से देखने की ज़रूरत है, केवल कोसना ही काफ़ी नहीं। चाहे पंजाब ने हरियाणा को  भी ज़िम्मेवार ठहराया है पर 93 प्रतिशत पराली पंजाब में जलाई जाती है। हवा की गुणवता का अध्ययन कर रही संस्था के अनुसार सितंबर 15 से नवम्बर 7 के बीच पंजाब में पराली जलाने के 22644 मामले हुए थे। यह गम्भीर मामला है क्योंकि इससे खुद पंजाब का अहित हो रहा है। धान की फसल जिसके अवशेष बाद में पराली बन कर जलते हैं, खूब पानी पीने वाली फसल है जिस कारण पंजाब का वॉटर टेबल बहुत नीचे जा रहा है। इस फसल का विकल्प ढूँढने की बहुत ज़रूरत है पर याद रखने की भी जरूरत है कि पंजाब में धान की बुवाई केन्द्र सरकार ने देश में खाद्य सुरक्षा के लिए शुरू करवाई थी और इसके लिए एमएसपी घोषित की गई। पंजाब ने इसकी बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई है पर अब पंजाब ही विलेन बना दिया गया है। पराली जलाना ग़ैरक़ानूनी और ग़ैर ज़िम्मेवार है। इससे किसान और उसके परिवार की सेहत भी प्रभावित होती है पर वह मजबूर है। अब अगर उसे हटाना है तो उसे प्रलोभन देना होगा और मदद करनी होगी।

हरित क्रान्ति के जनक एम एस स्वामीनाथन ने एक बार कहा था कि “पराली जलाने का समाधान अवशेष को री-साइकल कर दौलत में बदलना है”। इस मामले में कुछ प्रयास किया गया है पर यह इतना नहीं कि किसान धान की फसल बोने से परहेज़ करने लग पड़े या उसका अवशेष जलाना बंद कर दे। कृषि विशेषज्ञ दवेन्द्र शर्मा ने लिखा है “ किसान फसल के पैटर्न में बदलाव के खिलाफ नहीं है। उन्हें व्यवहारिक विकल्प दो तो वह स्वीकार कर लेंगे”। उसे विकल्प देना केन्द्रीय और प्रादेशिक सरकारों की ज़िम्मेवारी है। केवल डंडे से काम नहीं चलेगा। दिवाली के दिन पटाखे न चलाने के आदेश का भी कोई असर नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट भी बेबस है। दिल्ली में कई जगह तो एक्यूआई 999 तक पहुँच गया था। उससे उपर यंत्र  रिकार्ड  नहीं कर सकता।लोगों ने जम कर पटाखे फोड़े। न केवल दिल्ली, दिवाली की रात सारे देश में खूब पटाखे चले थे। जालंधर में मैंने पहले कभी इतना प्रदूषण नहीं देखा जितना इस दिवाली की रात देखा है। घर के अन्दर  प्रदूषण मापने वाला यंत्र 499 के बाद ख़ामोश हो गया क्योंकि वह इससे उपर माप नहीं सकता। अर्थात् लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी धज्जियाँ उड़ा दी। पुलिस भी कहीं नज़र नहीं आई। समस्या केवल दिल्ली की ही नहीं, सारे देश की है और अगर लोग तैयार न हों तो चाहे पटाखों पर बैन हो या पराली जलाने पर बैन हो, वह सफल नहीं हो सकता। जब तक लोग अधिक ज़िम्मेदार नहीं बनते और दूसरों का ध्यान नहीं रखते हालत सुधरेगी नहीं बल्कि और बिगड़ने की सम्भावना है।

हमारे महानगर बहुत भीड़ वाले और अशासनीय  बन चुकें हैं। जब तक छोटे शहरों और गाँवों में रोजगार की स्थिति बेहतर नहीं होती यह पलायन रूकने वाला नहीं। जैसे जैसे देश तरक़्क़ी करेगा अधिक निर्माण होगा और लोग अधिक वाहन ख़रीदेंगे। देश में बढ़ते औद्योगीकरण से कारख़ानों, निर्माण कार्य और वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण बढा है, और बढ़ता जाएगा। सर्दियों में यह समस्या अधिक रहती है। पर दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की छवि के लिए यह अच्छा नहीं कि हम दुनिया का आठवाँ सबसे प्रदूषित देश भी है। ब्रांड -इंडिया पर गहरे प्रदूषण का साया है। अफ़सोस है कि सारे शोर शराबे के बावजूद साफ़ सुथरी हवा हमारी प्राथमिकता में नहीं है। हम ही नहीं, आने वाली पीढ़ियाँ भी हमारी तरह सिगरेट पीती जाएँगी।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.