यह हमारी नई रॉयल्टी है, They Are Our New Royalty

यह वह घटना है जिसने सारे देश को स्तंभित छोड़ दिया है। हमारे राजनीतिक इतिहास में शायद ही कभी इस स्तर की दरिंदगी देखी गई हो। कम से कम मैंने अपने 50 साल के पत्रकारिता अनुभव में ऐसा कभी नहीं सुना था। यौन -अपराध तो सदैव से दुनिया में रहें हैं। गूगल सर्च करो तो आधुनिक समय में सबसे कुख्यात रेपिस्ट ने 200 शिकार किए थे पर पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.देवेगौड़ा का पौत्र सांसद प्रज्वल रवेन्ना तो सब कुख्यात रिकार्ड तोड़ गया है। बताया जाता है कि उसके 2976 पोर्न वीडियो हैं जो महिलाओं से ज़बरदस्ती करते वक़्त उसने खुद बनाए हैं। हर उम्र की महिलाओं का अपने घर में यौन शोषण किया गया। महिलाऐं रहम की भीख माँगती रही थी। घर में काम करने वाली एक महिला का वीडियो भी है जो मिन्नत कर रही है, “मेरा रेप मत करो। मैं 68 साल की हूँ। मैंने तुम्हारे दादा और पिता दोनों को खाना खिलाया है”। प्रज्वल रवेन्ना इस वक़्त जर्मनी भाग गया है। जिन कई सौ महिलाओं के साथ इस जानवर ने ज़बरदस्ती की उनमे घर में काम करने वाली महिलाओं के अतिरिक्त सरकारी कर्मचारी, पार्टी कार्यकर्ता और वह महिलाएँ शामिल हैं जो काम करवाने उसे मिलने आईं थीं। उन्हें चुप रखने के लिए कुकृत्य की रिकार्डिंग भी की गई। वैसे भी लोकलाज और ताकतवार राजनेता के डर से यह महिलाऐं ख़ामोशी से बर्दाश्त करने पर  मजबूर हैं। अफ़सोस यह भी है कि राजनीतिक वर्ग को बहुत समय से इस घटना का ज्ञान था लेकिन इसके बावजूद उसे हासन से टिकट दिया गया और प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक सभा में उसके लिए वोट माँगा और कर्नाटक की कांग्रेस की सरकार तब तक हरकत में नही आई जब तक वह जर्मनी के लिए उड़ नहीं गया।

सवाल है कि हमारी राजनीति में और ऐसे कितने है? महिलाओं की इज़्ज़त के प्रति ऐसी लापरवाही क्यों है? मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के बड़े नेता रहे,मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने एक बार रेप के बारे कहा था, “लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है”। गलती! बस इतना सा मामला है? किसी की ज़िन्दगी तबाह करने और सारी उम्र के लिए अशांत और कलंकित छोड़ना इस ‘माननीय’ नेता के लिए मात्र ‘गलती’ थी?

प्रज्वल रवेन्ना प्रकरण इस बात का ही प्रमाण नहीं कि राजनीति में एक वर्ग कितना गिर चुका है यह इस बात का प्रमाण भी है कि राजनीति में दंड से बेख़ौफ़ी का किस तरह का वातावरण है। नेता ही नहीं कई बार तो उनकी औलाद और भी अधिक बेधड़क हो जाती है। ‘तुम जानते नहीं कि मैं कौन हूँ’, की संस्कृति आम है। पंजाब के ‘काके’ विख्यात हैं। समझ लिया गया कि अगर कभी फंस गए तो राजनीतिक प्रभाव बचा लेगा, नहीं तो आजकल दलबदल करने का विकल्प है ही। प्रज्वल तो पूर्व प्रधानमंत्री का पोता है। बाप और चाचा दोनों प्रभावशाली राजनेता है। परिवार का कर्नाटक में विशेष तौर पर वोक्कालिगा समुदाय पर प्रभाव है जिस कारण हर राजनीतिक दल को कर्नाटक की असंतुलित राजनीति में उनके साथ की ज़रूरत पड़ती है। राजनीति ऐसे लोगों को अभय दान देती है। अय्याश और भ्रष्ट ऐसे लोग हमारी नई रॉयल्टी है, हर कानून और दंड से यह उपर हैं। यही कारण है कि महिला पहलवानों के द्वारा यौन शोषण के गम्भीर आरोप लगाने के बावजूद बृज भूषण शरण सिंह का आज तक बाल भी बाँका नहीं हुआ। उसका पूर्वी उत्तर प्रदेश के पाँच छ: चुनाव क्षेत्रों पर प्रभाव है इसलिए चाहे उसका टिकट काट दिया गया पर भाजपा उसके बेटे कर्ण को टिकट देने के लिए मजबूर है। यह भी दिलचस्प है कि रोज़ परिवारवाद की दुहाई देने वालों को न प्रज्वल रवेन्ना और न ही कर्ण सिंह पर कोई आपत्ति है। एक तीसरी पीढ़ी है तो दूसरा दूसरी पीढ़ी है, पर हैं तो यह भी ‘डॉयनास्ट’।

कर्ण सिंह को टिकट देने पर ओलम्पिक मेडल जीतने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक का कहना था, “ भारत की बेटियाँ हार गईं हैं”। पर बेटियों की चिन्ता किसे है? सब कुछ राजनीति है। महिला सशक्तिकरण की बहुत बात की जाती है, महिला आरक्षण क़ानून पारित हो चुका है पर इसका क्या फ़ायदा जब महिलाओं की इज़्ज़त आरक्षण पास करने वाले कुछ नेताओं या उनकी औलाद से सुरक्षित नहीं है? ऐसा केवल भारत में ही नहीं, अमेरिका में महिला उत्पीड़न के अनेक आरोप लगने के बावजूद डॉनल्ड ट्रम्प के अगले राष्ट्रपति चुने जाने की प्रबल सम्भावना है। हमारे चुनावों पर निगरानी रखने वाली संस्था एडीआर के अनुसार संसद के 40 सांसदों पर आपराधिक मामलें हैं जिनमें 25 प्रतिशत ऐसे हैं जिन पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, रेप और महिलाओं के प्रति दूसरे अपराध शामिल हैं, के आरोप हैं। 21 सांसद ऐसे हैं जिनके ख़िलाफ़ महिला उत्पीड़न के मामले हैं जिनमें चार हैं जिन पर रेप के मामले दर्ज हैं। पश्चिम बंगाल में संदेशखाली के तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहाँ शेख और उसके गुंडों पर महिला उत्पीड़न और क़ब्ज़े के प्रयासों के अनेकों केस हैं। यह तब है जब वहाँ एक महिला मुख्यमंत्री की सरकार है पर ममता बैनर्जी भी बार बार प्रदर्शित कर चुकीं हैं कि नैतिकता पर उनकी राजनीति हावी रहती है।

 प्रज्वल अकेला नहीं पर वह तो पाशविकता का हर रिकार्ड तोड़ गया। कि बाक़ी का राजनीतिक वर्ग चुनाव तक ख़ामोश रहा मामले को और गम्भीर बना देता है। ख़ामोश रहने की साज़िश में सब शामिल थे। यह भी दुख की बात है कि पिछले साल अदालत ने स्थगन आदेश जारी किया कि मीडिया उसके वीडियो जारी नहीं करेगा ताकि ‘उसकी प्रतिष्ठा को आघात न पहुँचे’। यह क्रूर विडंबना है कि जो ताकतवार है वह अपनी कथित प्रतिष्ठा को बचाने में सफल हो जाते हैं पर जो पीड़ित हैं वह लांछन लगने के बाद कलंकित हो जातीँ है। इस मामले में कई महिलाओं जिनके वीडियो सार्वजनिक हुए हैं अपने परिवार समेत घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर है। कई के चरित्र पर पति ही शक कर रहें हैं। यह बेक़सूर ज़िन्दगी भर के लिए दागी हो गईं है,उनकी ज़िन्दगी नरक बना दी गई है।

अब एसआईटी ने प्रज्वल के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया है। मुहावरा याद आता है कि घोड़ा तो भाग गया अब अस्तबल को ताला लगाने का क्या फ़ायदा ! उसे समय रहते क्यों नहीं पकड़ा गया? कर्नाटक के भाजपा नेता देवराज गौडा ने दिसम्बर 2023 को अपने प्रदेश अध्यक्ष बी.व्हाई.विजेंदर को पत्र लिखा था “अगर हम जद(एस) के साथ तालमेल करते हैं और जद(एस) प्रत्याशी(प्रज्वल रवेन्ना) को हासन से नामांकित करता हैं तो यह वीडियो ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग किए जाऐंगे और हम ऐसी पार्टी की तरह कलंकित हो जाऐंगे जो बलात्कारियों के परिवार से समझौता करती है”। लेकिन इस चेतावनी के बावजूद समझौता किया गया और हासन से प्रज्वल को उम्मीदवार बनाया और प्रधानमंत्री ने उसके लिए वोट माँगा। न केवल वह बल्कि उसका बाप और देवेगौड़ा का पुत्र एचडी कुमारस्वामी भी यौन शोषण का अपराधी है और उसे गिरफ़्तार कर लिया गया है। देवेगौडा के प्रति सहानुभूति है कि देश के प्रधानमंत्री रहने के बावजूद बेटे और पौत्र के कारनामों के कारण सारे परिवार का नाम मिटी में मिल गया है। पर इतिहास साक्षी है कि जब बुजुर्ग सच्चाई से आँखें मूँद लेते हैं तो कई बार यह तबाही का कारण बन जाता है। अगर भीष्म पितामह चीरहरन न होने देते तो महाभारत न होता। जब द्रौपदी उनकी निष्क्रियता पर सवाल करती है तो वह कमजोर जवाब दे कर कि ‘धर्म सूक्ष्म’ है अपना बचाव करते हैं। पर उनकी बेबसी विनाश मचा देती है।

प्रज्वल ने यह सोच लिया होगा कि वह कर्नाटक के प्रमुख परिवार से है, किस गरीब महिला की हिम्मत होगी कि उसके ख़िलाफ़ आरोप लगाए? आख़िर वह खुद सांसद है। दादा पूर्व प्रधानमंत्री हैं। चाचा पूर्व मुख्यमंत्री हैं। और बाप विधायक है। जब बाप खुद महिलाओं का शोषण करता रहा हो तो वैसे भी बेटे को ग़लत राह पर चलने से कैसे रोक सकता है? बाप के बारे तो बताया जाता है कि वह महिलाओं को ‘स्टोर में ले जाता था’। क्या इस वर्ग की कोई जवाबदेही नहीं, विशेष तौर पर अगर आप सत्तापक्ष के साथ हो? उन्नाव रेप कांड की पीड़ित लड़की पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर को सजा दिलवाने में सफल रही पर उसे बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी। पिता की ‘हिरासत में मौत हो गई’। उस पर अवैध हथियार रखने का झूठा केस बनाया गया था। सेंगर के खिलाफ भी कार्रवाई तब शुरू हुईं जब लड़की ने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के घर के आगे आत्महत्या का प्रयास किया था। 

महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं जारी की जाती है पर उन्हें वास्तव में बराबरी देने या सम्मान देने के मामले में गम्भीरता नहीं दिखाई जाती। ममता बैनर्जी और जयललिता दोनों प्रभावशाली नेत्री रहीं है पर दोनों को जलील करने की कोशिश की जाती रही। जब वह विपक्ष की नेता थीं तो सदन के अंदर जयललिता की साड़ी खींचने तक की कोशिश की गई। करने वालों में द्रुमुक के मंत्री और विधायक थे। राष्ट्रीय महिला आयोग भी कई बार सक्रियता नहीं दिखाता। लेकिन असली ज़िम्मेवारी शिखर पर बैठे लोगों की है कि वह वोट की चिन्ता छोड़ कर सही परम्पराऐं क़ायम करें। याद रखना चाहिए कि गठबंधन धर्म निभाते निभाते मनमोहन सिंह की सरकार इतनी बदनाम हो गई थी कि लोगों ने बोरिया बिस्तर गोल कर दिया था। उनकी निजी ईमानदारी भी मनमोहन सिंह की सरकार को बचा नहीं सकी। ऐसे समझौतों का लगा धब्बा मिटता नही।  

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.