क्या राहुल गांधी टार्गेट हैं?, Is Rahul Gandhi A Target?

अक्तूबर 1984 के शुरू की बात है। हम वीरेंद्र जी के साथ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके कार्यालय में मिले थे। ब्लू स्टार के बाद उस वक़्त पंजाब उबल रहा था। पिताजी ने इंदिराजी को सावधान करते हुआ कहा “आप टार्गेट हैं”। इस पर उनका जवाब था, “ हूँ नहीं, पर बनाई जा रही हूँ”। 31 अक्तूबर को उनकी बात सही साबित हो गई जब घर के अन्दर ही उनकी हत्या कर दी गई। आज जब कुछ लोग राहुल गांधी के खिलाफ हिंसा की बात कर रहें हैं मेरे ज़हन में इंदिराजी की बात गूंज रही है। क्या अब राहुल गांधी को टार्गेट बनाया जा रहा है?

जब से राहुल गांधी अमेरिका से लौटें है उनके विरोधियों में उनको गालियाँ निकालने की होड़ सी लगी है। इस पर आपत्ति नहीं क्योंकि राजनीति में यह चलता है, चिन्ता तब होती है जब हिंसा उकसाई जाती है। राहुल गांधी को लेकर चिंता इसलिए भी है क्योंकि परिवार में पहले ही इंदिरा गांधी और राजीव गांधी शहीद हो चुकें है। केन्द्रीय मंत्री और नए भाजपाई रवनीत सिंह बिटटू ने उन्हें ‘आतंकी नम्बर 1’ कहा है। उत्तर प्रदेश के मंत्री रघुराज सिंह ने बिट्टू की बात दोहरा दी है। शिवसेना के एक विधायक ने राहुल की ज़बान काटने वाले को 11 लाख रूपए देने की घोषणा की है। भाजपा के एक सांसद अनिल बोंडे ने कहा कि राहुल की जीभ ही नहीं काटनी चाहिए, उसे जला दिया जाना चाहिए।एक भाजपा नेता ने तो यहाँ तक कह दिया, “राहुल गांधी बाज़ आ जा नहीं तों आने वाले टाईम में तेरा भी वही हश्र होगा जो तेरी दादी का हुआ था”।

हैरानी की बात केवल यह ही नहीं कि धमकी दी गई बल्कि यह भी कि इनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की गई। हमारे देश ने कई राजनीतिक हत्या हो चुकी है पर हमने कोई सबक़ नहीं सीखा। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या को देश और दुनिया आज तक नहीं भूल सकी। महात्मा गांधी की हत्या इसलिए हुई क्योंकि एक वर्ग में उनके ख़िलाफ़ नफ़रत फैला दी कि वह हिन्दू विरोधी हैं। दुख की बात है कि ऐसा प्रचार आज तक चल रहा है। जिन्हें दुनिया आजतक पूजती है की हमारे लोगों ने ही हत्या कर दी। जब इंसान नफ़रत में अंधा हो जाता है तो उसकी सोचने की शक्ति उसे छोड़ जाती है। सोशल मीडिया यह बीमारी बढ़ा रहा है। हमारे देश में बहुत लोग है जो समझते हैं कि उन्हें न्याय नहीं मिला या उनकी बात कोई नहीं सुनता। देश में बढ रही असमानता भी असंतोष पैदा कर रही है। जब यह असंतोष नफ़रत की सीमा पार कर जाता है तो इंसान बेसुध हो जाता है।

राजनीतिक वर्ग की यह ज़िम्मेवारी बनती है कि वह शब्दों पर नियंत्रण रखें ताकि कोई और हादसा न हो। हमारे देश का तापमान आजकल पहले ही बहुत ऊँचा है उस पर तेल डालने से वह भड़क सकता है। सभ्य संवाद की गुंजायश कम होती जा रही है। 13 दिसम्बर 2001 को जब हमारी संसद पर हमला हुआ तो प्रधानमंत्री वाजपेयी और सोनिया गांधी ने फ़ोन कर एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछा। आज ऐसा भाईचारा ख़त्म हो चुका है। यह नहीं कि कांग्रेस और गांधी परिवार इस मामले में मासूम हैं। तेलंगाना के एक कांग्रेसी विधायक ने घोषणा की है कि जो बिट्टू का सर कलम कर लाएगा उसे वह एक एकड़ पुश्तैनी ज़मीन ईनाम में देगा। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे को गिनाया है कि दस वर्षों में कांग्रेस के नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी को 110 गालियाँ दी हैं। सोनिया गांधी ने उन्हें “मौत का सौदागर” कहा था। फ़रवरी 2020 में राहुल गांधी ने खुद कहा था कि, “यह जो नरेन्द्र मोदी भाषण दे रहा है, छह महीने बाद वह घर से बाहर नहीं निकल सकेगा। हिन्दोस्तान के युवा इसको ऐसा डंडा मारेंगे…”। अगर यह हिंसा उकसाना नहीं तो और क्या है? यह अच्छी राहुल की ‘मुहब्बत की दुकान’ है जो नफ़रत और हिंसा बेचती है? कांग्रेस के नेता सुबोध कांत सहाय कह चुकें हैं कि “अगर मोदी हिटलर के रास्ते पर चलते हैं तो वह ही हश्र होगा जो हिटलर का हुआ था।“ यह उस व्यक्ति के बारे कहा गया जो हर समय खतरें में हैं और देश का प्रधानमंत्री है। अर्थात् दोनों ही तरफ़ वह है जो लोगों को भड़का रहे हैं। इस प्रयास के विनाशक परिणाम निकल सकते है,जैसे पहले कई बार हो चुका है।

राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा विवादास्पद रही है। जब भी वह विदेश जातें हैं तो देश में लोकतंत्र खतरें में है की शिकायत करते है। एक बार तो विदेश में कह चुकें हैं कि भारत में लोकतंत्र ख़त्म हो गया है। यह तो सही है कि हमारा लोकतंत्र परफ़ेक्ट नहीं है पर यह खतरें में नहीं है। अगर वह खतरें में होता तो दोस्त, तुम प्रतिपक्ष के नेता न बनते ! न वह बंगला मिलता, न वह सिक्योरिटी मिलती और न ही वह रुतबा होता। लोगों ने भाजपा की 63 सीटें कम कर बता दिया कि लोकतंत्र ख़तरे में नहीं है और साथ ही भाजपा नेतृत्व को सख़्त संदेश भेज दिया कि वह अप्रसन्न हैं।इंदिरा गांधी के समय एमरजैंसी लगी और राजीव गांधी के समय प्रेस की आज़ादी को सीमित करने का असफल प्रयास किया गया। राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा के दौरान भी उनकी टीम ने इंडिया टुडे के पत्रकार के साथ धक्का मुक्की की और उसका फ़ोन छीन कर राहुल का इंटरव्यू डिलीट कर दिया। क्या यह अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा हो रही थी? अर्थात् लगभग सब सरकारें लोकतंत्र से छेड़खानी की दोषी है पर लोग भी साफ़ संदेश दे रहें हैं कि उन्हें संविधान से छेड़खानी बिल्कुल पसंद नही। यही कारण है कि सरकार का ‘वन नेशन वन पोल’ प्रयास सफल नहीं होगा क्योंकि यह संविधान की मूल भावना से छेड़खानी करता है।

राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा में उनका सबसे बेतुका बयान सिखों के बारे था। यह आभास मिलता है कि वह वहाँ समस्या खड़ी करने का प्रयास कर रहें हैं जहां समस्या है ही नही। उनका कहना था कि, “भारत में लड़ाई इस बात को लेकर है कि क्या सिखों को देश में पगड़ी डालने या कड़ा पहने की अनुमति होगी? क्या वह गुरूदवारे जा सकेंगे?” क्या राहुल सचमुच समझते हैं कि देश में सिखों की धार्मिक आज़ादी को कोई ख़तरा है? सारे देश में एक भी ऐसा मामला नहीं है। सिखों की देश में वह इज़्ज़त है जो किसी भी और समुदाय की नही है। विदेश में बैठे खालिस्तानी तत्व ज़रूर छवि ख़राब कर रहे है। देश के अन्दर भी कुछ उग्रवादी तत्व है लेकिन वह मुख्यधारा नहीं है। कोलकाता से एक रिपोर्ट के अनुसार वहां महिलाऐं उस टैक्सी में जाना पसंद करती हैं जो सरदार चला रहा होता है। एयर मार्शल अमरप्रीत सिंह अगले वायुसेना अध्यक्ष बन रहे है। जहां ऐसा विश्वास और ऐसी इज़्ज़त हो कोई कह सकता है कि सिखों की पगड़ी या कड़ा पहनने या गुरुद्वारे जाने की आज़ादी खतरें में है ?

राहुल गांधी के अनुचित बयान का  दुष्परिणाम यह हुआ कि विदेश में बैठे खालिस्तानी तत्वों को कहने का मौक़ा मिल गया कि हम तो पहले ही कहते थे कि सिख वहाँ खतरें में है इसलिए खालिस्तान चाहिए। खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने तत्काल राहुल गांधी की बात का समर्थन कर दिया। क्या राहुल चाहतें हैं कि वह पन्नू जैसे के साथ खड़े दिखाई दें? पहले ही कैनेडा की सरकार इन तत्वों को बढ़ावा दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले व्हाइट हाउस में अमेरिकी अधिकारियों ने कथित सिख मामलों को लेकर सिख उग्रवादियों के साथ बैठक की है। यह सामान्य नहीं है। अर्थात् कुछ विदेशी सरकारें भी मामला जीवित रखना चाहती हैं। पाकिस्तान के  पत्रकार डा.कमर चीमा के शो में वह एक और पत्रकार साजिद तरार से राहुल गांधी के बयानों पर चर्चा कर रहे थे। दोनों ने सिखों के बारे राहुल की बात पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि, “ सिख तो मुख्यधारा का हिस्सा हैं…राहुल को कौंसलिंग(सलाह) की ज़रूरत है। उनकी मदर को उन्हें समझाना चाहिए… वह मैच्योर नहीं लग रहे”।

ऐसी आलोचना राहुल गांधी ने खुद आमंत्रित की है। देश के अन्दर वह समझदार नज़र आतें हैं पर विदेश में जाकर उत्तेजित होकर बहक जाते हैं। उन्हें लोगों की समस्याओं पर केन्द्रित रहना चाहिए पर वह वैचारिक बहस में फँस जाते है। यह भी सवाल उठता है कि क्या विदेश में जाकर अपने गंदे कपड़े धोने चाहिए? बेहतर होगा कि इस मामले में आम सहमति बना ली जाए क्योंकि राहुल गांधी ही नहीं नरेन्द्र मोदी भी विदेश में देश की आलोचना कर चुकें है।

राहुल गांधी को जब जब देश गम्भीरता से लेने लगता है तो वह कुछ ऐसा कर देते हैं या कह देतें हैं कि संशय हो जाता है कि वह बड़ी ज़िम्मेवारी के लिए उपयुक्त भी है या नहीं? लेकिन इसके बावजूद उनके ख़िलाफ़ जो हिंसा प्रेरित की जा रही है वह निन्दनीय है। विश्व इतिहास राजनीतिक हिंसा की मिसालों से भरा हुआ है। अमेरिका के चार राष्ट्रपति गोलियों का निशाना बन चुकें हैं लेकिन इसके बावजूद वहाँ राजनीतिक भाषा में हिंसा टपकती रहती है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने समर्थकों से कहा है कि “डानल्ड ट्रम्प को हर हाल में रोकना है” और डानल्ड ट्रम्प का कहना है कि “अगर मैं जीतता नहीं तो खून की नदियाँ बह जाएँगी”। ऐसी ही शब्दावली का परिणाम हैं कि ट्रम्प पर दो हमले हो चुकें हैं। हमें ऐसी शब्दावली और उसके दुष्परिणामों से बचना है। राजनीतिक मतभेद को दुश्मनी और नफ़रत तक खींच कर नहीं ले जाना। अगर हिंसा की भाषा आम हो गई तो कोई भी टार्गेट बन सकता है। शायर ने सावधान किया है,

                  मेरे आशियाँ का तो ग़म न कर कि वह जलता है तो जला करे,

                  लेकिन इन हवाओं को रोकिए ये सवाल चमन का है !

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.